Nov १२, २०१६ १३:०१ Asia/Kolkata
  • शनिवार- 14 नवम्बर

14 नवम्बर सन 1973 ईसवी को ब्रिटेन की राजकुमारी एन ने आम नागरिक से शादी की। इससे पहले राजघराने में कभी एसा नहीं हुआ था।

14 नवम्बर सन 2006 ईसवी को भारत तथा पाकिस्तान के विदेश सचिवों ने नई दिल्ली में एंटी टेररिज़्म मैकेनिज़्म बनाने पर सहमति की।

14 नवम्बर सन 1533 ईसवी को स्पेन के खोजकर्ताओं ने दक्षिणी अमरीका के उत्तर पश्चिम में स्थित एक्वाडोर का पता लगाकर उसे अपने उपनिवेश में शामिल कर लिया। लगभग 3 शताब्दियों तक एकवाडोर पर स्पैनिश साम्राज्य का नियंत्रण रहा परंतु सन 1822 में साइमन बोलिवर के नेतृत्व में होने वाले जनान्दोलन के कारण यह क्षेत्र स्वतंत्र हो गया। इस प्रकार एकवाडोर ग्रेट कोलम्बिया फेडरेशन में शामिल हो गया परंतु 8 ही वर्षों बाद फेडरेशन को समाप्त कर दिया गया और एकवाडोर सहित फेडरेशन के सभी सदस्य अलग हो गये और एकवाडोर में लोकतंत्र स्थापित हो गया।

 

14 नवंबर वर्ष 1889 को भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरु का जन्म उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद में हुआ था। जवाहरलाल नेहरू ने दुनिया के कुछ बेहतरीन स्कूलों और विश्वविद्यालयों में शिक्षा प्राप्त की थी। उन्होंने अपनी स्कूली शिक्षा हैरो से, और कॉलेज की शिक्षा ट्रिनिटि कालेज लंदन से पूरी की थी। इसके बाद उन्होंने अपनी लॉ की डिग्री कैंब्रिज विश्वविद्यालय से पूरी की। जवाहरलाल नेहरू 1912 में भारत लौटे और वकालत आरंभ की। 1917 में जवाहर लाल नेहरू होम रूल लीग में शामिल हो गए। राजनीति में उनकी असली दीक्षा दो साल बाद 1919 में हुई जब वे महात्मा गांधी के संपर्क में आए। उस समय महात्मा गांधी ने ब्रिटिश क़ानून के विरुद्ध एक अभियान शुरू किया था। जवाहर लाल नेहरू ने 1920-1922 में असहयोग आंदोलन में सक्रिय रूप से भाग लिया और इस दौरान पहली बार गिरफ्तार किए गए। कुछ महीनों के बाद उन्हें रिहा कर दिया गया। 1926 में उन्होंने ब्रिटिश अधिकारियों से सहयोग की कमी का हवाला देकर त्यागपत्र दे दिया। सन् १९४७ में भारत को स्वतंत्रता मिलने पर जब भावी प्रधानमंत्री के लिये कांग्रेस में मतदान हुआ तो सरदार पटेल को सर्वाधिक मत मिले। उसके बाद सर्वाधिक मत आचार्य कृपलानी को मिले थे किन्तु गांधीजी के कहने पर सरदार पटेल और आचार्य कृपलानी ने अपना नाम वापस ले लिया और जवाहर लाल नेहरू को प्रधानमंत्री बनाया गया। उन्हें वर्ष 1955 में भारत रत्न से सम्मनित किया गया। 27 मई वर्ष 1964 को उनका निधन हो गया।

 

14 नवम्बर सन 1716 ईसवी को वेल्हम लाएबनिटज़ नामक जर्मन गणितज्ञ और दर्शनशास्त्री का 70 वर्ष की आयु में निधन हुआ। वे वर्ष 1646 ईसवी को पैदा हुए और 15 वर्ष की आयु से गणित तथा दर्शनशास्त्र का गहरा अध्ययन आरंभ कर दिया और इन विषयों में डॉक्ट्रेट की डिग्री ली।

 

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24 आबान सन 1358 हिजरी शम्सी को ईरान में जासूसी का अड्डा बन चुके अमरीकी दूतावास पर ईरानी छात्रों के नियंत्रण पा लेने के कुछ ही दिन बाद अमरीका ने अपने बैंकों में ईरान की सम्पत्ति को ज़ब्त कर लिया। जिसके बाद से ईरान पर अमरीका का आर्थिक दबाव और अधिक व्यापक हो गया। अमरीका की इस कार्रवाई से कुछ ही दिन पूर्व इस देश की शत्रुतापूर्ण नीतियों के कारण ईरान ने अमरीका को तेल देना बंद कर दिया था।

 

24 आबान सन 1358 हिजरी शम्सी को ईरान के संविधान को संकलित और परित करने की प्रक्रिया पूरी हो गयी। संविधान रचयिता समिति द्वारा पारित किये जाने के बाद इस संविधान के बारे में ईरान में जनमत संग्रह कराया गया जिसमें जनता ने भी इस संविधान को स्वीकृति दे दी। इस प्रकार से मानव अधिकार और सिद्धांत तथा इस्लामी शिक्षाओं के आधार पर ईरानी संविधान अस्तित्व में आया।

 

24 आबान वर्ष 1360 हिजरी शम्सी को ईरान के प्रसिद्ध दर्शनशास्त्री , बुद्धिजीवी और लेखक अल्लामा मुहम्मद हुसैन तबातबाई का 80 वर्ष की आयु में निधन हो गया। उनका जन्म ईरान के पश्चिमोत्तरी नगर तबरीज़ में एक शिक्षित घराने में हुआ। उन्होंने आरंभिक शिक्षा प्राप्त करने के बाद धार्मिक शिक्षा और अरबी भाषा को सीखा और उसके बाद इन विषयों को वे पढ़ाने लगे। अल्लामा तबातबाई अपने काल के प्रख्यात दर्शनशास्त्री थे और दर्शनशास्त्र के सिद्धांतों के बारे में उनका अपना दृष्टिकोण होता था। वे अपने काल के दर्शनशास्त्र के प्रसिद्ध प्रोफ़ेसर, क़ुरआन और अन्य इस्लामी ज्ञानों के विख्यात उस्ताद थे। उनकी सबसे प्रसिद्ध पुस्तक अलमीज़ान है जो बीस खंडों पर आधारित है। इस पुस्तक में पवित्र क़ुरआन की विभिन्न आयामों से व्याख्या की गयी है।

 

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28 रबीउल औवल सन 1160 हिजरी क़मरी को इराक़ के काज़मैन नगर में इस्लामी जगत के विख्यात धर्मगुरु सैयद अली तबातबाई का जन्म हुआ। उन्होंने पहले अपने पिता अबुल मआली से शिक्षा ली और फिर वरिष्ठ धर्मगुरुओं की सेवा में उपस्थित होकर वे स्वयं भी वरिष्ठ धर्मगुरू बन गये। उन्होंने बहुत से लोगों को प्रशिक्षित किया  और कई महत्वपूर्ण पुस्तकें लिखीं। उन्होंने रियाज़ुल मसायल नामक पुस्तक लिखी इस लिए उन्हें साहेबे रियाज़ के नाम से जाना जाता है। उन्होंने कई महत्वपूर्ण पुस्तकों पर फ़ुटनोट भी लगाए हैं इनमें मफ़ातीह नामक पुस्तक की ओर संकेत किया जा सकता है।

 

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