शनिवार - 31 अक्तूबर
31 अकतूबर सन 1795 ईसवी को विश्व विख्यात ब्रिटिश शायर जान कीट्स का जन्म हुआ।
31 अकतूबर सन 1985 ईसवी को पाकिस्तान के प्रख्यात क्रिकेटर ज़हीर अब्बास ने अपने क्रिकेट कैरियर का आख़िरी टेस्ट मैच खेला।
31 अक्तूबर वर्ष 1875 को भारत के स्वतंत्रता संग्राम सेनानी और स्वतंत्र भारत के प्रथम गृहमंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल का जन्म हुआ। भारत की स्वतंत्रता के बाद वे प्रथम गृह मंत्री और उपप्रधानमंत्री बने। उन्हे भारत का लौह पुरूष भी कहा जाता है। उनका जन्म एक किसान परिवार में हुआ था। उनकी शिक्षा मुख्यतः स्वाध्याय से ही हुई। लन्दन जाकर उन्होने बैरिस्टर की पढाई पूरी की और वापस आकर गुजरात के अहमदाबाद में वकालत करने लगे। महात्मा गांधी के विचारों से प्रेरित होकर उन्होने भारत के स्वतन्त्रता आन्दोलन में भाग लिया। स्वतन्त्रता आन्दोलन में सरदार पटेल का सबसे पहला और बडा योगदान खेडा संघर्ष था। गुजरात का खेडा खण्ड उन दिनों भयंकर सूखे की चपेट में था। किसानों ने अंग्रेज सरकार से भारी कर में छूट की मांग की। जब यह स्वीकार नहीं किया गया तो सरदार पटेल, गांधीजी एवं अन्य लोगों ने किसानों का नेतृत्व किया और उन्हे कर न देने के लिये प्रेरित किया। अन्त में सरकार झुकी और उस वर्ष करों में राहत दी गयी। यह सरदार पटेल की पहली सफलता थी। 15 दिसंबर वर्ष 1950 को उनका निधन हो गया।
31 अक्तूबर वर्ष 1984 को भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की उनके अंगरक्षकों ने हत्या कर दी। इन दोनों अंगरक्षकों का नाम सतवंत सिंह और बलवंत सिंह था और उन्होंने इसके लिए अपनी सर्विस राइफ़ल का प्रयोग किया था। उनके अंगरक्षकों ने उनकी हत्या नई दिल्ली में स्थित प्रधानमंत्री निवास के बगीचे में की थी। बताया जाता है कि बलवंत सिंह ने उनपर तीन राउंड गोलिया चलाई और सतवंत सिंह ने एक स्टेन कारबाईन से उनपर बाईस राउंड गोली चलाई। घटना के तुरंत बाद इंदिरा गांधी के अन्य अंगरक्षकों ने बलवंत सिंह को गोली मार दी और सतवंत सिंह को गोली मारकर गिरफ़्तार कर लिया गया। बताया जाता है कि इन दोनों अंगरक्षकों ने जिनका संबंध सिख समुदाय से था, पंजाब प्रांत में सिखों के उपासना स्थल स्वर्ण मंदिर पर इंदिरा गांधी द्वारा दिए गये आक्रमण के आदेश के कारण उनकी हत्या की थी। सेना ने इस अभियान का नाम ब्लू स्टार रखा था जिसका नेतृत्व जनरल बराड़ ने किया था।
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10 आबान सन 1358 हिजरी शम्सी को विख्यात संघर्षकर्ता धर्मगुरू आयतुल्लाह सैयद मोहम्मद अली क़ाज़ी तबातबाई पथभ्रष्ट आतंकवादी गुट फ़ुरक़ान के हाथों शहीद कर दिए गए। वे सन 1293 हिजरी शम्सी में पश्चिमोत्तरी ईरान के तबरेज़ नगर में जन्मे। उन्होंने आरंभिक शिक्षा अपने पिता से प्राप्त की। इसके बाद उन्होंने इमाम ख़ुमैनी जैसे महान धर्मगुरूओं से उच्च स्तरीय धार्मिक शिक्षा ग्रहण की। उन्होंने शाह की अत्याचारी सरकार के विरुद्ध बड़े साहस के साथ संघर्ष किया और इसके लिए उन्हें कई बार जेल और निर्वासन की सज़ा दी गई। इस्लामी क्रान्ति की सफलता के बाद इमाम ख़ुमैनी रहमतुल्लाह अलैह ने उन्हें तबरेज़ नगर का इमाम जुमा और अपना प्रतिनिधि नियुक्त किया। अंततः आज ही के दिन आतंकवादी फ़रक़ान गुट ने उन्हें शहीद कर दिया।
10 आबान सन 1359 हिजरी शम्सी को इस्लामी गणतंत्र ईरान के तत्कालीन तेल मंत्री मोहम्मद जवाद तुंदगूयान और इस मंत्रालय के कुछ अन्य अधिकारियों का अतिक्रमणकर्ता इराक़ी सैनिकों ने अपहरण कर लिया था। इस घटना से एक महीने पूर्व इराक़ ने इस्लामी गणतंत्र ईरान के विरुद्ध अपना अतिक्रमण आरंभ कर दिया था। तुंदगूयान अपने मंत्रालय के अधिकारियों के साथ दक्षिणी ईरान के तेल प्रतिष्ठानों का निरीक्षण करने गए थे कि यह घटना घटी। कुछ समय तक इराक़ के सद्दाम शासन ने अपहरण में अपना हाथ होने का खंडन किया किंतु बाद में इराक़ी सरकार ने दावा किया कि इन लोगों ने आत्महत्या कर ली परन्तु प्रत्यक्षदर्शी क़ैदियों और चिकित्सा जांच से पता चला कि जेल में भयानक यातनाओं का सामना करने के कारण उनकी शहादत हो गई।
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14 रबीउल अव्वल सन 325 हिजरी क़मरी को अरबी शब्दकोष के विशेषज्ञ व साहित्यकार अबुल हुसैन बिन फ़ारिस का ईरान के क़ज़वीन नगर में जन्म हुआ। उन्होंने आरंभ में अपने पिता से शिक्षा प्राप्त की और इस्लामी विषयों में गहरी रूचि के कारण ईरान और इराक़ के विभिन्न नगरों की यात्रा की यहां तक कि फ़िक़्ह, हदीस, अरबी व्याकरण, काव्य और साहित्य में प्रसिद्ध हुए। इब्ने फ़ारिस ने बहुत से शिष्यों का प्रशिक्षण किया जिनमें से कुछ बड़े विद्वान व उच्च अधिकारी बने। यद्यपि इब्ने फ़ारिस इस्लामी ज्ञान की विभिन्न शाखाओं में दक्ष थे किन्तु साहित्य और अरबी शब्दकोष में दक्षता के लिए वे प्रसिद्ध हैं। इब्ने फ़ारिस की महत्वपूर्ण किताबों के नाम अस्साहेबी फ़ी फ़िक़्हिल लुग़ह, मक़ायीसुल लुग़ह, और अबयातुल इस्तिशहाद हैं। अबयातुल इस्तिशहाद शेर के रूप में कहावत का संकलन है। वर्ष 395 हिजरी क़मरी में तेहरान के दक्षिण में स्थित शहरे रय में उनका देहान्त हुआ।
14 रबीउल अव्वल सन 1019 हिजरी क़मरी को मोहम्मद बिन हकीम का ईरान के इस्फ़हान नगर में जन्म हुआ उन्हें चीनी भाषा में चांग जी माय कहते हैं। उनके पूर्वजों का संबंध पूर्वी उज़्बेकिस्तान के समरक़ंद नगर से था। वह नौ वर्ष की आयु में अपने चाचा के साथ चीन की यात्रा पर गए। चांग जी माय ने चीन में इस्लाम के प्रचार में अपनी आयु बितायी और इसी प्रकार उन्होंने चीन में मस्जिदों का निर्माण कराया। चांग जी माय ने चीन में लोगों को चीनी भाषा में इस्लामी ज्ञान सिखाए और फिर बाद में इस देश में लोगों को अरबी और फ़ारसी भाषाओं की शिक्षा दी। उन्होंने सैकड़ों शिष्यों का प्रशिक्षण किया जिनमें कुछ इस्लामी ज्ञान में दक्ष थे। मोहम्मद बिन हकीम या चांग जी माय की उल्लेखनीय सेवाओं में जी नीन में बड़ी मस्जिद का निर्माण भी है। चीनी मुसलमानों के बीच वह क़ुरआन के बड़े व्याख्याकार के रूप में प्रसिद्ध हैं।
14 रबीउल अव्वल वर्ष 64 हिजरी क़मरी को यज़ीद बिन मुआविया मर गया। वह एक अत्यंत दुष्ट, व्यभिचारी और अत्याचारी शासक था।
उसने तीन वर्ष और नौ महीनों तक शासन किया। अपने शासन काल में यज़ीद ने अनेक जघन्य अपराध किए जिनमें पैग़म्बरे इस्लाम के नाती हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम व उनके 72 साथियों को कर्बला में शहीद करना, पवित्र नगरों मक्के व मदीने पर आक्रमण और काबे को आग लगवाने जैसे अपराध शामिल हैं। यज़ीद इस्लामी आदेशों के प्रति तनिक भी कटिबद्ध नहीं था बल्कि वह केवल ऐश्वर्य और विलास में डूबा रहता था।