Nov १२, २०१७ ०२:०० Asia/Kolkata
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12 नवंबर वर्ष 1967 को इंदिरा गाँधी को प्रधानमंत्री पद पर रहते हुए पार्टी से निष्कासित कर दिया गया।

12 नवंबर वर्ष 1967 को इंदिरा गाँधी को प्रधानमंत्री पद पर रहते हुए पार्टी से निष्कासित कर दिया गया। इन्दिरा का जन्म 19 नवम्बर 1917 को राजनीतिक रूप से प्रभावशाली नेहरू परिवार में हुआ था। इनके पिता जवाहरलाल नेहरू और इनकी माता कमला नेहरू थीं।

इन्दिरा को उनका "गांधी" उपनाम फिरोज़ गाँधी से विवाह के पश्चात मिला था। वर्ष 1950 के दशक में वे अपने पिता के भारत के प्रथम प्रधानमंत्री के रूप में कार्यकाल के दौरान ग़ैर सरकारी तौर पर एक निजी सहायक के रूप में उनके सेवा में रहीं। अपने पिता की मृत्यु के बाद सन् 1964 में उनकी नियुक्ति एक राज्यसभा सदस्य के रूप में हुई। इसके बाद वे लालबहादुर शास्त्री के मंत्रिमंडल में सूचना और प्रसारण मत्री बनीं।

लालबहादुर शास्त्री के आकस्मिक निधन के बाद तत्कालीन काँग्रेस पार्टी अध्यक्ष के. कामराज इंदिरा गांधी को प्रधानमंत्री बनाने में निर्णायक रहे। गाँधी ने शीघ्र ही चुनाव जीतने के साथ-साथ जनप्रियता के माध्यम से विरोधियों के ऊपर हावी होने की योग्यता दर्शायी। वह अधिक बामवर्गी आर्थिक नीतियाँ लायीं और कृषि उत्पादकता को बढ़ावा दिया। 1971 के भारत-पाक युद्ध में एक निर्णायक जीत के बाद की अवधि में अस्थिरता की स्थिती में उन्होंने सन् 1975 में आपातकाल लागू किया।

 

12 नवंबर सन 1840 ईसवी को उन्नीसवीं शताब्दी के प्रख्यात मूर्तिकार अगोस्ट रोडेन का पेरिस में जन्म हुआ।उन्हें बाल्यकाल से ही इस कला से विशेष लगाव था। उनके द्वारा बनायी गयी विख्यात मूर्तियों में चिंतित मनुष्य नामक मूर्ति का नाम लिया जा सकता है। सन 1917 ईसवी में अगोस्ट रोडेन का देहान्त हुआ।

 

12 नवंबर सन 1908 ईसवी को बुलग़ारिया ने अपनी स्वतंत्रता की घोषणा की। यह देश सन 1393 ईसवी में उस्मानी साम्राज्य के अधीन हो गया था। लगभग पॉच शताब्दियों के पश्चात वर्ष 1878 ईसवी में बुलग़ारिया को आंशिक स्वतंत्रता प्राप्त हुई। राजशाही व्यवस्था वाले देश बुल्ग़ारिया पर द्वितीय विश्व युद्ध के बाद पूर्व सोवियत संघ ने अपनी कम्युनिस्ट शासन व्यवस्था थोप दी परंतु बाद में रुस में आंतरिक राजनीतिक उथल पुथल का लाभ उठाते हुए बुलग़ारिया ने कम्युनिस्ट शासन व्यवस्था हटा दी और 1990 में लोकतांत्रिक व्यवस्था अपनायी। यह देश योरोप के दक्षिण पूर्वी भाग में और बलकान क्षेत्र में स्थित है।

 

12 नवंबर सन 1918 ईसवी को प्रथम विश्व युद्ध में आस्ट्रिया-हंग्री साम्राज्य की पराजय और इन दोनों देशों के एक दूसरे से अलग हो जाने के पश्चात ऑस्ट्रिया में राजशाही शासन व्यवस्था का अंत हुआ तथा लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था का काल आरंभ हुआ। ऑस्ट्रिया में अंतिम नरेश चार्लज़ प्रथम थे जिन्होंने 21 नवम्बर सन 1916 से सत्ता संभाली थी। 11 नवम्बर सन 1918 ईसवी को प्रथम विश्व युद्ध की समाप्ति के समझौते पर हस्ताक्षर के एक दिन पश्चात उन्होंने त्यागपत्र दे दिया और स्वीज़रलैंड चले गये।

12 नवंबर सन 1956 ईसवी को ज़ायोनी शासन के सैनिकों ने ग़ज़्ज़ा पट्टी के रफ़ह नगर में एक शरणर्थी शिविर पर आक्रमण करके फिलिस्तीनियों का जनसंहार किया। इस निर्मम हत्याकांड में 110 फ़िलिस्तीनी शहीद और लगभग 1 हज़ार लोग घायल हुए।

 

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22 आबान सन 1344 हिजरी शम्सी को ईरान के विख्यात लेखक, शोधकर्ता और साहित्यकार सईद नफीसी का 71 वर्ष की आयु में निधन हुआ। वे उच्च स्तीय शिक्षा के लिए फ्रांस गये। जहॉ उन्होंने राजनीति पढ़ी। वहॉ से ईरान वापस आकर वे विश्वविद्यालय में शिक्षा देने लगे। साथ ही वे ईरान सांस्कृतिक विभाग से भी जुड़े रहे। उन्होंने लगभग 180 पुस्तकों का संकलन और अनुवाद किया। उन्होंने तारीखे बैहक़ी, क़ाबूसनामा, ग़ज़लियाते उत्रार आदि पुस्तकों का संपादन किया। सईद नफ़ीसी ने इसके अतिरिक्त भी कई पुस्तकें छोड़ी हैं।

 

22  आबान वर्ष 1373 हिजरी शम्सी को ईरान की प्राचीन भाषाओं के जाने माने उस्ताद डाक्टर मेहरदाद बहार का निधन हुआ। वे प्रसिद्ध ईरानी कवि मलिकुशोअराये बहार के पुत्र थे इसी लिए बाल्यकाल से ही सांस्कृतिक एवं साहित्यिक वातावरण में उन का पालन पोषण हुआ। मेहरदाद बहार ने उच्च शिक्षा लन्दन विश्वविद्यालय से प्राप्त की। स्वदेश लौटने के बाद वे ईरान की सांस्कृतिक संस्था और कला एवं साहित्य से संबंधित सांस्कृतिक केंद्र में संलग्न हो गये और विश्वविद्यालय में भी पढ़ाने लगे। डाकटर बहार ने ईरान की माध्यमिक एवं प्राचीन भाषाओं में बहुत से शोघ एवं अनुसंधान किए हैं। उन की महत्वपूर्ण रचनाओं में असातीर ईरान और सुख़नी चंद दरबारये शाहनामे की ओर संकेत किया जा सकता हैं।

 

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26 रबीउल अव्वल वर्ष 1330 हिजरी क़मरी को प्रख्यात मुस्लिम विद्वान आयतुल्लाह अबुल मकारिम ज़न्जानी का निधन हुआ। उनका जन्म वर्ष 1255 हिजरी क़मरी में उत्तर पश्चिमी ईरान के ज़न्जान नगर में हुआ था और उन्होंने इसी नगर में आरंभिक शिक्षा प्राप्त करने के बाद उच्च शिक्षा के लिए इराक़ के नजफ़ नगर का रुख़ किया। नजफ़ में उन्होंने शैख़ मुर्तज़ा अन्सारी जैसे अपने काल के प्रख्यात विद्वानों से शिक्षा ग्रहण की। अपने पिता की मृत्यु के पश्चात वे ज़न्जान नगर के सबसे वरिष्ठ धर्म गुरू बने और अत्याचारी शासकों से संघर्ष करते रहे। आयतुल्लाह अबुल मकारिम ज़न्जानी ने मख़ारिजुर्रिज़वान और मिफ़्ताहुज़्ज़फ़र जैसी पुस्तकें लिखी हैं।

 

26 रबीउल अव्वल सन 344 हिजरी क़मरी को विख्यात इस्लामी इतिहासकार इब्ने सम्माक का बग़दाद में निधन हुआ। उनके जन्म स्थल, जन्म तिथि तथा जीवन के पहलुओं के बारे में अधिक जानकारी उपलब्ध नहीं है। उनके बारे में केवल इतना ही पता है कि वे बग़दाद में रहते थे और उन्होंने बड़े विद्वानों की सेवा में उपस्थित होकर ज्ञान प्राप्त किया। उन्होंने इसी प्रकार बड़े लोगों का प्रशिक्षण किया। इब्ने सभ्भाक की विख्यात पुस्तक का नाम अलअमाली है।

 

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