Oct ०२, २०१६ १६:५२ Asia/Kolkata

सूरे बय्येना पवित्र कुरआन का 98वां सूरा है।

यह सूरा पवित्र नगर मदीने में नाज़िल हुआ और इसमें 8 आयतें हैं। बय्यना का अर्थ स्पष्ट प्रमाण व तर्क होता है। यह सूरा इस बात की ओर संकेत करता है कि पैग़म्बरे इस्लाम पूरी दुनिया के लिए पैग़म्बर हैं और यह सूरा इसके लिए स्पष्ट प्रमाणों व निशानियों की ओर संकेत करता है। समस्त लोगों के लिए पैग़म्बरे इस्लाम की पैग़म्बरी का होना, नमाज़ क़ाएम करने और ज़कात को अदा करने का आवश्यक होना, ईमान, एकेश्वरवाद,नमाज़, रोज़ा जैसे विषयों के बारे में पैग़म्बरे इस्लाम के निमंत्रण के सिद्धांतों का सदैव एक रहना और उसमें किसी प्रकार के परिवर्तन का न होना, इस्लाम के मुकाबले में अनेकेश्वरवादियों और आसमानी किताबों के मानने वालों के दृष्टिकोण, बेहतरीन और बदतरीन सृष्टि का परिचय इस सूरे के मुख्य विषय हैं।

पैग़म्बरे इस्लाम के आने से पहले आसमानी किताबों को मानने वाले और अनेकेश्वरवादी कहते थे कि अगर पैग़म्बर और स्पष्ट तर्क आये और पवित्र किताब उनके लिए नाज़िल हो जिसमें लिखी बातें मूल्यवान हों तो वे अनेकेश्वरवाद को छोड़ देंगे परंतु पैग़म्बरे इस्लाम के आ जाने और पवित्र कुरआन के नाज़िल हो जाने के बाद उन्होंने पैग़म्बरे इस्लाम और उनके निमंत्रण का इंकार कर दिया। पवित्र क़ुरआन के सूरे बय्येना की आयतें उनकी भर्त्सना करती और कहती हैं” उन्होंने क्यों इस नये धर्म में मतभेद किया, कुछ मोमिन और कुछ काफिर हो गये जबकि इस्लाम में उन्हें कोई आदेश नहीं दिया गया किन्तु यह कि वे ईश्वर की उपासना करें, अपने धर्म को उसके लिए विशुद्ध करें और अनेकेश्वरवाद को छोड़कर एकेश्वरवाद की ओर लौट आयें, नमाज़ कायम करें और ज़कात अदा करें।

पवित्र कुरआन की आयतों के आधार पर पैग़म्बरे इस्लाम की पैग़म्बरी समस्त आसमानी किताब के मानने वालों और अनेकेश्वरवादियों के लिए है। पवित्र कुरआन ने बहुत सी आयतों में या अय्योहन्नास अर्थात हे लोगो और इसी प्रकार या बनी आदम अर्थात हे आदम की संतान जैसे शब्दों से संबोधित किया है और अपने मार्ग दर्शन में समस्त इंसानों को शामिल किया है। इसी प्रकार महान ईश्वर ने पवित्र कुरआन की बहुत सी आयतों में पैग़म्बरे इस्लाम की पैग़म्बरी को समस्त लोगों के लिए बताया है और उन्हें समस्त संसार व ब्रह्मांडवासियों के लिए दया व रहमत बताया है। पवित्र कुरआन के सूरे बय्यना की आयत इस बात की समस्त इंसानों के लिए घोषणा करती है कि हज़रत मोहम्मद को ईश्वर की ओर से विश्व वासियों के लिए भेजा गया है और पैग़म्बरे इस्लाम की पैग़म्बरी के सार्वजनिक होने का अर्थ मार्ग दर्शन में समस्त इंसान शामिल हैं। इसी प्रकार पैग़म्बरे इस्लाम ने केवल उन चीज़ों का निमंत्रण दिया है जिसमें आस्था और अमल की दृष्टि से समाज की सुरक्षा व सफलता नीहित है।

इतिहासिक दस्तावेज़ों के अनुसार पैग़म्बरे इस्लाम ने रोम के क़ैसर और ईरान, मिस्र, हबशा अर्थात वर्तमान इशोपिया और शाम्मात जैसे बड़े देशों के शासकों और अरब के विभिन्न क़बीलों के सरदारों के पास पत्र भेजा था। पैग़म्बरे इस्लाम ने इन समस्त पत्रों में उन लोगों को पवित्र इस्लाम धर्म स्वीकार कर लेने के लिए कहा था और कुफ्र तथा इस्लाम स्वीकार न करने के परिणामों के प्रति चेतावनी दी थी। पैग़म्बरे इस्लाम ने उन सबके लिए पवित्र कुरआन की आयतें पढ़ीं जिसमें न्याय व सच की बातें की गयी हैं और उनमें किसी प्रकार की पथभ्रष्टता मौजूद नहीं है बल्कि जो कुछ भी उनमें है वह मनुष्य की मुक्ति व कल्याण की ओर मार्गदर्शन करता है।

जब पैग़म्बरे इस्लाम ने ने देशों के शासकों तक एकेश्वरवाद का संदेश पहुंचा दिया और उन पर अपनी बात पूरी कर दी तो पवित्र कुरआन का बय्यना सूरा उतरा। इस प्रकार इस बात की घोषणा कर दी गयी कि पैग़म्बरे इस्लाम और कुरआन के विरोधियों पर बात पूरी कर दी गयी चाहे वह आसमानी किताबों के मानने वाले हों या अनेकेश्वरवादी परंतु उनमें से बहुत से ईमान नहीं लाये जबकि उन्होंने सत्य को समझ लिया था। पवित्र कुरआन के सूरे बय्यना छठी और 7वीं आयत आसमानी किताबों के मानने वाले उन लोगों को प्रकोप की चेतावनी देती है और बदतरीन सृष्टि बताती है जो स्पष्ट तर्क आ जाने के बाद भी अपने धर्म पर बाक़ी रहे और पैग़म्बरे इस्लाम का इंकार किया। इसी प्रकार ये आयतें उन लोगों को स्वर्ग की और ईश्वर की प्रसन्नता की शूभ सूचना देती हैं और उन्हें बेहतरीन सृष्टि कहती हैं जो पैग़म्बरे इस्लाम पर ईमान लाये और उसके बाद अच्छे कार्य करते रहे।

सत्य व असत्य दो गिरोह हैं जो सदैव एक दूसरे के मुक़ाबले में रहे हैं। पूरे इतिहास में सत्य के पक्षधर ख़ैरूल बरियह अर्थात सबसे अच्छी सृष्टि के प्रतीक और ग़लत के पक्षधर शर्रूल बरियह अर्थात सबसे बुरी सृष्टि के उदाहरण हैं। पवित्र कुरआन के सूरे बय्यना की छठी व 7वों आयतें इन्हीं दोनों गिरोहों की बात करती है और उसने मोमिन एवं काफिर दो गिरोहों की विशेषताओं को बयान करती है।

 

पवित्र क़ुरआन के सूरे नंबर 99 का नाम ज़िलज़ाल है। यह सूरा मदीने में पैग़म्बरे इस्लाम पर नाज़िल हुआ। सूरे ज़िलज़ाल में भी सूरे बय्यना की भांति 8 आयतें हैं। इस सूरे का प्रसिद्ध नाम ज़िलज़ाल है। इस सूरे में प्रलय के दिन ज़मीन के भयावह भूकंप की ओर संकेत किया गया है। इस बिन्दु को पवित्र कुरआन में विभिन्न शैलियों में 6 बार बयान किया गया है।

“एज़ा ज़ुलज़ेलित” इस सूरे का दूसरा नाम है। क्योंकि इस सूरे का आरंभिक वाक्य एज़ा ज़ुलज़ेलत है। कुल मिलाकर यह सूरा मुख्य रूप से तीन विषयों के बारे में चर्चा करता है। सबसे पहले यह सूरा प्रलय के दिन भयावह व भयंकर रूप से ज़मीन में आने वाले भूकंप के बारे में बात करता है और दूसरे इस बारे में चर्चा करता है कि ज़मीन समस्त इंसानों के कर्मों की गवाही देगी और तीसरे लोगों के दो गिरोहों अच्छे और बुरे और उनके कर्मों के परिणामों के बारे में बात करता है। सूरे ज़िलज़ाल की चर्चा का सबसे महत्वपूर्ण विषय प्रलय के दिन प्रह्मांड की समाप्ति पर भयानक भूकंप है। प्रलय के दिन ज़मीन में बहुत ही भयावह भूकंप आयेगा और समस्त इंसान इस घटना से हतप्रभ रह जायेंगे। ज़मीन अपने अंदर मौजूद समस्त ख़ज़ानों को उगल देगी। बहुत से व्याख्याकर्ताओं का मानना है कि ज़मीन अपने अंदर के ख़ज़ानों को उगल देगी इससे तात्पर्य वह बहुत सारे इंसान हैं जो क़ब्रों में सो रहे हैं। उस दिन इंसान इस अभूतपूर्व दृष्य को देखकर बौखला जायेंगे और वे इस घटना का कारण जानना चाहेंगे और पूछेगें कि क्या हो गया है कि ज़मीन इस तरह से हिल रही है और जो कुछ उसके अंदर था उसे बाहर कर दिया है? सूरे ज़िलज़ाल की आयत के अनुसार ज़मीन उस दिन अपनी सारी ख़बरों को बयान करेगी और जो कुछ अच्छा व बुरा कर्म इस ज़मीन पर अंजाम दिया गया है उसे स्पष्ट कर देगी। वास्तव में उस दिन इंसान के कर्मों की एक गवाह स्वयं यही ज़मीन होगी जिस पर हम इंसान समस्त कार्य अंजाम देते हैं। पैग़म्बरे इस्लाम के हवाले से एक हदीस में आया है जिसमें आपने फरमाया है” जानते हो कि ज़मीन की ख़बरों से क्या तात्पर्य है? लोगों ने जवाब में कहा कि ईश्वर और उसके दूत बेहतर जानते हैं। तो आपने फरमाया महिलाओं और पुरुषों ने ज़मीन पर जो कार्य अंजाम दिये हैं ज़मीन उन्हें बतायेगी और कहेगी कि अमुक व्यक्ति ने अमुक दिन अमुक कार्य अंजाम दिया है यह है ज़मीन के ख़बर देने का अर्थ।

सूरे ज़िलज़ाल की चर्चा का एक महत्वपूर्ण विषय प्रलय के दिन समस्त इंसानों के कर्मों के सूक्ष्म हिसाब- किताब की ओर संकेत है। पवित्र कुरआन के सूरे निसा, यूनुस, अंबिया और लुक़मान में भी इस तथ्य का उल्लेख है। सूरे ज़िलज़ाल वास्तव में इस बिन्दु की याद दिलाता है कि प्रलय का दिन आने से पहले इंसान को चाहिये कि वह प्रलय के मैदान में हाज़िर होने से पहले अपने अच्छे कर्मों को तैयार कर ले। सूरे ज़िलज़ाल की आठवीं आयत में हम पढ़ते हैं जो एक कण के बराबर भी बुरा कार्य अंजाम देगा वह उसे देखेगा। यहां कण से तात्पर्य न्यूनतम भार है। इस आयत का विदित अर्थ है। कि अंसान के समस्त कार्य चाहे अच्छे हों या बुरे प्रलय के दिन दिखाई देंगे। सूरे ज़िलज़ाल की यह आयत इस ओर संकेत करती है कि इंसान ने सूई की नोक के बराबर अच्छा या बुरा कर्म किया दिये होगा तो प्रलय के दिन उसे देखेगा और अच्छे कार्यों को अंजाम देना इंसान की खुशी कारण बनेगा जबकि बुरे कार्य इंसान के दुःखी होने और उसकी मुसीबत के कारण बनेंगे। पवित्र कुरआन के सूरे ज़िलज़ाल की आयत के शब्द इस बात के सूचक हैं कि इंसान महान ईश्वर के न्यायालय में हाज़िर होगा और उसके समस्त कर्मों का सूक्ष्म हिसाब- किताब होगा और उसके न्यूनतम कार्य की भी अनदेखी नहीं की जायेगी और यह आयत इंसानों को चेतावनी देती है कि वे पापों को छोटा न समझें और छोटे और थोड़े से अच्छे कार्य को भी महत्वहीन न समझें । इसी कारण सूरे ज़िलज़ाल इंसान का ध्यान इस ओर दिलाता है कि प्रलय के दिन इंसान अपने समस्त कर्मों को देखेगा और उसे अपनी कथनी और करनी के प्रति सजग रहना चाहिये। पवित्र कुरआन की दूसरी आयतों से भली- भांति समझा जाता है कि प्रलय के दिन लोगों के कर्मों का जो हिसाब- किताब होगा वह बहुत ही सूक्ष्म होगा। जैसाकि सूरे लुक़मान में हम पढ़ते हैं और उसमें हज़रत लुक़मान अपने बेटे से कहते हैं” बेटा! अगर अच्छा या बुरा कार्य राई के दाने के बराबर भी हो और वह पत्थर या आसमान के किसी कोने में छिप जाये तो प्रलय के दिन हिसाब के लिए ईश्वर उसे ले आयेगा ईश्वर जानकार है।“

 

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