तकफ़ीरी आतंकवाद-37
हमने संक्षेप में इस्लाम के उदय काल के बाद से तकफ़ीरी प्रक्रिया के इतिहास पर प्रकाश डाला था।
हमने यह भी बताया था कि तकफ़ीरी आतंकवादी गुट किस प्रकार से जन्मे।
इराक़ तथा कई अन्य क्षेत्रों में सक्रिय आतंकवादी गुट दाइश का संबन्ध अबू मुसअब ज़रक़ावी से बताया जाता है। ज़रक़ावी एक ख़ूंख़ार और निर्दयी आतंकवादी था। वह जघन्य अपराध करने के लिए जाना जाता था। ज़रक़ावी इतनी बेरहमी से लोगों को यातनाएं देकर मारता था कि स्वयं आतंकवादी उससे घबराते थे। उसके आतंक का अनुमान इस बात से लगाया जा सकता है कि अलक़ाएदा के दूसरे नंबर के नेता एमन अज़्ज़वाहेरी ने ज़रक़ावी द्वारा व्यापक स्तर पर किये जाने वाले जनसंहार के कारण उसकी निंदा की थी। सन 2006 में ज़रक़ावी मारा गया। जब ज़रक़ावी मारा गया तो आतंकवादियों की परिषद ने “अबू उमर अलबग़दादी” के नेतृत्व में इराक़ में तथाकथित इस्लामी सरकार बनाने की घोषणा की। इनके साथ इराक़ के पूर्व तानाशाह सद्दाम के सैनिकों और गुप्तचर संस्था के एजेन्टों ने खुलकर सहयोग किया। इस गुट ने इराक़ में जघन्य अपराध करते हुए बड़े पैमाने पर जनसंहार किये। अप्रैल सन 2010 में “अबू उमर अलबग़दादी” मारा गया। उसके मारे जाने के बाद “अबूबक्र अलबग़दादी” को तथाकथित इस्लामी सरकार का प्रमुख नियुक्त किया गया। सन 2011 में सीरिया संकट आरंभ होने के साथ ही सलफ़ी विचारधारा के अतिवादी गुटों ने एकजुट होना आरंभ किया। फिर यह विभिन्न गुटों में सीरिया पहुंचे और वहां पर आतंकवादी गतिविधिंया शुरू कर दीं। अलक़ाएदा ने सीरिया के भीतर नस्रा फ़्रंट के नाम से अपने आतंकवादी लड़ने के लिए भेजे। स्वयंभू ख़लीफ़ा अबूबक्र बग़दादी ने पहले तो नुस्रा फ़्रंट को अपने साथ मिलाने का प्रयास किया। लेकिन नुस्रा फ़्रेंट ने इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया। इस प्रकार अप्रैल 2013 में आतंकवादी गुट दाइश का जन्म हुआ जिसे आईएसआईएल के नाम से ख्याति मिली जिसका अर्थ है “इस्लामिक स्टेट आफ इराक़ एंड लीवेंट”। बाद में इस आतंकवादी गुट को दाइश के नाम से पुकारा जाने लगा। हालांकि दाइश का जन्म अलक़ाएदा से ही हुआ है किंतु इसकी कुछ टैक्टिक या नीतियां अलक़ाएदा से अलग हैं।
दाइश, नए क्षेत्रों पर अधिकार करने और अपने अधिकार क्षेत्र को अधिक से अधिक विस्तृत करने का पक्षधर है। इस रक्तपिपासू गुट ने अपने नियंत्रण वाले क्षेत्र को विस्तृत करने के उद्देश्य से सीरिया के पूर्वोत्तरी क्षेत्र पर क़ब्ज़ा कर रखा है। इसी प्रकार दाइश ने इराक़ पर हमला करके इस देश के कुछ क्षेत्रों को अपने नियंत्रण में कर लिया। जून 2014 में इराक़ के दूसरे सबसे बड़े नगर मूसिल पर दाइश ने कंट्रोल कर लिया। वहां पर उसने अपने दृष्टिगत तथाकथित इस्लामी सरकार का गठन किया और अबूबक्र बग़दादी को मुसलमानों का ख़लीफ़ा घोषित कर दिया गया। वर्तमान समय में इराक़ और सीरिया के कुछ क्षेत्र दाइश के नियंत्रण में हैं।
इस्लाम के नाम पर रक्तपात करने वाले आतंकवादी गुट दाइश ने इराक़ में अपनी सरकार के गठन के बाद विश्व के विभिन्न देशों और क्षेत्रों से आतंकवादियों को एकत्रित करना आरंभ किया। इस समय सीरिया, विश्व के बहुराष्ट्रीय आतंकवादियों के केन्द्र में परिवर्तित हो चुका है। जानकारों का कहना है कि कुछ देशों के समर्थन और मौन के बिना इस प्रकार से आतंकवादियों को एक स्थान पर एकत्रित करना संभव नहीं है। इस्लाम के नाम पर आतंकवादी गतिविधियां करने वाले गुटों के बारे में यह बात पूरे विश्वास के साथ कही जा सकती है कि वे सब अतिवादी तकफ़ीरी विचारधारा की उपज हैं और यह भी सही है कि उनमें से किसी का भी संबन्ध इस्लाम से नहीं है। यह आतंकवादी गुट जिस प्रकार से जघन्य अपराध कर रहे हैं उससे मानवता कांप रही है और इस प्रकार के अपराध करने का आदेश कोई भी धर्म नहीं देता। तकफीरी विचारधारा से प्रभावित आतंकवादी बहुत ही निर्मम ढंग से बच्चों, बूढों, महिलाओं और पुरूषों की हत्या करते हैं। उन्होंने न जाने कितनी बस्तियों को नष्ट कर दिया और लोगों की धन संपत्ति लूट ली। अकारण उन्होंने न जाने कितनी महिलाओं को दासी बनाकर उनको बेचने का काम आरंभ कर दिया। यह ख़तरनाक आतंकवादी इस समय विश्व शांति के लिए गंभीर ख़तरा बन चुके हैं। विश्व के अन्य क्षेत्रों की तुलना में मध्यपूर्व के लोगों को इन आतंकवादियों से अधिक ख़तरा है।
दाइश और वहाबियत के बीच संपर्क के बारे में प्रिंस्टन विश्वविद्यालय में मध्यपूर्व के मामलों के विशेषज्ञ प्रोफेसर बरनार्ड हेकल कहते हैं कि वास्तव में दाइश एक प्रकार से अनियंत्रित वहाबियत है। वे कहते हैं कि हिंसा, वहाबी विचारधारा का भाग है। इससे पहले कि हम तकफ़ीरी आतंकवादी गुटों के अस्तित्व में आने के बारे में वहाबी विचारधारा की भूमिका का उल्लेख करें यह बताते चलेंकि बहुत सी जगह पर बहाबियत शब्द के स्थान पर सलफ़ी शब्द का भी प्रयोग किया जाता है। इस प्रकार कहा जा सकता है कि सलफ़ी शब्द, वहाबी शब्द से अधिक व्यापक और प्रचलित है। अर्थात सभी वहाबी सलफी हैं किंतु हर सलफ़ी वहाबी नहीं हैं। सलफ़ियों के बीच विभिन्न प्रकार के झुकाव पाए जाते हैं। विश्व में पाए जाने वाले मुसलमानों में वहाबियों की संख्या बहुत ही कम है। वहाबी विचारधारा को विश्व में फैलाने में सऊदी अरब के शासकों का बहुत बड़ा हाथ है। सऊदी शासक, पूरे विश्व में वहाबी विचारधारा के सबसे बड़े वित्तीय पोषक हैं। वहाबी विचारधारा वाले समस्त आतंकवादी गुट, उस वहाबी विचारधारा से प्रभावित हैं जिसे सऊदी अरब ने जन्म दिया है। वहाबी शिक्षाओं और दाइशी आतंकवाद के बीच निकट संपर्क है। इस्लाम के नाम पर हिंसक एवं आतंकवादी गतिविधियां करने वाले, सऊदी धर्मगुरूओं के फ़त्वों के आधार पर हत्याएं और जनसंहार करते हैं। इस आधार पर यह कहा जा सकता है कि सऊदी मुफ़्ती, अपने फ़त्वों के आधार पर इस्लाम के भीतर मतभेद फैला रहे हैं। यहां पर हम सऊदी अरब के मुफ़्तियों के कुछ फ़त्वों का उल्लेख करने जा रहे हैं।
सऊदी अरब के सबसे बड़े मुफ़्ती का नाम अबदुल अज़ीज़ आले शैख है। वे सरकारी मुफ़्ती है। उनका मानना है कि शिया मुसलमानों की हत्या करना वैध है। इस सऊदी मुफ़्ती ने अमरीका मुर्दाबाद नारे को हराम बताया है। वे कहते हैं कि किसी भी रैली या प्रदर्शन में अमरीका मुर्दाबाद के नारे लगाना हराम है। सऊदी मुफ़्ती आले शेख़ कहते हैं कि फ़िलिस्तीनियों के समर्थन में प्रदर्शन करना या उनके हित में नारे लगाना ग़लत और अवैध है। उनके अनुसार हिज़बुल्लाह की किसी भी प्रकार से सहायता सही नहीं बल्कि हराम है। सऊदी अरब के सरकारी मुफ़्ती अब्दुल अज़ीज़ आले शेख कहते हैं कि यज़ीद के विरुद्ध इमाम हुसैन का आन्दोलन हराम था। इस मुफ़्ती के अनुसार यज़ीद के विरुद्ध क़याम या आन्दोलन, ग़लत है। यज़ीद के समर्थन में सऊदी अरब के इस मुफ़्ती का फ़तवा एसी स्थिति में है कि जब यह सर्वविदित है कि यज़ीद एक अत्याचारी तानाशाह था। वह एक भ्रष्ट शासक था जो हर प्रकार के अनैतिक कृत्यों में लिप्त था। इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने लोगों को यज़ीद के अत्याचारों से सुरक्षित रखने के लिए उसके विरुद्ध आन्दोलन किया। इस आन्दोलन में इमाम हुसैन और उनके साथी शहीद हुए।
विचित्र बात यह है कि सऊदी मुफ़्तियों ने सदैव ही मुसलमानों की हत्या और उनके बीच मतभेद फैलाने के लिए ही फ़त्वे दिये हैं। उन्होंने कभी भी मुसलमानों के बीच एकता के बारे में कोई काम नहीं किया। वहाबी विचारधारा वाले मदरसे कभी भी मुसलमानों को एकजुट रहने के लिए प्रेरित नहीं करते बल्कि उनके बीच मतभेद फैलाने वाले फ़त्वे देते रहते हैं। 11 जून सन 2008 को 22 वहाबी मुफ़्तियों ने शिया मुसलमानों को काफ़िर घोषित करके उनके विरुद्ध सशस्त्र कार्यवाहियां करने का आह्वान किया था। उनके हिसाब से शियों की हत्या करना वैध है। दूसरे शब्दों में यह कहा जा सकता है कि दुनिया भर के मुसलमानों के बीच मतभेद फैलाने में सबसे बड़ी भूमिका वहाबी मुफ़्तियों की है। इस बारे में मिस्र के अलमक़ाल समाचारपत्र के एडिटर इब्राहीमी ईसा का कहना है कि वहाबियत, इस्लामी जगत का कैंसर है।