Oct ०५, २०१६ १२:१३ Asia/Kolkata

दमावंद ज़िलादमावंद एक हरा भरा इलाक़ा है।

दमावंद ईरान के तीन इलाक़ों रय, क़ूमिस और तबरिस्तान को जोड़ता था, इसीलिए प्राचीन काल से ही यह एक महत्वपूर्ण इलाक़ा रहा है। आज यह तेहरान, सेमनान और माज़ेन्दरान से लगा हुआ है।

दमावंद ज़िला, दमावंद पहाड़ के सुन्दर एवं आकर्षक आंचल में स्थित है। दमावंद पहाड़ की ऊंची चोटी इस इलाक़े की सुन्दरता को बढ़ा देती है। दमावंद पहाड़ से निकलने वाली नदियां इस ज़िले के बाग़ों और खेतों को हरा भरा रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। इसी कारण यहां सुन्दर एवं समृद्ध इलाक़ा देखने को मिलता है। गर्म और शुद्ध पानी के सोते और मीठे पानी की स्थायी एवं अस्थायी छोटी बड़ी नदियां तेहरान प्रांत के इस इलाक़े की सुन्दरता में चार चांद लगाते हैं।

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दमावंद ज़िले का केन्द्रीय शहर दमावंद है। यह ज़िला तेहरान प्रांत के पूरब में अलबोर्ज़ पर्वतीय श्रंखला के दक्षिण में स्थित है, इसका क्षेत्रफल 1 लाख 88 हज़ार हेक्टेयर है। तेहरान प्रांत के बारे में अब तक होने वाले अध्ययन के मुताबिक़, दमावंद के कीलान इलाक़े में इंसान की उपस्थिति के ऐसे चिन्ह मिले हैं, जो 14 हज़ार साल पूर्व से संबंधित हैं। प्राचीन काल में लोग यहां ग़ुफ़ाओं में रहते थे और शिकार द्वारा भोजन प्राप्त किया करते थे।

प्राप्त प्राचीन चिन्हों के आधार पर कुछ पर्यटकों ने दमावंद को दुनिया का सबसे पुराना शहर बताया है। टोरा और अविस्ता जैसी किताबों में दमावंद का दूसरे नामों से उल्लेख इस बात को सिद्ध करता है। तारीख़े मुशीरुद्दौलाह किताब में उल्लेख है कि पूरब की ओर से आने वाले आर्यों का पहला दल जब ईरान पहुंचा तो उसने दमावंद में निवास किया। खंडहर बन गए गांवों और महलों के नाम, प्राचीन रास्ते और ग़ुफ़ाएं कियान राजवंश एवं शाहनामे के अन्य उल्लेखों की पुष्टि करते हैं।

प्राचीन अधिकांश किताबों में जहां कहीं दमावंद या दमावंद पहाड़ के नाम का उल्लेख है, वहां क्यूमर्स, रुस्तम, सीमुर्ग़, ज़हाक और दीवाने बदकार का ज़िक्र भी है, जिसे भय, ख़तरे और इसी प्रकार महानता का प्रतीक समझा जाता था।

प्रोफ़ेसर आर्थर क्रिस्चियन सन अपनी किताब सासानी काल में ईरान में फ़ोस्तोस बेज़ान्सी के हवाले से लिखते हैं, सासानी काल का एक शाही परिवार दमावंद में रहता था और उन्हें भी दमावंद कहा जाता था।

इस्लाम से पहले दमावंद काफ़ी लम्बी अवधि तक पारसियों के धार्मिक शासन का केन्द्र था और इसका काफ़ी महत्व था। ईरान में इस्लाम आने और ईरानियों के इस्लाम स्वीकार करने के बाद, दमावंद इलाक़ा रय और तबरिस्तान के साथ ही इस्लामी सैनिकों के सामने आत्मसमर्पण कर दिया।

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तबरिस्तान के अलवियों के शासनकाल में, इस्माईलियों के आंदोलन, सल्जूक़ियान के शासनकाल में, ईरान पर मुग़लों के हमले के दौरान और सफ़वी शासनकाल में दमावंद ने काफ़ी उतार चढ़ाव देखा है। इस दौरान भूंकप जैसी प्राकृतिक आपदाओं से भी यह प्रभावित हुआ।

दमावंद नदी, शुद्ध पानी के सोते, विशाल जंगल, अत्यधिक बर्फ़ीली हवाओं से सुरक्षित रहने, खेती, बाग़बानी और चरागाहों के लिए उचित वातावरण के कारण दमावंद में कृर्षि और पशुपालन के लिए बेहतरीन सुविधाएं उपलब्ध हैं। सबसे महत्वपूर्ण बिंदु यह है कि दमावंद क़ाफ़िलों के पड़ाव का एक स्थान रहा है। आर्थिक दृष्टि से दमावंद एक समृद्ध क़स्बा रहा है। स्थानीय शासन का केन्द्र था और समृद्ध एवं राजपरिवारों का निवास स्थल था। रय के निवासी भी गर्मियों के मौसम में दमावंद के पहाड़ी इलाक़ों में चले जाते थे। इसी प्रकार यह चरवाहों का निवास स्थल था, जो दमावंद से लार के बीच आवाजाही करते थे। फ़िरूज़कोह और गुल ख़ंदान जैसे आसपास के क़िलों को यह शहर सुरक्षा प्रदान करता था। तबरिस्तान का मूल उत्पादन अर्थात रेशम, इसी मार्ग से होकर रय तक पहुंचता था। इसी प्रकार, ऊनी वस्त्र दमावंद का मूल उत्पादन था।

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दमावंद के नामांकरण के बारे में फ़हरिस्ते इब्ने नदीम में उल्लेख है कि दमावंद के पहाड़ की चोटी के आसपास स्थित होने और उससे ज्वालामुखी की गैसों के निकलने के कारण अर्थात दम आवंद, दम का अर्थ है गैस और आवंद का अर्थ है स्थान। इसीलिए इसका नाम दमावंद पड़ गया।

अंतिम प्रशासनिक विभाजन के आधार पर दमावंद ज़िला 2800 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है, इसके दो भाग हैं, केन्द्रीय और रूदहेन और 5 शहर हैं दमावंद, रूदहेन, कीलान, आबसर्द और आबअली। दो महत्वपूर्ण हाईवे हराज़ र फ़िरूज़कोह इस ज़िले से होकर गुज़रते हैं, जो तेहरान और मज़ेन्दरान को आपस में जोड़ते हैं।

इस ज़िले के केन्द्रीय शहर का नाम भी दमावंद है। दमावंद शहर की स्थापना की रूपरेखा पशियान नामक बस्ती पर रखी गई, जो तबरिस्तान राज्य का एक क़स्बा था और जिसकी स्थापना ऐतिहासिक केन्द्र रय के साथ हुई थी।

इलाक़े का प्राकृतिक रूप और पूरब एवं पूर्वोत्तर में अल-बोर्ज़ पहाड़ की ऊंचाईयों के कारण यह शहर इन दिशाओं में नहीं फैल सका है। इसलिए प्राकृतिक तौर पर दमावंद शहर तार नदी के किनारे और उत्तर से दक्षिण की ओर घाटी में फैला है।

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कुछ दशक पहले तक दमावंद को माज़ेन्दरान और रय के बीच संपर्क का मार्ग होने के कारण काफ़ी महत्व प्राप्त था। इसी प्रकार, उचित जलवायु के कारण इस शहर में और उसके आसपास के इलाक़ों में खेती, बाग़बानी और पशुपालन के लिए अच्छी भूमि प्रशस्त हो गई है। भूमिगत पानी के स्रोतों और मीठे पानी की सैकड़ों नहरों एवं सोतों तथा दलीचाय एवं तार रूद नदियों के कारण दमावंद में कृषि एवं सेब, नाशपाती, चैरी जैसे फलों और आलू, गेंहू, जौ, लोबिया और हरी सब्ज़ियों के उत्पादन के लिए भूमि प्रशस्त है।

इसके अलावा, शहद का उत्पादन और पशुपालन इस इलाक़े के महत्वपूर्ण व्यवसाय माने जाते हैं। इसी प्रकार, हर भरे सुन्दर इलाक़े, सुन्दर घाटियां, ट्यूलिप के फूलों से भरे हुए पहाड़ों के बीच जंगल, शुद्ध पानी के सोते, उपजाऊ ज़मीन, साफ़ एवं शुद्ध हवा, फलों और फूलों से लदे बाग़ और बल खाती हुई नहरों के कारण यह इलाक़ा एक काल्पनिक स्थान में परिवर्तित हो गया है।

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हालिया वर्षों में शहरों के आकर्षण, शहरों की ओर पलायन और दमावंद के तेहरान के निकट स्थित होने के कारण, यहां की आबादी में तेज़ी से वृद्धि हुई है। इसी प्रकार दमावंद एक समृद्ध शहरी इलाक़ा होने के कारण, आसपास के शहरों के प्रदूषण से बचने वाले नागरिकों के ध्यान का केन्द्र बना है। इसी कारण इस शहर में बाग़ बग़ीचों और बंगलों में वृद्धि हुई है।

यहां यह जानना उचित होगा कि दमावंद इलाक़े के निवासी, आर्यों की नस्ल की 16 शाख़ाओं में से एक से संबंध रखते हैं। क़ूमिस कहलाने वाली इस शाख़ा की एक अपनी विशेष भाषा है। समय के साथ साथ यह समुदाय गील व जुर्जान में मिल जुल गया है।

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मुग़लों, अरबों और फ़ारस समुदायों के कुछ लोग भी इस इलाक़े में पहुंचकर स्थानीय समुदाय में मिश्रित हो गए और अपनी मूल भाषा भूल बैठे। उरूमिए के इलाक़े से पाज़ूकी तुर्कों का पलायन, क़ूचान एवं बिजनोर्द इलाक़ों से अदलू व कूशानलू कुर्द एवं कुछ फ़ारसी क़बीले दमावंद स्थनांतरण होने वाले कुछ उदाहरण हैं।

दमावंद के निवासियों की मूल भाषा ताती है, यह वही क़ूमिस क़बीले की भाषा है। समय के बीतने के साथ साथ यह भाषा गीलानी भाषा से मिल जुल गई है। दमावंद के उत्तरी गांवों में यह भाषा माज़ेन्दरानी भाषा से बहुत निकट हो गई है, लेकिन अन्य स्थानों पर शुद्ध रूप में बाक़ी है। हालांकि कुछ इलाक़ों में यहां बसने वाले ईरान के विभिन्न समुदायों की भाषाओं से प्रभावित हुई है।

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