Dec २५, २०१६ १७:०८ Asia/Kolkata

प्रतिरोधक अर्थव्यवस्था, भीतरी व बाहरी ख़तरों व झटकों के मुक़ाबले में अर्थव्यवस्था को मज़बूत बनाने के अर्थ में काफ़ी पहले से प्रचलित रही है।

अनेक देश, इस प्रकार की अर्थव्यवस्था के प्रयास में रहे हैं और हर देश ने अपनी संस्थाओं और संसाधनों के आधार पर इस संबंध में विशेष रवैया अपनाया है। ईरान में यह शब्द अपने आर्थिक तात्पर्य के साथ ही क्रांतिकारी बोध भी लिए हुए जो वर्चस्ववादी व्यवस्था के मुक़ाबले में डट जाना और प्रतिरोध करना है। वर्चस्ववादी व्यवस्था, संसार के स्वाधीन देशों की अर्थव्यवस्था को अपने पर निर्भर करके और उसे बाहरी झटके दे कर हमेशा, इन देशों के व्यवहार को नियंत्रित करने के प्रयास में रही है।

प्रतिरोधक अर्थव्यवस्था इस निर्भरता से मुक्ति के लक्ष्य के साथ संसार में वर्चस्ववादी व्यवस्था से मुक़ाबले और इसी प्रकार न्याय, स्वतंत्रता और अध्यात्म जैसी मान्यताओं को सुदृढ़ बनाने के मार्ग में एक क़दम हो सकती है। वर्चस्ववादी व्यवस्था के व्यवहार से पता चलता है कि देशों से अपनी राजनैतिक इच्छाएं मनवाने के लिए आर्थिक प्रतिबंध को एक हथकंडे के रूप में प्रयोग किया जाता है। ईरान पर पश्चिम ने पहली बार 1953 में डाक्टर मुसद्दिक़ के प्रधानमंत्री बनने के बाद प्रतिबंध लगाया था। इसका उद्देश्य तेल उद्योग के राष्ट्रीयकरण की उनकी नीति को ख़त्म करना था। उस समय पश्चिम वालों ने प्रतिबंध और आर्थिक दबाव का सहारा लेकर, केवल तेल की आय रखने वाले ईरान की, तेल उद्योग के राष्ट्रीयकरण की नीति को नियंत्रित करने का प्रयास किया। इस्लामी क्रांति की सफलता के बाद पश्चिमी देशों विशेष कर अमरीका ने इस्लामी गणतंत्र ईरान पर आर्थिक प्रतिबंध लगाने शुरू कर दिए।

किसी भी देश की आर्थिक कमज़ोरी, राजनैतिक लक्ष्यों से लगाए गए प्रतिबंध जैसे आर्थिक दबावों के कारण हो सकती है जिसका एक उदाहरण ईरान के ख़िलाफ़ अमरीका की शत्रुतापूर्ण कार्यवाहियां हैं जिनका उद्देश्य ईरान की प्रगति के मार्ग में बाधाएं डालना रहा है और यह प्रक्रिया परमाणु समझौते के क्रियान्वयन के बावजूद अब भी जारी है।

15 मार्च 1995 को तत्कालीन अमरीकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन ने राष्ट्रीय सुरक्षा के नाम पर एक आदेश जारी करके ईरान के तेल स्रोतों के विकास में मदद पर प्रतिबंध लगा दिया और अमरीकी कंपनियों को ईरान के तेल व गैस उद्योग में किसी भी प्रकार के समझौते और आर्थिक सम्मिलिति से रोक दिया। इस आदेश के आधार पर अमरीका के वित्त मंत्रालय को इस क़ानून के क्रियान्वयन पर नज़र रखने का दायित्व सौंपा गया और सभी अमरीकी सुरक्षा एजेंसियों को उसके साथ सहयोग करने का आदेश दिया गया। इसी क़ानून के अंतर्गत अमरीकी कंपनी कोनोको ईरान के तेल के मैदानों के विकास में 55 करोड़ डालर निवेश के अपने समझौते को रद्द करने और अपना स्थान फ़्रान्स की टोटल कंपनी को देने पर विवश हो गई।

ईरान को पिछले तीन दशकों में थोपे गए युद्ध से लेकर आर्थिक घेरेबंदी, प्रतिबंध और दबाव तक का अनुभव है, इस लिए इस बात की अनदेखी करते हुए कि प्रतिबंध किस सीमा तक समाप्त होंगे या परिस्थितियां किस सीमा तक बदलेंगी, यह काल ईरान की अर्थव्यवस्था के लिए एक अवसर भी है और एक अनुभव भी। इस दृष्टिकोण के साथ ईरान, प्रतिरोधक अर्थव्यवस्था के परिप्रेक्ष्य में अपने आपको आर्थिक दृष्टि से अधिक मज़बूत बनाने के लिए गंभीर क़दम उठाने का संकल्प रखता है। वस्तुतः प्रतिरोधक अर्थव्यवस्था एक ऐसी युक्ति है जो उन विशेष परिस्थितियों में जब अर्थव्यवस्था का बहिष्कार कर दिया गया हो, पैदावार और वितरण जैसी उसकी मूल आवश्यकताओं की पूर्ति कर सकती है और साथ ही आंतरिक स्रोतों व पूंजी से लाभ उठा कर स्वदेशी अर्थव्यवस्था को पैदावार और उपभोग के मैदान में उतार सकती है।

प्रतिरोधक अर्थव्यवस्था एक अन्य आयाम से ऐसा आदर्श व मानक है जिसे देश की आर्थिक स्वाधीनता को केंद्र में रख कर प्रस्तुत किया गया है। बहुत से देशों के लिए ख़तरा बन चुके आर्थिक संकटों के दृष्टिगत प्रतिरोधक अर्थव्यवस्थाक यह विशेषता बहुत अहम है पूंजी तथा पैदावार के स्रोतों के नष्ट होने को रोक सकती है। प्रतिरोधक अर्थव्यवस्था अपने अर्थ की दृष्टि से बाहरी झटकों से अर्थव्यवस्था को मज़बूत बनाने के अर्थ में हैं। उदाहरण स्वरूप 1973 में तेल के झटके और तेल के मूल्य में अत्यधिक वृद्धि के कारण अमरीका व पश्चिमी देशों की अर्थव्यवस्था में ज़बरदस्त मंदी आ गई थी।

अर्थ शास्त्रियों ने इस प्रकार के झटकों के संबंध में विभिन्न प्रकार के विचार पेश किए हैं जिनमें से एक 80 के दशक में अमरीका में रोनाल्ड रीगन के राष्ट्रपति काल में सामने आया। यह दृष्टिकोण, रीगनिज़्म की अर्थव्यवस्था के नाम से भी मशहूर हुआ। उन दिनों इस मत के प्रख्यात अर्थशास्त्री आर्थर लाफ़र ने अमरीकी राजनितिज्ञों को नसीहत की कि वे तेल के मूल्य में वृद्धि से लगने वाले बाहरी झटके से उत्पन्न हुई आर्थिक मंदी से छुटकारे के लिए करों की दर में कमी कर देंगे ताकि एक ओर उत्पादकों का उत्साह वर्धन करके वस्तुएं के वितरण में वृद्धि करें और दूसरी ओर करों में कमी से लोगों की आय में वृद्धि के माध्यम से उपभोग और वस्तुओं की मांग में वृद्धि करें। इस उपाय से अंततः अमरीका 80 के दशक में मंदी के संकट से बाहर निकल आया।

प्रतिरोधक अर्थव्यवस्था की ओर रुझान का इतिहास अपेक्षाकृत काफ़ी पुराना है। विशेष कर हालिया शताब्दी में पश्चिमी एशिया से लेकर यूरोप और पूंजीवादी व्यवस्थाओं यहां तक कि अमरीका जैसे अनेक देशों को ज़बरदस्त आर्थिक झटकों ने हिला कर रख दिया था। दूसरे शब्दों में प्रतिरोधक अर्थव्यवस्था अनेक देशों के लिए एक ज़रूरत में परिवर्तित हो गया है। प्रतिरोधक अर्थव्यवस्था एक दृष्टि से उपभोग के मानक में सुधार, अधिक काम, राष्ट्रीय उत्पादन पर भरोसे और काम व पूंजी के समर्थन की संस्कृति के अर्थ में है लेकिन इस संस्कृति के साथ दूसरी अहम आंतरिक मंच पर और आर्थिक प्रतिबंधों से मुक़ाबले में कूटनैतिक मैदान में इसे व्यवहारिक बनाने की शैली के बारे में है।

इसी बात के दृष्टिगत इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनेई ने भविष्य के निर्णयों में अतीत के अनुभवों व शिक्षाओं से लाभ उठाए जाने की आवश्यकता पर बल देते हुए प्रतिरोधक अर्थव्यवस्था को आर्थिक क्रांति का वैचारिक आधार बताया और कहा कि इसके लक्ष्यों को व्यवहारिक बनाने के लिए मध्यावधि व दीर्घावधि में मूल रणनीतियां आवश्यक हैं। दूसरे शब्दों में प्रतिरोधक अर्थव्यवस्था, आर्थिक निर्रभरता के बिल्कुल विपरीत है। इस आधार पर न केवल यह कि यह पिछड़ती नहीं बल्कि वर्चस्ववादी आर्थिक व्यवस्था के मुक़ाबले में डट जाती है और वर्तमान आर्थिक ढांचे को बदलने और उसे आगामी लक्ष्यों के आधार पर स्थानीय बनाने की कोशिश करती है।

क्षेत्रीय स्तर पर यद्यपि ईरान अपने उपभोग की वस्तुओं का एक भाग आयात करता है लेकिन ऊर्जा और तेल व गैस उद्योग जैसे क्षेत्रों में, जिन पर औद्योगिक देश विशेष रूप से ध्यान देते हैं, अच्छी स्थिति में है। इस आधार पर तेल व गैस की बिक्री से प्राप्त होने वाला सकल घरेलू उत्पाद, क्षेत्र के तेल पैदा करने वाले देशों के आर्थिक विकास का एक महत्वपूर्ण आधार है और अगर इस विकास को आंतरिक उत्पादन का साथ मिल जाए तो देश की प्रगति में चार चांद लग जाएंगे।

यही कारण है कि इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता कच्चे तेल की बिक्री से होने वाली आय पर निर्भरता को कम करने पर अत्यधिक बल देते हैं। उनका कहना है कि यह निर्भरता, सौ साल से चली आ रही हमारी दुखद धरोहर है और ईरान पर प्रतिबंध लगाने के संबंध में भी इसी बात से लाभ उठाया गया। इस समय जो अवसर है हमें उससे लाभ उठाना चाहिए और इस बात की कोशिश करना चाहिए कि आर्थिक दृष्टि से लाभदायक किसी अन्य आर्थिक गतिविधि को तेल का स्थान दे दें। वे इसी प्रकार नॉलेज बेस्ड उद्योगों पर ध्यान दिए जाने और उनके विस्तार पर बल देते हैं कि इनके माध्यम से इस शून्य को किसी हद तक पाटा जा सकता है।

पिछले कई दशकों में ईरान के आर्थिक ढांचे के सबसे संवेदनशील आधारों में से एक अर्थात तेल व गैस के उद्योग को प्रतिबंधों का निशाना बनाया गया है और अमरीका ने इस उद्योग को सीमित व अलग-थलग करने तथा इसकी आय या इस क्षेत्र में पूंजी निवेश को नष्ट करने की कोशिश की है। यह बात हमेशा ईरान के सामने एक गंभीर संकट के रूप में मौजूद रही है और इसके देश की अर्थव्यवस्था को मज़बूत बना कर ही समाप्त किया जा सकता है। इसी लिए इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनेई ने इस्लामी क्रांति के मुक़ाबले में दुश्मन की चालों को समझ कर देश के आर्थिक ढांचे में सुधार के दृष्टिगत ईरान की अर्थव्यवस्था में तेल की भूमिका को परिवर्तित किए जाने को देश की बड़ी आर्थिक नीतियों की प्राथमिकताओं में शामिल कर दिया और बल देकर कहा कि आर्थिक विकास के क्षितिजों तक पहुंच के लिए सटीक कार्यक्रम और नीतियां तैयार की जानी चाहिए।

 

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