Sep ११, २०१६ १५:३८ Asia/Kolkata

पिछले कुछ दशकों के दौरान, मनुष्यों की गतिविधियां, समुद्रों और नदियों के दूषित होने का कारण रही हैं।

समुद्र और नदियां धरती पर पानी के सबसे बड़े स्रोत समझे जाते हैं। रासायनिक पदार्थों, तेल, प्लास्टिक की चीज़ें, औद्योगिक और घर के कचरों और रासायनिक खाद जिन्हें नदियों और समुद्रों में डाला जाता है, इस ईश्वरीय उपहार व महा जल स्रोत को पहले से अधिक दूषित कर रहे हैं किन्तु इसी बीच मौजूद प्रमाण इस बात के सूचक हैं कि नौकाएं महासागरों को दूषित करने में सबसे अधिक भागीदार हैं। नौकाएं ध्वनि और वायु प्रदूषण के अतिरिक्त, अपना कचरा निकाल कर तथा अपना संतुलन बनाने के लिए पानी निकाल कर अर्थात WATER BALLAST तथा अपने ईंधन के कारण प्रदूषण पैदा करके समुद्र के इको सिस्टम में विघ्न उत्पन्न करती हैं। यूनेस्को में अंतर्राष्ट्रीय समुद्रों व नदियों के प्रदूषण के कार्यक्रम IOC के पूर्व प्रमुख री ग्रिफ़ीत्स इस संबंध में कहते हैं कि समुद्री वातावरण, लंबी अवधि के बुरे परिणामों से ख़ामोश दुरुपयोग की भेंट चढ़ रहा है, उदाहरण स्वरूप तेल वाहक नौकाओं का ईंधन निकालना तथा समुद्र में भंडारों के धोए जाने के कारण तेल का होने वाला रिसाव। मौजूद प्रमाण से पता चलता है कि नौकाओं के मालिकों द्वारा असावधानी के कारण समुद्र और नदियों का 25 प्रतिशत भाग केवल हाइड्रो कार्बन से ही दूषित होता है।

 

समुद्री यातायात के परिणाम विभिन्न होते हैं और कभी कभी अप्रत्याशित भी होते हैं। इसके सबसे बड़े दुष्परिणाम में , गुप्त यात्रियों को बिना रोक टोक धरती के एक भाग से दूसरे भाग पहुंचाना भी है। यह यात्री जो बैक्टीरिया, वायरस और समुद्र में मौजूद दूसरे जीव जंतु हैं जो पानी व रेत से नौकाओं के संतुलन से निकलने वाले पानी से स्थानांतरित होते हैं और जब नौका अपने गंतव्य पर पहुंचती है तो यह जीव जंतु वहां के इको सिस्टम में प्रविष्ट हो जाते हैं। नौकाओं के संतुलन बनाने से जो पानी निकलता है उसे WATER BALLAST (वाटर ब्लास्ट) कहा जाता है, उसकी मात्रा इतनी होती है कि नौका पर लदे समान को उतारते समय नौका में संतुलन बनाने के लिए पंप का काम करता है और और उसे स्थिर रहने की शक्ति प्रदान करता है। प्राचीन काल में लोग पत्थर, लकड़ी और रेत के थैलों को इस काम के लिए प्रयोग करते थे। उस समय उन्हें यह पता नहीं था कि वह नौकाओं का सुंतलन बनाने के लिए इन चीज़ों को लाद कर पर्यावरण और समुद्र  और मनुष्यों की सुरक्षा के लिए कितनी महान सेवा कर रहे हैं किन्तु इस संबंध में तकनीक की प्रगति, जलचरों और समुद्री जीवजंतुओं की तबाही का कारण बनी है।

 

इस संबंध में होने वाले शोध से पता चलता है कि प्रतिदिन तीन हज़ार तरह के जीवजंतु और वनस्पतियां, वाटर ब्लास्ट के माध्म से स्थानांतरित होती हैं। अमरीकी की राष्ट्रीय पर्यावरण और समुद्री संस्था (NOAA) के प्रबंधक के अनुसार, प्रतिवर्ष 80 मिलियन वाटर ब्लास्ट अमरीका के तटों पर ख़ाली होता है। उनका कहना है कि सैन फ़्रांसिस्को के क्षेत्र में 212 प्रकार के विदेशी जीवजंतुओं की पहचान की गयी है।  काला सागर के संबंध में एक महत्वपूर्ण बात जो नोट की गयी है कि वह यह है कि Mnemiopsis leidy नेमियाप्सिस लेडी उत्तरी अमरीका से इस समुद्र में प्रविष्ट हुआ है और मछलियों के भंडारों ने उसे तबाह कर दिया और वहां का समुद्री इकोसिस्टम बुरी तरह प्रभावित हुआ है। यह जीव वर्ष 1982 में पहली बार नौकाओं के माध्यम से इस समुद्र में प्रविष्ट हुए और Zooplankton या ज़ूप्लांगटन को जो काला सागर में मछलियों का मुख्य आहार है, इन मछलियों के बच्चों और अंडों को भी खाते हैं। दूसरी ओर चूंकि इस नये वातावरण में नेमियाप्सिस का कोई प्राकृतिक दुश्मन नहीं होता, बहुत बुरी तरह से फैलते हैं। इस जीव ने बहुत तेज़ी से काला सागर के पास स्थित आज़ोव सागर में अपना स्थान बना लिया।

 

इस ख़तरनाक हमले ने कुछ वर्षों में काला सागर के मत्स्य व्यापार को अपंग कर दिया और तब से अब तक इस क्षेत्र के मत्स्य उद्योग को कम से कम एक अरब डॉलर का नुक़सान हुआ । इसका प्रभाव यह हुआ है कि काला सागर और आज़ोव सागर में डॉलफ़िन की संख्या बहुत अधिक कम हुई है क्योंकि उन मछलियों की संख्या कम हो गयी है जो उनका आहार बनती हैं।

यह हमलावर जंतु नौकाओं के माध्यम से उत्तरी ईरान के कैस्पियन सागर तक पहुंच चुका है। यद्यपि कैस्पियन सागर बंद सागर है किन्तु हालिया वर्षों में रूस में नौकाओं के चलने के लिए वोलगा कनाल के निर्माण से कि जिसकी लंबाई 101 किलोमीटर है और उत्तरी समुद्र को कैस्पियन सागर से जोड़ता है, स्वतंत्र जल के प्रदूषण इस बंद पानी तक पहुंचने में सफल रहे हैं और इस समुद्र में रहने वाले जलचरों के जीवन को ख़तरे में डाल दिया है जबकि कुछ विलुप्त होने के कगार पर हैं। प्रदूषण के अतिरिक्त यह हमलावर और ख़तरनाक जीव वाटर ब्लास्ट के माध्यम से वर्ष 1991 में काला सागर से उत्तरी ईरान के जल क्षेत्र में प्रविष्ट हुआ। कैस्पयिन सागर में इस कटीले या कांटेदार ख़तरनाक जंतु के प्रविष्टि होने से इस समुद्र के जलचर ख़तरे में पड़ गये हैं। यह कटीला जीव खाद्य पदार्थ और आक्सीजन की कमी के मुक़ाबले में बहुत प्रतिरोध करता है और 3.1 सेन्टीग्रेड से 32 डिग्री सेलसियस के तापमान को सहन कर सकता है। इसी प्रकार इनके प्रजनन की क्षमता बहुत तेज़ होती है। कैस्पियन सागर में कटीले जीव जंतुओं की संख्या में वृद्धि के कारण इस समुद्र में Black Sea sprat मछिलयां समाप्त हो गयीं हैं क्योंकि यह मछलिया उसका मुख्य आहार हैं। Black Sea sprat मछलियों के समाप्त होने के कारण इस जाति की अन्य मछलियॉं जैसे केवियर मछलियां भी विलुप्त होने की कगार पर हैं।

 

विदेशी वनस्पतियां भी विदेशी जीव जंतु की भांति बहुत ही अधिक ख़तरनाक होती हैं। इस संबंध में प्राप्त एक उदाहरण यह है कि पेनी वेर्ट वनस्पतियां या झाड़ियां जो मुख्य रूप से उत्तरी अमरीका में पायी जाती हैं, ब्रिटेन, हालैंड और पश्चिमी जर्मनी तक फैली हुई हैं। यह पानी की सतह पर फैलने के साथ ही जलचरों के दम घुटने का कारण भी बनती हैं। इससे नौकाओं को चलने में भी कठिनयाइयों का सामना करना पड़ता है। आस्ट्रेलिया में भी एशिया की कत्थई काई जो एक प्रकार की समुद्री झाड़ी समझी जाती है और इसके पत्ते भी बड़े बड़े होते हैं, बहुत तेज़ी से बड़े क्षेत्रों में फैल गयी है जिसने समुद्र में पायी जाने वाली लाभदायक व अच्छी झाड़ियों का स्थान ले लिया है, मत्स्य उद्योग और इससे संबंधित अन्य उद्योगों को हानि पहुंचाया है।

भूमध्य सागर में भी पिछले कुछ वर्षों के दौरान लगभग 100 प्रकार के ग़ैर स्थानीय जीव पहुंचे जिसमें सबसे ज़्यादा घातक प्रकार के शैवाल हैं। यह ग़ैर स्थानीय जीव मोनाको में समुद्री जीवों के विशेष संग्राहलय के इक्वेरियम से फैले हैं। यह हमलावर जीव संभवतः स्थानीय पर्यावरण की तबाही तथा बहुत सी वनस्पतियों व जानवरों की मौत का कारण बनते हैं।

 

फ़िन्लैंड अबवाकादमी विश्व विद्यालय के प्रोफ़ेसर और इस मामले के विशेषज्ञ डाक्टर अरकी लिपाकसकी कहते हैं कि इस त्रासदी को अंतर्राष्ट्रीय जहाज़रानी समाज के लिए गंभीर ख़तरे के रूप में याद किया जा सकता है और उनको विदेशियों के वाटर ब्लास्ट से पैदा होने वाले ख़तरों से अवगत कराय जा सकता है।

विशेषज्ञों का कहना है कि इस संबंध में इकोसिस्टम को जो नुक़सान होता है उसकी भरपायी करना असंभ होता है और इकोसिस्टम को पहली वाली स्थिति पर पलटना असंभव होता है। यूं कहा जा सकता है कि वर्तमान समय में वाटर ब्लास्ट और उससे पैदा होने वाले विभिन्न ख़तरों ने जहाज़रानी उद्योग के लिए गंभीर चुनौती खड़ी कर रखी है। विशेषज्ञों का मानना है कि जहाज़रानी उद्योग को चाहिए कि वह मज़बूत भविष्य के बारे में सोचे और इस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए सबसे पहले वह अनुचित जल के स्थानांतरण तथा विभिन्न प्रकार के ख़तरों के इधर से उधर होने की प्रक्रिया को समाप्त करे। अब प्रश्न यह उठता है कि इस काम के लिए क्या करना होगा?

 

इस बारे में विशेषज्ञ कहते हैं कि इसके समाधान का सबसे बेहतरीन मार्ग, उसको पूर्ण संक्रमित रहित बनाने से पहले वाटर ब्लास्ट को रोकना है किन्तु इसको पूर्ण और ठोस मार्ग नहीं कहा जा सकता।

विदेशी जीव जंतु के स्थानांतरण को रोकने के लिए विभिन्न शैलियों का प्रयोग कर सकते हैं। जिनमें आक्सीजन का स्थानांतरण, प्रभावित व संक्रमित पानी को फ़िल्टर करना, पानी को पूर्ण संक्रमित रहित बनाना के लिए आवश्यक संसाधनों का होना है, यह चीज़ छोटी नौकाओं या मनोरंजन की नौकाओं में सरलता से हो सकती है किन्तु बड़ी नौकाओं में इसका क्रियान्वयन जिनमें भारी भारी सामान लदे हुए होते हैं, एक स्वीकार्य समय सीमा में, लगभग असंभव है। इसीलिए अमरीका, कनाडा, आस्ट्रेलिया और न्यूज़ीलैंड जैसे देशों ने अपने लिए कुछ मापदंड तैयार किए हैं। उदाहरण स्वरूप उनकी नौकाए वाटर ब्लास्ट को ख़ाली करने के लिए स्वतंत्र जल में जाती हैं और इसी प्रकार अपने भंडार को भरने के लिए उन तटवर्ती क्षेत्रों का रुख़ करती हैं जहां पर कम ही ऑर्गनिज़्म पाये जाते हैं ताकि अपनी बंदरगाहों तक विदेशी जीव जुंत की पहुंच कम कर सकें।

 

रासायनिक पदार्थों से होने वाले प्रदूषण के अतिरिक्त, पर्यावरण को जो चीज़ें नुक़सान पहुंचाती हैं उनमें पानी की सतह पर या पानी की गहराई में भंडार किए जाने वाली वस्तुओं से पैदा होने वाला प्रदूषण या समुद्र के एकोसिस्टम में विदेशी जलचरों की घुसपैठ तथा ध्वनि प्रदूषण की ओर भी संकेत किया जा सकता है। समुद्रों और महासागरों की गहराई में, ध्वनि लहरें लंबी लंबी दूरियां तय करती हैं। नौकाओं की आवाजाही, तेल के कुएं और भूकंप, समुद्री जीव जंतु विशेषकर व्हेल जैसे स्तनधारी के पलायन, संपर्क, शिकार और प्रजनन की प्रक्रिया को बाधित कर देते हैं। इस संबंध में होने वाले शोध से पता चलता है कि युद्धक नौकाओं में लगाया जाने वाला सिस्टम जिससे समुद्र में मौजूद अन्य नौकाओं का पता लगाया जाता है, बहुत कम फ़्रिक्वेंसी और लहरें छोड़ता है जो बहुत ही ख़तरनाक ध्वनि प्रदूषण पैदा करता है जिससे समुद्री स्तनधारियों के लिए बहुत अधिक ख़तरा उत्पन्न हो जाता है। वर्तमान समय में विभिन्न देशों के तट पर व्हेल की सामूहिक आत्म हत्या को हम देख चुके हैं जो युद्धक नौकाओं के ध्वनि प्रदूषण का ही परिणाम है। प्रमाण इस बात के सूचक हैं कि अमरीका की नौसेना ने गुप्त रूप से इस सिस्टम का प्रयोग करते हुए जो पर्यावरण के अंतर्राष्ट्रीय नियमों के विपरीत है, विभिन्न प्रयोग किए और उन्होंने पर्यावरण को होने वाले नुक़सानों पर तनिक भी ध्यान नहीं दिया।