शुक्वार - 30 अक्तूबर
30 अक्तूबर 1960 को पहली बार एक जीवित व्यक्ति के लिए किडनी का सफल ट्रांसप्लांट किया गया।
इसी दिन सर माइकल वुडरफ़ ने ब्रिटेन के एक अस्पताल में पहली बार किसी ज़िंदा इंसान के शरीर में किडनी का प्रत्यारोपण किया था। उन्हीं को ऐसी दवा बनाने का श्रेय भी जाता है जो शरीर में मौजूद अंग अस्वीकृति की प्रतिरक्षा प्रणाली को समाप्त करती है।
30 अक्तूबर सन 1821 ईसवी को रुस के विख्यात लेखक फ़्योदोर दोस्तोयेफ़्सकी का जन्म हुआ। उन्होंने पहले तो इंजीनियरिंग कॉलेज़ में प्रवेश लिया किंतु धीरे धीरे उन्हें अंतर्राष्ट्रीय सहित्य से रुचि हो गई। उन्होंने कॉलेज में अपनी शिक्षा पूरी करने के पश्चात विधिवत साहित्य पर काम आरंभ कर दिया। 1849 में उनहें राजनैतिक गतिविधियों के आरोप में जेल में डाल दिया गया। जेल से छूटने के बाद उन्होंने साहित्य की अनमोल रचनाएं प्रस्तुत की।
30 अक्तूबर वर्ष 1909 को भारत के प्रसिद्ध परमाणु वैज्ञानिक होमी जहांगीर भाभा का जन्म मुंबई के एक पारसी परिवार में हुआ। वे भारत के एक प्रमुख वैज्ञानिक थे जिन्होंने भारत के परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम की कल्पना की थी। उन्होने मुट्ठी भर वैज्ञानिकों की सहायता से मार्च वर्ष 1944 में नाभिकीय उर्जा पर अनुसन्धान आरम्भ किया। उन्होंने नाभिकीय विज्ञान में तब कार्य आरम्भ किया जब नाभिकीय श्रंखला अभिक्रिया का ज्ञान नहीं के बराबर था और नाभिकीय उर्जा से विद्युत उत्पादन की कल्पना को कोई मानने को तैयार नहीं था। उन्हें 'आर्किटेक्ट ऑफ इंडियन एटॉमिक एनर्जी प्रोग्राम' भी कहा जाता है। भारत वापस आने पर उन्होंने अपने अनुसंधान को आगे बढ़ाया। भारत को परमाणु शक्ति बनाने के मिशन में प्रथम पग के तौर पर उन्होंने वर्ष 1945 में मूलभूत विज्ञान में उत्कृष्टता के केंद्र टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च (टीआइएफआर) की स्थापना की। डा. भाभा एक कुशल वैज्ञानिक और प्रतिबद्ध इंजीनियर होने के साथ-साथ एक समर्पित वास्तुशिल्पी, सतर्क नियोजक एवं निपुण कार्यकारी थे। वर्ष 1947 में भारत सरकार द्वारा गठित परमाणु ऊर्जा आयोग के प्रथम अध्यक्ष नियुक्त हुए। वर्ष 1953 में जेनेवा में आयोजित विश्व के परमाणु वैज्ञानिकों के महासम्मेलन की उन्होंने अध्यक्षता की। भारतीय परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम के जनक की 24 जनवरी वर्ष 1966 को एक विमान दुर्घटना में मौत हो गयी।
30 अक्तूबर सन 1910 ईसवी को अंतर्राष्ट्रीय रेडक्रॉस संस्था के संस्थापक हेनरी डुनेन्ट का निधन हुआ। वे सन 1828 में जेनेवा में जन्मे थे। उन्होंने युद्धों के घायलों की सहायता का बीड़ा उठाया और इन धायलों को मृत्यु से बचाने के लिए रेड क्रॉस की स्थापना की। डुनेन्ट को इस मानवताप्रेमी कारनामे के कारण 1901 में शांति के नाबल पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
30 अक्तूबर सन 1991 ईसवी को अमरीका के प्रयास से मिस्र, जार्डन सीरिया, लेबनान, और फ़िलिस्तीन मुक्ति संगठन पी एल ओ की अतिग्रहणकारी ज़ायोनी शासन के साथ तथाकथित मध्यपूर्व शांति बैठक आरंभ हुई। स्पेन की राजधानी मैड्रिड में होने वाली इस बैठक में इसी प्रकार अरबों और इस्राईल के मध्य संधि के एक अन्य सम्मेलन में इस्राईल ने शांति के बदले शांति पर बल दिया किंतु अरब- सरकारों ने इस्राईल के अवैध अतिग्रहण से अपने क्षेत्रों को स्वतंत्र कराने के लिए शांति के बदले भूमि का प्रस्ताव रखा और इस्राईल से अतिग्रहित क्षेत्रों से पीछे हट जाने की मांग की। इस्राईल वाशिंग्टन की सहायता से अरब वार्ताकारों में मत्भेद पैदा करने में सफल हो गया और पी एल ओ तथा जार्डन ने इस्राईल से संधि कर ली किंतु इसके बावजूद ज़ायोनी शासन ने न तो अपने वचनों का पालन किया और न ही फ़िलिस्तीनियों का दमन बंद किया जिससे स्पष्ट हो गया कि इस शासन से संधि संभव नहीं है।
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9 आबान सन 1304 हिजरी शम्सी को ईरान की संसद ने क़ाजारी शासन श्रृंखला के अंतिम शासक अहमद शाह को अपदस्थ करके इस श्रृंखला के पतन की घोषणा की। इस प्रकार ईरान में इस वंश के 135 वर्षीय शासन का अन्त हुआ। इस घटना के बाद ब्रिटेन के हस्तक्षेप से ईरान में रज़ाख़ान की अस्थायी सरकार बनी और रज़ा ख़ान ने ईरान में पहलवी शासन की नींव डाली। इस शासन श्रृंखला ने विदेशियों के लिए ईरान के स्रोतों को जी भर कर लूटने का अवसर उपलब्ध कराया।
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13 रबीउल औवल सन 290 हिजरी क़मरी को ईरान के विख्यात धर्मगुरु और सहित्यकार काज़ी जुर्जानी का जन्म हुआ। वे अबुल हसन के नाम से प्रसिद्ध हुए। उन्होंने कई महत्वपूर्ण पुस्तकें लिखी हैं इनमें तफ़सीरुल क़ुरआन और तहज़ीबुत्तारीख़ आदि का नाम लिया जा सकता है।
सन 366 हिजरी क़मरी में नीशापुर में उनका निधन हुआ और गुर्गान में उन्हें दफ़न किया गया।