Sep १४, २०१६ १४:१९ Asia/Kolkata

सूरए लैल क़ुरआने मजीद का 92वां सूरा है जो हिजरत से पहले मक्का में उतरा।

इसमें 21 आयतें हैं। सूरे के शुरू में तीन क़समें खाई गई हैं जिनकें बाद सृष्टि के आश्चर्यों को बयान करते हुए लोगों को दो समूहों में बांटा गया है। तक़वा के साथ अपना धन ख़र्च करने वाले तथा वह कंजूस लोग जो परलोक में मिलने वाले पारितोषिक का इंकार करते हैं। इसके बाद उदार और दानी लोगों को इनाम के रूप में मिलने वाले चैन व कल्याण तथा कंजूसों के सामने आने वाली कठिनाइयों का उल्लेख किया गया है।

सूरए लैल के अन्य भागों में बंदों के ईश्वर द्वारा मार्गदर्शन, संपूर्ण सृष्टि पर ईश्वर के स्वामित्व, ईश्वरीय निशानियों का इंकार करने वालों और पापियों, नरक की आग दहकाने वालों और इस नरक से मुक्ति पा जाने वालों का उल्लेख है।

पैग़म्बरे इस्लाम के ज़माने में एक धनी किंतु कंजूस व्यक्ति था। उसके खजूर के पेड़ की एक टहनी पडोसी के घर के ऊपर तक गई थी। इस टहनी से खजूरें उस पड़ोसी के घर में गिरतीं तो उसके बच्चे इन खजूरों को उठा लेते थे। लेकिन वह धनी व्यक्ति जाकर सारी खजूरें मांग लाता था। उस ग़रीब आदमी ने जिसके घर में खजूरें गिरती थीं पैग़म्बरे इस्लाम से उसकी शिकायत की। पैग़म्बरे इस्लाम ने खजूर के बाग़ के मालिक को बुलाया औ उससे पूछा कि क्या तुम इस बात पर राज़ी हो कि अपना यह खजूर का पेड़ मुझे दे दो और मैं तुम्हें इसके बदले में खजूर का एक पेड़ जन्नत में दूं? उस व्यक्ति ने उत्तर दिया कि मेरे पास खजूर के पेड़ तो बहुत हैं लेकिन किसी भी पेड़ की खजूरें इस पेड़ जितनी अच्छी नहीं हैं अतः मैं यह सौदा नहीं कर सकता। पैग़म्बरे इस्लाम के एक साथी ने जब यह सुना तो फौरन पैग़म्बरे इस्लाम से कहा कि मैं इस व्यक्ति से खजूर का यह पेड़ ख़रीद कर आपको दे दूं तो क्या आप मुझे भी जन्नत में खजूर का पेड़ मिल जाएगा। पैग़म्बरे इस्लाम ने उत्तर दिया कि हां।

पैग़म्बरे इस्लाम के वह सहाबी उस व्यक्ति की तलाश में निकल गए और जब वह व्यक्ति मिल गया तो उससे पूछा कि क्या तुम खजूर का वह पेड़ बेचोगे? उसने लालच में आकर खजूर के पेड़ की बहुत अधिक क़ीमत बताई। सहाबी को आश्चर्य और उन्होंने कहा कि इस पेड़ के लिए जो टेढ़ा भी हो गया है तुमने बहुत अधिक क़ीमत लगा दी है। सहाबी ने वह खजूर का पेड़ चालीस पेड़ों के बदले ख़रीद लिया और जाकर पैग़म्बरे इस्लाम को बताया कि मैंने खजूर का वह पेड़ ख़रीद लिया है और अब मैं वह पेड़ आपको दे रहा हूं। पैग़म्बरे इस्लाम ने जब यह सुना तो उस ग़रीब व्यक्ति के पास गए और उससे कहा कि अब यह पेड़ तुम्हारा और तुम्हारे बच्चों का हो गया। इस अवसर पर सूरए लैल उतरा और क़ंजूसों तथा दानियों के बारे में महत्वपूर्ण बातें बयान की गईं।

सूरए लैल में रात और उसके अंधेरे तथा दिन और उसके उजाले की क़सम खाई गई है और जोड़े पैदा करने वाले ईश्वर की क़सम खाई गई है। तीसरी आयत में कहा गया है कि क़सम है उसकी जिसने नर और मादा की रचना की।

जोड़े का क़ानून क़ुरआन के चमत्कारिक आयामों में से एक है क्योंकि संसार में इंसानों, जीव जन्तुओं यहां तक कि वनस्पतियों के जोड़े होना, ठहरने से लेकर बाद के चरणों में उत्पन्न होने वाले परिवर्तन, इसी प्रकार जोड़े में हर एक की जो गतिविधियां और भूमिका होती है वह बस महान संसार की अदभुत निशानियों में हैं जिनके माध्यम से रचयिता की महानता का पता चलता है।

इसके बाद आयतें क़सम खाने के असली लक्ष्य का उल्लेख करती हैं और वह यह है कि जीवन में तुम्हारे प्रयास और संघर्ष विभिन्न हैं। इंसान के संघर्ष प्रयास उसके इरादे, इच्छा, चाहत, लक्ष्य और भावना का परिणाम होते हैं। यह चीज़ें इंसान के भीतर मौजूद होती हैं। आयत का इशारा इस बिंदु की ओर है कि तुम जीवन में प्रयास और संघर्ष करते हो और ईश्वर की दी हुई क्षमताएं जो आपके अस्तित्व के भीतर मौजूद पूंजी के समान हैं, किसी लक्ष्य के लिए और किसी मार्ग में प्रयोग होती हैं। आपका इस बात पर ध्यान रखना ज़रूरी है कि यह प्रयास और यह क्षमताएं किस लक्ष्य और किस मार्ग पर केन्द्रित हैं और नतीजा क्या मिलने वाला है? कहीं एसा तो नहीं कि आप अपनी पूरी क्षमता और सारा संघर्ष बहुत मामूली लक्ष्य के लिए या बिल्कुल महत्वहीन उद्देश्य के लिए प्रयोग कर रहे हैं?! ध्यान रखिए कि आपके प्रयास और आपकी क्षमताएं एसे लक्ष्य में प्रयोग हों जो ईश्वर को भी पसंद हो तथा उसका अच्छा परिणाम निकले।

सूरए लैल की आयत नंबर पांच लोगों को दो समूहों में विभाजित करती है। एक समूह उन लोगों का जो ईश्वर के मार्ग में ख़र्च करते हैं तथा सदाचार और त्याग के रास्ते पर चलते हैं। ईश्वर इन लोगों का रास्ता आसान करेगा और उन्हें स्वर्ग के मार्ग पर ले जाएगा। दूसरे समूह में वह लोग हैं जो कंजूसी करते हैं, तथा ईश्वर से मिलने वाले पारितोषिक का इंकार करते हैं। उनका रास्ता बहुत कठिन होगा और वह नरक में गिरेंगे जबकि सहेजा हुआ उनका धन उन्हें कोई फ़ायदा नहीं पहुंचा सकेगा। वह न तो अपना यह धन अपने साथ इस दुनिया से ले जा सकते हैं और यदि साथ ले भी जाएं तो वह धन उन्हें नरक में जाने से नहीं बचा पाएगा। इस प्रकार के लोगों के लिए ईश्वर के मार्ग में धन ख़र्च करना बहुत कठिन होता है जबकि पहले समूह के लिए यह कर्म बड़ा आनंददायक होता है।

 

आयत नंबर 12 इस बात की ओर संकेत करती है कि मार्गदर्शन की ज़िम्मेदारी ईश्वर ने ली है। ईश्वरीय मार्गदर्शन संसार की हर वस्तु और हर प्राणी तक पहुंचता है तथा इंसान संसार में मौजूद चीज़ों में ईश्वरीय मार्ग दर्शन के चिन्ह स्पष्ट रूप से देख सकते हैं। जब ज़मीन में कोई दाना पहुंचता है तो ईश्वर के मार्गदर्शन के अनुसार बड़ी सटीक व्यवस्था  और क्रम के तहत व अंकुरित होता है और अपनी निर्धारित संपूर्णता तक पहुंचता है। ईश्वर ने इंसान के मार्गदर्शन को भी अपनी ज़िम्मेदारी माना है लेकिन इसके लिए शर्त यह है कि इंसान खुद भी चाहे और सौभाग्य के मार्ग पर चले।

 

अब थोड़ी चर्चा सूरए ज़ोहा के बारे में। यह क़ुरआन का 93वां सूरा है। यह मक्के में नाज़िल हुआ और इसमें 11 आयतें हैं। ईश्वरीय संदेश वहि का अस्थायी रूप से रुक जाना, दुनिया और परलोक में पैग़म्बरों पर ईश्वरीय अनुकंपाएं, कुछ नैतिक व सामाजिक आदेश इस सूरे में शामिल हैं।

इस आयत की पृष्ठभूमि के बारे में वरिष्ठ सहाबी इब्ने अब्बास कहते हैं कि पंद्रह दिन बीत गए और पैग़म्बरे इस्लाम पर वहि नहीं उतरी। नास्तिकों ने कहा कि मोहम्मद के ईश्वर ने उन्हें अकेला छोड़ दिया और उन्हें अपना दुशमन समझने लगा है। यदि उनकी इस बात में सच्चाई है कि वह ईश्वर की ओर से एक मिशन लेकर आए हैं तो फिर वहि का लगातार आना ज़रूरी है। सूरए ज़ोहा की शुरुआत में दो क़समें खाई गई हैं। ज़ोहा अर्थात ज्योति की क़सम और सज़ा अर्थात अंधकार की क़सम।

 

ज़ोहा का अर्थ है दिन के शुरुआती क्षण। वह क्षण जिनमें सूर्य धीरे धीरे चढ़ता है और उसका प्रकाश हर ओर फैलता है। यह वास्तव में दिन का सबसे अच्छा समय होता है। सजा का वास्तविक अर्थ है सुकून और चैन जो रात के समय छाया रहता है और इसकी मदद से इंसान दिन में काम और संघर्ष के लिए खुद को तैयार करता है। इस प्रकार यह बहुत बड़ी नेमत है अतः उसकी क़सम खाई जा सकती है।

सूरे में इन दो क़समों के बाद पैग़म्बरे इस्लाम को शुभ सूचना दी गई है कि ईश्वर ने हरगिज़ आपको नहीं छोड़ा है। इसके बाद पैग़म्बर का धीरज बंधाया गया है कि यदि कभी वहि आने में देरी हो तो वह कुछ हितों के कारण होती है जिनसे ईश्वर अवगत है। इस देरी का कदापि यह अर्थ नहीं है कि ईश्वर क्रोधित हो गया है और पैग़म्बर को उनके हाल पर छोड़ दिया गया है बल्कि ईश्वर की कृपा और विशेष अनुकंपाएं हमेशा पैग़म्बरे इस्लाम के साथ रहेंगी। उन्हें इतनी नेमतें दी जाएंगी कि वह ख़ुश हो जाएं। दुनिया में शत्रुओं पर उन्हें विजय मिलेगी तथा उनका धर्म विश्व व्यापी हो जाएगा। परलोक में भी उन पर ईश्वर की विशेष कृपा होगी। एक बड़ी कृपा यही होगा कि अपने अनुयायियों के बारे में पैग़म्बरे इस्लाम की सिफ़ारिश को ईश्वर मान लेगा।

 

इसके बाद की आयतों में पैग़म्बर पर ईश्वर की अनुकंपाओं का उल्लेख करते हुए कहा गया है कि क्या एसा नहीं है कि ईश्वर ने तुम्हें अनाथ पाया तो शरण दे दी, गुमशुदा पाया तो मार्गदर्शन कर दिया और ग़रीबी में देखा तो समृद्ध कर दिया।

पैग़म्बरे इस्लाम अभी मां के पेट में ही थे कि पिता का निधन हो गया। छह साल की उम्र में मां आमेना दुनिया से चली गईं। आठ साल की उम्र हुई तो दादा अब्दुल मुत्तलिब इस दुनिया में न रहे जो उनका पालन पोषण कर रहे थे। इसके बाद वह अपने चाचा की देखभाल में रहे। पैग़म्बरी की घोषणा से पहले हज़रत मोहम्मद अलैहिस्सलाम नास्तिकता, अनेकेश्वरवाद, अत्याचार, अज्ञान और अंधविश्वासों से भरे माहौल में रहे लेकिन इन प्रदूषणों को उन्होंने अपने क़रीब नहीं आने दिया। ईश्वर ने पैग़म्बरे इस्लाम को अपनी उपासना का रास्ता दिखाया तथा उन्होंने ईश्वर के समक्ष मानवता के कल्याण के लिए प्रार्थना कीं पैग़म्बरे इस्लाम हेरा नामक गुफा में चले जाते और वहां चिंतन मनन करते रहते थे। वह आस पास की परिस्थितियों से व्यथित रहते और हालात में सुधार लाने की चिंता उन्हें सताती रहती। फिर वह क्षण आया कि हेरा गुफा में पैग़म्बरे इस्लाम पर पैग़म्बरी की ज्योति पड़ी और व सत्य के मार्ग पर अग्रसर हो गए। पैग़म्बरे इस्लाम को संपत्ति में अपने पिता से केवल एक ऊंटनी तथा एक दासी विरासत मिली थी। ईश्वर ने उन्हें हज़रत ख़दीजा के धन से समृद्ध कर दिया।

 

सुरए ज़ोहा की अंतिम आयतें पैग़म्बरे इस्लाम से कहती हैं कि आप तो खुद भी अनाथ थे और यतीमी का दुख जानते हैं इस लिए आप यतीमों को हरगिज़ बेसहारा न छोड़िए। आप का हाथ खाली था, आप ग़रीबी का दुख झेल चुके हैं इस लिए किसी फ़क़ीर को न झिड़को। ग़रीबी के बाद ईश्वर के दान और उदारता का स्वाद भी आपने चखा है आप ईश्वरीय कृपा और दया के महत्व को जानते हैं तो ईश्वर की नेमतों का आभार व्यक्त कीजिए और हमेंशा ईश्वरीय नेमतों को याद रखिए और उन्हें लोगों से न छिपाइए।  

 

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