Jan २२, २०१७ १५:५९ Asia/Kolkata

यूरोप में पनाह लेने वाले पलायनकर्तांओं की दयनीय स्थिति-5

शरणार्थियों की एक बड़ी संख्या का यूरोप की ओर रुख़ करना और उनके साथ यूरोपीय सरकारों के बर्ताव से यूरोप का असली चेहरा लोगों के सामने आ गया है। शरणार्थियों के संकट के मामले में यूरोप की बुरी छवि का प्रतिनिधित्व यूनान, पोलैंड, स्लोवाकिया, मैसिडोनिया, सर्बिया, हंगरी और ऑस्ट्रिया कर रहे हैं। ये वे देश हैं, जो शरणार्थियों के साथ बहुत सख़्ती बरत रहे हैं। इनमें सबसे ऊंजी आवाज़ हंगरी के प्रधान मंत्री विक्टर ओरबान की है। उन्होंने सर्बिया से लगने वाली हंगरी की सीमा पर बाढ़ु लगवा दी है और सैनिकों को सशस्त्र करके शरणार्थियों के स्वागत के लिए तैनात कर दिया है।

ओरबान का कहना है कि शरणार्थियों के साथ विनम्रतापूर्ण बर्ताव नहीं किया जाएगा और अगर ज़रूरी हुआ तो केवल कुछ ही शरणार्थियों को स्वीकार किया जाएगा, वह भी सिर्फ़ ईसाई शरणार्थियों को। यह घिनौना चेहरा केवल यूरोपीय अधिकारियों तक सीमित नहीं है। दक्षिणपंथी राजनीतिक पार्टियां और यहां तक की आम लोग भी शरणार्थियों का विरोध कर रहे हैं। हंगरी की एक महिला रिपोर्टर की एक वीडियो क्लिप वायल हुई थी, जिसमें वह शरणार्थियों की वीडियोग्राफ़ी करते हुए उन्हें लातें मार रही थी, यह यूरोप की वास्तविकता की केवल एक छोटी सी झलक है। एमनेस्टी इंटरनेश्नल ने अपनी एक रिपोर्ट में उल्लेख किया है कि यूनान में चरमपंथी गुटों ने शरणार्थियों पर हमला किया है। फ़्रांस प्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक़, एमनेस्टी इंटरनेश्नल के कार्यकर्ताओं ने यूनान के इस द्वीप पर शरणार्थियों पर हमले होते हुए देखे थे। अमरीका की सीबीएस न्यूज़ एजेंसी ने अपनी रिपोर्ट में उल्लेख किया है कि किस प्रकार यूनान के सुरक्षाकर्मी अज्ञात लोगों के रूप में शरणार्थियों को आने से रोकने के लिए उनकी नौकाओं पर हमला करते हैं और नौकाओं का तेल निकालकर उन्हें समुद्र में छोड़ देते हैं। डेनमार्क यूरोप के समृद्ध देशों में से है, लेकिन उसने भी शरणार्थियों को अपनी सीमा में प्रवेश करने से रोक दिया है और तुर्की और लेबनान के अख़बारों में इश्तेहार छपवाकर सीरियाई शरणार्थियों को चेतावनी दी है कि डेनमार्क में कोई आपका स्वागत नहीं करेगा।

यूरोपीय सरकारें शरणार्थियों को रोकने के लिए अप्रवासी क़ानूनों को कड़ा कर रही हैं। अनेक यूरोपीय अधिकारियों के मुताबिक़, यूरोपीय महाद्वीप प्रतिवर्ष 10 लाख शणार्थियों को स्वीकार करने की क्षमता रखता है। स्वीडन के अप्रवासी मामलों के मंत्री मोर्गन यूहान्सन का कहना है कि यूरोपीय संघ प्रतिवर्ष 10 लाख प्रवासियों और शरणार्थियों को स्वीकार करने की क्षमता रखता है। यूरोप को एक महाद्वीप के रूप में शरणार्थी संकट के प्रति अपनी ज़िम्मेदारी निभानी चाहिए। यह दुनिया का सबसे समृद्ध महाद्वीप है और यह बात साफ़ है कि अगर कोई इस संकट को हल कर सकता है तो वह यूरोप है।

लिबरल नीतियों की वजह से हालिया वर्षों में स्वीडन ने शरणार्थियों को स्वीकार करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। 2015 में उसने सबसे ज़्यादा शरणार्थियों को आकर्षित किया है। स्वीडन के अप्रवासी मामलों के मंत्री का बयान, मध्य यूरोपीय देशों की नीतियों के विपरीत है, जो यूरोपीय संघ की ओर से शरणार्थियों को स्वीकार करने के लिए निर्धारित किए गए कोटे का विरोध कर रहे हैं। यूरोपीय कमीशन ने जर्मन चांसलर एगिंला मर्केल के इस प्रस्ताव को पारित कर दिया कि यूरोप आने वाले शरणार्थियों पर होने वाले ख़र्च को यूरोपीय संघ के समस्त सदस्यों पर बांटना चाहिए और जनसंख्या के अनुसार उन्हें शरणार्थियों को भी बांट लेना चाहिए।

हालांकि यूरोप के कई देशों ने इस प्रस्ताव का कड़ा विरोध किया है। यूरोप के महत्वपूर्ण देश और पार्टियां शरणार्थियों के साथ सख़्ती से निपटने की नीति पर अमल कर रहे हैं और दक्षिणपंथी सरकारों और गुटों की नीतियों का समर्थन कर रहे हैं। यह लोग धर्म और हज़रत ईसा की मानवता प्रेमी शिक्षाओं की ओर रूझान रखते हैं। पोप फ़्रांसिस द्वितीय ने यूरोपीय सरकारों से सिफ़ारिश की थी कि युद्ध से भागकर शांति की खोज करने वाले शरणार्थियों का सम्मान किया जाए और उन्हें स्वीकार किया जाए, लेकिन पॉप की इस अपील का भी कोई असर नहीं हुआ। पोप फ़्रांसिस ने अपने साक्षात्कारों में कहा था, यूरोपीय सरकारों को शरणार्थियों को स्वीकार करने की अपनी क्षमता का सही आंकलन करना चाहिए, ताकि सही तौर से इन विदेशी नागरिकों को स्वीकार किया जा सके। यह मानवीयता नहीं है कि हम अपने दरवाज़ों को शरणार्थियों पर बंद कर लें, इसलिए कि राजनीतिक दृष्टि से इसके दीर्घकालिक प्रभाव होंगे। कैथोलिक ईसाईयों के सबसे बड़े धर्मगुरू ने अप्रवासियों और शरणार्थियों के बीच अंतर करने की अपील करते हुए कहा, अप्रवासियों के साथ उनसे संबंधित विशेष नियमों के अनुसार व्यवहार किया जाना चाहिए इसलिए कि अप्रवासन एक अधिकार है, लेकिन लोग युद्ध, भय, भूख और कठिन परिस्थितियों के कारण शरणार्थी बनने के लिए मजबूर होते हैं, इसलिए शरणार्थियों की अधिक देखभाल की ज़रूरत होती है।

पोप फ़्रांसिस की इन अपीलों पर यूरोपीय सरकारों ने कान नहीं धरा। यहां तक कि उन्होंने अप्रवासियों और शरणार्थियों के मामलों में संयुक्त राष्ट्र संघ के अधिकारियों की सिफ़ारिशों को भी कोई महत्व नहीं दिया। शरणार्थियों के मामलों में संयुक्त राष्ट्र संघ के पूर्व कमिश्नर ने इस बात को स्वीकार किया है कि यूरोपीय सरकारों ने शरणार्थियों के मामले को बढ़ा चढ़ाकर पेश किया है और दुष्प्रचार किया है। एंटेनियो गोटरेस ने इस संबंध में उल्लेख किया है कि हमें इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि दुनिया भर में लगभग 1.5 करोड़ शरणार्थियों में से 80 प्रतिशत विकासशील देशों में किसी सहारे के लिए हाथ पैर मार रहे हैं। जबकि यूरोप इससे अधिक शरणार्थियों को स्वीकार करने की क्षमता रखता है। गोटरेस ने यूरोपीय संघ में शरणार्थियों से संबंधित क़ानून में परिवर्तन की ज़रूरत पर बल देते हुए कहा, इस संदर्भ में एक महत्वपूर्ण क़दम यह उठाया जा सकता है कि शरणार्थियों को इस बात की अनुमति दी जाए कि वह आज़ादी से यूरोपीय संघ के देशों में आवाजाही कर सकें। हालांकि यूरोपीय सरकारों की नीति चर्च के प्रमुख धार्मिक नेता और राष्ट्र संघ के आग्रह के विपरीत है।

लगभग समस्त यूरोपीय देश शरणार्थियों के बारे में सख़्त क़दम उठाने के पक्षधर हैं और शरणार्थियों को निकालने के लिए वह तरह तरह की योजनाएं बना रहे हैं। जर्मन चांसलर एगेंला मर्केल का कहना है कि 2017 में ऐसे 2 लाख शरणार्थियों को जर्मनी से निकाल दिया जाएगा जिनके शरण लेने की मांग को ख़ारिज कर दिया गया है। स्लोवाकिया की सरकार ने कहा है कि वह किसी भी मुस्लिम शरणार्थी को स्वीकार नहीं करेगी। कुछ यूरोपीय देशों ने शेंगेन समझौते का उल्लंघन करते हुए शरणार्थियों के प्रवेश को रोकने के लिए कड़े क़दम उठाए हैं। शरणार्थियों के प्रति यूरोपीय देशों की नीतियों ने साबित कर दिया है कि यूरोप मूल्यों और शांति का महाद्वीप नहीं है। भूमध्य सागर में डूबकर मरने की ख़बरें यूरोपीय सरकारों के लिए एक सामान्य सी बात हो गई है। यूरोपीय सरकारें अपनी सारी ताक़त शरणार्थियों को अपनी सीमाओं से दूर रखने पर लगा रही हैं और दूसरे चरण में उन्हें यूरोप से बाहर निकालने में।