युद्ध से बच्चों पर पड़ने वाले प्रभावों-2
बच्चों पर जंग के सबसे बड़े कुप्रभाव में से एक कि जो महसूस नहीं होता, उनका शिक्षा से वंचित होना है।
बच्चों का बेघर होना, मदरसों स्कूल का ध्वस्त होना, शिक्षकों का बेघर होना और बच्चों के फ़ोर्स के रूप में जंग में इस्तेमाल के कारण वे शिक्षा के अधिकार से वंचित हो जाते हैं।
संयुक्त राष्ट्र बाल अधिकार कोष यूनिसेफ़ ने सितंबर 2015 में एक रिपोर्ट में कहा है कि सीरिया, इराक़, लीबिया, यमन, फ़िलिस्तीनी और सूडान में जंग के नतीजे में 1 करोड़ 30 लाख से ज़्यादा बच्चे शिक्षा से वंचित हैं। इन छह देशों में 8500 से ज़्यादा स्कूल हिंसा के कारण बंद पड़े हैं। सीरिया में हर चार में एक स्कूल जंग के शुरु होने के समय से बंद पड़ा है। सीरिया में 52 हज़ार से ज़्यादा शिक्षकों ने अपने पेशे को छोड़ दिया है। आतंकवादी, बच्चों, शिक्षकों और शिक्षा क्षेत्र के कर्मचारियों का अपहरण करके उन्हें यातना देते हैं।
सीरिया की शिक्षा व्यवस्था 2011 में जंग शुरु होने से पहले बहुत प्रभावी थी। 2004 के आंकड़ों के अनुसार, सीरिया में पुरुषों और औरतों में शिक्षा दर क्रमशः 86 और 73.6 फ़ीसद थी। लेकिन मौजूदा आंकड़े दर्शाते हैं कि इस समय सीरिया में 43 लाख में लगभग 28 लाख बच्चे स्कूल नहीं जा रहे हैं हालांकि वे प्राइमरी और माध्यमिक पाठयक्रम में दाख़िले के लिए ज़रूरी शर्त पर पूरे उतरते हैं। यूनिसेफ़ ने 14 मार्च 2016 में एक रिपोर्ट में कहा है कि सीरिया के भीतर 21 लाख और इस देश के बाहर पड़ोसी देशों में 7 लाख सीरियाई बच्चे स्कूल जाने से वंचित हैं।
ह्यूमन राइट्स वॉच ने नवंबर 2015 में एक रिपोर्ट में कहा है कि तुर्की में 20 लाख से ज़्यादा सीरिया के शरणार्थी हैं। इनमें 7 लाख 8000 बच्चों की स्कूल जाने की उम्र है जबकि 4 लाख बच्चे तुर्की में स्कूल नहीं जाते हैं। इस संस्था ने तुर्की भाषा न आना और पैसों की कमी को शरणार्थियों व पलायनकर्ताओं के सामने मौजूद समस्याओं में गिनवाया है। इसी मुश्किल का यमनी, इराक़ी और फ़िलिस्तीनी बच्चों को भी सामना है। यमन में मार्च 2015 से जबसे इस देश पर सऊदी अरब ने हमला किया है, सैकड़ों स्कूल और शैक्षिक केन्द्र बंद हैं।
संयुक्त राष्ट्र बाल अधिकार कोष यूनिसेफ़ ने 2015 में पतझड़ के मौसम में इस बात का उल्लेख करते हुए कि इराक़ में लगभग 20 लाख बच्चे शिक्षा से वंचित रहे हैं, सचेत किया कि इस देश में हिंसा जारी रहने की स्थिति में जल्द ही 12 लाख और बच्चे शिक्षा से वंचित बच्चों की सूचि में शामिल हो जाएंगे। इराक़ के 10 लाख बेघर बच्चों में लगभग 70 फ़ीसद स्कूल जाने से वंचित रहे हैं और 5300 से ज़्यादा स्कूल व शैक्षिक प्रतिष्ठानों को नुक़सान पहुंचा है या ये प्रतिष्ठान शरणार्थियों को शरण देने के लिए इस्तेमाल हो रहे हैं।
जंग का एक और कुपरिणाम जो दिखाई नहीं देता, वह मनोवैज्ञानिक प्रभाव है। मनोवैज्ञानिक प्रभाव और जंग के दूसरे प्रभाव के बीच अंतर यह है कि मनोवैज्ञानिक प्रभाव लंबे समय तक बाक़ी रहता है। मिसाल के तौर पर ग़ज़्ज़ा पट्टी शैक्षिक संघ की 2016 की रिपोर्ट में आया है कि 2014 में 50 दिवसीय ग़ज़्ज़ा जंग के दो साल गुज़रने के बाद भी 5 लाख से ज़्यादा बच्चे और छात्र इस सैन्य अतिक्रमण से उत्पन्न मानसिक पीड़ा में ग्रस्त हैं।
अनाथ होना, यौन हिंसा और उसके कुप्रभाव, समाज से कट जाना, सांस्कृतिक टकराव, बीमारी, स्थानीय लोगों के भेदभावपूर्ण व्यवहार और जबरन शादी, बच्चों पर जंग के मानसिक व लंबे समय तक रहने वाले सबसे ख़तरनाक परिणाम हैं। यही बातें युद्धग्रस्त अरब देशों में भी बच्चों पर चरितार्थ होती हैं।
अरब देशों में जंग के कारण बच्चों के ख़िलाफ़ अपराध ऐसी हालत में किए जा रहे हैं कि अनेक अंतर्राष्ट्रीय संधिपत्रों में बच्चों की देखभाल पर बल दिया गया है। 1924 के जनेवा बाल अधिकार घोषणापत्र, 20 नवंबर 1959 को बाल अधिकार महासभा के घोषणापत्र, विश्व मानवाधिकार घोषणापत्र, अंतर्राष्ट्रीय नागरिक व सामाजिक अधिकार प्रतिज्ञापत्र, अंतर्राष्ट्रीय सामाजिक, आर्थिक व सांस्कृतिक अधिकार प्रतिज्ञापत्र और अंतर्राष्ट्रीय संगठनों के घोषणापत्र में बच्चों के कल्याण से विशेष मामलों को मान्यता दी गयी है।
जंग से बच्चों के प्रभावित होने के बारे में जो बात अहम है वह यह कि अंतर्राष्ट्रीय संगठन और दुनिया के देशों पर बच्चों के अधिकार की रक्षा की ज़िम्मेदारी है लेकिन वे बच्चों की रक्षा के संबंध में अपने मानवीय कर्तव्य को कम ही अंजाम देते हैं।
1989 के बाल अधिकार कन्वेन्शन की 8वीं धारा के दूसरे अनुच्छेद में आया है, “जब भी बच्चा अपनी पहचान से संबंधित अधिकार के ग़ैर क़ानूनी तौर पर सारे या कुछ भाग से वंचित हो तो सदस्य देश वर्णित अधिकार को दिलाने के लिए ज़रूरी क़दम उठाएंगे।” इस कन्वेन्शन की 35वीं धारा में भी आया है, “कन्वेन्शन में शामिल देश बच्चों के अपहरण, उनकी तस्करी व बिक्री को रोकने के लिए ज़रूरी राष्ट्रीय, द्विपक्षीय और अंतर्राष्ट्रीय क़दम उठाएंगे।”
1989 के बाल अधिकार कन्वेन्शन की 36वीं धारा में भी आया है, “कन्वेन्शन में शामिल पक्ष सभी प्रकार के शोषण के मुक़ाबले में कि जिससे बच्चों का कल्याण ख़तरे में पड़ेगा, बच्चों का समर्थन करेंगे।”
इस कन्वेन्शन की 38वीं धारा के चौथे अनुच्छेद में आया है, “कन्वेन्शन में शामिल देश सशस्त्र जंग की स्थिति में आम लोगों की मदद के लिए मानवताप्रेम के अंतर्राष्ट्रीय क़ानून के संबंध में अपनी प्रतिबद्धताओं के अनुसार, जंग के कुप्रभाव से प्रभावित बच्चों की देखभाल को सुनिश्चित करने के लिए सभी व्यवहारिक क़दम उठाएंगे।”
जंग के दूसरे बुरे परिणाम में बच्चों और महिलाओं पर बलात्कार के लिए हमला भी है कि जिसका सामाजिक स्तर पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है। हालांकि इस सामाजिक समस्या की आंकड़े के आधार पर समीक्षा नहीं हो सकती लेकिन आबादी के बहुत बड़े भाग के बेघर होने के मद्देनज़र महिलाओं और लड़कियों के साथ बलात्कार की घटना से इंकार नहीं किया जा सकता। इस सामाजिक नुक़सान का ख़ास तौर पर इस्लामी देशों में यह परिणाम हो सकता है कि जिस लड़की के साथ बलात्कार हुआ है उसे समाज में हाशिए पर ढकेल दिया जाए और उसके हाथ से शादी और परिवार के गठन का अवसर निकल जाए। दूसरे शब्दों में इस नुक़सान का नतीजा इराक़, यमन, फ़िलिस्तीन और सीरिया के लिए दीर्घकालिक हो सकता है।
मिसाल के तौर पर सीरिया के अधिकारियों व संस्थाओं ने बारंबार इस देश के शरणार्थियों के शोषण की ओर से सचेत किया है। तुर्की में शरणार्थी कैंपों में सीरियाई महिलाओं के साथ बलात्कार महामारी की हद तक है जिससे आसानी से पार पाना कठिन लगता है। ये महिलाएं हिंसक व्यवहार के साथ साथ ज़िन्दगी भर बलात्कार के कारण मानसिक पीड़ा झेलेंगी। यही कारण है कि ये महिलाएं बलात्कारियों के बारे में यदा-कदा ही कुछ कहती हैं बल्कि लगभग सभी महिलाएं दूसरी महिला के साथ हुए बलात्कार के बारे में बात करती हैं। यही कारण है कि क्लिनिक और सपोर्ट गुट पीड़ित महिलाओं की बहुत अधिक मदद नहीं कर पाते। जंग का ख़र्च, जंग के दीर्घकालिक व मसहूस न होने वाले परिणाम में से एक है। जंग के कारण युद्धग्रस्त देश भारी आर्थिक ख़र्च उठाने पर मजबूर होते हैं और उसके मूल ढांचे तबाह हो जाते हैं। जंग की समाप्ति के बाद जो देश युद्धग्रस्त होते हैं उन्हें देश की मूल रचनाओं के पुनर्निर्माण पर बहुत अधिक पैसे ख़र्च करने पड़ते हैं कि जिसके नतीजे में नागरिकों के जीवन उत्थान से संबंधित ख़र्च कम हो जाते हें जैसे शिक्षा व स्वास्थ्य सेवा के ख़र्च।
ब्रितानी अख़बार द गार्डियन ने 16 सितंबर 2016 को अपनी टीम के शोध पर आधारित रिपोर्ट में लिखा कि यमन पर सऊदी अरब के हर तीन में से एक हमले में किसी स्कूल, अस्पताल, बाज़ार, मस्जिद या मूल ढांचे निशाना बनते हैं। तकफ़ीरी आतंकवादियों के ख़िलाफ़ सीरियाई सेना की अपरिहार्य जंग के कारण इस देश को 275 अरब डॉलर का ख़र्च उठाना पड़ा है। आंकड़े दर्शाते हैं कि अगर यह संकट 5 साल और जारी रहा तो यह ख़र्च तीन गुना हो जाएगा।