Oct ०८, २०१६ १३:४७ Asia/Kolkata
  • सोमवार- 12 अक्तूबर

12 अकतूबर सन 1901 ईसवी को अमरीका के राष्ट्रपति थियोडोर रूज़वेल्ट ने राष्ट्रपति भवन का नाम एक्ज़ीक्यूटिव मेनसन से बदल कर व्हाइट हाउस कर दिया था।

2 अक्तूबर सन 1532 ईसवी को स्पेनवासी अतिग्रहणकारियों ने उस क्षेत्र पर अतिग्रहण के लिए जिसे आज पेरू कहा जाता है, फ्रान्सवा पीज़ारो के नेतृत्व में आक्रमण आरंभ किया।  उस समय इस क्षेत्र में लैटिन अमेरिका की इन्का जाति की सत्ता थी इस राष्ट्र के आधिकारियों ने इस आक्रमण को विशेष महत्व नहीं दिया और समय पर बचाव के उपाय नहीं किए जिसके चलते स्पेन ने सरलता से इस क्षेत्र पर अधिकार कर लिया और इन्का जाति को स्पेन का उपनिवेश बन जाने का प्रस्ताव दिया किंतु इन्का जाति ने यह प्रस्ताव स्वीकार नहीं किया जिसके बाद इस जाति का जनसंहार आरंभ हो गया। यह जनसंहार इतने बड़े स्तर पर हुआ  कि इस जाति की संस्कृति और ढांचा ही बिखर कर रह गया।

 

12 अक्तूबर वर्ष 1967 में भारत के स्वतन्त्रता संग्राम के सेनानी, प्रखर चिन्तक तथा समाजवादी राजनेता डॉ. राममनोहर लोहिया का निधन हुआ। उनका जन्म वर्ष 1910 में उत्तर प्रदेश के अकबरपुर में हुआ था। उनके पिताजी श्री हीरालाल पेशे से अध्यापक थे। टंडन पाठशाला में चौथी तक पढ़ाई करने के बाद विश्वेश्वरनाथ हाईस्कूल में दाखिल हुए। उनके पिताजी गांधीजी के अनुयायी थे। जब वे गांधीजी से मिलने जाते तो राम मनोहर को भी अपने साथ ले जाया करते थे। वे अपने पिताजी के साथ 1918 में अहमदाबाद में कांग्रेस अधिवेशन में पहली बार शामिल हुए। उन्होंने मुंबई के मारवाड़ी स्कूल में पढ़ाई की। लोकमान्य गंगाधर तिलक की मृत्यु के दिन विद्यालय के लड़कों के साथ 1920 में पहली अगस्त को हड़ताल की। वर्ष 1921 में फैजाबाद किसान आंदोलन के दौरान जवाहर लाल नेहरू से उनकी भेंट हुई। 18 जून 1946 को गोआ को पुर्तगालियों के आधिपत्य से मुक्ति दिलाने के लिये उन्होने आन्दोलन आरम्भ किया। अंग्रेजी को भारत से हटाने के लिये उन्होने अंग्रेज़ी हटाओ आंदोलन चलाया। डॉ राममनोहर लोहिया ने अनेकों विषयों पर अपने विचार लेख एवं पुस्तकों के रूप में प्रकाशित कीं।

 

12 अक्तूबर सन 1968 ईसवी को गिनी को स्पेन से स्वतंत्रता मिली और यह दिन इस देश का राष्ट्रीय दिवस घोषित किया गया। 15वीं शताब्दी में पुर्तगाल के नाविकों ने इस क्षेत्र की खोज की थी और वर्ष 1778 में पुर्तगाल ने इसे स्पेन के हवाले कर दिया। इस देश पर स्पेन का क़ब्ज़ा बहुत लंबे समय तक जारी रहा । वर्ष 1968 में इसे स्वतंत्रता मिली। 28 हज़ार इक्यावन वर्गकिलोमीटर वाला यह देश पश्चिमी अफ्रीक़ा में गैबन और कैमरून के पड़ोस में स्थित है।

 

12 अक्तूबर सन 1999 ईसवी को पाकिस्तान के सेना प्रमुख जनरल परवेज़ मुशर्रफ़ ने विद्रोह करके प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ़ की सत्ता का अंत कर दिया और देश की बागडोर अपने हाथ में ले ली। प्रधान मंत्री नवाज़ शरीफ़ ने जनरल मुशर्रफ़ को अपदस्थ कर दिया था जिसके एक दिन बाद जनरल मुशर्रफ़ ने विद्रोह किया। परवेज़ मुशर्रफ़ बाद में पाकिस्तान के राष्ट्रपति बन गए और संविधान में कुछ परिवर्तन करके उन्होंने राष्ट्रपति के अधिकार बढ़ा लिए और देश के सबसे शक्तिशाली नेता बन गए किंतु आंतरिक और बाहरी दबावों के कारण जनरल मुशर्रफ़ नवंबर 2007 में सेना प्रमुख का पद छोड़ने पर विवश हुए और जुलाई 2008 में राजनैतिक दलों की स्थिति मज़बूत हो जाने के बाद राष्ट्रपति पद से भी हट गए।

 

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21 मेहर सन 1343 हिजरी शम्सी को ईरान में शाह की पिटठू संसद ने कैपच्युलेशन क़ानून को पारित किया। जिसके आधार पर ईरान में अमरीका के सैनिक सलाहकारों को ईरान के मीतर हर प्रकार की न्यायिक कार्यवाही से छूट देदी गयी थी। अर्थात यदि वे ईरान में कोई अपराध करते हैं तो उनपर ईरान में नहीं बल्कि अमरीका के ही किसी न्यायालय में मुक़द्दमा चलाया जा सकता था।

यह क़ानून वास्तव में ईरान की प्रभुसत्ता का उल्लंघन और देश की जनता का अपमान था। इसी कारण इस्लामी क्रान्ति के संस्थापक स्वर्गिय इमाम ख़ुमैनी ने इसके कुछ ही दिनों बाद एक भाषण में इस क़ानून के विभिन्न आयामों को स्पष्ट किया और शाह सरकार तथा अमरीका की कड़ी आलोचना की।

इस के कारण इमाम ख़ुमैनी को गिरफ़तार करके 13 आबान 1343 हिजरी शमसी को देश निकाला दे दिया गया।

 

21 मेहर सन 1347 हिजरी शम्सी को ईरान के विख्यात मिनिएचरिस्ट हुसैन बेहज़ाद का निधन हुआ। उन्होंने रंगों के प्रयोग में अनोखे उदाहरण पेश किए।

वे रंगों के प्रयोग से दुख-दर्द अथवा हर्ष व उल्लास की भावान को प्रदर्शित कर देते थे।

शाहनामा फिरदौसी, ऐवाने मदायन, फ़त्हे बाबिल आदि उनकी विख्यात पेंटिग्स हैं।

 

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24 सफ़र सन 158 हिजरी क़मरी को ईरान में दैलमी वंश के शासन काल के विख्यात विद्वान मंत्री और साहित्यकार साहेब बिन अब्बाद  का निधन हुआ।

वे कुशल लेखक थे और अपने समय के प्रतिष्ठित लेखकों में गिने जाते थे। इस प्रकार से कि उस समय के कई विद्वानों ने अपनी पुस्तकें अब्बाद के नाम से लिखीं।

दैलमी शासन काल में मंत्री का पद संभालने के बावजूद अब्बाद ने विनम्रतापूर्ण और सादा जीवन बिताया। उन्होंने कई महत्वपूर्ण पुस्तकें लिखी हैं जिनमें अलमोहीत का नाम लिया जा सकता है यह एक शब्दकोष है जो सात जिल्दों पर आधारित है।

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