वरामीन
तेहरान प्रांत के शहरों और क़स्बों के परिचय के परिप्रेक्ष्य में आज हम वरामीन से आप लोगों को परिचित करवायेंगे।
वरामीन ज़िला तेहरान के दक्षिण पूरब में 40 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। वरामीन का इतिहास पुराना है और यहां ऐतिहासिक धरोहर मौजूद हैं। इतिहासकारों ने वरामीन के मैदानी इलाक़ों की सभ्यता को काशान की सियल्क और सीस्तान के बर्न शहर की सभ्यताओं से तुलना की है और उनका मानना है कि वरामीन के आसपास दहवीन, क़लए सीन और दह माक्सीन गांवों का स्थित होना, वरामीन के इतिहास को ईरान के ज्ञात इतिहास से सैकड़ों वर्ष पूर्व तक ले जाता है।
वरामीन ज़िला उपजाऊ पठारी इलाक़े में स्थित है। यह पूर्वोत्तर में पीशवा और पाकदश्त, पश्चिमोत्तर में क़रचक, पश्चिम में रय, दक्षिण में क़ुम और दक्षिण पूरब एवं पूरब में सेमनान ज़िलों से घिरा हुआ है। यह जानना दिलस्प होगा कि पूर्व में पीशवा और क़रचक ज़िले वरामीन का भाग थे, जो बड़े क्षेत्रफल के कारण पिछले दो दशकों के दौरान उससे अलग हो गए। वरामीन इलाक़े ने हमेशा अप्रवासियों को अपनी ओर आकर्षित किया है। इनमें से कुछ अप्रवासी राजनीतिक कारणों से और कुछ ख़ुद ही इस इलाक़े की ओर आकर्षित हुए हैं। तुर्क, लोर, कुर्द, अरब, ताजीक और तुर्कमन विभिन्न क़ौमों के यह समस्त लोग स्थानीय निवासी माने जाते हैं, जिन्होंने विगत में इस इलाक़े की ओर पलायन किया था और ईरान के अन्य इलाक़ों की भांति फ़ार्सी भाषा बोलते हैं।
वरामीन ज़िला उत्तर में संतुलित इलाक़े में स्थित है। इस इलाक़े की जलवायु में रेगिस्तानी इलाक़ा, अलबोर्ज़ पर्वतीय श्रृंखला और नम हवाओं की महत्वपूर्ण भमिका है। इन तीन कारकों में से दो कारक, रेगिस्तान और पश्चिमी हवाएं वरामीन की जलवायु को प्रभावित करते हैं। वरामीन ज़िले की जलवायु उत्तरी इलाक़े में संतुलित एवं गर्म है और दक्षिणी इलाक़ा, जो उत्तरी रेगिस्तान के किनारे पर जाकर समाप्त होता है, गर्म है और यहां बारिश कम होती है। इस इलाक़े में तापमान अधिक होता है और वार्षिक भाप बनने की मात्रा बारिश से कहीं अधिक है।
उत्तर से दक्षिण की ओर बहने वाली जाजरूद नदी से इस इलाक़े की जल आपूर्ति होती है। वरामीन के अधिकांश लोग खेती करते हैं। अनाज की पैदावार की दृष्टि से यह ज़िला प्रसिद्ध है। इस इलाक़े के कृषि उत्पादों की ईरान भर में मांग है। इस इलाक़े में चीनी और तेल के कारख़ाने हैं। क़ालीन और चटाई की बुनाई इस इलाक़े की महत्वपूर्ण हस्तकलाओं में से हैं।

वरामीन ज़िले का केन्द्रीय शहर वरामीन समुद्री सतह से 915 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। इस शहर की जलवायु संतुलित, गर्म और सूखी है। तेहारन-मशहद रेलवे लाईन पर स्थित होने के कारण, इस शहर का रणनीतिक महत्व बढ़ गया है।
ऐतिहासिक दृष्टि से वरामीन रय इलाक़े का एक गांव था। तैमूरियों और मुग़लों के हाथों रय की बर्बादी के बाद, कुछ लोग रय से पलायन करके वरामीन चले गए। हम्दुल्लाह मुस्तौफ़ी ने नुज़हतुल क़ुलूब में लिखा है कि वरामीन अतीत में एक गांव था और अब क़स्बा और केन्द्र बन गया है। यहां अनाज, कपास और फल पैदा होते हैं। यहां की जलवायु रय से अच्छी है। अब जब रय बर्बाद हो गया है, तो वहां का शहर वरामीन है।
आठवीं हिजरी शताब्दी के आरम्भ में वरामीन उस इलाक़े का सबसे आबाद शहर माना जाता था और आसपास के इलाक़ों की तुलना में उसकी जनसंख्या में वृद्धि हो गई थी। सफ़वी शासनकाल की स्थापना के बाद तथा शाह तहमास्ब प्रथम की तेहरान के विकास में रूची के कारण, तेहरान लगातार विकसित एवं विस्तृत होता गया और इसके विपरीत वरामीन का महत्व पहले जैसा नहीं रहा और उसके बहुत से नागरिक तेहरान पलायल कर गए।

मादाम द्योलाफ़ुआ ने जो नासिरुद्दीन शाग के शासन के दौरान कई बार अपने पति मार्शल के साथ ईरान की यात्रा कर चुकी थीं, वरामीन का भी दौरा किया था और अपनी किताब में इसका विस्तृत उल्लेख किया था।
अहमद शाह क़ाजार के शासनकाल के आरम्भ में, अपदस्थ सुल्तान मोहम्मद अली मिर्ज़ा ने रूस के सहयोग से अपना ताज और तख़्त वापस लेने का इरादा किया। इन दिनों इस्तेबदाद की सेना और संवैधानिक शासन के बीच युद्ध की अंतिम लड़ाई वरामीन के बड़े क़स्बे इमाम ज़ादे जाफ़र में लड़ी गई। रणक्षेत्र इस इलाक़े के विभिन्न ऊचें टीले थे। परिणाम स्वरूप, मोहम्मद अली मिर्ज़ा का सेनापति गिरफ़्तार कर लिया गया। आज भी संवैधानिक सेना के हाथों इस्तेबदाद सेना की पराजय की दास्तान स्थानीय लोगों की ज़बान पर है। उस समय ईरान की यात्रा करने वाले फ़्रांसीसी सैलानी हेनरी रेने डेलमानी ने अपनी किताब में वरामीन का ज़िक्र किया है, वे लिखते हैं, कुछ समय बाद हम वरामीन के मैदानी इलाक़े में पहुंचे, हर क़दम पर पानी की एक नहर थी, जो पहाड़ों से बहकर आ रही थी, वहां हमने हरे भरे खेत देखे। किसान खेतों में काम कर रहे थे। एक बाज़ आसमान में उड़ रहा था, अचानक वह ज़मीन पर आया और उसने एक चिड़िया का शिकार कर लिया। मैदान किसी ऐसे बोर्ड की भांति था जिसकी काली ज़मीन पर जापानी कलाकारों ने अपने हाथों से सुनहरे चित्र बनाए हों। दूर से गांव दिखाई देता है जो पहाड़ के आंचल में स्थित है और सूर्य की किरनों में आकर्षक दृश्य पेश करता है।

प्राचीन इतिहास के कारण, वरामीन में महत्वपूर्ण ऐतिहासिक धरोहर हैं। प्राचीन अध्ययन की दृष्टि से इन धरोहरों का विशेष महत्व है। कार्यक्रम के अंतिम भाग में इनमें से कुछ से आपको परिचित करवायेंगे।
वरामीन की जामा मस्जिद महत्वपूर्ण ऐतिहासिक इमारत है। यह मस्जिद शहर के दक्षिण में स्थित है। इस मस्जिद का वैभव हर देखने वाले को आकर्षित करता है, यह ईलख़ानी काल से संबंधित है। इस मस्जिद की इमारत का निर्माण, सुल्तान मोहम्मद ख़ुदाबंदे ओलजायतू के शासनकाल में शुरू हुआ और उनके उत्तराधिकारी बेटे सुल्तान अबू सईद के शासनकाल में पूरा हुआ। यह ईरान की चार ओसारो वाली सबसे बड़ी मस्जिद है। इसमें ईंटों, टाइलों, मोडलिंग और मेहराब में नीडल वर्क के इस्लामी कला के बेहतरीन नमूने हैं। 1310 हिजरी शमसी में इस प्राचीन धरोहर को ईरान के राष्ट्रीय धरोहर में शामिल कर लिया गया।
इस मस्जिद का एक भाग, वर्ष 1322 ईसवी में और दूसरा भाग 1325 में बनकर पूरा हुआ। मिर्ज़ा शाहरुख़ तैमूरी के काल में इस इमारत का पुनर्निमाण किया गया।
अलाउद्दीन टॉवर की ऊंचाई 17 मीटर है और यह ईंटों से बना हुआ है। यह जामा मस्जिद से उत्तर में थोड़ी सी दूरी पर और वरामीन के केन्द्रीय चौक के निकट बना हुआ है। यह चौक पाचनार के नाम से प्रसिद्ध है। इस टॉवर में चोटीदार गुंबद है जो ईरानी कला का बेहतरीन नमूना माना जाता है। यह ईरान में मक़बरों पर बनी हुई इमारतों में विशिष्ट है। वर्ष 1931 में इसे ईरान के राष्ट्रीय धरोहर की सूची में शामिल कर लिया गया।

ईरानी उद्योगों का इतिहास किताब में टॉवर के निर्माण की तारीख़, 1289 ईसवी दर्ज है। इस इमारत के दो भाग हैं। पहला भाग गोल है और यह 12 मीटर ऊंचा है। गोल भाग के अंत में कूफ़ी लिपि में शिलालेख मौजूद है। यह शिलालेख नीली टाइल पर है और इसका एक भाग नष्ट हो चुका है। गुंबद के ऊपरी भाग को सुन्दर ज्यामितीय रेखाओं द्वारा सजाया गया है।

जिन धरोहरों का हमने नाम लिया है, उनके अलावा इमाम ज़ादे यहिया और शाहज़ादे हुसैन के मक़बरे हैं। इतिहास की दृष्टि से दोनों इमारतें अपने समय की वास्तुकला का बेहतरीन नमूना हैं। वरामीन के पूर्वोत्तर में स्थित ईरज क़िला भी ईरान का एक बड़ा क़िल है। उसके चिन्ह और अवशेष अभी भी मौजूद हैं। यह क़िला प्राचीन समय में क़ाफ़िलों के मार्ग में स्थित था और इसका सामरिक महत्व था। क़िले का इतिहास ज्ञात नहीं है, लेकिन उसके टॉवर संभवतः मुग़लों के हमलों के काल में बनाए गए हैं।
