बूशहर प्रांत-२
बूशहर प्रांत के महत्वपूर्ण शहरों में से एक दशतिस्तान शहर है जिसका केन्द्र बोराज़जान शहर है।
बूशहर प्रांत के महत्वपूर्ण शहरों में से एक दशतिस्तान शहर है जिसका केन्द्र बोराज़जान शहर है। कहा जाता है कि दशतिस्तान शहर कृषि का ध्रुव रहा है और इस प्रांत में महत्वपूर्ण चीज़ें पैदा की जाती थीं। कृषि और खजूर की खेती, यहां के किसानों की महत्वपूर्ण गतिविधियां हैं और खजूर, तंबाकू और गर्मियों के फल, इस शहर के मुख्य कृषि उत्पाद समझे जाते हैं जो ईरान के अन्य क्षेत्रों में निर्यात भी किए जाते हैं। बूशहर प्रांत में अद्वितीय इमारतें और धरोहरें मौजूद हैं जो ईरान के इस क्षेत्र के महत्व को दर्शाती हैं। विशेषकर दशतिस्तान शहर और बोराज़जान शहर के आस पास मौजूद ऐतिहासिक धरोहरें और प्राचीन टीले, इस क्षेत्र की प्राचीनता और प्राचीन सभ्यता की गाथा सुनाती हैं।
यहां पर मौजूद प्रसिद्ध व प्राचीन धरोहरों में से एक बराज़जान दुर्ग या करावांसराए मुशिरुल मुल्क है जो शहर के केन्द्र में स्थित है। इस इमारात के वास्तुकार हाजी मुहम्मद रहीम शीराज़ी हैं जिन्होंने बड़ी दक्षता के साथ और बहुत सुन्दर शैली से इस इमारत का निर्माण किया है।
इस इमारत में प्रयोग होने वाले मुख्य मसाले में पत्थर, चूना और चूना मिट्टी है। उसकी ज़मीन पर काटे गये बड़े बड़े पत्थरों का प्रयोग किया गया है। इस इमारत का कुल क्षेत्रफल 7000 वर्गमीटर है और इसका आधार भूत ढांचा 4200 वर्गमीटर तक फैला हुआ है। मुशीरुल मुल्क कारवां सराय में कुल मिलाकर 68 कमरे और दरवाज़े थे और बाद में होने वाले निर्माण कार्यों के कारण इसके कमरों की संख्या कम या ज़्यादा हो गयी। यह इमारत 1300 हिजरी शम्सी तक कारवांसराय के रूप में प्रयोग होती थी और बोराज़जान शहर के मुख्य रोड पर स्थित है इसीलिए यह शीराज़ से बूशहर की ओर व्यापारिक यात्रा करने वालों के विश्राम के लिए यह बेहतरीन जगह है। इस कारवां सराय से विभिन्न कालों में काम लिया जाता रहा है। उक्त इमारत वर्ष 1377 में इसके महत्व के दृष्टिगत ख़ाली करा ली गयी और इस ऐतिहासिक इमारत की सांस्कृतिक व कला संबंधी कार्यों के लिए प्रयोग करने हेतु आवश्यक मरम्मत की गयी और मुशीरुल मुल्क करावां सराय वर्ष 1362 में ईरान के राष्ट्रीय धरोहर की सूची में पंजीकृत हो गया।
आपके लिए यह जानना उचित होगा कि बोराज़जान के आसपास के क्षेत्रों में माद या मैढ़, सासानी और अशकानी कालों से संबंधित महत्वपूर्ण ऐतिहासिक धरोहरें भी पायी गयी हैं। तूज या तूज़ का प्राचीन क्षेत्र, शापूर दालकी नदी के किनारे पर स्थित है जो इस क्षेत्र के महत्वपूर्ण क्षेत्रों में शुमार होता है। प्राचीन समय में तूज़ व्यापारिक शहर था और यहां के सूती कपड़े और उसकी सिलाई प्रसिद्ध थी । इस नगर के प्राचीन धरोहरों में यहां पर मौजूद खंडहरों की ओर संकेत किया जा सकता है जो पत्थर, गारा मिट्टी और चूने से बने हुए हैं। तूज़ शहर में मौजूद खंडर इस शहर की प्राचीनता और इसके विस्तार की गाथा सुनाते हैं।
चेहल ख़ाने नामक ऐतिहासिक गुफा भी बराज़जान के आस पास मौजूद एक अन्य ऐतिहासिक धरोहर है। यह ऐतिहासिक गुफा, शापूर नदी के दोनों ओर पत्थर या लखौरियों से बनी हुई है। इसमें सामने की ओर दो कमरे, और एक कमरे से दूसरे कमरे में जाने के लिए संपर्क मार्ग भी बना हुआ है। साक्ष्य इस बात के सूचक हैं कि यह धरोहरें माद या मैढ़ और सासानी कालों से संबंधित हैं। जो चीज़ें हमने बतायीं हैं उसके अतिरिक्त भी ईरानी पुरातन वेत्ताओं की टीम द्वारा दो बड़े महलों के खंडहर भी मिले हैं जिनका संबंध हख़ामनशी काल से था। यह दोनों महल, फ़ार्स की खाड़ीमें हख़ामनशी काल में ईरान की महत्वपूर्ण छावनियां समझी जाती थीं।
दश्तिस्तान के पूरब में एक अन्य शहर है जिसका नाम तंगिस्तान है। यह शहर अहरम शहर का केन्द्र समझा जाता है। तंगिस्तान शहर के निवासियों की अधिकतर गतिविधियां सेवाओं पर आधारित होती थीं और यहां के लोग कृषि और शिकार भी किया करते थे। यहां के हालिया वर्षों के दौरान देश प्रेम और वीरता में प्रसिद्ध रहे हैं। यहां के लोगों की वीरता की कहानी बच्चों बच्चों की ज़बान पर है जब यहां के निवासियों ने प्रथम विश्व युद्ध में ब्रिटेन की सेना का उस समय जम कर मुक़ाबला किया जब उन्होंने ईरान के दक्षिणी क्षेत्रों और शीराज़ पर हमला किया था।
अहरम गांव भी बूशहर के हरभरे क्षेत्रों में शुमार होता है जो ऐतिहासिक, धार्मिक व प्राकृतिक दृष्टि से पर्यटन के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण गांव समझा जाता है। अहरम गांव में विभिन्न फलों के बाग़ों और सोतों के पाये जाने के कारण यहां पर प्रतिवर्ष बड़ी संख्या में देशी और विदेशी पर्यटन आते हैं। यहां पर मौजूद दो क़िलों के अवशेष, उन लोगों की याद दिलाते हैं जिन्होंने अपने देश की रक्षा के लिए अपने प्राणों को न्योछावर कर दिया। यह दोनों क़िले के अवशेष भी ईरान की ऐतिहासिक धरोहरें समझी जाती हैं। विभिन्न धार्मिक धरोहरें भी अहरम शहर के आसपास पायी जाती हैं जिसके दर्शन के लिए स्थानीय और अन्य शहरों के लोग जाते रहते हैं।
बूशहर प्रांत के दक्षिणपूर्वी छोर पर कंगान शहर आबाद है जो फ़ार्स की खाड़ी की तटवर्ती पट्टी पर स्थित है और बंदरे कंगान उसका केन्द्र है। क्योंकि यह गांव फ़ार्स की खाड़ी की तटवर्ती पट्टी पर स्थित है इसीलिए इसके लुभावने दृश्य देखने के लिए दूर दूर से बहुत अधिक लोग आते हैं। इसके अतिरिक्त कंगान में प्राकृतिक गैस की एक बहुत बड़ी रिफ़ाइनरी है जिसके कारण यह क्षेत्र बूशहर प्रांत का महत्वपूर्ण उद्योग ध्रुव समझा जाता है। यह रिफ़ाइनरी दूरस्थ क्षेत्रों में गैसों की आपूर्ति करने के साथ देश से बाहर भी गैस निर्यात करती है। गैस रिफ़ाइनरी के पाये जाने के कारण, इस नगर के अधिकतर लोगों को रोज़गार मिला। अलबत्ता कंगान का बंदरगाही नगर, एक शिकारी बंदरगाही नगर के रूप में भी पहचाना जाता है।
यह भी बताते चलें कि इस शहर का ज़िला बंदरे ताहीरी, चौथी क़मरी शताब्दी में व्यापारिक दृष्टि से महत्वपूर्ण था क्योंकि सीराफ़ नामक बड़ा शहर भी बंदरे ताहीरी के पड़ोस में स्थित है। यद्यपि सीराफ़ आजकल खंडहर में परिवर्तित हो गया है किन्तु सासानी काल में सीराफ़ फ़ार्स की खाड़ी के महत्वपूर्ण बंदरगाहों में शुमार होती थी और इस्लामी काल की आरंभिक शताब्दी में यह एक महत्वपूर्ण और रणनैतिक बंदरगाह शुमार होती थी। तीसरी और चौथी हिजरी शताब्दी में जब ईरान का व्यापार फ़ार्स की खाड़ी में अपने चरम पर था, सीराफ़ क्षेत्र का एक महत्वपूर्ण व्यापारिक केन्द्र समझा जाता था और समस्त वस्तुए समुद्र के मार्ग से ईरान में प्रविष्ट और ईरान में वितरित होती थीं। प्रत्येक दशा में बहुत से ऐतिहासिक प्रमाण इस बात के सूचक हैं कि आरंभ से ही कंगान शहर व्यापारिक व ऐतिहासिक दृष्टि से महत्वपूर्ण रहा है। इन ऐतिहासिक धरोहरों के अतिरिक्त इस शहर में कंगान के उत्तर में मियानलो गर्म पानी का सोता भी देखने योग्य है।
बूशहर प्रांत के एक अन्य शहर का नाम असलूये है जिसका केन्द्र बंदरे असलूये है। यह नया शहर 2012 में कंगान शहर से अलग हो गया है और एक नया शहर बन गया। बंदरे असलूये, ईरान की अर्थव्यवस्था और ईरान के सबसे दक्षिणी क्षेत्र में वैश्विक ऊर्जा के उत्पादन का महत्वपूर्ण क्षेत्र समझा जाता है जिसने हालिया 12 वर्षों में उल्लेखनीय प्रगति की है। असलूए शहर की केंद्रीय बंदरगाह, बूशहर के दक्षिणीपूर्वी क्षेत्र में 276 किलोमीटर तथा बंदर अब्बास के पश्चिम में 570 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यह फ़ार्स की खाड़ी के उत्तरी क्षेत्र दक्षिणी पार्स गैस फ़ील्ड से सबसे निकट है।
असलूये की बंदरगाह का अतीत बहुत पुराना है और यह फ़ार्स की खाड़ी की सबसे पुरानी बंदरगाहों में है। लड़ाई झगड़ों, युद्धों और शत्रुता के कारण, इस क्षेत्र में मौजूद बहुत सी ऐतिहासिक धरोहरें और दुर्ग व मस्जिदें ध्वस्त हो गयीं । प्रमाण इस बात के सूचक हैं कि असलूए बंदरगाह की बुनियाद सासानी शासन काल में रखी गयी। असलूए, बूशहर बंदरगाह के पूरब में 300 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है और फ़ार्स की खाड़ी के मध्य स्थित दक्षिणी पार्स गैस फ़ील्ड से लगभग सौ किलोमीटर की दूरी पर है।
फ़ार्स की खाड़ी के एक सौ से एक सौ बीस किलोमीटर तक पार्स गैस फ़ील्ड फैली हुई है। इस का उत्तरी भाग पूरी तरह से ईरान का है जबकि पार्स गैस फ़ील्ड का दक्षिणी छोर क़तर साथ संयुक्त है। यद्यपि कुछ रिपोर्टों के अनुसार उत्तरी पार्स गैस फ़ील्ड में गैस की खोज चालीसवीं हिजरी शम्सी के दशक में हुई है किन्तु कुछ विशेषज्ञों का यह मानना है कि अभी तक इस फ़ील्ड में पाये जाने वाले भंडारों का सही अनुमान नहीं लगाया जा सका है। यह फ़ील्ड, दक्षिणपूर्व बूशहर से 120 किलोमीटर तथा फ़ार्स की खाड़ी के पानी में दो से तीस मीटर की गहराई में स्थित है। इसमें लगभग सात ट्रिलियन घन मीटर गैस है। इस क्षेत्र में गैस की खोज 1342 हिजरी शम्सी में भूकंप के बाद आरंभ हुई और वर्ष 1345 हिजरी शम्सी में पहले गैस के कुएं का काम पूरा हुआ। इस गैस फ़ील्ड से लाभान्वित होने के लिए 1977 में आरंभिक काम हुआ जिसके बाद खुदाई शुरु हुई और 17 कुएं खोदे गये तथा 24 समुद्री स्टेशन बनाए गये और ईरान में आने वाली क्रांति और उसके बाद इराक़ द्वारा थोपे गये युद्ध के साथ ही इसका काम रुक गया। युद्ध की समाप्ति के बाद दोबारा इस पर काम आरंभ हुआ और क़तर के साथ संयुक्त इस फ़ील्ड पर प्रबंधकों ने ध्यान दिया।
दक्षिणी पार्स गैस फ़ील्ड का क्षेत्रफल 9700 वर्ग किलोमीटर है जिसमें से ईरान का 3700 वर्ग किलोमीटर भाग है। इस भंडार का घनत्व समुद्र की लगभग 3 हज़ार मीटर गहराई में 250 मीटर है। इस गैस फ़ील्ड में 14 ट्रिलियन घन मीटर गैस है जिसमें 18 अरब बैरल तरल गैस मौजूद है जो ईरान के गैस भंडार का लगभग पचास प्रतिशत भाग है। बढ़ती मांगों और इस गैस फ़ील्ड से अधिक से लाभ उठाने के लिए दक्षिणी पार्स गैस फ़ील्ड विस्तार किया जाएगा और पोट्रोकेमिल आहार के रूप में तरल गैस से लाभ उठाने पर भी विचार किया जा रहा है।