तालारे वहदत
तेहरान में स्थित तालारे वहदत नामक भव्य थियेटर का निर्माण सन 1967 में हुआ था।
ईरान के इस मशहूद थियेटर को आर्मीनियाई मूल के ईरानी वास्तुकार Eugene Ftandlyans ने बनाया था। तालारे वहदत के निर्माण में दस वर्षों का समय लगा था। इस नाट्यशाला का आधारभूत ढांचा 15700 वर्गमीटर क्षेत्र में बना हुआ है। इसमें ग्राउन्ड फ़्लोर पर एक बहुत बड़ा हाल है जिसमें कम से कम 900 दर्शकों के बैठने की क्षमता है। यह इमारत तीन मंज़िला है जिसके प्रवेश द्वार पूरब और पश्चिम की दिशाओं में बने हैं। तालारे वहदत में एक मुख्य स्टेज है और इसके अतिरिक्त तीन अन्य स्टेज या डाएस भी हैं। इनके पीछे मेक अप रूम और अभ्यास कक्ष बने हुए हैं।
तालारे वहदत हाल के पिछले भाग में प्रबंधन कार्यालय है। यह कार्यालय सात मंज़िला इमारत में है। इस कार्यालय में तालारे वहदत से संबन्धित आधिकारिक कार्य किये जाते हैं। तालारे वहदत में अबतक देश और विदेश के जानेमाने कलाकार अपनी कला का प्रदर्शन कर चुके हैं।
तआतरे शहर नामक नाकटघर तेहरान के मश्हूर सक्वाएर चहारराहे वलीअस्र पर स्थित है। यह नाटकघर 40 साल पुराना है। सन 1967 में इसका निर्माण कार्य आरंभ हुआ था। तआते शहर नामक नाटकघर के निर्माण में 5 वर्षों का समय लगा। इसका निर्माण, इन्जीनियरों की एक टीम के नेतृत्व में किया गया। इस नाटकघर की वास्तुकला शैली बहुत ही सुन्दर एवं आकर्षक है। तआते शहर की इमारत में आधुनिक एवं पारंपरिक निर्माण शैली का प्रयोग किया गया है। इसके प्रांगण में पत्थरों का फर्श है जबकि इसके किनारे बहुत ही सुन्दर पार्क बना हुआ है। ईरान की वास्तुकला में अति प्राचीनकाल से ही कुछ बातों का विशेष रूप से ध्यान रखा गया है जिसमें प्रकृति और खुले वातावरण को वरीयता प्राप्त है। तआते शहर नामक नाटकघर में भी इसी विषय को विशेष रूप से दृष्टिगत रखा गया है। यहां पर आने वालों को विशेष प्रकार के आनंद का आभास होता है। तआते शहर में एक बड़ा सा पुस्तकालय भी है जिसमें कला से संबन्धित पुस्तकें मौजूद हैं। कलाकार, विशेषज्ञ और आर्ट के विद्यार्थी इस विशेष पुस्तकालय से लाभ उठाते हैं।
तआतरे शहर नामक नाटक के काम्पलेक्स को आरंभ में नाटकों के मंचन के लिए ही बनाया गया था और इसमें केवल एक हाल था। वर्तमान समय में इसमें पांच हाल हैं जहां पर नाटकों का मंचन किया जाता है। मुख्य हाल में 579 लोगों के बैठन की क्षमता है। बाक़ी दूसरे हाल में 120 से 400 लोगों की क्षमता पाई जाती है। कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि तेहरान के चहारराहे वली अस्र पर स्थित तआतरे शहर, ईरान का अति महत्वपूर्ण नाटकघर है जिससे ईरान के बाहर के भी कलाकार परिचित हैं।
जब ईरान में संगीत के बारे में चर्चा हो और उसमें उस्ताद सबा का उल्लेख न किया जाए तो वह बात किसी सीमा तक अधूरी मानी जाएगी। कार्यकर्म के इस भाग में हम आपको ईरान के विख्यात संगीतकार उस्ताद अबुलहसन सबा के बारे में बताने जा रहे हैं।
उस्ताद अबुल हसन सबा, ईरान के पारंपरिक संगीत के जानेमाने गुरू हैं। उस्ताद सबा का जन्म सन 1902 में तेहरान में हुआ था। उनके पिता का नाम अबुल क़ासिम था जो कमालुस्सलतना के पुत्र थे। उस्ताद सबा, महमूद ख़ान सबा के वंशज थे जो नासेरी काल के विख्यात कवि और कलाकार थे। वे शिक्षित होने के साथ ही कलाप्रेमी भी थे। उन्हें संगीत से भी बहुत लगाव था। वे अपने पुत्र अबुलहसन सबा के पहले गुरू थे। उस्ताद सबा एक अच्छे संगीतकार होने के अतिरिक्त क्लासिकल साहित्य के भी जानकार थे। उनको अंग्रेज़ी भाषा का पूर्ण ज्ञान था। ईरान के आधुनिक साहित्य का उस्ताद सबा ने गहन अध्ययन किया था। उस्ताद सबा को नीमा यूशीज से विशेष लगाव था। उस्ताद शहरयार से भी उनके मैत्रीपूर्ण संबन्ध थे।
वैसे तो उस्ताद सबा को वायलन बजाने में दक्षता प्राप्त थी किंतु वे संगीत के अन्य वाद्ययंत्रों को भी बजाना जानते थे। उन्होंने वायलन बजाना हसन ख़ान हंग आफरीन से, तबला बजाना हाजी ख़ान ज़रबी से, बांसुरी को अकबर ख़ान से, सितार को उस्ताद अली नक़ी वज़ीरी से, सारंगी को उस्ताद मिर्ज़ा अब्दुल्लाह तथा ग़ुलाम दवीश से सीखा था।
उस्ताद सबा ने युवाकाल में कमालुलमुल्क नामक स्कूल से आर्ट या चित कला सीखी थी। उनके द्वारा बनाई गई पेंटिंग्स सबा म्यूज़ियम में मौजूद हैं जिनपर पशुओं, पक्षियों और प्राकृतिक दृश्यों को उतारा गया हैं। उस्ताद सबा को संगीत के अतिरिक्त कई अन्य कलाओं का भी ज्ञान था।
सन 1927 में उस्ताद अली नक़ी के आदेश पर वे उत्तरी ईरान के रश्त नगर गए। रश्त में उस्ताद सबा ने आर्ट कालेज खोला। रश्त नगर में वे लगभग दो वर्षों तक रहे। रश्त नगर में रहकर उन्होंने स्थानीय संगीत के बारे में गहन अध्धयन किया। जब वे रश्त से वापस आए तो वहां के स्थानीय संगीत के बारे में बहुत अधिक जानकारी जुटाकर ले आए।
सन 1969 में तेहरान में रेडियो की स्थापना हुई। उन्होंने रेडियो पर वाद्य यंत्र बजाने आरंभ किये। इसी के साथ ही वे संगीत की शिक्षा भी दिया करते थे। अपनी आयु के अन्तिम दिनों में वे अपने घर पर ही संगीत प्रेमियों को शिक्षा दिया करते थे।
ईरान के कई विख्यात कई संगीतकारों ने उस्ताद सबा से शिक्षा प्राप्त की है। उनके मश्हूर शागिर्दों में अली तजवीदी, फ़रामर्ज़े पायूर, हुसैन तेहरानी, हुसैन मलिक, हसन केसाई, ग़ुलाम हुसैन बेनान, रहमतुल्लाह बदीई, मेहदी ख़ालेदी, अताउल्लाह ख़ुर्रम, हुमायूं ख़ुर्रम, दारयूश सफ़ूत और लुत्फ़ुल्लाह मुफ़ख़्ख़म आदि का नाम लिया जा सकता है।
55 साल की आयु में उस्ताद सबा का निधन हो गया। उनकी मृत्यु के बाद उनकी वसीयत के आधार पर उनके घर को सन 1974 में संग्रहालय बना दिया गया। इस संग्रहालय में उस्ताद सबा की निजी वस्तुओं को रखा गया है। सबा संग्रहालय मूल रूप से दो भागों में विभाजित है। एक हिस्से में उनके वाद्य यंत्र, किताबें और दैनिक प्रयोग की वस्तुएं रखी हुई हैं जबकि दूसरे भाग में उस्ताद सबी की पत्नी के हाथों से बनी चीज़ें रखी हुई हैं। उस्ताद सबा संग्रहालय तेहरान की ज़हीरुल इस्लाम नामक सड़क पर स्थित है जो वहां के एक मश्हूर चौरहे बहारिस्तान के निकट है।