Sep ११, २०१६ १५:२२ Asia/Kolkata

इन दिनों स्वस्थ्य पर्यावरण के मार्ग में एक और ख़तरा समुद्रों और महासागरों का दूषित होना है।

कुवैत के पर्यावरण संबंधी क्षेत्रीय कन्वेन्शन के पहले अनुच्छेद में समुद्र के दूषित होने का अर्थ इंसान का प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से समुद्री पर्यावरण में ऊर्जा या ऐसे पदार्थ डालना है कि जिसने नतीजे में जैविक स्रोतों को नुक़सान पहुंचने, इंसान के स्वास्थ्य के लिए ख़तरा, मछली पकड़ने सहित समुद्री गतिविधियों के मार्ग में रुकावट पैदा होने, समुद्र के पानी की इस्तेमाल की दृष्टि से गुणवत्ता में गिरावट और सुख सुविधा के साधनों में कमी जैसी मुश्किल पैदा हो। इस परिभाषा के अनुसार यह कहा जा सकता है कि आज कल समुद्र और महासागर सबसे ज़्यादा दूषित होने की स्थिति में हैं। पानी के जहाज़ और तेल टैंकरों के ईंधन के टैंक की सफ़ाई से होने वाला प्रदूषण, औद्योगिक अपशिष्ट पदार्थ, घरेलू, वनस्पतिक, पाशविक, खनिज, औद्योगिक व रासायनिक गंदगी का समुद्र में पहुंचना, समुद्र के दूषित होने के सबसे बड़े तत्व हैं। इसलिए यह कहा जा सकता है कि सिर्फ़ प्राकृतिक स्रोतों का अंधाधुंध दोहन ही समुद्री पर्यावरण के नुक़सान पहुंचने का कारण नहीं है बल्कि इंसान का समुद्र और महासागर को कूड़ेदान के रूप में इस्तेमाल करना भी समुद्री पर्यावरण के दूषित होने का कारण है।

शोध के अनुसार, समुद्र और महासागर के दूषित होने का तीन चौथाई हिस्सा खुश्की से पहुंचने वाली गंदगी है। ये गंदगियां अपशिष्ट पदार्थ के रूप में सीधे ख़ुश्की से समुद्र में या नदियों के ज़रिए समुद्र तक पहुंचती हैं। इसका कारण कृषि और उद्योग के गंदे पानी को ढेर करने के साधन का अभाव है यही कारण है ये गंदे पानी बिना रोकटोक नदियों या समुद्र में पहुंचते हैं।

1997 की संयुक्त राष्ट्र संघ की रिपोर्ट के अनुसार, एटलांटिक महासागर में लगभग 70 फ़ीसद गंदा पानी बिना साफ़ सफ़ाई के पहुंचा था। भूमध्यसागर के तटवर्ती देशों के बारे में संयुक्त राष्ट्र संघ की पर्यावरण से संबंधित एक रिपोर्ट के अनुसार, 7.1 अरब घन मीटर शहर का गंदा पानी सीधे तौर पर समुद्र में पहुंचता है जिसका तीन चौथाई भाग साफ़ नहीं हुआ होता।

अलबत्ता उत्तर और दक्षिण के देशों में इस संकट के पैदा होने में एक जैसी स्थिति है। विकासशील देशों में बढ़ती आबादी, वित्तीय संभावनाओं व विशेषज्ञता के अभाव के कारण, ये देश पर्यावरण प्रदूषण की समस्या को लगाम नहीं लगा पा रहे हैं। मिसाल के तौर पर मिस्र में इस्कंदरिया खाड़ी, गंदे पानी को छोड़ने के कारण इतनी दूषित हो गयी है कि इस खाड़ी के अबूकर लंगरगाह जैसे स्थान जीव विज्ञान की दृष्टि से निर्जीव समझे जाते हैं।                      

यद्यपि कष्टदायक कीड़े-मकोड़ों और अनावश्यक घास-फूस को ख़त्म करने वाले रासायनिक पदार्थ सहित अन्य ज़हरीले पदार्थ के इस्तेमाल से धरती के एक भाग के निवासियों को पर्याप्त खाद्य पदार्थ मिल जाता है किन्तु लोगों को आम-तौर पर इसके नक़ुसान के बारे में कुछ नहीं मालूम। यूनेस्को के समुद्रविज्ञान के अंतर्राष्ट्रीय आयोग में समुद्री प्रदूषण के कार्यक्रम के पूर्व अधिकारी रे ग्रीफ़िथ का मानना है कि इन रासायनिक उत्पाद का अतिरिक्त हिसा ख़ुश्की से नदियों और परिणाम स्वरूप नदियों से समुद्र पहुंच जाते हैं जिनसे संभव है समुद्री जीवों के विकास ख़ास तौर पर जवान कीटडिंभ के विकास पर प्रभाव पड़े। इसी प्रकार संभव है समुद्र की सतह पर तैरने वाली वनस्पतियों की शरीर रचना भी बदल सकती है और फ़ोटोसिन्थेसिज़ की प्रक्रिया में रुकावट आ सकती है और इससे भी ख़तरनाक यह है कि रासायनिक खादों में मौजूद फ़ॉस्फ़ेट और नाइट्रेट बहुत ज़्यादा शैवाल के पैदा होने का कारण बनते हैं। शैवाल में मौजूद ज़हर उन जीवों के शरीर में इकट्ठा होते हैं जिनका खाद्य स्रोत शैवाल है, जैसे बड़ी बड़ी मछलियां। इन मछलियों का खाना ख़तरे से ख़ाली नहीं है। इसी प्रकार इन शैवालों का विकास, पानी में सीमा से ज़्यादा घुली ऑक्सीजन के इस्तेमाल और स्थानीय समुद्री जीवों के दम घुटने का कारण बन सकता है। जिन क्षेत्रों में इस प्रकार के शैवाल होते हैं, उन क्षेत्रों के अन्य जीव-जन्तुओं का जीवन ख़तरे में होता है और धीरे-धीरे जीव जन्तु ख़त्म होने लगते हैं।

वैज्ञानिकों ने अपने ताज़ा अध्ययन में समुद्र में 400 से ज़्यादा निर्जीव क्षेत्र चिन्हित किए हैं। मिसाल के तौर पर संयुक्त राष्ट्र संघ के पर्यावरण कार्यक्रम ने अभी हाल में चेतावनी दी है कि भूमध्य सागर और काला सागर में 150-200 मीटर गहराई तक पानी में घुली हुयी ऑक्सीजन नहीं है। इस समस्या के कारण समुद्री जीव-जन्तुओं के जीवन का स्थान सीमित हो रहा है ख़ास तौर पर उन मछलियों के लिए जो समुद्र में कम गहराई में रहती और अंडे देती हैं।      

रासायनिक खाद व ज़हर के अलावा, औद्योगिक प्रदूषण के कारण भी समुद्र व महासागर को गंभीर नुक़सान पहुंचा है। मिसाल के तौर पर लुगदी के उत्पादक हर साल लगभग 3 लाख टन क्लोरिन व मर्करी युक्त उत्पाद बाल्टिक समुद्र में फेंकते और उसे औद्योगिक प्रदूषण से दूषित कर रहे हैं। पूरी दुनिया में उद्योग जगत अपशिष्ट पदार्थ को पानी और गैस को हवा में छोड़ते हैं। मिसाल के तौर पर भूमध्यसागर में सालाना 66 अरब घन मीटर औद्योगिक अपशिष्ट पानी छोड़ा जाता है। खनिज तेल, डिटर्जन्ट, फ़ॉस्फ़ेट, कैडमियम, सीसा, तांबा, और जस्ता जैसी धातुएं निकालने व पिघलाने की प्रक्रिया और इसी प्रकार मर्करी खनिज निकालने की प्रक्रिया के कारण महासागर पहुंचती है। इसी प्रकार वायुमंडल को दूषित करने वाले एक तिहाई तत्व बारिश के ज़रिए समुद्र में पहुंचते हैं। इसी प्रकार गतिविधियों के कारण सालाना उत्पादित 7 अरब टन कार्बन डाय ऑक्साइड में से कम से कम 2 अरब टन महासागर पहुंचती है। यूं तो महासागर प्राकृतिक रूप से पर्यावरण में मौजूद गैसों को घुला देते हैं किन्तु रिसाइक्लिंग की इस प्रक्रिया की क्षमता सीमित है और कुछ सीमा तक अतिरिक्त बोझ को सहन कर सकते हैं।             

अपशिष्ट पदार्थ, प्लास्टिक के पदार्थ सहित अन्य दूसरी चीज़ें जो पानी के जहाज़ के ज़रिए समुद्र में पहुंचती हैं, प्रदूषण फैलाने वाले अन्य तत्व हैं जो समुद्री जीव-जन्तु के लिए बहुत ही ख़तरनाक हैं और मुमकिन है इन जीव-जन्तुओं को ख़त्म कर दें। समुद्र के स्तनधारी जीव, मछलियां और पक्षी इन चीज़ों को खाद्य पदार्थ समझ कर खा जाते हैं। हालांकि ये चीज़ें उनके लिए प्राणघातक हैं। कुछ स्थान ऐसे हैं जहां महासागर के प्रवाह से प्लासटिक सहित दूसरे अपशिष्ट पदार्थ बहुत बड़े क्षेत्रफल पर इकट्ठा हो गए हैं। जैसा कि उत्तरी प्रशांत महासागर में अमरीका के टेक्सस राज्य के भूभाग पर जितना अपशिष्ट पदार्थ इकट्ठा हो गया है जिसे ग्रेट पेसेफ़िक गार्बेज पैच कहा जाता है। यह स्थिति सिर्फ़ प्रशांत महासागर की नहीं है।

इससे पहले प्लास्टिक के कूड़े समुद्री पर्यावरण की मुख्य चिंताओं में से एक थे किन्तु अभी हाल तक कूड़े के इस ढेर का सटीक आंकड़ा नहीं निकाला गया था। हालिया वर्षों में दुनिया के 6 देशों के शोधकर्ताओं ने महासागरों की अनेक सतह पर शोध करके डेटा इकट्ठा किए हैं। इन शोधकर्ताओं के अनुसार, इस समय पूरी दुनिया में महासागरों में छोटी बड़ी प्लास्टिक के 50 खरब टुकड़े पड़े हुए हैं जिनसे दुनिया के आज़ाद जलक्षेत्र के पानी स्वास्थ्य की दृष्टि से ख़तरनाक हो सकते हैं। आम तौर पर प्लास्टिक के बड़े टुकड़े समुद्र के किनारों पर और छोटे टुकड़े तटों से दूर तैरते दिखाई देते हैं। वैज्ञानिकों के अनुसार, अगर यह प्रक्रिया लंबे समय तक जारी रही तो बहुत से जलचरों का जीवन ख़तरे में पड़ जाएगा। पर्यावरण पर शोध करने वाले शोधकर्ता डेविड लॉएड ने एक रिपोर्ट में इस बात की चिंता जतायी है कि प्लास्टिक से भी जलचरों की मौत उसी तरह होती है जिस तरह समुद्र में तेल, अनेक प्रकार के ज़हर और भारी धातुओं के रिसाव से जलचरों की मौत होती है। मिसाल के तौर पर जेलीफ़िश कछुओं और समुद्री पक्षियों का भोजन है, कुछए और समुद्री पक्षी बड़ी आसानी से प्लास्टिक जैसी छोटी चीज़ को अपना भोजन समझ कर खा सकते हैं। महासागर में अपशिष्ट पदार्थ पर रोक से संबंधित क़ानून के बावजूद, अनुमान है कि हर दिन पानी के जहाज़ 5 लाख से ज़्यादा प्लास्टिक के बर्तन व थैले महासागर में फेंकते हैं।

समुद्र पर तैरने वाले अपशिष्ट पदार्थ के कारण समुद्री पक्षी घायल, घुटन, आंत में मुश्किल और संक्रमण का शिकार होकर मर जाते हैं। कुछ समुद्री पक्षियों का भोजन ऐसे जीव हैं जिनके पेट में प्लास्टिक के बर्तन होते हैं। शोधकर्ता समुद्री इको सिस्टम में प्लास्टिक के कूड़ों में मौजूद ज़हरीले पदार्थ के दीर्घकालिक असर के बारे में शोध कर रहे हैं क्योंकि यह पदार्थ अंततः इंसान के जीवन चक्र का हिस्सा बनते हैं।

इस प्रकार प्लास्टिक और रिसाइकल न होने वाले अन्य उत्पाद समुद्री इको सिस्टम के लिए बहुत गंभीर ख़तरा हैं कि जिनके दूषित होने के दुष्परिणाम को अंततः इंसान भुगतेगा।