Dec १९, २०१६ १६:३२ Asia/Kolkata

इस समय इस्लामी जगत को जिन बड़े ख़तरों का सामना है उनमें तकफ़ीरी गुट और तकफ़ीरी लहर है।

यह लहर सिर्फ़ ख़ुद को विचार व अमल में सही समझती है और दूसरी आस्थाओं तथा उनके अनुयाइयों को अनेकेश्वरवादी व नास्तिक समझते हुए उनका ख़ून बहाना सही समझती है।

इस समय पश्चिमी एशिया और अफ़्रीक़ा में तकफ़ीरी व आतंकवादी गुटों की बढ़ती गतिविधियों के कारण दर्दनाक घटनाएं घट रही हैं। क्षेत्र के कुछ देश ने पश्चिमी देशों के समर्थन से इन तकफ़ीरी गुटों को इस्तेमाल किया है ताकि क्षेत्र के भुगोल को अपने विस्तारवादी हित के लिए बदल दें। यह वह लहर है जिसने इस्लाम के नाम पर किसी अपराध में संकोच नहीं किया और जो भी उनके भ्रष्ट विचारों को नहीं मानता उनका गला काट देती है। तकफ़ीरी लहर मीडिया के स्तर पर भी बहुत सक्रिय है। यह लहर दुनिया के बहुत से देशों से बड़ी संख्या में जवानों को विभिन्न भावनाओं के साथ ख़ुद से जोड़ने में सफल रही है। इस समय इराक़, सीरिया और उत्तरी अफ़्रीक़ा के कुछ देशों में तकफ़ीरी आतंकवादी गुटों में विभिन्न राष्ट्रों के लोग शामिल हैं। मिसाल के तौर पर सीरिया में सक्रिय तकफ़ीरी आतंकवादी गुटों में 80 देशों के सदस्य शामिल हैं। तकफ़ीरी गुट एक ओर अपने नियंत्रण वाले क्षेत्रों में अपना वर्चस्व मज़बूत करने के लिए भय व आतंक फैला रहे और हर संभव बर्बरतापूर्ण अपराध कर रहे हैं तो दूसरी ओर मीडिया के ज़रिए इस्लाम के विभिन्न मतों में ख़ास तौर पर शिया और सुन्नी मत के अनुयाइयों के बीच द्वेष का बीज बो रहे हैं और इस काम में उन्हें सऊदी अरब में फैले वहाबियों की ओर से भारी पैसा मिल रहा है। वहाबियों की ओर से व्यापक समर्थन के ज़रिए तकफ़ीरी व आतंकवादी गुटों ने इस्लामी जगत और इस्लाम धर्म को गंभीर नुक़सान पहुंचाया है। पश्चिम एशिया और उत्तरी अफ़्रीक़ा में संकट के गढ़ या दुनिया के विभिन्न क्षेत्रों में आतंकवादी कृत्यों में दसियों हज़ार मुसलमान और ग़ैर मुसलमान हताहत व विस्थापित हुए हैं। महान सभ्यता के स्वामी देश इराक़ और सीरिया के आधारभूत ढांचे तबाह हो गए हैं।

इससे भी अहम बात यह है कि इस्लाम की न्याय प्रेमी व कृपालु छवि तकफ़ीरी आतंकियों के कृत्यों के कारण धूमिल हुयी है। तकफ़ीरियों ने इस्लामी शिक्षाओं का ग़लत अर्थ समझा और उसके ज़रिए से इस्लाम की चरमपंथ व हिंसा को बढ़ावा देने वाली छवि पेश की है। पश्चिमी मीडिया और सरकारें भी मुसलमान देशों में अपनी हस्तक्षेपपूर्ण नीतियों का औचित्य पेश करने के लिए जान बूझ कर तकफ़ीरी आतंकवादी गुटों के कृत्यों को इस्लाम से जोड़ रही हैं जबकि इस्लाम हर धर्म के लोगों और सारे इंसानों के साथ मेहरबानी, मानवता और शांतिपूर्ण ढंग से जीने का आह्वान करता है।                

पैग़म्बरे इस्लाम द्वारा लाए गए शुद्ध इस्लाम पर आस्था रखने वाले मीडिया पर एक बड़ी ज़िम्मेदारी यह है कि वह तकफ़ीरी गुटों की अस्लियत के बारे में लोगों को बताए और जागरुक बनाए। इसी प्रकार लोगों को यह भी बताए कि तकफ़ीरी गुट इस्लाम की शिक्षाओं का ग़लत अर्थ निकालते हैं। तकफ़ीरी गुटों के उन लोगों के साथ जो उनके विचारों को नहीं मानते, अमानवीय व्यवहार व कृत्य का इस्लाम से कोई लेना-देना नहीं है।

इतिहास के अध्ययन से पता चलता है कि तकफ़ीरी लहर तीन चरण रखती है। तकफ़ीरी लहर पहले चरण में बहुत कम लोगों को नास्तिक कहती है लेकिन हालिया वर्षों में अलक़ाएदा और दाइश जैसे गुटों के प्रकट होने के बाद तकफ़ीरी लहर का दूसरा चरण शुरु हुआ। इस चरण में तकफ़ीरी लहर और तेज़ी से फैली और इस गुट ने उन लोगों को तुरंत नास्तिक कहा जिनके बारे में इस गुट को तनिक भी शक हुआ। तीसरे चरण में सलफ़ीवाद है कि जिसका प्रतीक दाइश को समझा जाता है, पहले शियों, फिर ग़ैर तकफ़ीरी सुन्नियों और सबसे आख़िर में पश्चिम को दुश्मन मानती है। तकफ़ीरी लहर विश्व साम्राज्य व नास्तिकता का मुक़ाबला करने के बजाए ख़ुद मुसालमानों के ख़िलाफ़ खड़ी है और इस लहर को इस्लाम की छवि को ख़राब करने के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है।

तकफ़ीरी लहर ने इस्लाम की छवि ख़राब करने में इस्लाम के दुश्मनों में ख़ास तौर पर ज़ायोनियों की जितनी मदद की उतना नुक़सान ज़ायोनी और पश्चिमी सरकारें इस्लाम को नहीं पहुंचा सकीं। सभी तकफ़ीरी लहरों का आधार एक है और यह आधार सऊदी अरब में फैली वहाबियत है। इस बात के मद्देनज़र कि आज इस्लामी समाज को सबसे ख़तरनाक तकफ़ीरी आतंकवादी गुट दाइश का ख़तरा है, इस कार्यक्रम श्रंख्ला में इस गुट और अन्य तकफ़ीरी गुटों और इसमें अंतर के बारे में आपको बताएंगे।

तकफ़ीरी आतंकवादी गुट दाइश वैचारिक दृष्टि से इस्लामी आस्था और आदेशों की विशेष व्याख्या में सलफ़ीवाद और पवित्र क़ुरआन की आयतों के विदित अर्थ का सहारा लेता है जबकि उसका वैचारिक आधार पवित्र क़ुरआन और पैग़म्बरे इस्लाम के आचरण पर आधारित इस्लाम के मूल सिद्धांतों के ख़िलाफ़ है। तकफ़ीरी गुटों के बारे में चर्चा तकफ़ीरी शब्द पर चर्चा से शुरु करते हैं। तकफ़ीरी शब्द कफ़र से निकला है कि शब्दकोष में इसका अर्थ है छिपाना। उन लोगों को तकफ़ीरी कहा जाता है जो दूसरों को बिना किसी धार्मिक व बौद्धिक तर्क के नास्तिक व अधर्मी कहते हैं। इस्लामी इतिहास में तकफ़ीरी लहर की जड़ इस्लाम के आरंभिक दिनों से मिलती है।          

तकफ़ीरियों की स्पष्ट मिसाल इस्लाम के आरंभिक काल का ख़वारिज नामक गुट है। यह वह गुट है जिसने इस्लामी जगत के ख़लीफ़ा हज़रत अली अलैहिस्सलाम की ख़िलाफ़त के काल में उनके ख़िलाफ़ जंग की। इस घटना की संक्षेप में पृष्ठिभूमि यह है कि सिफ़्फ़ीन नामक जंग में हज़रत अली अलैहिस्सलाम और मुआविया के सिपाहियों के बीच हकमियत अर्थात फ़ैसले का विषय उठा। इस अर्थ में कि एक व्यक्ति हज़रत अली अलैहिस्सलाम और एक व्यक्ति मोआविया की ओर से प्रतिनिधि बने ताकि दोनों पक्षों की फ़ौजों के बीच हुए मतभेद के बारे में फ़ैसला सुनाए। तय यह पाया था कि इस फ़ैसले के लिए पवित्र क़ुरआन के आदेश को आधार बनाया जाएगा लेकिन मोआविया की ओर से प्रतिनिधि अम्र आस के धोखे में आकर हकमियत की प्रक्रिया अपने सही मार्ग से हट गयी और इसका कोई नतीजा नहीं निकला। इस घटना के बाद जिन लोगों ने हज़रत अली अलैहिस्सलाम पर हकमियत की प्रक्रिया को मानने के लिए दबाव डाला था, जब हकमियत का नुक़सानदेह नतीजा देखा तो हज़रत अली अलैहिस्सलाम से कहा कि हमने ग़लती की और हम ईश्वर से प्रायश्चित करते हैं और आप भी प्रायश्चित कीजिए क्योंकि हकमियत की प्रक्रिया के लिए रज़ामंदी ज़ाहिर करके आपने पाप किया। जिस पर हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने कहा, “मैं हकमियत के लिए सहमत नहीं था लेकिन तुम लोगों ने आग्रह किया और मुझे इस बात के लिए मजबूर किया कि मैं हकमियत की प्रक्रिया के लिए रज़ामंदी दूं। साथ ही अस्ल हकमियत पाप नहीं है बल्कि इन दोनों जजों ने ग़लत मार्ग अपनाया और ईश्वर की किताब के ख़िलाफ़ आदेश दिया।”

ख़वारिज ने अपने दावे पर आग्रह करते हुए हकमियत को पाप माना और कहा कि जिसने भी हकमियत को माना उसने पाप किया। चूंकि आदेश देने का अधिकार सिर्फ़ ईश्वर को है और अगर सत्ता को ईश्वर के बंदों के हवाले करें तो हम अधर्मी हो जाएंगे। उन्होंने हज़रत अली अलैहिस्सलाम पर प्रायश्चित करने के लिए दबाव डाला। हज़रत अली उनकी ग़लत इच्छा के सामने नहीं झुके। जिसके नतीजे में उन्होंने हज़रत अली पर तकफ़ीरी या अधर्मी होने का गंभीर आरोप लगाया और उनका आज्ञापालन करने से इंकार कर दिया और वे ख़्वारिज के नाम से जाने जाने लगे। इस तरह ख़वारिज इस्लामी जगत में तकफ़ीरियत की बुनियाद रखने वाले हैं। उनका मानना था कि जो भी बड़ा पाप करता है वह अधर्मी है। उन्होंने कुछ मौक़ों पर पैग़म्बरे इस्लाम के अनुयाइयों पर तकफ़ीरियत का आरोप लगाया।

 

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