घर परिवार और बच्चे-२८
समाज में बाल यौन शोषण की समस्या और बच्चों को उससे सुरक्षित रखने के लिए उनके पालन-पोषण की शैली पर हमारी चर्चा जारी है।
जहां हर दौर में समाज इस समस्या से कम और ज्यादा ग्रस्त रहा है, वहीं अब इन्फ़ोर्मेशन टेट्नौलॉजी के विस्तार और सोशल मीडिया ने इसे संकट के रूप में बदल दिया है। जैसा कि हमने पिछले कार्यक्रम में संकेत किया था, वर्तमान दौर में बच्चों का यौन शोषण करने के लिए संभव है सीधे तौर पर बच्चों पर हमला या उनसे संपर्क नहीं किया जाए, ऐसे कुछ पीडोफ़ाइल या अपराधी इंटरनेट या बच्चों के यौन शोषण की तस्वीरें देखकर अपनी यह कामवासना पूरी कर लेते हैं। समस्या ने बच्चों के मासूम जीवन के लिए कहीं भयानक ख़तरों को जन्म दिया है और उनके यौन दुर्व्यवहार और शोषण का दायरा बहुत विस्तृत कर दिया है। यह समस्या उससे समय और अधिक जटिल हो जाती है, जब प्राप्त आंकड़ें इस कड़वी सच्चाई को सामने लाते हैं कि पीडोफ़ीलिया के अधिकांश मामले में हमलावर परिवार में से या बच्चे के नज़दीकी लोगों में से एक होता है।
यौन दुर्व्यवहार के बच्चों पर बहुत ही घातक प्रभाव पड़ते हैं। मनोवैज्ञानिकों ने इन प्रभावों का गहन अध्ययन किया है और वे इस नतीजे पर पहुंचे हैं कि इसका शिकार होने वाले बच्चों के जीवन से एक सीमित हद तक उसके दुष्प्रभावों का असर कम करने के प्रयास किए जा सकते हैं। हालांकि इस संबंध में अभी अधिक अध्ययन और शोध की ज़रूरत है। यौन शोषण का शिकार होने वाले बच्चों के मन पर पड़ने वाले दुष्प्रभावों के उपचार के लिए किसी हद तक बच्चे की आयु, शोषण कितने समय तक किया जाता रहा है? कितनी बार किया गया है? किस हद तक मानसिक और शारीरिक आघात पहुंचाया गया है? किसी शैली का प्रयोग किया गया है? और शोषणकर्ता का बच्चे से क्या संबंध है? जैसे सवालों के जवाब प्रभावी हो सकते हैं।
इसी प्रकार, यौन दुर्व्यवहार के बारे में बच्चे की समझबूझ और परिवार के अन्य सदस्यों या विश्वसनीय लोगों के साथ जितने जल्दी संभव हो सके उसे साझा करना, उसके अल्पकालिक और दीर्घकालिक प्रभावों के लिए महत्वपूर्ण हो सकता है। उदाहरण स्वरूप, जो बच्चे किसी भरोसेमंद बड़े को अपने ऊपर होने वाले इस अत्याचार के बारे में बता देते हैं, वे उन बच्चों की तुलना में जो अपनी ज़बान बंद रखते हैं, कम प्रभावित होते हैं। इसी प्रकार, जो बच्चे यौन दुर्व्यवहार का शिकार होने के तुरंत बाद इस घटना को अपने किसी बड़े के साथ साझा कर देते हैं, उन बच्चों की तुलना में जो वर्षों इसे अपने मन में दबाकर रखते हैं और अंदर ही अंदर कुढ़ते रहते हैं कम प्रभावित होते हैं।
मनोवैज्ञानिक अभी भी इस बात का पता लगाने का प्रयास कर रहे हैं कि क्या यौन दुर्व्यवहार का शिकार होने वाले बच्चे के मन से उसके नकारात्मक प्रभावों को पूरी तरह से मिटाया जा सकता है या नहीं। यौन शोषण का शिकार होने वाले बच्चों पर अब तक किए गए अध्ययनों से जो नतीजे सामने आए हैं, उससे यही साबित होता है कि परिजनों और साथियों का भरपूर समर्थन, आत्मसम्मान और धार्मिक विश्वास किसी हद तक इन कड़वी यादों को भुलाने में प्रभावी सिद्ध हो सकते हैं।
बचपन में यौन दुर्व्यवहार का शिकार होने वाले कुछ लोगों का कहना है कि इस अभिशाप के नकारात्मक प्रभावों से उबरने और उसके उपचार के लिए आयोजित होने वाली वर्कशॉपों में भाग लेने, इस संबंध में अधिक जानकारी प्राप्त करने और मनोवैज्ञानिकों से पारमर्श करने से उन्हें एक सामान्य जीवन व्यतीत करने में काफ़ी सहायता प्राप्त हुई है।
इस संवेदनशील परिस्थिति में मां-बाप की ज़िम्मेदारी अत्यअधिक महत्वपूर्ण हो जाती है। बाल यौन शोषण रोकने और इस संबंध में बच्चों को ऊंच नीच से अवगत कराने के लिए मां-बाप को बहुत ही विनम्रता और समझदारी का परिचय देना चाहिए। इस प्रकार से कि बच्चों के मन में बड़ों को लेकर नकारात्मक मानसिकता उत्पन्न न होने पाए।
अगर उनका पालन-पोषण इस प्रकार से किया जाए कि उनके मन में बड़ों को लेकर एक भय और एक आशंका उत्पन्न हो गई तो न केवल इससे बच्चे को मानसिक रूप से नुक़सान पहुंचेगा, बल्कि ख़ुद मां-बाप की समस्याओं में वृद्धि होगी और वे हमेशा चिंतित रहेंगे।
इसी प्रकार, मां-बाप को पालन-पोषण के तरीक़ों में सावधानियां बरतनी होंगी और अपने साधारण ज्ञान को विकसित करना होगा। इसी के साथ यह भी ध्यान रहे कि बच्चों की सुरक्षा के बहाने उनकी आज़ादी और खुलेपन को कुंठित नहीं करना है। उन्हें सुरक्षित रखने के लिए उनकी आज़ादी को इधर-उधर से काटना छांटना नहीं है। प्यार देने और प्यार पाने के उन के अधिकार को सीमित नहीं करना है। उन की दौड़ भाग करने की प्रवृत्ति को और अधिक प्रोत्साहित करना है, ताकि वे खुल कर भाग दौड़ सकें।
तीन वर्ष की आयु से ही, उन का ध्यान सही और ग़लत की ओर दिलाना ज़रूरी है। उन्हें पूरी तरह सचेत किया जा सकता है कि किस तरह के स्पर्श उन के लिए ठीक नहीं हैं। उन्हें गणित की तरह या भौगोलिक आकृति की तरह शरीर के उन अंगों के बारे में बताया जा सकता है जिन्हें बिना कारण छुआ और छेड़ा नहीं जा सकता।
बच्चों के लिए बड़ों की गोदियां सबसे सुरक्षित आश्रय-स्थलियां रही हैं और अब भी हैं लेकिन इन आश्रय-स्थलियों में छिपे हुए ख़तरों से भी उन्हें सावधान किया जा सकता है।
बुद्धि का स्तर और सामाजिक एवं भौगोलिक परिस्थितियों के दृष्टिगत बच्चों में 3 से 6 वर्ष की आयु में यौन जिज्ञासा का आरम्भ हो जाता है। आरम्भ में बच्चों के लिए अपनी लैंगिकता की पहचान प्राप्त करना सबसे महत्वपूर्ण होता है। बच्चों का मन बहुत पाक साफ़ और मासूम होता है, इसलिए अगर वे लैंगिकता से संबंधित सवाल पूछते हैं तो मां-बाप को शर्माना या क्रोधित नहीं होना चाहिए, बल्कि उनकी निगाहें बच्चों की मासूम निगाहों की तरह होनी चाहिएं। मां-बाप ने अगर बच्चों के इन सवालों को टाल दिया या उन्हें झिड़क दिया तो बच्चे ज़रूरत पड़ने पर भी कभी उनसे सलाह नहीं लेंगे और इस बारे में अपने हम उम्र बच्चों या अविश्वसनीय स्रोतों से जानकारी प्राप्त करेंगे। इस प्रकार के रवैये से मां-बाप ख़ुद बच्चों को ख़तरे की खाई में धकेल देते हैं। इसका नतीजा यह होता है कि ज़रूरत पड़ने और ख़तरे का आभास करने पर भी बच्चा अपनी ज़बान खोलने का साहस नहीं कर पाता और वह हिचकिचाहट का शिकार हो जाता है।
इस संबंध में अगर बच्चा सवाल करता है तो मां-बाप को मोटे तौर पर और उचित जवाब देना चाहिए। यौन शिक्षा के वक़्त बच्चों का ध्यान उनके गुप्तांगों की प्राइवेसी की ओर दिलाना ज़रूरी है। इस प्रकार से कि उन्हें बताया जाना चाहिए कि किसी को उनके गुप्तांगों को छूने की अनुमति नहीं है, और अगर कोई ऐसा करने का प्रयास करे तो तुम हमें बताओ। इस तरह से बच्चा अपनी सुरक्षा करना सीखता है और उसके बाद अगर कोई उसके साथ यौन दुर्व्यवहार करने का प्रयास करेगा तो वह सबसे पहले अपने मां-बाप को इससे अवगत कराएगा।
परिचितों और सम्बन्धियों के साथ बच्चों का सोना और तनहा रहना क़रीब क़रीब वर्जित होना चाहिए। इस मामले में प्यार की दुहाई देना बिल्कुल अपर्याप्त है। हमें अपने बच्चों को यह साहस देना होगा कि वे किसी भी अनुचित स्पर्श को तुरंत किसी को बता सकें। यह साहस देना और उनका विश्वास प्राप्त करना निःसंदेह हमारे पालन-पोषण की सबसे बड़ी सफ़लता होगी। नियमित रूप से इस बारे में हम बच्चों के साथ संवाद जारी रखेंगे तो यह सम्भव हो सकेगा।
जिन बच्चों को पर्याप्त यौन शिक्षा दी जाती है, वे उन बच्चों की तुलना में अधिक सुरक्षित होते हैं, जो पूर्ण रूप से इससे अनभिज्ञ हैं और उन्हें यौन दुर्व्यवहार जैसे किसी अभिशाप का कोई अंदाज़ा ही नहीं होता। अधिकांश परिवारों में बच्चों को सिखाया जाता है कि किसी अजनबी से बात नहीं करना, कभी भी किसी अजनबी से कोई चीज़ न लेना आदि। लेकिन बच्चों को यह बताना पर्याप्त नहीं है, इसलिए कि बच्चों को शिकार बनाने वाले अधिकांश अपराधी अजनबी नहीं बल्कि उनके अपने या परिचित होते हैं। बच्चों को बताया जाना चाहिए कि मां-बाप की अनुपस्थिति में किसी के घर न जाएं और किसी की गाड़ी में सवार न हों। ऐसा करने के लिए निमंत्रण देने वाला कोई अजनबी हो या परिचित। बच्चों से निरंतर संवाद जारी रखना चाहिए और उन्हें यह आश्वासन दिलाया जाना चाहिए कि उनके मन में जो भी बात है, वह हमारे लिए महत्वपूर्ण है।