पीशवा
तेहरान प्रांत के क़स्बों में से एक क़स्बा पीशवा है जो तेहरान के दक्षिण पूरब में 45 किलोमीटर और वरामीन से दस किलोमीटर की पर पर्वतांचल में स्थित है।
पीशवा क्षेत्र, वरामीन का एक उपजाऊ क्षेत्र है। पुरातन वेत्ताओं के अनुसार, पीशवा क्षेत्र की प्राचीनता, पाषाण युग की ओर पलटती हैं। पीशवा उन गिने क्षेत्रों में समझा जाता है जहां के सभी लोग, तेहरान प्रांत के मूल निवासी व क्षेत्र के रहने वाले हैं। वर्ष 1389 हिजरी शम्सी अर्थात 2010 तक पीशवा छोटा भाग था जो भौगिलिक और देश की व्यवस्था की दृष्टि से वरामीन ज़िले का भाग समझा जाता था किन्तु जनसंख्या में वृद्धि और शहर के विस्तार के कारण वर्ष 1389 हिजरी शम्सी में इसे ज़िला बना दिया गया। पीशवा ज़िले का केन्द्र, पीशवा शहर है और यह तेहरान प्रांत के ज़िलों में से एक है। यह ज़िला प्राचीन सिल्क रोड पर तथा तेहरान-मशहद रेलमार्ग पर स्थित है।
पीशवा ईरान के केन्द्रीय मरुस्थल का बंदरगाह समझा जाता है और इसे सनारदक कहा जाता है जो पहलवी भाषा में सूखे तट को कहा जाता है। इसके अतिरिक्त पीशवा ग्रीन हाऊस के लिए शहर है। इस प्रकार से कि ईरान का हर आठवां हाऊस इसी शहर में मौजूद है और यह ईरान में फूल और वनिस्पतियों तथा जड़ी बूटियों के उत्पादन का केन्द्र समझा जाता है। इस शहर में इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम के पुत्र इमाम ज़ादा जाफ़र ख़ूवारी की क़ब्र भी है जो अली बिन मूसा रिज़ा अलैहिस्सलाम की इमामत के काल में शीया मुसलमानों के वरिष्ठ धर्मगुरू समझे जाते थे। यह ईरान का एक धार्मिक शहर समझा जाता है।

पीशवा शहर के निवासी प्राचीन काल से ही कृषि में व्यस्त रहे हैं आज़ भी कृषि इन लोगों के मध्य बहुत अधिक प्रचलित है। एक सर्वेक्षण के आधार पर पीशवा शहर के 26 प्रतिशत लोग किसान हैं। पीशवा शहर की 85 प्रतिशत से अधिक ज़मीनों पर खेतीबाड़ी होती है और प्रतिवर्ष पांच लाख टन कृषि उत्पाद पैदा होता है जिनमें से तीन लाख ग्रीन हाऊस है जबकि इनमें से कुछ भाग विदेशों जो निर्यात होता है। देश में लगभग आठ लाख ग्रीन हाऊस मौजूद हैं जिनमें से एक हज़ार हेक्टेयर अर्थात आठवों भाग पीशवा में है। यही कारण है कि यह शहर ईरान और तेहरान प्रांत के स्तर पर ग्रीन हाऊस जड़ी बूटियों और वनस्पतियों के उत्पादन का ध्रुव समझा जाता है। वर्ष 2014 में पीशवा शहर को सवाधिन कृषि उत्पाद देने वाले शहर के रूप में चुना गया।
पीशवा शहर के कृषि उत्पादों के आधे भाग में ग़ल्ले शामिल होते हैं जिनमें मकई, गेहूं और जौ की ओर संकेत किया जा सकता है। इसी प्रकार पीशवा के ग्रीन हाऊस के मुख्य उत्पाद खीरे, फूल और जडी बूटियां हैं। बाद के चरणों में बैंगन, टमाटर, तरोइ, पत्ता गोभी, सलाद पत्ता और सूर्य मुखी का नाम लिया जा सकता है। हालिया वर्षों में बारबेरी और ज़ाफ़रान की बहुत अधिक खेती की गयी है जबकि मशरूम इत्यादि की खेती पर भी विशेष ध्यान दिया गया है। इसी प्रकार अनार, अंगूर, अंजीर, ज़ैतून, अख़रोट और आड़ू यहां के प्रसिद्ध उत्पादन हैं।
इसके अतिरिक्त यहां की उपजाऊ ज़मीन पशुपालन के लिए भी बहुत प्रसिद्ध है। यहां प्रतिवर्ष 37717 टन दूध का उत्पादन होता है और इस प्रकार से यह ईरान में दूसरा स्थान है जहां सबसे अधिक दुग्ध उत्पादन होता है। इसके साथ ही पशु पालन के साथ यहां रेड मीट भी सबसे अधिक उत्पादित होता है।
इसी प्रकार मधुमक्खी पालन भी इस शहर में बहुत प्रसिद्ध है। पीशवा शहर में प्रतिवर्ष तीन टन से अधिक मरुस्थलीय शहद निकाला जाता है। इसी प्रकार मुर्ग़ी पालन भी इस शहर में बहुत अधिक प्रचलित है जिसके कारण इस क्षेत्र के लोग आत्मनिर्भर हो गये हैं और इसी से जीवन यापन करते हैं। इसके अतिरिक्त यहां के लोग शुतरमुर्ग़ भी पालते हैं जो यहां के पशुपालन का दूसरा भाग समझा जाता है। पशु पालन के परिणाम में यहां के लोग ऊन का उत्पादन करते हैं जो हस्त उद्योग और क़ालीन बुनने की उचित भूमि प्रशस्त करता है। यही कारण है कि पीशवा के आस पास मौजूद गांव में क़ालीन बुनने का रिवाज है।
पीशवा का प्राचीना नाम इमाम ज़ादा जाफ़र था जो इमाम ज़ादे के कारण यह क्षेत्र अस्तित्व में आया। इमाम ज़ादे जाफ़र पीशवा पर लोग विशेष ध्यान देते थे क्योंकि वह इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्लाम के पुत्र और इमाम रज़ा अलैहिस्लाम के सगे भाई और पैग़म्बरे इस्लाम के पौत्रों में से थे। इमामज़ादे जाफ़र के मज़ार का फ़िरोज़ी गुंबद और इमारत का संबंध सफ़वी काल से है। इस मक़बरे के बीचो बीच मौजूद जाली व ज़रीह, हरे रंग के संगे मरमर के तीस सेन्टीमीटर के स्तंभ पर टिकी हुई है। यह जाली सोने और चांदी की बनी हुई हैं जिन्हें मीनाकारी से सुसज्जित किया गया है। इस पर नस्तालीक़ और सुल्स लिपी में शिलालेख है। इससे वर्ष 1992 में बनाया और लगाया गया। शिलालेख के अंत में जो पुरानी ज़रीह के द्वार पर मौजूद है, 944 हिजरी क़मरी खुदा हुआ है और शिलालेख के नीचे, रौज़े के भीतर, जो सुलस लिपी मे है, सफ़वी राजा शाह तहमास्ब का नाम और 956 हिजरी क़मरी लिखा हुआ है।

इस इमारत का गुंबद 21 मीटर ऊंचा है जो दो परत वाला है और दोनों परतों के मध्य सात मीटर का फ़ासला है। गुंबद के बाहरी भाग पर फ़िरोज़ी टाइल्स लगी हुई है जिस पर सुल्स, नस्तालीक़ और कूफ़ी लिपी में सुन्दर डिज़ाइनें और शिलालेख हैं। इसके अतरिक्त गुंबद को बर्फ़ और वर्षा से बचाने के लिए उसके ऊपर एक परत बनाई गयी है जिसकी वर्ष 1354 हिजरी शम्सी में ईरान की धरोहरों की रक्षा करने वाली संस्थाओं की ओर से मरम्मत की गयी। आइनये कारी, प्लास्टर आफ़ पेरिस और मोअर्रक़ की सुन्दरता से मस्जिद के ऊंचे हाल की सुन्दरता में चार चांद लग जाते हैं। हरम, बाज़ार, चौराहे, गलियां, क़ब्रिस्तान और जलभंडार इत्यादि सफ़वी शासन काल के शहर निर्माण के तत्व हैं जो अब भी पीशवा शहर के प्राचीन भाग में देखे जा सकते हैं जबकि इनमें से कुछ अब भी काम आने योग्य हैं।
पीशवा शहर में स्थित ईरज दुर्ग, ईरान का सबसे बड़ा दुर्ग है जिसके अवशेष अभी तक बाक़ी हैं। यह दुर्ग प्राचीन कारवां सरा के मार्ग में स्थित हैं और सैन्य दृष्टि से भी बहुत महत्वपूर्ण है। इस दुर्ग से मिले अवशेषों से पता चलता है कि यह तीन हज़ार वर्ष ईसा पूर्व से भी पुराना दुर्ग है। इस दुर्ग की लंबाई एक हज़ार 214 मीटर तथा चौड़ाई एक हज़ार 150 मीटर है। दुर्ग के उत्तरी छोर पर 34 टावर, दक्षिणी छोर पर 42 टावर तथा पूर्वी और पश्चिमी छोर पर 36 टावर मौजूद हैं।
यह दुर्ग सौ हेक्टेयर में पूर्ण रूप से समतल है और इसमें दक्षिणी, उत्तरी, पश्चिमी और पूर्वी चार दरवाज़े हैं और इसका उत्तरी दरवाज़ा पूरी तरह दमावंद दुर्ग के सामने है इस प्रकार से कि दक्षिण से उसके उत्तरी द्वारा को देखें तो दमावंद की चोटी फ़ोटो के फ़्रेंम की भांति सुन्दर सा दिखाई पड़ता है। इस दुर्ग की दीवारें कच्ची मिट्टी से बनी ईंट से बनी हैं और इनकी लंबाई 25 मीटर है जबकि श्रण के कारण इसकी दीवारें 16 मीटर ही बची हैं।

इस क़िले की दीवारों की मोटाई कहीं कहीं 17 से 22 मीटर तक है कि इस प्रकार कि दीवारों में सूराख़ बनाये गये हैं जिनसे रथ आते जाते थे। दुर्ग के चारों ओर तीस मीटर लंबी और 8 मीटर गहरी खाई बनाई गयी है जो दुश्मनों के हमले से क़िले को सुरक्षित रखती थीं। दुर्ग के भीतर एक महल था जिसका कोई अब बाक़ी नहीं है। इस दुर्ग में छोटी नहर भी जारी है जिसके बारे में आज तक यह पता नहीं चल सका है कि यह कहां से फूटी है। इस नहर में प्रयोग होने वाली ईंट सासानी काल से संबंधित है।
इतिहासकारों का मानना है कि ईरज दुर्ग एक सैन्य दुर्ग था और यहां सैनिकों का पड़ाव रहता था। यद्यपि यह स्पष्ट नहीं है कि इसका निर्माण कब और किस शासन काल में हुआ था। कुछ का कहना है कि यह कियानियान काल में तूरानियों के हमले से बचने के लिए बनाया गया था। ईरज दुर्ग को 11 शहरीवर वर्ष 1382 में ईरान की राष्ट्रीय धरोहर की सूची में पंजीकृत कर लिया गया है।