गुरुवार - 8 अक्तूबर
1844, अपने समय के प्रसिद्ध वकील, न्यायाधीश, समाज सुधारक, शिक्षाविद एवं कांग्रेस के नेता बदरुद्दीन तैयब जी का मुम्बई के एक धनी मुस्लिम परिवार में जन्म हुआ। उन्होंने ‘अंजुमने इस्लाम’ नामक प्रसिद्ध संस्था की स्थापना की।
8 अक्तूबर सन 1256 ईसवी को पेरिस में विश्व के प्राचीनतम विश्वविद्यालयों में गिने जाने वाले सोरबन विश्वविद्यालय का उदघाटन हुआ।धीरे धीरे इस विश्वविद्यालय का विकास होता गया यहॉ तक कि यह अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर विख्यात हो गया। इसके संस्थापक का नाम रॉबर्ट सोरबन था।
8 अक्तूबर सन 1534 ईसवी को ब्रिटेन की संसद ने इस देश के नरेश हेनरी अष्टम के प्रभाव में आकर एक ऐसा क़ानून पारित किया जिसके कारण ब्रिटेन के गिरिजाघर का रोम के कैथोलिक गिरजाघर से संबंध-विच्छेद हो गया। हालॉकि हेनरी अष्टम और पोप क्लेमेंटो सप्तम के साथ अच्छे संबंध थे किंतु जब गिरजाघर ने हेनरी के अपनी पत्नी को तलाक़ देने के आवेदन को रदद कर दिया तो नरेश के पोप के साथ संबंधों में इतनी कड़वाहट आ गयी कि पोप ने हेनरी को नास्तिक घोषित कर दिया। किंतु हेनरी ने संसद के क़ानून के आधार पर नया विवाह कर लिया और इस देश के गिरिजाघर के प्रमुख बन गये।
8 अक्तूबर सन 1735 ईसवी को पृथ्वी की आकृति की पहचान के लिए गणितज्ञों और भूगोल शास्त्रियों का प्रयास आरंभ हुआ। यह प्रयास फ़्रांसीसियों ने आरंभ किया था। फ़्रांस की सरकार ने भी इस संदर्भ में खोजकर्ताओं की भारी आर्थिक सहायता की। खोजकर्ताओं को उनके प्रयास में उल्लेख्नीय सफलता मिली।
8 अक्तूबर सन 1881 ईसवी को वियतनाम में विनाशकारी तूफ़ान आया। इस तूफ़ान ने वियतनाम के दक्षिणी भाग में भारी तबाही मचायी। इसके चलते 3 लाख लोगों की मौत हो गयी।
8 अक्तूबर सन 1885 ईसवी को फ़्रांस ने वियतनाम पर अपना वर्चस्व स्थापित किया। इससे पहले वियतनाम चीन का भाग था किंतु आंतरिक अशांति और पश्चिमी साम्राज्यवादियों से युद्ध के कारण चीन के कमज़ोर हो जाने के बाद फ़्रांस ने चीन के कुछ भागों पर अधिकार कर लिया। फ़्रांस ने 19वीं शताब्दी के मध्य से वियतनाम के क्षेत्रों पर अधिकार करना आरंभ किया और अंतत: आज के दिन वियतनाम को अपना उपनिवेश बना लिया किंतु 70 वर्षों के नियंत्रण के बाद वियतनामी जनता ने फ़्रांस को अपने देश से निकाल बाहर किया।
8 अक्तूबर सन 1990 ईसवी को ज़ायोनी शासन के अत्याचारी सैनिकों ने मस्जिदुल अक़सा में नमाजियों पर आक्रमण किया। जिसमें 20 फ़िलिस्तीनी शहीद और दसियों अन्य घायल हुए। इस घटना से आम जनमत ज़ायोनी शासन के अत्याचारों पर आक्रोष से भर गया। और अवैध अधिकृत फ़िलिस्तीन में तनाव बढ़ गया। किंतु अमरीका ने ज़ायोनी शासन का व्यापक समर्थन करके इस शासन के विरुद्ध कोई भी कार्यवाही नहीं होने दी।
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20 सफ़र को पैग़म्बरे इस्लाम के नाती हज़रत इमाम हुसैन और उनके निष्ठावान साथियों का चेहलुम मनाया जाता है। दस मोहर्रम सन 61 हिजरी क़मरी को हज़रत इमाम हुसैन और उनके बहत्तर निष्ठावान साथियों को यज़ीदी सैनिकों ने शहीद कर दिया था। इस हृदय विदारक घटना के चालीस दिन बीतने के बाद इमाम हुसैन और उनके साथियों का चेहलुम मनाया जाता है। इतिहास में मिलता है कि इमाम हुसैन की शहादत के चालीस दिन के बाद कूफ़े और तत्कालीन सीरिया की कठिनाइयों को सहन करने के बाद सफ़र की बीस तारीख़ को पैग़म्बरे इस्लाम के परिजनों का लुटा हुआ कारवां करबला पहुंचा। जब यह कारवां करबला की धरती पर पहुंचा तो इमाम हुसैन की क़ब्र की तावीज़ से पैग़म्बरे इस्लाम के महान साथी जाबिर इब्ने अब्दुल्लाह अन्सारी लिपटे रो रहे थे। उन्होंने दूर से धूल उड़ती हुई देखा और थोड़ी देर के बाद आवाज़ देने वाले ने आवाज़ दी हुसैन की क़ब्र से दूर हट जाओ, जैनब हुसैन का चेहलुम मनाने उनकी कब्र पर आई हैं, उसके बाद हज़रत जाबिर इब्ने अब्दुल्लाह अन्सारी ने हज़रत ज़ैनब का स्वागत किया और उसके बाद हज़रत ज़ैनब ने इमाम हुसैन और उनके परिजनों पर होने वाले अत्याचार बयान किए और इमाम हुसैन और उनके साथियों का चेहलुम मनाया गया।
20 सफ़र वर्ष 1303 को चौदहवीं शताब्दी के प्रसिद्ध धर्मगुरू शैख़ जाफ़र शूशतरी का स्वर्गवास हो गया। वह इस्लाम धर्म के प्रसिद्ध धर्मगुरूओं में से एक थे। उनकी स्मरणशक्ति बहुत मज़बूत थी और उनकी बातों का लोगों पर बहुत प्रभाव पड़ता था । शैख़ जाफ़र शुश्तरी धर्मशास्त्र और अन्य ज्ञानों में निपुण थे और उन्होंने लोगों के मार्गदर्शन और उनकी सेवा के लिए अपने जीवन को विशेष कर दिया था। उनकी ज्ञान की सभाओं में दूर दूर से लोग आते थे और उनके उपदेशों से अपना जीवन संवारते थे। उन्होंने बहुत सी पुस्तकें लिखी हैं जिनमें से प्रत्येक उनकी व्यापक व विस्तृत दृष्टि की सूचक है। उनकी महत्त्वपूर्ण पुस्तकों में उसूले दीन, अल ख़साएस अल हुसैनिया और मजालिसे बुका इत्यादि का नाम लिया जा सकता है।