Sep १७, २०१६ १३:४५ Asia/Kolkata

जैसा कि हमने उल्लेख किया था कि बाल यौन शोषण रोकने और इस संबंध में बच्चों को ऊंच नीच से अवगत कराने के लिए मां-बाप को बहुत ही विनम्रता और समझदारी का परिचय देना चाहिए।

इस प्रकार से कि बच्चों के मन में बड़ों को लेकर नकारात्मक मानसिकता उत्पन्न न होने पाए।

इसी प्रकार, मां-बाप को पालन-पोषण के तरीक़ों में सावधानियां बरतनी होंगी और अपने साधारण ज्ञान को थोड़ा विकसित करना होगा। इसी के साथ यह भी ध्यान रखा जाए कि बच्चों की सुरक्षा के बहाने उनकी आज़ादी को सीमित नहीं करना है। उन्हें सुरक्षित रखने के लिए उनकी आज़ादी को इधर-उधर से काटना छांटना नहीं है। प्यार देने और प्यार पाने के उन के अधिकार को सीमित नहीं करना है। उन की दौड़ भाग करने की प्रवृत्ति को और अधिक प्रोत्साहित करना है, ताकि वे खुल कर भाग दौड़ सकें।

बहुत छोटी आयु से ही, तीन वर्ष की आयु से ही, उन का ध्यान सही और ग़लत की ओर दिलाना ज़रूरी है। उन्हें पूरी तरह सचेत किया जा सकता है कि किस तरह के स्पर्श उन के लिए ठीक नहीं हैं। उन्हें गणित की तरह या भौगोलिक आकृति की तरह शरीर के उन अंगों के बारे में बताया जा सकता है जिन्हें बिना कारण छुआ और छेड़ा नहीं जा सकता।

बुद्धि का स्तर, शारीरिक, सामाजिक एवं भौगोलिक परिस्थितियों के दृष्टिगत बच्चों में 3 से 6 वर्ष का आयु में यौन जिज्ञासा का आरम्भ हो जाता है। आरम्भ में बच्चों के लिए अपनी लैंगिकता की पहचान प्राप्त करना सबसे महत्वपूर्ण होता है। मां-बाप को बच्चों की परवरिश कुछ इस प्रकार करनी चाहिए कि वह शुरू से ही अपने लड़का या लड़की होने से पूर्ण रूप से संतुष्ट हों और उस पर गर्व का आभास करें। मनोवैज्ञिक अब्राहम मेज़लू का मानना है कि अगर प्यास और भूख की भांति शुरू से ही इंसान की यौन इच्छाओं को सही दिशा प्रदान की जाए और शिक्षा एवं प्रशिक्षण द्वारा उन्हें सही मार्ग पर लगाया जाए।

सही समय पर और प्राकृतिक रूप से इंसान की यौन इच्छाओं की आपूर्ति और बचपन को सुरक्षित बनाने के उद्देश्य से इस्लाम धर्म में भी तार्किक रूप से यौन शिक्षा पर बल दिया गया है। इसी के साथ इस्लाम लिंग के आधार पर बच्चों के साथ भेदभाव की कड़ी निंदा करता है, ताकि अपने लिंग के कारण बच्चे को मानसिक रूप से आघात न पहुंचे और वह मानसिक रोगी न बन जाए। रूसी मनोवैज्ञानिक मकरानकोफ़ का मानना है कि बच्चों को यौन शिक्षा देने के लिए असमान्य प्रतिभा, विशेष संवेदनशीलता, समझदारी, सहानुभूति और स्नेह की ज़रूरत होती है।      

इस्लाम ने गुप्तांगों को ढांपकर रखने, बच्चों का मां-बाप के साथ एक ही बिस्तर पर सोने, बच्चों को स्नान कराने और बच्चों को अलग अलग बिस्तर पर सुलाने के संबंध में पर्याप्त दिशा निर्देश दिए हैं। पैग़म्बरे इस्लाम (स) इस संदर्भ में फ़रमाते हैं, छः वर्ष की आयु से बच्चों को अलग अलग बिस्तर पर सुलाया जाना चाहिए। एक अन्य स्थान पर सिफ़ारिश करते हैं कि पुरुषों को छः वर्ष की आयु की बच्ची को चूमने से बचना चाहिए और महिलाओं को ऐसे लड़कों को चूमने से बचना चाहिए जिनकी आयु सात वर्ष से अधिक हो चुकी है।

इस संदर्भ में किए गए अध्ययनों से पता चलता है कि लिंग के आधार पर बच्चों को उनकी भूमिका सिखाने में बाप की भूमिका मां से अधिक महूत्वपूर्ण होती है। इसलिए कि बाप, माँ की तुलना में 2 से 3 वर्ष की आयु के बच्चों के साथ उनके लिंग को नज़र में रखते हुए व्यवहार करता है। जो लड़के मर्दाना और मज़बूत इरादों को मालिक होते हैं, उनके बाप एक मज़बूत व्यक्तित्व और निर्णायक फ़ैसले लेने वाले होते हैं और परिवार में उनका एक विशेष दबदबा होता है। इसके विपरीत जो बाप घर में ढुलमुल सा रवैया अपनाते हैं और पारिवारिक फ़ैसलों में निर्णायक भूमिका निभाने के योग्य नहीं होते, वे अपने बेटों पर नकारात्मक प्रभाव डालते हैं और उनके बेटे एक मज़बूत स्वभाव वाले मर्द बनकर नहीं उभरते।

इस संदर्भ में होने वाले शोधों के परिणामों पर नज़र डालने से स्पष्ट हो जाता है कि जो लड़कियां अपने बचपन से रसोई के कामों, सिलाई कढ़ाई और पढ़ाई में रूची रखती हैं, वे बड़े होने पर एक महिला के रूप में अपनी सकारात्मक भूमिका निभा सकती हैं। इसी प्रकार, जो लड़के प्रतिस्पर्धी खेलों में अधिक रूची लेते हैं, व्यस्क होने पर उन्हें लिंग के आधार पर अपनी पहचान बनाने में कोई कठिनाई नहीं होती। इस तथ्य को सामने रखते हुए बच्चों को उचित भूमिकाएं सिखाई जानी चाहिएं, जो कदापि एक दूसरे से विरोधाभासी नहीं हैं। उदाहरण स्वरूप, लड़कियों को घर की साफ़ सफ़ाई, अपने छोटे बहन भाईयों की देखभाल और रसोई के कामों में मदद करना सिखाया जाना चाहिए तो वहीं लड़कों को ख़रीदारी करना, लेनदेन और बाहर के कामों में सहयोग करना सिखाया जाना चाहिए। साथ ही बच्चों का ध्यान इस तथ्य की ओर दिलाना ज़रूरी है कि यह दोनों भूमिकाएं एक दूसरे की विरोधाभासी नहीं हैं, बल्कि एक दूसरे की पूरक हैं। इस प्रकार लड़की और लड़का अपने लड़की होने और लड़का होने से संतुष्ट रहेंगे। लड़कियां ख़ुद को क़ैदी और दूसरों के अधीन नहीं समझेंगी और लड़के भी ख़ुद को एकदम आज़ाद, अधिक शक्तिशाली और दूसरों पर वर्चस्व जमाने वाला नहीं समझेंगे।

बच्चे छोटे हों या बड़े, उन्हें यौन शिक्षा देने को लेकर अधिकांश मां-बाप असमंजस की स्थिति में रहते हैं, कि कहीं उनकी बातें बच्चों परेशान न कर दें। वे यह निर्णय नहीं कर पाते कि इस संबंध में किस हद तक उन्हें अवगत कराया जाए? और क्या वे अपने बच्चों के सवालों के संतोषजनक जवाब देने में सफल रहे हैं या नहीं।

अध्ययनों से पता चलता है कि अन्य विषयों की भांति यौन शिक्षा भी धीरे धीरे और चरणबद्ध तरीक़े से होनी चाहिए। बच्चों के साथ इस संबंध में वार्ता और उनके सवालों के जवाब उनकी आयु को नज़र में रखकर दिए जाने चाहिएं। मां-बाप को जब भी कोई उचित असवर प्राप्त हो उसका लाभ उठाकर इस संबंध में बच्चों को अपने विश्वासों, मूल्यों और उचित व्यवहार के बारे में बताना चाहिए।

कुछ मां-बाप अपने व्यक्तिगत विश्वासों और दृष्टिकोणों को आधार बनाकर यौन संबंधित मामलों और यौन शिक्षा के बारे में बात नहीं करना चाहते। इसके पीछे उनका यह तर्क होता है कि ऐसा करने से बच्चों की यौन इच्छा जाग जाएगी। यह स्थिति में है कि जब बच्चे जितना अधिक अपने शरीर और लिंग संबंधित मामलों की सही जानकारी रखेंगे, वे उतना ही भटकने और ग़लत स्रोतों से जानकारी प्राप्त करने से बचेंगे। इसलिए इस संबंध में शिक्षा देने की ज़िम्मेदारी मां-बाप को निभानी चाहिए। 

इस संदर्भ में एक महत्वपूर्ण बिंदु यह है कि बच्चों को यौन शिक्षा देते समय मां-बाप को चाहिए कि बच्चों की प्रतिक्रियाओं पर नज़र रखें। अगर आप क्रोधित होंगे या डाट फटकार लगायेंगे तो संभव है बच्चे आपके साथ मैत्रिपूर्ण संबंध स्थापित न कर सकें और सवाल पूछने से बचने लगें।

इस संदर्भ में विशेषज्ञों ने कुछ महत्वपूर्ण बिंदुओं की ओर संकेत किया है, जिनका यौन शिक्षा के समय पालन किया जाना चाहिए। शरीर के विभिन्न अंगों के कामों के बारे में बच्चों को बहुत ही सरल तरीक़ा से बताना चाहिए। उदाहरण स्वरूप, दांत और मूंह खाने के लिए और आँखे देखने के लिए बनाई गई हैं। इसी प्रकार बच्चों को कुच अंगों का अंतर बताते हुए उनके निजी होने के बारे में स्पष्टीकरण दिया जाना चाहिए और बताया जाना चाहिए कि तुम्हारे गुप्तांग बिल्कुल निजी हैं, जिन्हें कोई हाथ नहीं लगा सकता और स्पर्श नहीं कर सकता। जब आप बच्चों से उनके गुप्तांगों के बारे में बात रहे हों तो शर्म और हिचकिचाहट का प्रदर्शन नहीं करना चाहिए।

बच्चों की प्राईवेसी का सम्मान करना चाहिए और उन्हें यह स्पष्ट करना चाहिए कि व्यस्क होने पर लड़कों और लड़कियों में भिन्न परिवर्तन होते हैं और उनका ध्यान इस वास्तविकता की ओर दिलाया जाना चाहिए कि उनके शरीर में परिवर्तन के साथ साथ उनके विचार, स्वभाव और कल्पनाओं में बदलाव आ सकता है जो बिल्कुल प्राकृतिक है।