युद्ध से बच्चों पर पड़ने वाले प्रभावों
युद्ध के बहुत से खतरनाक व भयावह परिणाम होते हैं उसका एक महत्वपूर्ण दुष्परिणाम आम नागरिकों विशेषकर बच्चों और महिलाओं पर पड़ता है।
इस समय इस स्थिति को इराक, सीरिया और यमन में देखा जा सकता है और इन युद्धों में सबसे अधिक महिलाएं और बच्चे प्रभावित हुए हैं और उनको सबसे अधिक नुकसान पहुंच रहा है। अरब देशों में जो युद्ध जारी हैं विभिन्न रूपों में उनके प्रभाव बच्चों पर पड़े हैं। उदाहरण स्वरूप यूनिसेफ ने मार्च 2016 में घोषणा की है कि युद्ध से विभिन्न रूपों में सीरिया के 84 लाख बच्चे प्रभावित हुए हैं। युद्ध के कारण लगभग 70 लाख सीरियाई बच्चे निर्धनता में जीवन व्यतीत कर रहे हैं। यूनिसेफ ने सितंबर 2015 में घोषणा की थी कि युद्ध के कारण इराक में भी 82 लाख लोग प्रभावित हुए हैं जिनमें 37 लाख बच्चे थे।
अरब देशों विशेषकर सीरिया में युद्ध के कारण जो महत्वपूर्ण परिणाम सामने आये हैं उन्हें दो भागों में बांटा जा सकता है एक आभास किया जाने वाले और दूसरे आभास न किये जाने वाले प्रभाव। एक युद्ध में असैनिकों को सैनिकों से अलग करना कठिन कार्य है। इसी कारण युद्ध का एक परिणाम बच्चों की हत्या और उनका घायल होना है और यह वह परिणाम है जिसका आभास किया जा सकता है।
ऑक्सफोर्ड जांच दल ने वर्ष 2013 के अंतिम दिनों में एक रिपोर्ट प्रकाशित करके घोषणा की थी कि सीरिया संकट के परिणाम में 11 हज़ार बच्चे मारे गये हैं जिनमें 70 प्रतिशत बच्चों की हत्या विस्फोटक हथियारों से हुई जबकि 389 बच्चे फायरिंग में मारे गये और 764 बच्चे मार दिये गये। सात साल से कम आयु के 100 से अधिक बच्चे दी जाने वाली यातना से मर गये। यूनिसेफ ने अपनी अंतिम रिपोर्ट में सीरिया संकट में मरने वाले बच्चों की संख्या लगभग 12 हज़ार घोषणा की है। यूनिसेफ ने “बच्चों के लिए कोई स्थान नहीं” शीर्षक के अंतर्गत घोषणा की है कि वर्ष 2015 में खुल्लम- खुल्ला 1500 सीरियाई बच्चों के अधिकारों का हनन हुआ जिनमें से 60 प्रतिशत से अधिक की हत्या की गयी और उनके शरीर के अंग कटे हुए थे। इनमें एक तिहाई से अधिक बच्चों की हत्या उस समय की गयी जब वे स्कूल थे, या स्कूल से लौट रहे थे या रास्ते में थे।
यमन युद्ध को आरंभ हुए दूसरा साल हो रहा है। इस युद्ध में भी मुख्यरूप से हताहत व घायल होने वाले बच्चे हैं। यूनिसेफ ने यमन युद्ध के एक वर्ष पूरा होने जाने के अवसर पर अपनी रिपोर्ट में घोषणा की थी कि कम से कम 900 यमनी बच्चे मारे जा चुके हैं और यमन युद्ध के पहले वर्ष में 1200 बच्चे घायल भी हुए हैं।
फिलिस्तीनी बच्चे भी उन बच्चों में से हैं जो सदैव जायोनी शासन की विस्तारवादी और युद्धप्रेमी कार्यवाहियों का लक्ष्य बनते हैं। ग़ज़्ज़ा पट्टी पर वर्ष 2008 में जायोनी शासन ने जो हमला किया था उसमें केवल 350 फिलिस्तीनी बच्चे मारे गये थे। ग़ज्ज़ा पट्टी में शैक्षिक संस्थाओं की युनियन ने घोषणा की है कि जायोनी शासन ने वर्ष 2014 में जो 50 दिवसीय ग़ज्ज़ा युद्ध आरंभ किया था उसमें 2200 लोग शहीद हुए थे जिसमें 50 प्रतिशत बच्चे और छात्र थे और उस युद्ध में 2385 फिलिस्तीनी बच्चे व छात्र घायल भी हुए थे जिनमें सैकड़ों छात्रों की शारीरिक स्थिति बहुत खराब है। फिलिस्तीनी बंदियों के समर्थन करने वाले केन्द्र ने भी अंतरराष्ट्रीय बाल दिवस के अवसर पर एक विज्ञप्ति में घोषणा की है कि 11 से 17 वर्ष के लगभग 400 फिलिस्तीनी बच्चे व किशोर जायोनी शासन की जेलों में बंद हैं।
आभास किया जाने वाला युद्ध का एक दुष्परिणाम बच्चों और महिलाओं का बेघर होना है जो युद्ध से पीड़ित देशों की मूल जनसंख्या होते हैं। वास्तव में लोगों के स्थानांतरण और उनके बेघर होने का एक मूल कारण युद्ध है। बेघर होना देश के भीतर और बाहर दोनों हो सकता है।
यूनिसेफ ने मार्च 2016 में घोषणा की थी कि इस समय सीरिया में बेघर होने वालों की संख्या वर्ष 2012 में बेघर होने वालों की अपेक्षा लगभग 10 बराबर है जिनमें आधे बच्चे हैं। सीरिया संकट में 76 लाख से अधिक बच्चे देश के भीतर बेघर हुए। सीरिया के बाहर जो 40 लाख लोग बेघर हुए उनमें लगभग आधे बच्चे हैं। 15 हज़ार से अधिक बच्चे सीरिया की सीमा से अकेले बाहर निकल गये। इसी प्रकार यूनिसेफ ने वर्ष 2015 के जाड़े में घोषणा की थी कि 10 लाख से अधिक इराकी बच्चे इस देश में युद्ध व हिंसा के कारण बेघर हो गये। जैसाकि कहा जा रहा है कि युद्ध व हिंसा के कारण फिलिस्तीन और यमन में भी मुख्य रूप से बच्चे बेघर हुए हैं।
बेघर होना स्वयं में एक बड़ी पीड़ा है और साथ ही वह अपने साथ बड़ी पीड़ा लाती है जैसे खाद्य पदार्थों की कमी, छुआछूत और गैर छुआछूत की बीमारियां, यौन शोषण और परिवारों से बिछड़ जाने आदि की ओर संकेत किया जा सकता है कि यह सबकी सब सीरिया, इराक, यमन और फिलिस्तीनी बच्चों की पीड़ाएं हैं।
बच्चों पर युद्ध का आभास किया जाने वाला एक दुष्परिणाम उनसे जबरदस्ती काम कराना या आमदनी के लक्ष्य से गुटों और हथियार बंद गुटों द्वारा उनसे काम लेना है। संयुक्त राष्ट्र की मानवाधिकार परिषद के हाइकमिश्नर ने अपनी एक रिपोर्ट में घोषणा की है कि दाइश ने इराक के मूसिल नगर में बच्चों के प्रशिक्षण के लिए कम से कम चार बड़े केन्द्र बनाये हैं और समूचे इराक से बच्चों का अपहरण करके इन केन्द्रों में उन्हें प्रशिक्षण देता है।
यूनिसेफ की रिपोर्ट के अनुसार सीरिया युद्ध के आरंभिक वर्षों में सशत्र गुटों ने जिन बच्चों से काम करवाया उनमें से अधिकांश की उम्र 15 साल से कम थी जबकि इन गुटों ने वर्ष 2014 में 15 साल से कम उम्र के बच्चों यहां तक कि सात साल तक के बच्चों से काम लिया। वर्ष 2015 में सशस्त्र गुटों ने जिन बच्चों से काम लिया उनमें आधे से अधिक की उम्र 15 वर्ष से कम थी जबकि यह आंकड़ा वर्ष 2014 में 20 प्रतिशत से कम था।
आतंकवादी गुटों ने एसी स्थिति में बच्चों से जबरदस्ती काम कराया जब वर्ष 1989 में बच्चों के कन्वेन्शन के 38 वें अनुच्छेद में आया है कि सशस्त्र बलों में 15 साल से कम उम्र के बच्चों से काम लेना मना है। इस अनुच्छेद में आया है कि जो देश इस कन्वेन्शन को मानते हैं उन्हें चाहिये कि वे मानवता प्रेमी अंतरराष्ट्रीय कानून के अनुसार युद्ध के समय बच्चों से संबंधित नियमों का सम्मान करें। इसी प्रकार इस कन्वेन्शन के 38 वें अनुच्छेद में आया है कि जिन देशों ने इस कन्वेशन को स्वीकार किया है वे इस बात को सुनिश्चित बनायेंगे कि 15 वर्ष से कम आयु के बच्चे प्रत्यक्ष रूप से युद्धों में भाग न लें। इसी प्रकार इस कन्वेन्शन में आया है कि इस कन्वेशन को स्वीकार करने वाले देश अपनी सशस्त्र सेनाओं में 15 वर्ष से कम उम्र के बच्चों से काम नहीं लेंगे। इसी प्रकार जब 15 वर्ष से ऊपर और 18 साल से कम उम्र के बच्चे हों तो इन देशों को चाहिये कि वे अधिक उम्र वालों से काम लेने को प्राथमिकता दें।
युद्ध का एक दुष्परिणाम खाद्य पदार्थों की कमी और बच्चों सहित बहुत से लोगों को कुपोषण का सामना करना पड़ता है। उदाहरण स्वरूप दो करोड़ 12 लाख यमनी लोगों को खाद्य पदार्थों की कमी का सामना है जबकि 3 लाख 20 हज़ार यमनी बच्चों को कुपोषण का सामना है। यही हालत इराक, सीरिया और फिलिस्तीनी बच्चों की भी है।
बच्चों को गिरफ्तार कर लेना भी युद्ध का आभास किया जाने वाला एक दुष्परिणाम है। यह चीज़ विशेषकर फिलिस्तीनी बच्चों में देखी जा सकती है। उदाहरण स्वरूप अक्सा इंतेफाज़ा आरंभ होने के समय से यानी 28 सितंबर वर्ष 2000 से मई 2016 तक 90 हज़ार से अधिक फिलिस्तीनियों की गिरफ्तारी दर्ज की गयी जिनमें 11 हज़ार की उम्र 18 साल से कम है। वर्ष 2016 के आरंभिक 3 महीनों में जायोनी शासन ने 18 वर्ष से कम उम्र के लगभग 1400 लोगों को गिरफ्तार कर लिया।