सोमवार - 23 नवम्बर
23 नवंबर वर्ष 1997 को साहित्य अकादमी पुरस्कार विजेता नीरद सी चौधरी ने अपने जीवन के 100 वर्ष पूरे किये।
23 नवंबर वर्ष 1997 को साहित्य अकादमी पुरस्कार विजेता नीरद सी चौधरी ने अपने जीवन के 100 वर्ष पूरे किये। नीरद चंद्र चौधरी का जन्म 23 नवम्बर वर्ष 1897 को और देहान्त 1 अगस्त वर्ष 1999 को हुआ था। वह बंगाल के एक विद्वान एवं अंग्रेजी-लेखक थे। इनके द्वारा रचित एक जीवनी स्कॉलर एक्स्ट्राऑर्डिनरी के लिये उन्हें सन् 1975 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। नीरद चौधरी को भारत के सबसे क़ाबिल और दक्ष लेखकों में माना जाता है। द ऑटोबायोग्राफ़ी ऑफ़ एन अननोन इंडियन, कॉन्टिनेंट ऑफ़ सर्से, पैसेज टु इंग्लैंड जैसी पुस्तकों के लेखक नीरद चौधरी को भारत में उतना सम्मान कभी नहीं मिल पाया जिसके वो हक़दार थे। नीरद चंद्र चौधरी ने अपनी आत्मकथा 'द ऑटोबॉयोग्राफ़ी ऑफ़ एन अननोन इंडियन' को ब्रिटिश साम्राज्य को समर्पित किया था और तब से उनके ऊपर भारत विरोधी होने का धब्बा जो लगा वह मरते दम तक साफ़ नहीं हो सका। खुशवंत सिंह उन्हें अपना गुरू मानते थे और कहा करते थे कि नीरद बाबू को इस बात में बहुत आनंद आता था कि जब ग़लत कारणों से उनकी आलोचना की जाती थी।
23 नवंबर वर्ष 1976 को फ़्रांस के प्रसिद्ध लेखक और कलाविद आंद्रे मैलरो का निधन हुआ। वे वर्ष 1901 में पेरिस में पैदा हुए थे। मैलरो ने युवा काल में भारत और चीन का दौरा किया जो फ्रांसीसी साम्राज्य के अधीन थे। उन्होंने पूर्वी एशियाई देशों के राजा महराजाओं से युद्ध किया। फ़्रांस के इस लेखक ने स्वदेश लौटने के बाद मनुष्य का भविष्य नामक पुस्तक लिखी। मैलरो ने स्पेन के गृहयुद्ध के दौरान लोकतंत्र समर्थकों का समर्थन किया और द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान भी दो बार वे नाज़ियों के हाथों गिरफ़्तार किए गये और जेल से भागने में सफल रहे। युद्ध समाप्त होने के बाद उन्हें फ़्रांस का सांस्कृतिक मंत्री बना दिया गया। वे लोगों की स्वतंत्रता के समर्थक थे। उन्होंने अपने नावेल में जिसका फ़ारसी अनुवाद है फरियाद हाए सुकूत, कला को मौत और विनाश के विरुद्ध विद्रोह बताया और उनका मानना था कि कला का भविष्य, मनुष्य का भविष्य है। उन्होंने कई अन्य पुस्तकें भी लिखी हैं।
23 नवंबर सन् 960 ईसवी को जर्मनी के नरेश ऑटन प्रथम ने बूहम देश के सैनिकों को पराजित किया और इस देश पर क़ब्ज़ा कर लिया। बूहम जो वर्तमान चेक गणराज्य बन गया है, 16वीं शताब्दी के मध्य तक जर्मनी के अधिकार में रहा। ऑटन ने बूहम के बाद पोलैंड और डेनमार्क को भी अपने अधिकार में कर लिया था।
23 नवंबर सन 1521 ईसवी को फर्नान्डो माज़लान नामक पुर्तग़ाली नाविक की हत्या हुई। 1470 में उनका जन्म हुआ था। उन्होंने 1519 से पॉच जहाज़ों के साथ अपनी समुद्री यात्रा आरंभ की। दक्षिणी अमरीका के तट पर पहुँचने के बाद माज़लान ने एक खाड़ी का पता लगाया जिसका नाम भी उन्हीं के नाम पर माज़लान खाड़ी रख दिया गया। माज़लान और उनके साथी इसी मार्ग से प्रशांत महासागर तक पहुँच गये जहॉ उन्हें कई दिनों तक भूखा रहकर भटकना पड़ा यहॉ तक कि ये लोग फिलिपीन द्वीप समूह तक पहुँचे। फ़िलिपीन के स्थानीय लोगों ने माज़लान को अपने आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप करते देख मार डाला। उनके 160 साथियों में केवल 18 ही जान बचाकर स्पेन पहुँचने में सफल हुए।
23 नवंबर सन 1873 ईसवी को वियतनाम की राजधानी हनोई पर फ़्रांस के सैनिकों का अधिकार हो गया। चीन और भारत में फ़्रांस की वर्चस्ववादी लड़ाइयों के दौरान यह घटना हुई। 19वीं शताब्दी के मध्य से फ़्रांस ने इस इलाक़े के अधिकांश भागों को अपना उपनिवेश बनाने का प्रयास किया। फ़्रांसीसी सैनिकों ने 1885 तक वियतनाम और तोनकेन का अतिग्रहण कर लिया था। 1954 में फ़्रांसीसी सैनिकों को वियतनामी सैनिकों के हाथों भारी पराजय का सामना करना पड़ा जिसके बाद वे यह देश छोड़ने पर विवश हो गये।
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3 आज़र सन 1285 हिजरी शम्सी को ईरान के मजलिस समाचार पत्र के प्रकाशन में बड़ी प्रगति हुई। यह समाचार पत्र राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय समाचारों को प्रकशित करने के साथ ही ईरान की संसद में होने वाली समस्त चर्चाओं को प्रकाशित करता था। इसके सम्पादक अदीबुल ममालिक फराहानी थे जो उस समय के प्रसिद्ध लेखकों में गिने जाते थे।
3 आज़र वर्ष 1363 हिजरी शम्सी को ईरान के प्रसिद्ध संगीतकार मुहम्मद करीमी का निधन हुआ। उन्होंने बचपन में संगीत अपने पिता से सीखी और उसके बाद संगीत के क्षेत्र में अपने ज्ञान को और अधिक विस्तृत किया। उन्होंने ईरानी संगीत के लिए बहुत अधिक कार्य किए।
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7 रबीउस्सानी सन 634 हिजरी क़मरी को ईरान के विख्यात खगोल शास्त्री और अध्ययनकर्ता मुल्ला क़ुत्ब का जन्म हुआ। वे ईरान के दक्षिणी नगर काज़रून में जन्मे थे। उनका पूरा नाम कुत्बुद्दीन महमूद बिन ज़ियाउद्दीन मसउद काज़रूनी था। ईरान में मराग़े ऑबज़रवेटरी के निर्माण के समय वे विद्वानों के साथ मिल कर काम में व्यस्त हो गये। उन्होंने कुछ समय तक इस आबज़रवेटरी में विख्यात खगोल शास्री ख्वाजा नसीरुद्दीन तूसी के साथ सहकारिता की। उन्होंने मिस्र सीरिया और दूसरे देशों की यात्रा के बाद 696 हिजरी क़मरी में अपने देश का रूख किया। उन्होंने कई पुस्तकें लिखी हैं जिनमें निहायतुल इदराक़, शरहे क़ानून इब्ने सीना, शरहे हिक्मतुल इशराक़ सोहरवर्दी का नाम लिया जा सकता है।
7 रबीउस्सानी सन 1230 हिजरी क़मरी को उसमानी साम्राज्य के विरुद्ध सब्रिया में दूसरे विद्रोह का आरंभ हुआ। यह विद्रोह रूस के समर्थन से आरंभ हुआ। पहले तो मलियूश ओबरनोविच के नेतृत्व में ताकाविया में विद्रोह ने ज़ोर पकड़ा और फिर पूरे सर्बिया में फैल गया। सर्बों और उसमानी सेना के बीच विभिन्न झड़पों के बाद अंततः उनके बीच शांति समझौता हुआ। इस समझौते के आधार पर सर्बिया, उसमानी शासन के अधीन राज्य में परिवर्तित हो गया और सर्ब प्रतिनिधियों की एक परिषद गठित करने की अनुमति मिल गई। रूस हमेश बलक़ान में उसमानी शासन के प्रभाव वाले क्षेत्रों में विवाद की आग भड़काने के लिए प्रयासरत रहता था। उसका उद्देश्य उसमानी शासन को कमज़ोर करना था।