Jan १६, २०१७ १३:४९ Asia/Kolkata

वर्षा या बारिश ईश्वरीय नेमत है जो न सिर्फ़ प्रकृति बल्कि इंसान को भी जीवन व प्रफुल्लता देती है।

बारिश के क़तरे मानो ज़मीन और आसमान को जोड़ते हैं और ईश्वर की अनन्य शक्ति व कृपा का प्रदर्शन करते हैं। बारिश से हर चीज़ में नई जान आ जाती है। जंगल, खेत और चरागाहें बारिश की बर्कत से लहलहा उठती हैं। बारिश की अहमियत के बारे में सिर्फ़ इतना कहना काफ़ी होगा कि अगर सालाना 120000(एक लाख बीस हज़ार) घन मीटर बारिश न हो तो पूरी धरती मरुस्थल बन जाएगी। लेकिन आज यह ईश्वरीय नेमत इंसान की ओर से लापरवाही के कारण कभी नुक़सानदेह बन जाती है, जिसे पर्यावरण की शब्दावली में अम्ल वर्षा कहते हैं।

1852 में रॉबर्ट एंगस स्मिथ ने मैन्चेस्टर साहित्य विद्यालय में अपने भाषण के दौरान सबसे पहले अम्ल वर्षा शब्दावली इस्तेमाल की थी। उन्होंने इस प्रकार की वर्षा को कारख़ानों के वजूद, पत्थर के कोयले के ईंधन के रूप में प्रयोग और वायुमंडल में बड़ी मात्रा में हाइड्रोक्लोरिक एसिड के पहुंचने को ज़िम्मेदार बताया था। उन्होंने सचेत किया था कि इस तरह की वर्षा का ज़मीन पर वनस्पतियों, खाने की चीज़ों और मिट्टी पर ख़तरनाक असर पड़ सकता है। 1987 में वैज्ञानिकों ने कहा था कि सलफ़्यूरिक एसिड और नाइट्रिक एसिड के साथ कार्बन डायऑक्साइड की मात्रा, वर्षा में अम्ल के स्तर को मुख्य रूप से तय करती है।

इंसान के अम्ल वर्षा या एसिड वर्षा के ख़तरनाक परिणाम के बारे में वर्षों से जानकारी होने के बावजूद आज भी एसिड वर्षा का ख़तरा मौजूद है। जीवाष्म ईंधन के इस्तेमाल और दसियों लाख टन सल्फ़र डायऑक्साइड और नाइट्रोजन ऑक्साइड गैसें हवा में पानी के कण से मिल कर सलफ़्यूरिक एसिड और नाइट्रिक एसिड को जन्म देती हैं। ये एसिड बादल के ज़रिए धरती के सुदूर क्षेत्रों तक जाते हैं और बादल के वर्षा का रूप धारण करते ही ज़मीन पर लौट आते हैं। ये अम्ल तेज़ हवाओं के ज़रिए सैकड़ों किलोमीटर दूर तक जा सकते हैं और इस तरह एक देश से दूसरे देश पहुंच जाते हैं। मिसाल के तौर पर स्कैंडिनेवियाई देशों में अम्ल वर्षा का स्रोत इन देशों से बहुत दूर होता है। जो बादल स्वीडन और नॉर्वे में बरसते हैं, ये बादल ब्रिटेन के शेफ़िल्ड और बर्मिंघम में चिमनियों से हवा में पहुंचने वाली लाखों टन कार्बन डायऑक्साइड को अपने साथ लेकर स्कैंडनेवियाई देशों के पहाड़ों तक पहुंच कर बारिश के रूप में बरसते हैं। शोध दर्शाते हैं कि इन देशों की हवा में 75 फ़ीसद से ज़्यादा मौजूद सलफ़र का स्रोत स्कैंडनेवियाई क्षेत्र के बाहर है। वास्तव में ब्रिटेन, और जर्मनी सहित पश्चिमी यूरोप के दूसरे शहरों के औद्योगिक व घनी आबादी वाले क्षेत्र इस सलफ़र का स्रोत हैं। नॉर्वे की भूमि पर हर साल 56000 (छप्पन हज़ार) टन सलफ़र गिरती है कि इसका तीन चौथाई भाग बादलों के ज़रिए बाहर से आता है। विशेषज्ञों के अनुसार, कनाडा में एसिड वर्षा का स्रोत, उत्तरी अमरीका में है। एशिया महाद्वीप में भी इसी तरह की स्थिति है। इस बात का अनुमान है कि 2020 तक एसिड वर्षा का स्रोत बनने वाली गैसों का उत्सर्जन एशिया महाद्वीप में भी दुगुना हो जाएगा।           

आज औद्योगिक व विकसित देश एसिड वर्षा की समस्या से सबसे ज़्यादा घिरे हुए हैं। इन देशों की जनता एसिड वर्षा की पीड़ा झेल रही है। यही कारण है कि लोग जीवन के लिए सबसे ख़तरनाक इस घटना के ख़िलाफ़ कड़ी प्रतिक्रिया दिखा रहे हैं। अब तो इस संदर्भ में कुछ पश्चिमी देशों में नागरिक संगठन व गुट बन गए हैं। ये गुट एसिड वर्षा के विस्तार को रोकने के लिए गठित हुए हैं। अलबत्ता विकासशील देशों में भी प्रदूषण का स्तर बढ़ता ही जा रहा है। ज़ाम्बिया, दक्षिण अफ़्रीक़ा, चीन, भारत और ब्राज़ील में भी एसिड वर्षा एक गंभीर विषय बनती जा रही है।

एसिड वर्षा का पर्यावरण पर भी बहुत ख़तरनाक असर पड़ा है। अध्ययन दर्शाते हैं कि एसिड वर्षा से सबसे ज़्यादा ख़तरा जंगलों को है, ख़ास तौर पर उन जंगलों को जो एसिड वाष्प, शबनम और कुहरे की ज़द पर हैं। एसिड वर्षा के कारण जंगल में पेड़ों से छोटे-छोटे पत्ते धीरे-धीरे कम होते जाते हैं और अगली बहार में वे दुबारा हरे नहीं होते। एसिड वर्षा पेड़ों के पत्तों से होते हुए जंगल की ज़मीन पर उगी हुयी वनस्पतियों को भी ख़राब करती है और धीरे-धीरे उन वनस्पतियों को ख़त्म कर देती है क्योंकि मिट्टी के अम्लीय होने से उसमें मौजूद पोषक तत्व ख़त्म हो जाते हैं। एसिड वर्षा का खेतिहर ज़मीन पर भी बहुत बुरा असर पड़ता है। अलबत्ता शोध दर्शाते हैं कि एसिड वर्षा की स्थिति में उगने वाली वनस्पतियों की अलग अलग प्रतिक्रियाएं रही हैं। कुछ वनस्पतिक उत्पाद की मात्रा बढ़ी जबकि सामूहिक रूप से उत्पाद में कमी देखी गयी। अकसर देखा गया है कि कुछ वनस्पतियों की जड़ एसिड वर्षा के कारण बढ़ना रुक गयी, जिसके नतीजे में वनस्पति का विकास रुक गया यहां तक कि वह वनस्पति ख़त्म हो गयी। एसिड वर्षा पत्तों पर मौजूद उस मोमी परत को भी नुक़सान पहुंचाती है जो विभिन्न प्रकार के वातावरण व वायुमंडल में होने वाले बदलाव के असर से पत्तों की रक्षा करती है। एसिड वर्षा के कारण पत्तों में विभिन्न प्रकार के रोग के ख़िलाफ़ प्रतिरोध करने की शक्ति ख़त्म हो जाती है।        

एसिड वर्षा का जानवरों पर भी गंभीर असर पड़ता है। एसिड वर्षा से आने वाली बाढ़ ज़मीन पर अपने मार्ग को धोती हुयी झीलों में गिरती है। साथ ही यह बाढ़ मिट्टी को काट कर और ज़हरीली धातुओं को मिट्टी से निकाल कर झीलों में पहुंचाती है। इन ज़हरीली धातुओं में एक एलम्यूनियम धातु है जो पानी के ज़रिए मछलियों के श्वसन तंत्र में पहुंच कर उनकी मौत का कारण बनती है। जो क्षेत्र एसिड पदार्थ से दूषित हैं, वहां वसंत के मौसम में झीलों का पानी सबसे ज़्यादा दूषित होता है। क्योंकि सर्दी के मौसम की जमा हुयी बर्फ़ जब पिघलती है तो अपने साथ एसिड भी झीलों में ले जाती है। उन दिनों में झीलों का पानी इसलिए बहुत साफ़ नज़र आता है क्योंकि झील में पहुंचने वाले एसिड के कारण झील में मौजूद वनस्पति और जीव ख़त्म हो जाते हैं। दूसरी ओर दूषित झील में मौजूद मछलियां इंसान का भोजन बनती हैं। इस तरह ये मछलियां अप्रत्यक्ष रूप से इंसान के स्वास्थ्य को नुक़सान पहुंचाती हैं। उन पक्षियों का मांस जिनका खाना दूषित नदियों व जलक्षेत्र में रहने वाले पशु हैं, इंसान के स्वास्थ्य के लिए नुक़सानदे हैं। इस प्रकार के मांस खाने से होने वाली बीमारियों में अस्थ्मा, फेफड़े में सूजन और इन्फ़्लूएन्ज़ा उल्लेखनीय हैं।

पर्यावरण पर एसिड वर्षा का पड़ने वाला एक और दुष्परिणाम इमारतों का घिसना भी है। बिल्डिंगों, पुलों और बांधों में इस्तेमाल हुए पत्थर एसिड वर्षा से घिस जाते हैं और अंततः ये पत्थर अलग हो जाते हैं। एसिड वर्षा का ऐतिहासिक इमारतों पर भी बहुत ही विनाशकारी प्रभाव पड़ता है। एथेन्ज़ की पार्थिनन इमारत, न्यूयॉर्क का स्टैचू ऑफ़ लिबर्टी, जर्मनी के क्लोन शहर की क्लोन गिरजाघर की इमारत, भारत में ताजमहल, रोम में ट्राय की इमारतें एसिड वर्षा से घिस गयीं और उनका रूप बदल गया है। चूंकि इन इमारतों का अग्र भाग चूने के पत्थर के होते हैं, इसलिए रासायनिक क्रिया व प्रतिक्रिया के असर से पाउडर जैसे होकर गिर जाते हैं। यह बिन्दु भी अहम है कि इस प्रक्रिया से केवल इन इमारतों को ही नहीं बल्कि हर प्रकार की इमारत को ख़तरा है।

संयुक्त राष्ट्र संघ की पर्यावरण कार्यक्रम के बारे में पहली रिपोर्ट में जो समीक्षा पेश की है उसके अनुसार, पूरी दुनिया में पर्यावरण की समस्या दिन ब दिन गंभीर होती जा रही है और इस समस्या के लिए इंसान की गतिविधियां ज़िम्मेदार हैं। संयुक्त राष्ट्र संघ की इस रिपोर्ट का शीर्षक है, ‘दुनिया में पर्यावरण का भविष्य’। ये ख़तरे किसी सीमा को नहीं पहचानते और इंसान के स्वास्थ्य पर इतना बुरा असर डालते हैं जिनका मूल्यांकन नहीं किया जा सकता। बड़े खेद की बात है कि सरकारें इस समस्या पर ध्यान दिए जाने की बातें तो करती हैं लेकिन जब इन ख़तरों से निपटने के लिए प्रतिबद्धता की ज़रूरत होती है तो पीछे हट जाती हैं। औद्योगिक देश राष्ट्रीय हितों के नाम पर पीछे हट जाते हैं जबकि विकासशील देश एसिड वर्षा को रोकने के लिए भारी ख़र्चा वहन नहीं कर सकते, लेकिन इनमें से कोई भी बहाना पर्यावरण के लिए ख़तरनाक इस घटना को फैलने से नहीं रोक पाए। समय आ गया है कि मानव समाज अपने भविष्य के बारे में गंभीरता से कोई हल सोचे।