Oct १७, २०१६ १३:५६ Asia/Kolkata
  • मोअम्मर मुहम्मद कज़्ज़ाफ़ी
    मोअम्मर मुहम्मद कज़्ज़ाफ़ी

20 अक्तूबर वर्ष 2011 को मोअम्मर कज़्ज़ाफ़ी को क्रांतिकारी सैनिकों ने उसके पैतृक नगर सेर्त के निकट पकड़कर मार डाला।

उसका जन्म 7 जून वर्ष 1942 को हुआ था। वह वर्ष 1969 से लीबिया का शासक रहा।  उसने लीबिया पर लगभग 42 वर्षों तक राज किया। उसने ब्रिटेन के कैडिट कालेज में शिक्षा प्राप्त की थी। वह किसी भी अरब देश में सबसे अधिक समय तक राज करने वाला तानाशाह था। उसने स्वयं को क्रांति का प्रथप्रदर्शक और राजाओं का राजा घोषित कर रखा था। क़ज़्ज़ाफ़ी के विरोधियों का कहना है कि कर्नल मुअम्मर क़ज़्ज़ाफ़ी राजा की भांति स्वयं को लीबिया का सर्वे सर्वा समझता था। उस पर और उसके परिवार पर भ्रष्टाचार द्वारा संपत्ति एकत्रित करने और उसे विदेशी बैंकों में जमा करने का आरोप था। ट्यूनीशिया से आरंभ होने वाली इस्लामी क्रांति की लहर ने मध्यपूर्व और उत्तरी अफ़्रीक़ा के कई देशों को प्रभावित करने के साथ ही कज़्ज़ाफ़ी की सरकार की जड़े भी हिला दीं। ट्यूनीशिया के ज़ैनुल आबेदीन, मिस्र के हुस्नी मुबारक और यमन के अली अब्दुल्लाह सालेह को सत्ता से हाथ धोना पड़ा। क़ज़्ज़ाफ़ी ने इस्लामी क्रांति की लहर को हल्के में लिया जिसके परिणाम में उसे अपनी जान गंवानी पड़ी।

 

20 अक्तूबर सन 1719 ईसवी को जर्मनी के गणितज्ञ व दार्शनिक गाटफ़्रीड आख़ेनवाल का जन्म हुआ। उन्हें गणित और दर्शनशास्त्र का व्यापक ज्ञान था। सन 1771 में उनका निधन हुआ।

 

20 अक्तूबर सन 1827 ईसवी को भूमध्यसागर के उत्तरी भाग में स्थित नवारीनो खाड़ी में इसी नाम का एक युद्ध हुआ। इस युद्ध में ब्रिटेन, रुस और फ़्रांस की युद्धक नौकाओं ने यूनान की सहायता करते हुए उसमानी शासन की युद्धक नौकाओं पर आक्रमण किया। तीनों देशों की सेनाओं ने उसमानी शासन की साठ युद्धक नौकाएं नष्ट कर दीं और उसमानी सेना के 6 हज़ार सैनिकों को हताहत किया। इस युद्ध में उसमानी शासन को पराजय का सामना हुआ और यूनान की पश्चिमी जल सीमा में उसमानी सेना का सफ़ाया हो गया। उल्लेखनीय है कि वर्ष 1821 से जब यूनान में उसमानी शासन से स्वतंत्रता प्राप्त करने के लिए जनता ने अभियान आरंभ किया तो योरोपीय देशों ने यूनानियों की सहायता की जिसका एक उदाहरण नवारीनो युद्ध था। यह लड़ाइयॉं अंतत: 1829 में एडरियानोप्ल़ संधि पर हस्ताक्षर और यूनान की स्वतंत्रता के बाद समाप्त हो गई।

 

20 अक्तूबर सन 1910 ईसवी को रुस के विख्यात लेखक लियो टोल्सटॉय का निधन हुआ। वे सन 1828 में जन्में थे। उन्होंने योरोपीय देशों की यात्रा करके योरोपीय समाजों के बारे में व्यापक अध्ययन किया। अपनी यात्रा में योरोप को निकट से देखने के बाद टोल्सटॉय पश्चिमी संस्कृति से घृणा करने लगे। उनकी बहुत सी रचनाएं हैं जिनमें उनके प्रसिद्ध उपन्यासों युद्ध व संधि तथा, बाल्यकाल आदि का नाम लिया जा सकता है।

 

20 अक्तूबर सन 1798 ईस्वी  को क़ाहेरा कीजनता ने फ़्रांसीसी अतिग्रहणकारियों के विरुद्ध आंदोलन आरमभ कर दिया। मिस्र पर नेपोलियन का अधिकार हो जाने के बाद इस देश में फ़्रांसीसी सेना के विरुद्ध क्रोध भड़क उठा और लोग आज के दिन क़ाहेरा के अलअज़हर विश्वविद्यालय में एकत्रित हुए। क़ाहेरा में फ़्रांसीसी सैनिक शासक जनरल डेबवा ने अपने सैनिकों को आदेश दिया कि भीड़ को तितर-बितर किया जाए जिसके बाद निहत्थे लोगों की फ़्रांसीसी सैनिको से झड़प आरंभ हो गई जिसमें बहुत से फ़्रांसीसी सैनिक भी मारे गए। यह स्थिति देख कर फ़्रांसीसी सेना ने क़ाहेरा दुर्ग में तोपें तैयार कीं और क़ाहेरा नगर विशेषकर अलअज़हर विश्वविद्यालय पर व्यापक गोलाबारी की। जिसके परिणाम स्वरुप बड़ी संख्या में छात्रों सहित 3 हज़ार लोग मारे गए। फ़्रांसीसी सेना ने  हताहत होने वालों के शव, नील नदी में फेंक दिए। इस प्रकार क़ाहेरा की जनता का विद्रोह बड़ी निर्ममता से कुचल दिया गया।

 

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29 मेहर सन 1357 हिजरी शम्सी को ईरान के तेल उद्योग के कर्मचारियों ने शाह की अत्याचारी सरकार के विरुद्ध एक जनान्दोलन के अंतर्गत हड़ताल आरंभ कर दी। इस हड़ताल के कारण ईरान से तेल का निर्यात बंद हो गया और शाह, आय के प्रमुख स्रोत से वंचित हो गया जिससे शाह पर बहुत अधिक दबाव पड़ गया। इसके अतिरिक्त ईरान से तेल निर्यात रुक जाने से अंतर्राष्ट्रीय तेल मंडियों में तेल के मूल्य में भारी बढ़ोत्तरी हुई। शाह की सरकार ने डरा-धमका कर तेल उद्योग के कर्मचारियों को काम पर लौटाने का प्रयास किया किंतु शाही सरकार के अंत तक यह हड़ताल जारी रही। ईरानी जनता ने भी तेल की कमी से उत्पन्न होने वाली भारी कठिनाइयों के बावजूद इस हड़ताल का समर्थन किया।

 

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3 रबीउल औवल सन 441 हिजरी क़मरी को विख्यात अरब शायर व लेखक अब्दुल अला मोअर्री का निधन हुआ। वे सन 363 हिजरी क़मरी में जन्में और आरंभ में मोअर्रा और शाम के दूसरे शहरों में शिक्षा प्राप्त की। फिर वे बग़दाद चले गये और वहॉ उच्च स्तरीय शिक्षा ग्रहण की। मोअर्री को अरबी शायरी का पूरा ज्ञान था। वे बाल्यकाल में ही अंधे हो गया किंतु फिर भी बहुत बड़े शायर बने। उन्होंने कई विख्यात पुस्तकें लिखी हैं।

 

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