तकफ़ीरी आतंकवाद-36
ईश्वरीय धर्म इस्लाम की विशुद्ध शिक्षाओं पर आस्था रखने वाले समस्त धर्मगुरूओं और संचार माध्यमों का दायित्व है कि वे आम जनमत के लिए तकफीरी गुटों की अमानवीय आस्था और उसकी वास्तविक पहचान को स्पष्ट करें।
इसी प्रकार इन धर्मगुरूओं और संचार माध्यमों का दायित्व है कि वे आम- जनमत को यह बतायें कि तकफीरी और आतंकवादी गुटों के घिनौने क्रिया- कलापों का इस्लाम की शिक्षाओं से कोई संबंध नहीं है।
हमने तकफीरी गुटों के अस्तित्व में आने और उनसे इस्लामी जगत को जो खतरा है उसके बारे में बात की थी। पश्चिमी सरकारें जानबूझ कर तकफीरी व आतंकवादी गुटों की हिंसात्मक कार्यवाहियों को इस्लाम से जोड़ती हैं और उसका प्रचार अतिवादी और हिंसाप्रेमी धर्म के रूप में करती हैं जबकि इस्लाम एकेश्वरवाद का निमंत्रण देता है वह न्यायप्रेम और शांति का धर्म है। इस्लाम के समस्त संप्रदायों के धर्मगुरूओं और संचार माध्यमों का एक दायित्व यह है कि वे आम जनमत को तकफीरी गुटों की वास्तविक पहचान और उसकी अमानवीय आस्थाओं से अवगत करायें और यह बतायें कि तकफीरी और आतंकवादी गुटों के क्रिया -कलापों का इस्लाम की शिक्षाओं से कोई संबंध नहीं है।
इस्लाम धर्म समाज की मज़बूती व सुदृढ़ता और इसी प्रकार मुसलमानों के मध्य एकता पर बल देता है इसके बावजूद तकफीरी विचार धारा को इस्लामी समाज की एकता के लिए सदैव ख़तरे के रूप में देखा जाता रहा है। तकफीरी गुट क़ुरआन की आयतों और इस्लामी रवायतों को आधार बनाकर स्वयं को इस्लाम का सच्चा अनुयाई होने का दावा करते हैं और दूसरे मुसलमानों की आस्थाओं पर प्रश्न चिन्ह लगाते हैं। इसी प्रकार वे दूसरे मुसलमानों को अधर्मी, अनेकेश्वरवादी और काफिर बताकर उनकी हत्या को वैध बताते हैं। इस सोच की समीक्ष इस बात की सूचक है कि यह भ्रष्ट मुसलमान पवित्र कुरआन की आयतों के विदित अर्थ को मानते हैं। इसी प्रकार यह गुट उन रवायतों को मानता है जो पवित्र कुरआन की आयतों से मेल नहीं खाती हैं। यही चीज़ें दूसरे मुसलमानों के मुकाबले में तकफ़ीरी गुटों उनमें सर्वोपरि दाइश के गठन, उसके क्रिया- कलापों और दृष्टिकोणों का कारण बनी हैं। सुन्नी धर्मगुरूओं द्वारा पवित्र कुरआन की आयतों, रवायतों और पैगम्बरे इस्लाम की जीवनी का अध्ययन दाइश और तकफीरी गुटों के दृष्टिकोणों के भ्रष्ट होने को स्पष्ट करता है।
तकफीरी गुट पवित्र कुरआन की आयतों, पैग़म्बरे इस्लाम और भले पूर्वजों के आचरण पर बल देते और उन्हें धार्मिक आदेश समझने का स्रोत समझते हैं। इन चीज़ों का अध्ययन ज़रूरी है ताकि वह चीज़ स्पष्ट हो सके जिसके आधार पर तकफीरी दूसरे मुसलमानों को काफिर कहते हैं। दाइश पश्चिमी और कुछ अरब सरकारों के संचार माध्यमों की सहायता से अपने पाश्विक व रुढ़िवादी कार्यों का आधार पवित्र कुरआन की आयतों और पैग़म्बरे इस्लाम के आचरण को बताता है जबकि इन चीज़ों में इस प्रकार की कोई चीज़ नहीं है जिसके आधार पर मुसलमानों को भ्रष्ट और काफिर कहा जाये। इस आधार पर पवित्र कुरआन, इस्लामी रवायतों और पैग़म्बरे इस्लाम की पावन जीवनी की समीक्षा करके तकफीरी गुटों की सोच और इस्लाम की विशुद्ध शिक्षाओं में विरोधाभास को स्पष्ट करना चाहिये।
हालिया दशकों में तकफीरी गुटों के गठन और उनके विस्तार में वहाबियत ने मुख्य भूमिका निभाई है। सऊदी अरब में वहाबियत का संबंध 200 वर्ष पहले से है और इसका मुख्य विचारक मोहम्मद बिन अब्दुल वह्हाब है। वह इब्ने तय्मिया, इब्ने कय्यम और दूसरे अतिवादी सलफी प्रचारकों का अनुसरण करता था परंतु वह सबसे अधिक इब्ने तय्मिया के विचारों से प्रभावित था। वह एकेश्वरवाद और सलफीवाद को जीवित करने का दावा करके इब्ने तय्मिया के विचारों और आस्थाओं का प्रचार करता था। मोहम्मद बिन अब्दुल वह्हाब ने अपने पथभ्रष्ठ विचारों के आधार उस एकेश्वरवाद का प्रचार आरंभ किया जो उसने समझा था न कि उस एकेश्वरवाद का जिसका प्रचार पवित्र कुरआन और पैग़म्बरे इस्लाम ने किया है। वह अपनी भ्रष्ट आस्थाओं के आधार पर दूसरे मुसलमानों को अनेकेश्वरवादी और काफिर कहता था और उनके खून बहाने और उनकी धन- सम्पत्ति लूट लेने को वैध समझता था। मोहम्मद बिन अब्दुल वह्हाब कहता था जो लोग फरिश्तों और पैग़म्बरों को शफाअत करने वाला मानते हैं और उनके माध्यम से ईश्वर का सामिप्य प्राप्त करने का प्रयास करते हैं तो ऐसे लोगों का खून बहाना हलाल और हत्या वैध है।
समस्त तकफीरी धड़ों में एक समान बात यह है कि वे स्वयं को इस्लाम का सच्चा अनुयाइ मानते हैं और उन समस्त धर्मों व सम्प्रदायों के मानने वालों को काफिर कहते व समझते हैं जिनके विचार उनसे नहीं मिलते हैं। तकफीरी धड़े इस्लाम की शिक्षाओं का गलत निष्कर्ष निकाल कर इस्लाम के दुश्मनों के लिए बेहतरीन हथकंडे हैं ताकि वे मुसलमानों के विभिन्न संप्रदायों के मध्य फूट डालने और तनाव उत्पनन कराने के लिए इन पथभ्रष्ट धड़ों का प्रयोग कर सकें। अमेरिका और ब्रिटेन ने सऊदी अरब में वहाबी शासकों की सेवा लेकर और आले सऊद के तेल के डालरों का प्रयोग करके मुसलमानों के विभिन्न संप्रदायों के मध्य फूट डालने के लिए इन धड़ों का अधिक से अधिक प्रयोग किया है। इस धड़े के विचारों और आस्थाओं की तुलना मध्य युगीन शताब्दी के गिरजाघरों की सोच से की जा सकती है। अफगानिस्तान में तालेबान और अलक़ायेदा और उसके बाद इराक एवं सीरिया में दाइश का गठन अमेरिका और ब्रिटेन की नीतियों के परिप्रेक्ष्य में सऊदी अरब की सहायता से हुआ है।
वर्ष 1980 के दशक में जब पूर्व सोवियत संघ ने अफगानिस्तान पर हमला किया था तो उससे लड़ने के लिए बहुत से अतिवादी सलफी गुट अफगानिस्तान रवाना हो गये। उस समय ओसामा बिन लादेन के नेतृत्व में अलकायदा का गठन हुआ और वह बहुत तेज़ी से विस्तृत हुआ। अलकायदा के विचार और आस्था का स्रोत सलफी अतिवाद और वहाबी विचारधारा है और अलकायदा धड़े के चरमपंथी और उसके समर्थक आस्था की दृष्टि से इब्ने तय्मिया और मोहम्मद बिन अब्दुल वह्हाब के अनुयाई हैं। अलकायदा ने जेहाद का ग़लत अर्थ पेश करके विभिन्न देशों में हिंसात्मक और आतंकवादी कार्यवाहियां अंजाम दी हैं।
अलकायदा के अधिकांश सदस्य मध्यपूर्व के अरब देशों के हैं। तालेबान का गठन वर्ष 1994 में उस समय हुआ जब अफ़ग़ान गृहयुद्ध अपने चरम पर था। विचार और आस्था में यह गुट भी अलकायदा की भांति है और इस्लाम की शिक्षाओं से सतही निष्कर्ष निकाल कर उसने अफगानिस्तान में लड़ाकों को इकट्ठा किया। तालेबान सऊदी अरब और क्षेत्र के कुछ देशों की वित्तीय सहायताओं का लाभ उठाकर अफगानिस्तान में तेज़ी से आगे बढ़ा। तालेबान ने अफ़गानिस्तान के विभिन्न प्रांतों पर कब्जा कर लिया यहां तक एक समय वह आया जब पूरे अफ़ग़ानिस्तान पर इस गुट का कब्ज़ा हो गया और उसने वर्ष 1995 में सरकार गठित की। इस गुट ने मज़ार शरीफ और बामियान सहित अपने कब्ज़े वाले क्षेत्रों में दिल दहला देने वाले जघन्य अपराध अंजाम दिये।
वर्ष 2001 में 11 सितंबर की घटना के बाद अमेरिका ने अफगानिस्तान पर हमला करके उसने तालेबान की सरकार का अंत कर दिया। इसके बावजूद अफगानिस्तान के एक बड़े भाग पर तालेबान का अब भी कब्जा है। दाइश तीसरा सबसे बड़ा गुट है जो अलकायदा और तालेबान के बाद इराक में अमेरिकी नीतियों और कार्यवाहियों के नतीजे में अस्तित्व में आया। वर्ष 2003 में अमेरिका ने इराक पर हमला करके इस देश पर कब्जा कर लिया जिसके बाद इस देश में एक प्रकार की अराजकता व्याप्त हो गयी। इस प्रकार के वातावरण में तकफीरी गुटों ने इराक की अशांत स्थिति का दुरुपयोग करके अपनी हिंसात्मक कार्यवाहियों का दायरा बहुत बढ़ा दिया। तकफीरी गुट इराक में सबसे पहले अबू मुसअब ज़रकावी और उसके अधीनस्थ गुट की कार्यवाहियों के परिप्रेक्ष्य में गठित हुआ। अबू मुसअब ज़रकावी ने सबसे पहले जमाअतुत्तौहीद गुट की बुनियाद रखी। दिसंबर वर्ष 2004 में ओसामा बिन लादेन ने ज़रकावी को इराक में अपना प्रतिनिधि नियुक्त किया। इस गुट ने इराक में आतंकवादी कार्यवाहियां करके, सड़कों, बाज़ारों और सार्वजनिक स्थलों पर बहुत अधिक इराकी लोगों विशेषकर इस देश के शीया मुसलमानों की हत्या कर दी। क्रूरता, निर्दयता और हिंसा में ज़रकावी बहुत प्रसिद्ध था। ज़रकावी के अपराधों की भेंट चढ़ने वालों की संख्या इतनी अधिक थी कि उस समय अलकायदा के दूसरे नंबर के व्यक्ति अय्यमन अज़्ज़ाहिरी ने इतनी सारी हत्याओं पर आश्चर्य जताया।
वर्ष 2006 में ज़रकावी के मारे जाने के बाद मुजाहेदीन परिषद ने एक विज्ञप्ति जारी करके उमर अलबगदादी के नेतृत्व में इराक में तथाकथित इस्लामी सरकार के गठन की घोषणा की।