Nov १८, २०१७ ०२:०० Asia/Kolkata
  • बुधवार - 18 नवम्बर

18 नवंबर वर्ष 1972 को बाघ को राष्ट्रीय पशु चुना गया।

बाघ जंगल में रहने वाला मांसाहारी स्तनपायी पशु है। यह अपनी प्रजाति में सबसे बड़ा और शक्तिशाली पशु है। यह तिब्बत, श्रीलंका और अंडमान निकोबार द्वीप-समूह को छोड़कर एशिया के अन्य सभी भागों में पाया जाता है। यह भारत, नेपाल, भूटान, कोरिया, अफ़ग़ानिस्तान और इंडोनेशिया में अधिक संख्या में पाया जाता है। इसके शरीर का रंग लाल और पीला मिश्रित होता है। इस पर काले रंग की पट्टी पायी जाती है। वक्ष के भीतरी भाग और पाँव का रंग सफेद होता है। बाघ १३ फ़िट लम्बा और ३०० किलो वजनी हो सकता है। बाघ का वैज्ञानिक नाम पेंथेरा टिग्रिस है। यह भारत का राष्ट्रीय पशु भी है। बाघ शब्द संस्कृत के व्याघ्र का तदभव रूप है।

इसे वन, दलदली क्षेत्र तथा घास के मैदानों के पास रहना पसंद है। इसका आहार मुख्य रूप से सांभर, चीतल, जंगली सूअर, भैंसे जंगली हिरण, गौर और मनुष्य के पालतू पशु हैं। अपने बड़े वजन और ताकत के अलावा बाघ अपनी धारियों से पहचाना जा सकता है। बाघ की सुनने, सूँघने और देखने की क्षमता तीव्र होती है। बाघ अक्सर पीछे से हमला करता है। धारीदार शरीर के कारण शिकार का पीछा करते समय वह झाड़ियों के बीच इस प्रकार छिपा रहता है कि शिकार उसे देख ही नहीं पाता। बाघ बड़ी एकाग्रता और धीरज से शिकार करता है। यद्यपि वह बहुत तेज़ रफ़्तार से दौड़ सकता है, भारी-भरकम शरीर के कारण वह बहुत जल्द थक जाता है। इसलिए शिकार को लंबी दूरी तक पीछा करना उसके बस की बात नहीं है। वह छिपकर शिकार के बहुत निकट तक पहुँचता है और फिर एक दम से उस पर कूद पड़ता है। यदि कुछ गज की दूरी में ही शिकार को दबोच न सका, तो वह उसे छोड़ देता है। हर बीस प्रयासों में उसे औसतन केवल एक बार ही सफलता हाथ लगती है क्योंकि कुदरत ने बाघ की हर चाल की तोड़ शिकार बननेवाले प्राणियों को दी है। बाघ अधिकतर अकेले ही रहता है। हर बाघ का अपना एक निश्चित क्षेत्र होता है। केवल प्रजननकाल में नर मादा इकट्ठा होते हैं। लगभग साढ़े तीन महीने का गर्भाधान काल होता है और एक बार में २-३ शावक जन्म लेते हैं। बाघिन अपने बच्चे के साथ रहती है। बाघ के बच्चे शिकार पकड़ने की कला अपनी माँ से सीखते हैं। ढाई वर्ष के बाद ये स्वतंत्र रहने लगते हैं। इसकी आयु लगभग १९ वर्ष होती है।

 

 

18 नवंबर सन 1839 ईसवी को फ़्रांसीसी सम्राज्य के विरुद्ध अलजीरिया की जनता का दूसरा आंदोलन आरंभ हुआ इसका नेतृत्व अब्दुल क़ादिर बिन मोहियुद्दीन कर रहे थे। फ़्रांस ने इस देश पर नियंत्रण करने के लिए 1830 ईसवी से आक्रमण आरंभ किया था। अब्दुल क़ादिर ने 50 हजार सैनिकों के साथ 1847 ईसवी तक फ़्रांसीसी आक्रमणकारियों का मुक़ाबला किया किंतु अंतत: फ़्रांस ने उन्हें गिरफ़्तार कर लिया। लगभग एक शताब्दी के पश्चात द्वितीय विश्व युद्ध की समाप्ति पर अलजीरिया वासियों द्वारा फ़्रांस के विरुद्ध पुन: संघर्ष आरंभ हो गया और 1962 ईसवी में इस देश को स्वतंत्रता मिल गयी।

 

 

18 नवंबर सन 1903 ईसवी को संयुक्त राज्य अमरीका तथा पनामा गणराज्य के बीच पनामा नहर नामक समझौता हुआ। इस समझौते के अनुसार पनामा नहर पर अमरीका का नियंत्रण हो गया परंतु बाद में 1978 ईसवी को दोनों पक्षों ने दोबारा समझौता किया जिसमें यह तय किया गया था कि 1999 तक पनामा नहर पनामा गणराज्य को दे दी जाए गी। इस तरह यह नहर पनामा गणराज्य को दे दी गयी।

18 नवंबर सन 1956 ईसवी को मोरक्को को स्वतंत्रता मिली। 146 वर्ष ईसा पूर्व यह देश रोम के नियंत्रण में चला गया था परंतु इस्लाम धर्म के उदय तथा विस्तार के पश्चात यह देश इस्लामी सरकार के अधिकार में चला गया और 1921 में फ़्रांस ने इस देश पर अपना क़ब्ज़ा जमा लिया मोरक्को वर्ष 1956 में स्वतंत्रता प्राप्त करने से पहले तक फ़्रांस के अधिकार में रहा।

18 नवंबर सन 1963 ईसवी को जनरल अब्दुस्सलाम आरिफ़ ने इराक़ की सत्ता अपने हाथ में ले ली। एक रक्तरंजित सैनिक विद्रोह द्वारा उन्होंने तत्कालीन इराक़ी शासक अब्दुल करीम कासिम को जान से मरवा दिया। इस तरह वह स्वयं इराक़ के शासक बन गये। अब्दुल करीम कासिम ने भी 1958 में इसी प्रकार के विद्रोह के माध्यम से इराक़ की सत्ता हासिल की थी। जनरल अब्दुस्सलाम आरिफ़ तीन साल बाद एक विमान दुर्घटना में मारे गये और उनके भाई अब्दुर्रहमान आरिफ़ ने उनका स्थान लिया।

 

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28 आबान सन 1368 हिजरी शम्सी को ईरान के हमदान नगर के निकट 5 हज़ार वर्ष प्राचीन जातियों के कुछ चिन्ह मिले जिसके बाद पुरातन विशेषज्ञों के व्यापक प्रयास से बहुत से अवशेष निकाले। यह अवशेष पत्थरों के रूप में हैं जिनपर खुदाई करके चित्र बनाए गये है। विशेषज्ञों के विचार में इन अवशेषों का संबध लगभग 3 हज़ार वर्ष ईसा पूर्व से है। हमदान के ऐतिहाहिक नगर का प्राचीन नाम इकबातान है। यह नगर ईसा पूर्व के काल में कुछ समय तक ईरान की राजधानी था।

 

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2 रबीउस्सानी सन 296 हिजरी क़मरी को अरब शायर व साहित्यकार इब्ने मोतज़्ज़ की एक अब्बासी शासक के आदेश पर हत्या कर दी गयी। इस विख्यात शायर का जन्म सन 247 हिजरी क़मरी में इराक़ के सामर्रा नगर में हुआ था। वे तेरहवें अब्बासी शासक मोतज़्ज़ के पुत्र थे। इब्ने मोतज़्ज़ को शेर शायरी ओर ज्ञान से लगाव था उनका घर साहित्यकारों शायरों और बुद्धिजीवियों से भरा रहता था।

अब्बासी शासक मुक़तफ़ा के निधन के बाद उन्होंने अपने कुछ पिछलग्गुओं के उकसाने पर अपने शासक होने का दावा कर दिया और राजगददी पर क़ब्ज़ा कर लिया किंतु उनके विरोधियों के एक गुट ने विद्रोह करके उन्हें अपदस्थ कर दिया जिसके बाद मुक़तदिर अब्बासी ने सत्ता संभाली और उसी के आदेश पर इब्ने मोतज़्ज़ को मार दिया गया।

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