तकफ़ीरी आतंकवाद-28
हमने यह बताया था कि हिजाज़ के समूचे क्षेत्र पर वर्चस्व जमाने और सऊदी अरब देश की स्थापना के समय आले सऊद ने क्या- क्या अपराध किये थे।
इसी प्रकार हमने यह भी बताया था कि हिजाज़ पर वर्चस्व के समय आले सऊद ने पैग़म्बरे इस्लाम के निकट परिजनों और साथियों के मज़ारों को ध्वस्त कर दिया। आले सऊद ने वहाबी मुफ्तियों के निराधार फतवों के आधार पर पैग़म्बरे इस्लाम के निकट परिजनों और उनके साथियों के मज़ारों और बहुत सी एतिहासिक इमारतों को ध्वस्त कर दिया। आले सऊद ने सबसे बड़ा अपराध बक़ी कब्रिस्तान में अंजाम दिया। बकी क़ब्रिस्तान में जिसे जन्नतुल बक़ी के नाम से भी जाना जाता है, इस्लाम की बहुत सी महान हस्तियों विशेषकर पैग़म्बरे इस्लाम के चार पौत्रों की क़ब्र हैं और यह कब्रिस्तान पूरे इतिहास में मुसलमानों का दर्शन स्थल रहा है।
इतिहासिक और धार्मिक स्थलों का हर जाति व समुदाय के निकट विशेष स्थान होता है विशेषकर अगर उस स्थान पर उस धर्म के महान हस्तियों की यादगार हो। इस्लामी इतिहास के आरंभ से ही मुसलमानों ने अपनी महान हस्तियों की कब्रों पर बहुत अधिक इमारतों का निर्माण किया और उनके दर्शन के लिए जाते थे और आदर- सम्मान करते थे और किसी को भी इस मामले पर कोई आपत्ति नहीं थी और इस संबंध में समस्त मुसलमान एकमत थे यहां तक कि एक मुसलमान भी इसका विरोध नहीं करता था।
मसऊदी जैसे इतिहासकार अपनी किताब “मुरूजुज़्ज़ह” में और प्रसिद्ध पर्यटक इब्ने जुबैर और इब्ने बतूता सबने अपने यात्रावृतांतों में इन भव्य रौज़ों व इमारतों को याद किया है। ज्ञात रहे कि मसऊदी चौथी हिजरी कमरी शताब्दी में था जबकि इब्ने जुबैर और इब्ने बतूता सातवीं व आठवीं हिजरी क़मरी में थे।
प्रसिद्ध पर्यटक इब्ने जुबैर ने सातवीं हिजरी कमरी में हिजाज़ की यात्रा की थी और उसने अपनी इस यात्रा में बक़ी क़ब्रिस्तान को देखा था और उसका वर्णन इस प्रकार करता है “और वह ऊंचा व गननचुंबी गुंबद है जो बक़ी कब्रिस्तान के निकट है।” इब्ने जुबैर के देहातं के 150 वर्ष बाद आठवीं हिजरी कमरी में इब्ने बतूता ने सऊदी अरब के पवित्र नगर मदीना की यात्रा की और वहां उसने जो कुछ देखा उसे इस प्रकार बयान किया “बक़ी के इमामों के मज़ारे पर एक ऊंचा गुंबद है जो मज़बूत, अनोखा और आश्चर्यचकित करने वाला है”
समकालीन शताब्दी में “मिरआतुल हरमैन” नामक किताब के लेखक इब्राहीम रिफक़त पाशा ने बकी में पैग़म्बरे इस्लाम के निकट परिजनों व इमामों के मज़ार को ध्वस्त किये जाने से 19 वर्ष पूर्व हज यात्रा की और वह इस हरम की विशेषता इस प्रकार बयान करते हैं” अब्बास और हसन बिन अली और तीन इमामों की क़ब्रें एक गुंबद के नीचे हैं जो बक़ी कब्रिस्तान के गुंबदों में मौजूद सबसे बड़ा गुंबद है।“
पूरे इतिहास में तीन बार बक़ी कब्रिस्तान का पुनर्निमाण किया गया। पहली बार 519 हिजरी कमरी में अलमुन्तसिर बिल्लाह के माध्यम से जबकि तीसरी बार 13वीं शताब्दी के अंत में सुल्तान महमूद ग़ज़्नवी द्वारा इसका पुनरनिर्माण कराया गया। बक़ी कब्रिस्तान पर लगे शिलालेखों को जिन पर्यटकों ने अपनी यात्राओं के दौरान पढ़ा है वह इस तथ्य के सूचक हैं।
बक़ी कब्रिस्तान को दो चरणों में ध्वस्त किया गया। पहली बार 1221 हिजरी हिजरी क़मरी में अब्दुल अज़ीज़ के नेतृत्व में एक सेना ने मदीने पर चढ़ाई की और काफी समय तक मदीने का परिवेष्टन करने के बाद उसने बहुत से निर्दोष लोगों की हत्या की। उसके बाद उसने पैग़म्बरे इस्लाम के रौज़े के सेवकों को एकत्रित किया और उन्हें मारा- पीटा ताकि वे पैग़म्बरे इस्लाम की पावन समाधि पर भेंट की जाने वाली वस्तुओं के रखने की जगह बतायें। पैग़म्बरे इस्लाम के रौज़े के लूट लिये जाने के बाद जब सेना नज्द वापस जा रही थी तो रास्ते में बक़ी कब्रिस्तान पड़ा और उस समय अब्दुल अज़ीज़ ने समस्त रौज़ों को ध्वस्त करने का आदेश दिया। उल्लेखनीय है कि इस हमले में वे चार तिजोरियां अपने साथ ले गये। ये तिजोरियां हीरे और याकूत से भरी हुई थीं। इसी प्रकार इन तिजारियों में सोने की लगभग सौ तलवारें थी और इन तलवारों की म्यानों पर सोने का पानी चढ़ाया गया था। उस समय उसमानी ख़लीफा ने अपने गवर्नर मोहम्मद अली पाशा को आदेश दिया कि वह हिजाज़ को वहाबियों के वर्चस्व से स्वतंत्र कराके उसके नियंत्रण को अपने हाथ में ले ले। इसके बाद 1227 हिजरी क़मरी में एक रक्त रंजित युद्ध हुआ जिसमें वहाबियों की करारी हार हुई। इस घटना के बाद मुसलमानों की सम्पत्ति से ध्वस्त हुए रौज़ों का बेहतरीन रूप में पुनरनिर्माण किया गया। गुंबद और मस्जिद के निर्माण से बक़ी विश्व के मुसलमानों के सुन्दर दर्शनीय स्थलों में परिवर्तित हो गया परंतु वहाबी पैग़म्बरे इस्लाम के निकट परिजनों और उनके साथियों के रोज़ों को ध्वस्त करने से बाज़ नहीं आये और अंधविश्वास तर्कों के आधार पर पवित्र स्थलों व रौज़ों को ध्वस्त करने की चेष्टा में थे। वहाबियों ने 1343 हिजरी कमरी में पवित्र नगर मक्के में हज़रत अब्दुल मुत्तलिब, हज़रत अबू तालिब, हजरत खदीजा, पैग़म्बरे इस्लाम और हज़रत फातेमा ज़हरा के जन्म स्थान और पैग़म्बरे इस्लाम के गोपनीय उपासना स्थल “खैज़रान” पर बने गुंबदों को ध्वस्त कर दिया और जिद्दा में भी हज़रत हव्वा और दूसरी क़ब्रों को ध्वस्त कर दिया। पवित्र नगर मदीना में भी वहाबियों ने पैग़म्बरे इस्लाम के रौज़े पर तोप के गोले बरसाये परंतु मुसलमानों के भय से उनकी पावन समाधि को ध्वस्त नहीं किया। वहाबियों ने इसी प्रकार वर्ष 1343 हिजरी कमरी में बकी में पैग़म्बरे इस्लाम के निकट परिजनों की पावन समाधियों को ध्वस्त कर देने के बाद वहां पर जो मूल्यवान वस्तुएं मिली उसे लूट लिया। वहाबियों ने इसी प्रकार ओहद युद्ध के एक शहीद हज़रत हम्ज़ा की क़ब्र को ध्वस्त कर दिया और पैग़म्बरे इस्लाम की माता हज़रत आमिना और पिता हज़रत अब्दुल्लाह की पावन समाधियों पर बने रौज़ों और गुंबद तथा दूसरी क़ब्रों को भी ध्वस्त कर दिया। कट्टरपंथी वहाबियों ने उसी वर्ष इराक के पवित्र नगर कर्बला पर भी हमला किया और इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की पावन समाधि पर बनी ज़रीह को उखाड़ दिया और हरम में मौजूद मूल्यवान रत्नों और चीज़ों को, जिनमें से अधिकांश को राजाओं व शासकों ने उपहार स्वरुप भेंट किया था, उठा ले गये और लगभग सात हज़ार विद्वानों, छात्रों और सैयदे की हत्या कर दी।
तकफीरी और आतंकवादी गुटों ने पिछले कुछ वर्षों के दौरान सीरिया, इराक, लीबिया, ट्यूनीशिया और दूसरे इस्लामी देशों में वहाबियों का अनुसरण करते हुए पैग़म्बरे इस्लाम के वंशजों, उनके साथियों और इस्लाम की महान हस्तियों की क़ब्रों को ध्वस्त कर दिया और कर रहे हैं।
वहाबियों ने पवित्र कुरआन की कुछ आयतों और रवायतों से जो ग़लत निष्कर्ष निकाला था और इसी प्रकार एकेश्वरवाद के संबंध में उनकी जो ग़लत धारणायें व आस्थायें हैं उसके आधार पर वहाबी क़ब्रों पर इमारत और गुंबद बनाये जाने को अनेकेश्वरवाद और बिदअत अर्थात धर्म में नई चीज़ उत्पन्न करना मानते थे इसी कारण उन्होंने ईश्वरीय दूतों, महान हस्तियों और भले लोगों की कब्रों को ध्वस्त कर दिया। वहाबी एक हदीस के आधार पर क़ब्रों पर इमारत बनाये जाने को अनेकेश्वरवाद मानते हैं। जैसाकि इब्ने तैमिया अपनी पुस्तक “मिनहाजुस्सुन्नह” में लिखता है या उसके शिष्य इब्ने कय्यम ने कहा है या शौकानी ने “नैलुल औतार” किताब में लिखा है कि कब्रों पर इमारत और गुंबद का निर्माण मूर्ति बनाने जैसा है और वह अनेकेश्वरवाद का कारण है। जिस रवायत को वहाबी आधार के रूप में पेश करते हैं वह सुबूत होने की दृष्टि से संदिग्ध है और इस हदीस को बयान करने वाले रावी हदीस में झूठ बोलने में प्रसिद्ध हैं और दूसरे यह हदीस यह प्रमाणित करने में भी अक्षम है कि कब्रों पर इमारत व गुंबद का निर्माण मूर्ति बनाने जैसा है और इससे वहाबियों का दावा सिद्ध नहीं होता है। क्योंकि वहाबियों की दृष्टि में कब्रों पर इमारत का निर्माण हराम और कब्रों व गुंबद का ध्वस्त करना अनिवार्य है परंतु यह रवायत किसी प्रकार उनके दावे को सिद्ध नहीं करती। कब्रों पर बनाई जाने वाली इमारत को कुफ्र और अनेकेश्वरवाद की संज्ञा देने पर आधारित इब्ने तैमिया और उसके अनुयाइयों के दावे उन चीज़ों में से हैं जिनके सही होने के लिए तर्क देने की आवश्यकता नहीं है। वे कहते हैं” शीया पैग़म्बरों, इमामों, इमामों के वंशजों और विद्वानों व धर्मगुरूओं की कब्रों पर भव्य इमारतों और बड़े- बड़े गुंबदों का निर्माण करते हैं और इन स्थानों पर हाज़िर होकर दरवाजों और ज़रीह अर्थात जाली को चूमते हैं और उनकी क़ब्रों का सम्मान करते और उनके समक्ष नतमस्तक होते हैं, रोते हैं और यह कार्य लात और उज़्ज़ा नामक मूर्तियों की पूजा करने से बड़ा अनेकेश्वरवाद है। शीयों पर वहाबी जो इतना बड़ा आरोप लगाते हैं उसके जवाब में कहना चाहिये कि इस्लाम धर्म में मरने के बाद लोगों के शवों को विशेष सम्मान प्राप्त है। जैसाकि धर्म बनाने वाले ने आदेश दिया है कि शव को गुस्ल दो, सज्दा करने के सात अंगों पर काफूर लगाओ, उसे कफन दो, उस पर नमाज़ पढ़ो, उसे दफ्न करो और उसके लिए शोक मनाओ।
इस बात में कोई संदेह नहीं है कि ईश्वरीय दूतों, महान हस्तियों और इमामज़ादों की कब्रें बौद्धिक दृष्टि से दूसरे व्यक्तियों की कब्रों से अधिक सम्मानीय हैं। अगर वहाबियों का तात्पर्य यह है कि शिया इन स्थानों पर जाते हैं और ईश्वर की उपासना के बजाये इन कब्रों की उपासना करते हैं और ईश्वर की याद से निश्चेत हो जाते हैं तो निश्चित रूप से इस प्रकार का कार्य अनेकेश्वरवाद है और इस प्रकार के कार्यों से मुकाबला करना समस्त मुसलमानों का दायित्व है परंतु निश्चित रूप से इस प्रकार की कोई चीज़ नहीं है बल्कि केवल झूठा प्रचार है जिसे इब्ने तैमिया, इब्ने कय्यम और वहाबी मुफ्तियों ने किया है परंतु अगर उनका तात्पर्य यह है कि कब्रों पर इमारत और गुंबद का निर्माण उनके स्थान के सम्मान का कारण बनता है तो इस कार्य की न केवल निंदा नहीं की गयी है बल्कि उसे अच्छा और सराहनीय भी बताया गया है क्योंकि पैग़म्बरों और इमामों की क़ब्रों का सम्मान वास्तव में ईश्वरीय चिन्हों का सम्मान है। महान ईश्वर पवित्र कुरआन में फरमाता है कि ईश्वर की निशानियों का सम्मान दिल के तक़वे अर्थात ईश्वरीय भय की निशानी है। वहाबियों से कहना चाहिये कि तुम लोग पैग़म्बरों और इमामों की कब्रों का सम्मान करने के कारण शियों पर अनेकेश्रवाद का आरोप लगाते हो? जबकि वास्तव में यह सम्मान महान ईश्वर की प्रसन्नता का कारण है। इसके अलावा अगर क़ब्रों पर इमारतों का निर्माण हराम है तो वहाबियों से पहले मुसलमान, विद्वानों और धर्म की महान हस्तियों की कब्रों पर इमारत का निर्माण क्यों करते थे? क्या बकी कब्रिस्तान में मालिक बिन अनस की कब्र पर इमारत नहीं थी? या मिस्र में शाफेई की कब्र पर मज़ार नहीं है या बगदाद में अबू हनीफा की कब्र पर हरम नहीं है?