हम और पर्यावरण-12
पानी और हवा के बाद सृष्टि के गठन में सबसे महत्वपूर्ण तत्वों में से एक मिट्टी है और यही पर्यावरण के भी मूल तत्वों में शामिल है।
मिट्टी थल में रहने वाले प्राणियों और चीज़ों में ख़ास तौर पर मानव समाज के लिए एक ठिकाना है। इसी प्रकार मिट्टी विभिन्न प्रकार के जीव-जन्तुओं के जीवन, ख़ास तौर पर वनस्पति के लिए एक अनूठा परिवेष है। मिट्टी इंसान सहित सभी जीवित प्राणियों के भोजन की आपूर्ति करती है। इसलिए मिट्टी को देशों के लिए उत्पादन, खाद्य सुरक्षा और आत्मिनर्भरता का आधार समझा जाता है। क्योंकि अगर मिट्टी तबाह हो जाए या यह कि पर्यावरण से यह तत्व ख़ारिज हो जाए तो मानव समाज, देशों यहां तक कि ख़ुद धरती में जीवन को बाक़ी रखने की योग्यता ख़त्म हो जाएगी। इससे भी अहम बात यह है कि मिट्टी स्थायी विकास, इंसान के स्वास्थ्य की रक्षा और इको सिस्टम के बीच पुल का काम करती है।
फ़ाओ संगठन के निदेशक ख़ोज़े ग्राज़यानो डी सिल्वा के अनुसार, स्वच्छ मिट्टी न सिर्फ़ खाद्य पदार्थ, ईंधन, फ़ाइबर और दवाओं के लिए आधार है बल्कि मानव इकोसिस्टम के लिए भी ज़रूरी है। मिट्टी कार्बन के चक्र, पानी के भंडारण व शोधन, बाढ़ और सूखे के संबंध में लोच अपनाने में मुख्य योगदान देती है। मिट्टी प्रकृति में शोधन का बहुत अच्छा साधन है क्योंकि इसमें शोधन की योग्यता पायी जाती है।
मिट्टी के मुख्य तत्व खनिज पदार्थ, जैविक पदार्थ, पानी और हवा हैं।
इन तत्वों का एक दूसरे से इतना निकट संबंध होता है कि इन्हें एक दूसरे अलग करना कठिन है। वनस्पति के उगने के लिए इन तत्वों का संयोग इस प्रकार है कि वनस्पति के लिए 45 फ़ीसद खनिज पदार्थ, 5 फ़ीसद जैविक और बाक़ी 50 फ़ीसद वे छिद्र होते हैं जिनमें हवा और पानी भरा होता है। अलबत्ता पानी और हवा का अनुपात मिट्टी और सौरमंडल की स्थिति पर निर्भर होता है। प्राकृतिक स्थिति में मिट्टी का हर कण बहुत से जीव-जन्तुओं से सीधें संपर्क में होता है चाहे ये जीव-जन्तु बहुत छोटे ही क्यों न हों। लेकिन वास्तव में जीव-जन्तु का हर समूह एक जीवित शरीर के एक अंग की कोशिकाओं की तरह मिट्टी का एक भाग समझे जाते हैं।
कुछ वैज्ञानिक धरती के सबसे महत्वपूर्ण तत्व मिट्टी को फिर से उसकी अस्ली हालत में लौटाना नामुमकिन मानते हैं। यहां मिट्टी से अभिप्राय उपजाउ मिट्टी है। वैज्ञानिकों का मानना है कि मिट्टी पानी की तरह है जिसकी आसमान से वर्षा होती है बल्कि ज़मीन, जलवायु, प्राकृतिक घटनाओं, जीव-जन्तुओं और समय बीतने से वजूद में आती है। एक सेंटीमीटर उपजाउ ज़मीन के उत्पादन के लिए औसत 300 से 1000 साल की ज़रूरत पड़ेगी। अगर यह मानें कि 25 सेंटीमीटर गहराई तक खेती की मिट्टी है तो इतनी मोटी परत को बनाने में प्रकृति ने लगभग 20000 साल लिए हैं लेकिन अफ़सोस है कि मिट्टी के विनाश की प्रक्रिया इसके उत्पादन से कहीं ज़्यादा तेज़ है।
इसलिए इंसान का जीवन मिट्टी पर निर्भर है और इसकी सही देख-रेख से देश आत्मनिर्भर होते हैं। इतिहास से पता चलता है कि मिट्टी की तबाही के कारण पानी और खाद्य पदार्थ की मात्रा कम हुयी और इसके साथ बाढ़ और सूखे के कारण सभ्यताओं का पतन हो गया। पूरे इतिहास में उन क्षेत्रों में बड़ी बड़ी सभ्यताएं फली-फूलीं जहां की मिट्टी अच्छी थी। इसी प्रकार मेसोपोटामिया और नील घाटी जैसी बड़ी सभ्यता इसलिए ख़त्म हो गयीं क्योंकि वहां की मिट्टी ख़राब हो गयी थी।
धरती पर फैली मिट्टी के रूप में यह ईश्वरीय अनुकंपा पर अभी तक बहुत कम ध्यान दिया गया है। इसके कटाव और बर्बाद होने का स्तर बहुत बढ़ गया है। मिट्टी का कटाव प्राकृतिक कारणों और मानवीय गतिविधियों से भी होता है जिसके कारण मिट्टी अपने मूल स्थान से कट कर दूसरे स्थान पर पहुंच जाती है। शहरीकरण में वृद्धि, नगरीय व औद्योगिक कूड़ों का बढ़ना, ज़मीन में कुछ रासायनिक पदार्थ का अवशोषित होना, खान की खुदाई, पशुओं का बेलगाम चरना, कीड़े-मकोड़े मारने वाले ज़हरीले पदार्थ का इस्तेमाल और रासायनिक खाद का बहुत ज़्यादा इस्तेमाल वे कारण हैं जिनसे मिट्टी की सतह बर्बाद व दूषित होती है और इसी प्रकार मिट्टी का कटाव होता है।
पिछले 50 साल में कुछ एशियाई देशों में आर्थिक नुक़सान मिट्टी की बर्बादी के कारण हुआ। यह नुक़सान 1 से 7 फ़ीसद कृषि उत्पादों में कमी का कारण था। अनुमान के अनुसार, इस समय दुनिया में हर साल मिट्टी के कटाव के कारण दसियों लाख कृषि की भूमि बर्बाद हो रही है। मिट्टी की बर्बादी, वनस्पति कम होने और कार्बन डाइआक्साइड गैस के जलवायु में पहुंचने से धीरे धीरे तापमान बढ़ रहा है जिसके नतीजे में जलवायु से जुड़ी ख़तरनाक घटनाएं जन्म ले रही हैं जो मानव जाति के लिए बहुत बड़ी चुनौती समझी जाती है। फ़ाओ का अनुमान है कि कटाव, मिट्टी के बांध, विभिन्न प्रकार के लवण, जैविक पदार्थ की कमी, ज़मीन में अम्ल पदार्थ के बढ़ने और ज़मीन की सही देख-रेख न होने के कारण दुनिया की एक तिहाई मिट्टी ख़राब हो रही है। फ़ाओ के महानिदेशक ने अभी हाल में अपने एक भाषण में बताया कि इस समय दुनिया में 80 करोड़ 50 लाख लोग भुखमरी व कुपोषण का शिकार हैं। दूसरी ओर दुनिया में बढ़ती जनसंख्या के मद्देनज़र 60 फ़ीसद खाद्य पदार्थों का उत्पादन बढ़ाने की ज़रूरत है। इन खाद्य पदार्थों का उत्पादन मिट्टी पर निर्भर है। लेकिन खेद की बात है कि दुनिया की मिट्टी का एक तिहाई भाग तबाह हो रहा है। इंसान द्वारा मिट्टी के अत्यधिक दोहन के कारण कहीं मिट्टी की उपजाउपन कम हो गया तो कहीं मिट्टी पूरी तरह तबाह हो गयी।
दुनिया भर में मिट्टी के कटाव की प्रक्रिया पर नज़र डालने से ऐसा लगता है कि तेल के स्रोतों से पहले उपजाउ मिट्टी ख़त्म हो जाएगी। इस समय उत्तरी अमरीका की बड़ी बड़ी पर्वत श्रंख्लाओं के दामन मरुस्थल बन गए हैं। कृषि भूमि और चरागाहें ऊसर मिट्टी बन चुकी हैं और वहां के निवासी 8 साल से तूफ़ान के कारण उस क्षेत्र को छोड़ने पर मजबूर हो गए हैं। इसी प्रकार हालिया वर्षों में चीन की येलो नदी में बाढ़ के कारण उपजाउ भूमि का बड़ा भाग तबाह हो गया।
हैती में मिट्टी के कटाव के कारण इस देश की एक तिहाई कृषि बंजर हो गयी जिससे इस देश की कृषि बहुत बुरी तरह प्रभावित हुयी है।
इसी प्रकार अफ़्रीक़ी देशों के बहुत बड़े क्षेत्र को मिट्टी के कटाव के कारण निर्धनता का सामना है। ऑस्ट्रेलिया, मध्यपूर्व और भारत में ग़लत तरीक़े से सिचाई के कारण मिट्टी में नमक भर गया है।
क़ज़्ज़ाक़िस्तान, उज़बेकिस्तान और उत्तरी चीन जैसे एशियाई देशों में सालाना 3600 वर्ग किलोमीटर का भूभाग मरुस्थल बनता जा रहा है। दक्षिण-पूर्वी एशिया में जो रेन फ़ॉरेस्ट से ढके हुए हैं, भूमि के कटाव का ख़तरा बहुत ज़्यादा है। दक्षिण पूर्वी एशिया में भी कि जो रेन फ़ॉरेस्ट अर्थात वर्षा वन से संपन्न है, मिट्टी के कटाव का ख़तरा बहुत ज़्यादा है। यह क्षेत्र हालांकि जैविक विविधता से संपन्न है किन्तु बहुत तेज़ी से इसकी जैविक विविधता ख़त्म हो रही है और रेन फ़ॉरेस्ट तेज़ी से ख़त्म हो रहा है। विशेषज्ञों का मानना है कि 2100 के अंत तक इस क्षेत्र में 75 फ़ीसद जंगल ख़त्म हो जाएंगे और संभव है कि यह नया हैती बन जाए।
मिट्टी की अहमियत को दर्शाने और उसके कटाव को रोकने के लिए 2002 में भूमिविज्ञान के अंतर्रष्ट्रीय संघ के प्रस्ताव पर 5 दिसंबर को विश्व भूमि दिवस घोषित किया गया है ताकि पूरी दुनिया की सरकारें, राजनेता और निजी क्षेत्र के कार्यकर्ता मिट्टी की गुणवत्ता को बेहतर करने और इसके इस्तेमाल की शैली सुधारने के बारे में हल तलाश करें। यह विश्व दिवस हर साल इसलिए मनाया जाता है ताकि पूरी दुनिया के लोग मिट्टी की अहमियत को समझें और मिट्टी का स्थायी रूप से इस्तेमाल महत्व स्पष्ट हो जाए। 5 दिसंबर को दुनिया के अनेक देशों में सम्मेलन, बैठकें और सभाएं आयोजित होती हैं जिसके ज़रिए से समाज के विभिन्न वर्गों को मिट्टी की अहमयित समझाने की कोशिश की जाती है। संयुक्त राष्ट्र संघ ने इस ईश्वरीय अनुकंपा की अहमियत की ओर ध्यान दिलाने के लिए 2015 को इंटर्नेश्नल ईयर ऑफ़ सॉएल अर्थात अंतर्राष्ट्रीय मिट्टी वर्ष घोषित किया। इसी परिप्रेक्ष्य में संयुक्त राष्ट्र संघ ने मिट्टी रूपी जीवन की मूल ज़रूरत के संबंध में लोगों में जागरुकता लाने के लिए और इसके सही इस्तेमाल के लिए कोशिश शुरु कर दी है।
संयुक्त राष्ट्र संघ के अधीन संगठन खाद्य एंव कृषि संगठन फ़ाओ ने यूनेस्को के साथ पूरी दुनिया में मिट्टी से जुड़ी 120 परियोजनाएं शुरु की हैं। किन्तु फ़ाओ की रिपोर्ट के अनुसार, इस समय मिट्टी के बारे में ज़्यादातर डेटा या तो बेकार हो चुके हैं या फिर किसी एक क्षेत्र तक सीमित हैं। यही कारण है कि फ़ाओ दुनिया में मिट्टी के बारे में जानकारी का एक समन्वित तंत्र बनाना चाहता है जो भरोसे योग्य हो और मिट्टी के इस्तेमाल के बारे में कोई फ़ैसला करने में मददगार हो। यह अंतर्राष्ट्रीय कोशिश शायद आने वाले वर्षों में इंसान की खाद्य सुरक्षा को बेहतर करने में मदद करे और मरुस्थलीकरण, बाढ़, मिट्टी और गर्द के तूफ़ान को रोकने में सहायक हो। ये चीज़ें आज विश्व समाज की बहुत सी मुश्किलों का कारण बनी हैं।