Nov १३, २०१७ ०२:०० Asia/Kolkata
  • शुक्रवार- 13 नवम्बर

13 नवंबर वर्ष 1975 को विश्व स्वास्थ्य संगठन ने एशिया के चेचक मुक्त होने की घोषणा की है।

13 नवंबर सन 1743 ईसवी को फ़्रांसीसी रसायन शास्त्री ऐंटोडन लौरेन डी लेवोज़िये का जन्म हुआ।  उनको फ्रांस की क्रान्ति के विरोध के कारण 1794 ईसवी में फॉसी दे दी गयी।

 

13 नवंबर वर्ष 1918 को आस्ट्रिया गणराज्य बना। यह मध्य यूरोप में स्थित एक देश है। इसकी राजधानी वियना है। इसकी राज भाषा जर्मन है। देश का अधिकतर भाग ऐल्प्स पर्वतों से ढका हुआ है। यूरोपीय संघ के इस देश की मुद्रा यूरो है। इसकी सीमाएं उत्तर में जर्मनी और चेक गणराज्य से, पूर्व में स्लोवाकिया और हंगरी से, दक्षिण में स्लोवाकिया और इटली और पश्चिम में स्वीटरज़लैंड और लीश्टेनश्टाइन से मिलती है।

 

13 नवंबर सन 1924 ईसवी को भारत के स्वतंत्रता संग्राम की नेता तथा मौलाना मुहम्मद अली व शौकत अली जौहर की माता आबिद बेगम का निधन हुआ। वे बी अम्मा के नाम से विख्यात थीं। 28 वर्ष की आयु में वे विधवा हो गयीं परंतु उन्होंने अपने बच्चों को उच्च स्तरीय शिक्षा दिलायी। उनके दोनों बेटों मौलाना मोहम्मद अली जौहर व मौलाना शौकत अली जौहर ने भारत की स्वतंत्तता की लड़ाई में प्रभावशाली भूमिका निभाई।

 

13 नवंबर सन 1831 ईसवी में स्कॉटलैंड के भौतिकशास्त्री तथा गणितज्ञ मैक्सवेल का जन्म हुआ।

 

13 नवंबर सन 1970 ईसवी को बांग्लादेश में एक भीषण चक्रवात आया जिसमें लगभग दो लाख लोग हताहत हो गये। इस चक्रवात से भारी आर्थिक हानि भी हुई।

 

13 नवंबर वर्ष 1975 को विश्व स्वास्थ्य संगठन ने एशिया के चेचक मुक्त होने की घोषणा की है। चेचक का रोग बहुत ही प्राचीन है जिसे शीतला, बड़ी माता और स्माल पाक्स भी कहा जाता है। सन्‌ १७१८ में यूरोप में लेडी मेरी वोर्टले मौंटाग्यू ने पहली बार इसकी सुई (inoculation) प्रचलित की और सन्‌ 1796 में जेनर ने इसके टीके का आविष्कार किया। चेचक विषाणु जनित रोग है ,इसका प्रसार केवल मनुष्यों में होता है ,इसके लिए दो विषाणु उत्तरदायी माने जाते है वायरोला मेजर और वायरोला माइनर।

इस रोग के विषाणु त्वचा की लघु रक्त वाहिका,मुंह ,गले पर प्रभाव दिखाते हैं।  चेचक या small pox रोग अत्यंत प्राचीन है। आयुर्वेद के ग्रंथों में इसका वर्णन मिलता है। मिस्र में १,२०० वर्ष ईसा पूर्व की एक ममी पाई गई थी, जिसकी त्वचा पर चेचक के समान धब्बे मौजूद थे। विद्वानों ने उसका चेचेक नाम दिया था। चीन में भी ईसा के कई शताब्दी पूर्व इस रोग का वर्णन पाया जाता है। छठी शताब्दी में यह रोग यूरोप में पहुँचा और १६वीं शताब्दी में स्पेन निवासियों द्वारा अमरीका में पहुँचाया गया। 

चेचक विषाणु जनित रोग है, इसका प्रसार केवल मनुष्यों में होता है, इसके लिए दो विषाणु उत्तरदायी माने जाते है वायरोला मेजर और वायरोला माइनर इस रोग के विषाणु त्वचा की लघु रक्त वाहिका, मुंह, गले में असर दिखाते है, मेजर विषाणु ज्यादा मारक होता है, इसकी म्रत्यु दर ३०-३५% रहती है, इसके चलते ही चेहरे पर दाग, अंधापन जैसी समस्या पैदा होती रही है, माइनर विषाणु से मौत बहुत कम होती है।

 

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23 आबान सन 1294 हिजरी शम्सी को ईरान की तीसरी संसद इस देश की क़ाजार शासन श्रृंखला के अंतिम नरेश अहमद शाह के आदेश पर भंग कर दी गयी। यह अनुचित क़दम अहमद शाह ने ब्रिटेन और रुस के मंत्रियों से भेंट के पश्चात उठाया। उस समय ब्रिटेन और रुस का प्रयास था कि प्रथम विश्व युद्ध में वे ईरान को जर्मनी के विरुद्ध मैदान में खींच लें। इसी उद्देश्य से इन देशों ने अपनी सेनाएं ईरान रवाना कीं। दक्षिणी ईरान में ब्रिटेन ने और उत्तरी ईरान में रुस ने अपनी सेना पहुँचाई। रुस की सेना राजधानी तेहरान की ओर बढ़ी इस पर कुछ सांसदों ने विरोध प्रकट करते हुए राष्ट्रीय सुरक्षा समिति का गठन किया। किंतु यह समिति कुछ न कर सकी क्योंकि अयोग्य राजनेताओं के सत्ता में होने के कारण ईरानी सरकार बहुत कमज़ोर हो चुकी थी। अंतत: वर्ष 1917 में रुस में क्रान्ति आने के बाद इस देश की सेनाएं उत्तरी ईरान से वापस गयीं किंतु दक्षिणी ईरान में ब्रिटिश सेना यथावत बनी रही और उसने अपनी पिटठू सरकार को सत्ता में पहुँचा कर ईरान में अपने साम्राज्यवादी हितों की पूर्ति का प्रयास किया।

 

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27 रबीउल औवल सन 682 हिजरी क़मरी को एन्डलूशिया के गणितज्ञ व खगोल शास्त्री मोहियुद्दीन मग़रेबी का निधन हुआ। उन्होंने अपनी मातृभूमि ऐंजलेस में जो वर्तमान स्पेन का एक भाग है, इस्लामी विषयों की शिक्षा प्राप्त की किंतु चूंकि गणित और खगोल शास्त्र से उन्हें बहुत आधिक लगाव था इस लिए उनका ध्यान इन्ही विषयों की ओर आकृष्ट हो गया। उन्होंने कुछ दिन तक ईरान के विख्यात खगोल शास्त्री ख़्वाजा नसीरुद्दीन तूसी के साथ ईरान के मराग़े नगर की वेधशाला में सहायक के रूप में काम किया। इस अवधि में उन्होंने बड़े अनुभव प्राप्त किये। उन्होंने महत्वपूर्ण पुस्तकें लिखी हैं जिनमें शक्लुल क़ेता आदि का नाम लिया जा सकता है। उनकी और भी पुस्तकें हैं जिनका अंग्रेज़ी और दूसरी भाषाओं में अनुवाद किया जा चुका है।

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