गुरुवार - 5 नवम्बर
5 नवंबर वर्ष 2006 को इराक़ के उच्चाधिकार न्यायाधिकरण ने देश के अपदस्थ राष्ट्रपति सद्दाम हुसैन को मानवता के ख़िलाफ़ अपराध का दोषी पाते हुए फांसी की सज़ा सुनाई।
5 नवंबर वर्ष 2006 को इराक़ के उच्चाधिकार न्यायाधिकरण ने देश के अपदस्थ राष्ट्रपति सद्दाम हुसैन को मानवता के ख़िलाफ़ अपराध का दोषी पाते हुए फांसी की सज़ा सुनाई।
इराक़ का पूर्व तानाशाह सद्दाम हुसैन दुनिया का सबसे क्रूर तानाशाह रहा है जिसने अपनी तानाशाही के बल पर लाखों लोगों को मौत के मुंह में धकेल दिया था। सद्दाम इराक़ का पाँचवा राष्ट्रपति था जिसने इराक पर लगभग 30 सालों तक राज किया। सद्दाम हुसैन का जन्म 28 अप्रैल साल 1937 में इराक़ के दजला नदी के पास स्थित गांव तिकरित में हुआ था। सद्दाम ने अपने पिता को कभी नहीं देखा और ना उसके बारे में जान पाया क्योंकि उसके जन्म के छ: महीने पहले ही वह घर से ग़ायब हो गया था और मरने तक नहीं मिला। सद्दाम का मामा इराक़ी सेना में उच्चाधिकारी था जिसने साल 1941 के एंग्लो-इराक़ी युद्ध में भाग लिया था। उसने ही सद्दाम की देखभाल की थी और उसे बग़दाद के ही सेकेंडरी स्कूल में प्रवेश दिलाया और इसके बाद सद्दाम ने तीन साल तक इराकी लॉ स्कूल में पढाई की।
वर्ष 1957 में 20 वर्ष की उम्र में सद्दाम अरब बास पार्टी में शामिल हो गया जिसमें उसके मामा सहयोगी थे। 1958 में इराक़ में तख्तापलट हुआ।1958 में सद्दाम ने बास पार्टी की सदस्यता ग्रहण कर ली जिसको सैन्य अधिकारी जनरल अब्दुल करीम क़ासिम चला रहा था। कासिम की पार्टी में सद्दाम एक सक्रिय और अग्रणी नेता था लेकिन कासिम के बढ़ते प्रभाव को देखते हुए क़ासिम को मारने की योजना बनाई गयी।1959 में जनरल क़ासिम की हत्या के लिए सद्दाम को चुना गया लेकिन फ़ायरिंग के दौरान सद्दाम का निशाना चूक गया जिसमें क़ासिम का ड्राइवर मारा गया और क़ासिम को कंधे पर गोली लगी थी।
1959 में सद्दाम पकड़े जाने के डर से मिस्र भाग गया और 1963 तक वहीं रहा। सद्दाम जब 1964 में वापस इराक़ लौटा तब उसे गिरफ्तार कर लिया गया था लेकिन साल 1966 में जेल से भाग जाने के बाद उसे बाथ पार्टी का सहायक महासचिव बना दिया गया। 1968 में फिर विद्रोह हुआ और इस बार 31 वर्षीय सद्दाम ने जनरल अहमद हसन अल बक्र के साथ मिलकर सत्ता पर क़ब्ज़ा कर लिया। हसन बक्र राष्ट्रपति बन गया और सद्दाम को उसका उप राष्ट्रपति बना दिया गया। 1972 में इराक़ ने सोवियत संघ के साथ उस समय 15 वर्षो का सहयोग समझौता किया था जब शीत युद्ध अपनी चरम सीमा पर था। 1978 में एक नया क़ानून बना और विपक्षी दलों की सदस्यता लेने का मतलब जान से हाथ धोना माना जाने लगा। कहा जाता है कि 1979 में सद्दाम हुसैन ने ख़राब स्वास्थ्य के नाम पर जनरल बक्र को इस्तीफ़ा देने पर मजबूर कर दिया और खुद देश का राष्ट्रपति बन बैठा। वर्ष 1980 में उसने नई इस्लामिक क्रांति के प्रभावों को कमज़ोर करने के लिए पश्चिमी ईरान की सीमाओं पर अपनी सेना उतार दी थी। इसके बाद आठ वर्षों तक चले युद्ध में लाखों लोगों को जान गंवानी पड़ी थी। ईरान के साथ वर्ष 1988 में युद्ध विराम हो गया।
13 दिसम्बर वर्ष 2003 के दिन सद्दाम हुसैन को अमेरिकी सैनिकों ने पकड़ लिया। सद्दाम उस समय तिकरित शहर के एक घर में छुपा हुआ था और उसने बिना किसी लड़ाई के समपर्ण कर दिया था। सद्दाम हुसैन और बास पार्टी के अन्य नेताओं के विरुद्ध इराक़ सरकार ने मुकद्दमा चलाकर उन आरोपों में सद्दाम हुसैन समेत उन नेताओं को दोषी पाया जिन्होंने अपराध, युद्ध और नरसंहार में सद्दाम हुसैन का साथ दिया था।
दो वर्ष बाद 5 नवंबर वर्ष 2006 को सद्दाम हुसैन पर दोष सिद्ध हुआ और उसे अपराधी घोषित कर दिया गया। सद्दाम पर युद्ध अपराध और मानवता के विरुद्ध कृत्यों के आरोप थे जिनमे 50 हज़ार लोगों की मौत हुयी थी। 1,50,000, 3,40,000 इराक़ी, 1000 कुवैत के नागरिकों की मौत और 7,30,000 ईरान-इराक युद्ध के दौरान मारे गये सैनिकों की मौत का जिम्मेदार मानते हुए सद्दाम हुसैन को फांसी की सज़ा सुनाई गयी।
5 नवम्बर सन 1827 ईसवी को पियर लाप्लेस नामक फ़्रांसीसी गणितज्ञ का निधन हुआ। वे सन 1749 ईसवी में जन्में थे। शिक्षा प्राप्ति के पश्चात उन्होंने गणित की शिक्षा देना आरंभ कर दिया और अपनी आयु का अधिकांश भाग गणित और खगोल शास्त्र के अध्ययन और शोध कार्य में व्यतीत किया। उनका यह विचार था कि दसियों लाख वर्ष पूर्व धरती सूर्य से अलग हुई और धीरे धीरे ठंडी होकर वर्तमान रुप में आई।
5 नवम्बर सन 1918 ईसवी को इन्फ़लूएन्ज़ा की महामारी ने दुनिया में दसियों लाख लोगों की जान ली। यह बीमारी योरोपीय देशों से शुरु हुयी और बहुत तेज़ी से दुनिया की बीस प्रतिशत जनता इस से प्रभावित हुयी जिसके परिणाम में बहुत से लोगों की मृत्यु हो गई। एन्टी बायटिक दवाओं के न होने के कारण इस बीमारी से बहुत अधिक लोग मारे गए।
5 नवम्बर सन 1944 को फ़्रांस के चिकित्सक, जीव वैज्ञानिक और दार्शनिक डॉक्टर एलेक्सेस कार्ल का निधन हुआ। उन्हें चिकित्सा के क्षेत्र में महत्वपूर्ण प्रयासों के लिए 1912 में नोबल पुरस्कार मिला। एलेक्सेस कार्ल ने कुछ समय विश्व के विभिन्न देशों की यात्रा करने में बिताया उन्होंने मुस्लिम संस्कृति और सभ्यता को बहुत निकट से देखा इसी कारण उन्होंने मानव जीवन में अध्यात्म और धर्म की भूमिका पर विशेष बल दिया है।
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15 आबान सन 1357 हिजरी शम्सी को ईरान के रेडियो व टीवी की संस्था के कर्मचारियों ने शाही शासन के खिलाफ हड़ताल शुरु की। टीवी व रेडियो की संस्था के कर्मचारियों की यह हड़ताल, शाही शासन के पतन की प्रक्रिया को तेज़ करने के उद्देश्य से की गयी थी। इसी दिन शाही सुरक्षा बल के सदस्यों ने कई समाचारों पत्रों के कार्यालयों पर हमला किया और कई मीडिया कर्मियों को गिरफ्तार कर लिया जिसकी वजह से कई मशहूर समाचार, प्रकाशित नहीं हो पाए।
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19 रबीउल अव्वल सन 1358 हिजरी क़मरी को ईरान के विख्यात धर्मगुरु व इतिहासकार आयतुल्ला मिर्ज़ा हसन अलयारी का 92 वर्ष की आयु में निधन हुआ। वे ईरान के पूर्वोत्तरी प्रांत तबरेज़ के एक गांव में जन्में थे। युवावस्था तक पहुंचते पहुंचते उन्होंने अपने पिता से गणित और विभिन्न विषयों की आरंभिक शिक्षा प्राप्त की और उच्चस्तरीय शिक्षा के लिए वे इराक़ के पवित्र नगर नजफ़ चले गये। उन्होंने इराक़ में मिर्ज़ा अबुल क़ासिम हायरी, और आयतुल्ला फ़ाज़िल शरबियानी जैसे वरिष्ठ धमगुरुओं से शिक्षा ग्रहण की।
ईरान के वरिष्ठ व प्रतिष्ठित धर्मगुरुओं में गिने जाने वाले आयतुल्ला अलयारी ने कई महत्वपूर्ण पुस्तकें लिखी हैं। जिनमें सिरातुन्नजात और जामेउस्सआदह उल्लेखनीय है।