Oct ०२, २०१६ १६:२९ Asia/Kolkata

सूरए अलक़ की शुरू की पांच आयतें वहीं हैं जो मक्के की हिरा नामक गुफा में पैग़म्बरे इस्लाम की पैग़म्बरी शुरू होने के समय उन पर नाज़िल हुईं।

इस सूरे में उल्लेखित विषयों में पैग़म्बरे इस्लाम को पढ़ने तथा क़ुरआन की तिलावत करने का आदेश, महत्वहीन ख़ून के एक लोथड़े से इंसान की रचना, ईश्वरीय कृपा की छाया में इंसान के विकास की प्रक्रिया, ज्ञान और क़लम पर ज़ोर, अकृतज्ञ लोगों की विशेषता, लोगों के मार्गदर्शन और सुकर्मों में रुकावट बनने वालों की दर्दनाक सज़ा सजदे का आदेश और ईश्वर का सामिप्य है।

अलक़ अरबी भाषा में जम जाने वाले खून के लोथड़े को कहते हैं जो मां के गभ में बच्चे की रचना की पूरी प्रक्रिया का एक चरण है। आयत में इंसान की रचना के मूल तत्व के बारे में बताया गया है कि वह कितना महत्वहीन है ताकि ईश्वर की महानता का अनुमान हो कि उसने इस महत्वहीन चीज़ को कितनी महान रचना में बदल दिया। पहली से पांच नंबर तक आयतों में ईश्वर अपने पैग़म्बर से कहता हैः पढ़ो पालनहार के नाम से जिसने रचना की, इंसान को ख़ून के लोथड़े से पैदा किया, तुम्हारा ईश्वर बहुत करीम है, वही जिसने क़लम के माध्यम से सिखाया, इंसान को वह सिखाया जो वह नहीं जानता था।

रसूले इस्लाम पर जो सबसे पहली  आयतें नाज़िल हुईं उनमें क़लम तथा सिखाने की बात की गई है। इन आयतों से पता चलता है कि अंतिम ईश्वरी पैग़म्बर पर ईश्वरीय संदेश वहि के उतरने की शुरुआत ज्ञान और नई संस्कृति व सभ्यता के उदय के साथ हुई। इस्लाम की नींव ही ज्ञान और क़लम पर रखी गई है। यही कारण था कि मुसलमान एक ज़माने में ज्ञान के क्षेत्र में इतनी ऊंचाई पर पहुंच गए कि उन्होंने सबको लाभ पहुंचाया। यूरोप के प्रसिद्ध इतिहासकार भी मानते हैं कि मुसलमानों के ज्ञान का प्रकाश मध्ययुगीन शताब्दियों में अंधकार में डूबे यूरोप में फैला और वहां एक युग की शुरुआत हुई।

पैग़म्बरे इस्लाम अपनी दिनचर्या के अनुरूप हिरा नामक गुफा में गए हुए थे। वहीं ईश्वरीय फ़रिश्ता जिबरईल पहुंचा। फ़रिश्ते ने तीन बार कहा कि हे मोहम्मद पढ़ो! और पैग़म्बरे इस्लाम ने पढ़ना शुरू कर दिया। ईश्वरीय संदेश की पहली झलक पाकर पैग़म्बरे इस्लाम बहुत आश्चर्य में थे। वह अपनी पत्नी हज़रत ख़दीजा के पास गए और कहा कि मेरे ऊपर कोई चादर डाल दो ताकि मैं विश्राम कर लूं।

क़ुरआन के विख्यात व्याख्याकार तबर्सी कहते हैं कि पैग़म्बरे इस्लाम ने अपनी पत्नी से कहा कि जब मैं अकेला होता हूं तो एक आवाज़ सुनता हूं और इससे मुझे चिंता है। हज़रत ख़दीजा ने उत्तर दिया कि ईश्वर आपके साथ भलाई के अलावा और कुछ नहीं कर सकता इसलिए कि आप अमानतें उनके मालिकों तक पहुंचाते है, रिश्तेदारों का ख़याल रखते हैं, हमेशा सच बोलते है।

हज़रत ख़दीजा बताती हैं कि इस घटना के बाद हम लोग अरब के ज्ञानी वरक़ा बिन नूफ़ेल के पास गए वह हज़रत ख़दीजा के चचेरे भाई थे। पैग़म्बरे इस्लाम ने अपना पूरा अनुभव वरक़ा से बयान किया। वरक़ा ने कहा कि मुबारक हो, तुम्हें बहुत बहुत मुबारक हो। मैं गवाही देता हूं कि तुम वही हो जिसकी शूभसूचना मरियम के पुत्र ईसा ने दी थी। तुम्हारे पास भी हज़रत मूसा जैसी शरीअत है। तुम ईश्वर के भेजे हुए दूत हो और अब तुम्हें जेहाद का आदेश दिया जाएगा। यदि मैं उस समय रहा तो तुम्हारे साथ मिलकर जेहाद करूंगा।

सूरए अलक़ की कुछ आयतें, अकृतज्ञ इंसानों की विशेषताओं का उल्लेख करती हैं। ऐसे लोग जो ख़ुद को बहुत समृद्ध जानकार मनमानी करते हैं। यह इंसान की प्रवृत्ति होती है एसे इंसान की प्रवृत्ति जिसकी परवरिश विवेक और वहि के वातावरण में न हुई हो। जब इंसान को यह ग़लत फ़हमी हो जाती है कि अब वह किसी का मोहताज नहीं है तो मनमानी शुरू कर देता है। फिर वह न ख़ुद को ईश्वर का बंदा समझता है और न ही किसी ईश्वरीय नियम का अनुसरण करने पर तैयार होता है। वह अपनी अंतरात्मा की आवाज़ भी नहीं सुनना चाहता, उसे इंसाफ़ और न्याय की कोई फ़िक्र नहीं रहती। यह आयतें पैग़म्बरे इस्लाम से कहती हैं कि वह यह अपेक्षा न रखें कि लोग आसानी से उनका निमंत्रण स्वीकार कर लेंगे। बल्कि ख़ुद को विरोध और इंकार का सामना करने के लिए तैयार रखें तथा यह समझ लें कि उनके सामने बड़े उतार चढ़ाव वाला रास्ता है।

सूरए अलक़ की कुछ आयतों में घमंडी विरोधियों के कुछ कार्यों का उल्लेख है जो सत्य के मार्ग पर चलने और ईश्वर का भय रखने पर तैयार नहीं होते। 9 से 19 नंबर की आयतों तक उस व्यक्ति के बारे में बात की गई है जो बंदे को नमाज़ से रोकता है रवायत में है कि एक दिन अबू जेहल ने अपने जान पहिचान के लोगों से पूछा कि क्या यह सही है कि मोहम्मद तुम्हारे सामने अपना माथा ज़मीन पर रखते हैं। सबने उत्तर दिया कि हां। अबू जेहल ने कहा कि सौगंध उसकी जिसकी सौगंध खानी चाहिए यदि मैंने उन्हें एसा करते देख लिया तो उनकी गर्दन कुचल दूंगा। इसी बीच एक व्यक्ति ने बताया कि मोहम्मद नमाज़ पढ़ रहे हैं। अबू जेहल लपका कि हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहो अलैहि व आलेही की गर्दन कुचल दे। मगर वह कुछ ही क़दम आगे बढ़ने के बाद घबराकर पीछे आ गया और अपना चेहरा अपने हाथों से छिपाए हुए था। अबू जेहल ने कहा कि मैंने अपने और मुहम्मद के बीच अचनाक आग की एक खाई देखी और मुझे पंख भी दिखाई दिए। इस अवसर पर पैग़म्बरे इस्लाम ने कहा कि क़सम उसकी जिसके हाथ में मेरा जीवन है यदि अबू जेहल मेरे क़रीब आ जाता तो अल्लाह के फ़रिश्ते उसके टुकड़े टुकड़े कर देते तथा उसके अंगों को उठा ले जाते। क़ुरआन अबू जेहल को बहुत कड़े स्वर में चेतावनी देता है कि क्या उसे मालूम है कि ईश्वर उसे देख रहा है? इस के बाद उस दुराचारी व्यक्ति को कड़ी चेतावनी दी जाती है जबकि पैग़म्बरे इस्लाम को सिजदा करने, उपासना करने और ईश्वर का सामिप्य प्राप्त आदेश देकर उन्हें ढारस दी जाती है।

सूरए अलक़ क़ुरआन के उन चार सूरों में से एक है जिनके भीतर ऐसी आयत है जिसे पढ़ने और सुनने वाले के लिए तत्काल सजदा करना वाजिब हो जाता है।

 

सूरए क़द्र क़ुरआन का 97वां सूरा है यह भी मक्के में नाज़िल हुआ तथा इसमें 5 आयतें हैं। जहां क़ुरआन के अन्य सूरों में अलग अलग विषयों का उल्लेख है वहीं इस सूरे में एक ही विषय से सारी आयतें जुड़ी हुई हैं। इस सूरे में क़द्र की रात में क़ुरआन के नाज़िल होने की चर्चा है। इसके बाद क़द्र की रात के महत्व तथा उसके प्रभावों के बारे में बताया गया है। सूरए क़द्र की पहली आयत महान आसामनी ग्रंथ की ओर संकेत करती है तथा ईश्वर कहता है कि यह किताब उसने नाज़िल की है। ईश्वर कहता है कि क़ुरआन को हमने क़द्र की रात में नाज़िल किया है।

सूरए क़द्र में बताया गया है कि क़ुरआन क़द्र की रात में नाज़िल किया गया जो रमज़ान के महीने में पड़ती है। इस रात को हज़ार रातों से बेहतर कहा गया है। क़ुरआन की आयतों से यह पता चलता है कि क़ुरआन को दो रूपों में नाज़िल किया गया है एक तो एक बार में और दूसरे चरणबद्ध रूप से। पहले चरण में क़ुरआन एक ही बार में पैग़म्बरे इस्लाम पर उतरा यह क़द्र की रात का अवसर था। बाद के चरण में क़ुरआन के शब्द पूरे विस्तार के साथ धीरे धीरे अलग अलग अवसरों पर उतरे इसमें 23 साल का समय लगा।

क़द्र की रात में क़ुरआन का उतरना भी इस बात का प्रमाण है कि यह महान ईश्वरीय ग्रंथ निर्णायक ग्रंथ है। क़ुरआन ईश्वर का बहुत बड़ा चमत्कार तथा सौभाग्यपूर्ण जीवन के लिए सबसे अच्छा मार्गदर्शन है। इसमें वह ज्ञान है कि यदि दुनिया उस पर अमल करे तो संसार उत्थान और महानता के चरम बिंदु पर पहुंच जाएगा।

सूरए क़द्र में उस रात को जिसमें क़ुरआन उतारा गया क़द्र की रात कहा गया है, क़द्र से तात्पर्य है मात्रा और चीज़ों का निर्धारण, इस रात पूरे साल की घटनाओं और परिवर्तनों का निर्धारण किया जाता है, सौभाग्य, दुर्भाग्य और अन्य चीज़ों की मात्रा तय की जाती है। इस रात की महानता को इससे समझा जा सकता है कि क़ुरआन ने इसे हज़ार महीनों से बेहतर बताया है। रवायत में है कि क़द्र की रात में की जाने वाली उपासना हज़ार महीने की उपासनाओं से बेहतर है। सूरए क़द्र की आयतें जहां इंसान को इस रात में उपासना और ईश्वर से प्रार्थना की दावत देती हैं वहीं इस रात में ईश्वर की विशेष कृपा का भी उल्लेख करती हैं और बताती हैं कि किस तरह इंसानों को यह अवसर दिया गया है कि वह इस रात में उपासना करके हज़ार महीने  की उपासना का सवाब प्राप्त कर लें। पैग़म्बरे इस्लाम का कथन है कि ईश्वर ने मेरी क़ौम को क़द्र की रात प्रदान की है जो इससे पहले के पैग़म्बरों की क़ौमों को नहीं मिली है।

रवायत में है कि क़द्र की रात में आकाश के दरवाज़े खुले जाते हैं, धरती और आकाश के बीच संपर्क बन जाता है। इस रात फ़रिश्ते ज़मीन पर उतरते हैं और ज़मीन प्रकाशमय हो जाती है। मोमिन बंदों को वह सलाम करते हैं। इस रात इंसान के हृदय के भीतर जितनी तत्परता होगी वह इस रात की महानता को उतना अधिक समझ सकेगा और प्राप्त कर सकेगी। क़ुरआन के अनुसार इस रात सुबह तक ईश्वरीय कृपा और दया की वर्षा होती रहती है। इस रात ईश्वर की कृपा की छाया में वह सभी लोग होते हैं जो जागकर इबादत करते हैं।

 

टैग्स