Jan २९, २०१७ १४:२८ Asia/Kolkata

कुछ साल पहले पेरू के तटों पर मछुआरों ने इलाक़े में पानी के प्रवाह में कुछ परिवर्तनों का अनुभव किया।

नया साल अभी शुरू ही हुआ था और लोग नए साल का जश्न मना ही रहे थे कि अचानक उन्होंने गर्म जलधारा का अनुभव किया, जिसने ठंडे पानी का तापमान सामान्य कर दिया।

इस इलाक़े में पानी ठंडा एवं पोषक-तत्वों से समृद्ध होता है, जो प्राथमिक उत्पादकों, विविध समुद्री पारिस्थितिक तंत्रों एवं मछुलियों को जीवन प्रदान करता है। इसी कारण इस इलाक़े के मछआरों का कारोबार अच्छा था। लेकिन अप्राकृतिक रूप से गर्म जलधारा ने स्थिति को बदल दिया और उनके कारोबार में घाटा होने लगा। गर्म पानी एक दो साल तक इलाक़े में बना रहा, जिसके परिणामस्वरूप, भारी वर्षा होने लगी, जिसने रेगिस्तानों को हरे भरे जंगलों में बदल दिया। उसके बाद से यह घटना कुछ वर्षों के अंतराल से निरंतर घटने लगी। इस प्रक्रिया को एल नीनो कहा जाता है। एल नीनो स्पैनिश भाषा का शब्द है, जिसका शाब्दिक अर्थ है-छोटा बालक। इसे यह नाम पेरू के मछुआरों द्वारा बाल ईसा के नाम पर दिया गया है, क्योंकि इसका प्रभाव सामान्यतः क्रिसमस के आस-पास अनुभव किया जाता है।

एल नीनो गत 65 वर्षों में पानी का सबसे शक्तिशाली प्रभाव है, जो 2 से 7 साल में धरती की जलवायु में बड़ा उलटफेर करता है। जिसके परिणामस्वरूप, अचानक बाढ़ आ जाती है, सूखा पड़ जाता है, अकाल पड़ जाता है और महामारियां फैलती हैं।

एल नीनो घटना प्रशांत महासागर में घटती है और मध्य लहरों के चक्कर काटने के कारण, पूरी धरती को प्रभावित करती है, हालांकि यह प्रभाव अप्रत्यक्ष रूप से होता है। वास्तव में यह घटना प्रशांत महासागर के दक्षिण में ऊर्जा के बाहर निकलने के कारण घटती है, जो भूमध्यीय क्षेत्र के समुद्र के तापमान और वायुमंडलीय परिस्थितियों में बदवाल का कारण बनती है। ठंडी और गर्म जलधाराओं के प्रवाह और हवाओं के रूख़ में परिवर्तन इस घटना की कुछ निशानियां हैं।

विशेषज्ञों ने हालिया वर्षों में एल नीनो के अस्तित्व में आने के कारणों और जलवायु और महासागर के एक दूसरे पर पड़ने वाले प्रभाव का काफी गहरा अध्ययन किया है। विशेष रूप से जब एल नीनो की घटना होती है इस समय समुद्र की सतह के तापमान में असमान्य परिवर्तन और वायुमंडलीय दबाव में उतार चढ़ाव पर ध्यान केन्द्रित किया गया है। दस्तावेज़ों से पता चलता है कि पिछले 50 वर्षों के दौरान, विश्व में सूखा पड़ने का कारण एक नीनो की घटना है। संभवतः मध्यपूर्व में हालिया वर्षों में सूखे के कारण, एल नीनो है। स्पष्ट चिन्हों से पता चलता है कि बीसवीं सदी में सूखे इलाक़ों में 22 प्रतिशत वृद्धि का मुख्य कारण, 80 के दशक में इस घटना का प्रभाव रहा है। दूसरे शोध से पता चलता है कि एल नीनो की स्थति मध्यपूर्व, हिंद महासागर के पश्चिमी और लाल सागर के पूर्वी इलाक़ों में बारिश का कारण बनी है।

एल नीनो के प्रभाव के समय भूमध्य रेखा में महासागर के ऊपर हवाएं पश्चिम से पूरब की ओर चलती हैं। यह हवाएं गर्म इलाक़ों में सूर्य द्वारा प्रशांत महासागर की सतह पर गर्म होने वाले पानी को अमरीकी महाद्वीप के दक्षिणी और उत्तरी तटों पर ले जाती हैं। पानी के गर्म होने के कारण, बादल पूरब की ओर रुख़ करते हैं, जिसके परिणाम स्वरूप पेरु में बाढ़ आ जाती है और इंडोनेशिया और ऑस्ट्रेलिया में सूखा पड़ने लगता है। एल नीनो की असली पहचान प्रशांत महासागर के भूमध्यीय क्षेत्र और पूरब में भूमध्य रेखा के दोनों तरफ़ तापमान में असामान्य वृद्धि का होना है। यह प्रक्रिया प्रति कुछ वर्षों में घटती है, जिसके परिणाम स्वरूप समुद्र की सतह के पानी का तापमान सामान्य से अधिक हो जाता है और यह तापमान एक साल या उससे भी ज़्यादा तक बाक़ी रहता है और यह अगले साल जनवरी या मार्च तक सामान्य होता है। एल नीनो के दौरान, समुद्र की सतह का 50 किलोमीटर का इलाक़ा प्रभावति होता है।

ईक्वाडोर और पेरू के तटीय इलाक़ों में पानी ठंडा होता है, एवं पोषक-तत्वों से समृद्ध होता है जो कि प्राथमिक उत्पादकों, विविध समुद्री पारिस्थितिक तंत्रों एवं प्रमुख मछलियों को जीवन प्रदान करता है। एल नीनो के दौरान, गर्म पानी को सतह पर जमा होने में मदद मिलती है जिसके कारण ठंडे पानी के जमाव के कारण पैदा हुए पोषक तत्वों को नीचे खिसकना पड़ता है और विभिन्न प्रकार के जलीय जीवों जैसे कि मछलियों का नाश होता है, और अनेक समुद्री पक्षियों को भोजन की कमी होती है। मछलियों के विनाश के कारण, करोड़ों पक्षी तटों पर अपनी जान दे देते हैं, जिससे इक्वाडोर और पेरु को भारी आर्थिक नुक़सान होता है। एल नीनो से कहीं कहीं समुद्री जानवर भी मर जाते हैं। हाल ही में अमरीका के पश्चिम में ओरेगन राज्य के तट पर क़रीब 100 टन भारी 23 मीटर लम्बी व्लेह मरी हुई मिली है। विशेषज्ञों का मानना है कि एल नीनो के कारण यह विशालकाय जानवर काफ़ी कमज़ोर हो गया, जिससे इसकी मौत हो गई। इस प्रक्रिया के कारण, व्हेल के शरीर पर चर्बी की परत 10 सेंटिमीटर तक पिघल गई, जबकि सामान्य रूप से वह 30 सेंटिमीटर तक होती है।

एल नीनो के कारण पहुंचने वाला दूसरा नुक़सान, रेगिस्तानी इलाक़ों में भारी बारिश का होना है, जिसके कारण इन इलाक़ों का आधारिक ढांचा नष्ट हो जाता है और प्रतिकूल परिस्थितियां जन्म लेती हैं। इसी लिए एक नीनो की घटना को एक प्राकृतिक त्रासदी की संज्ञा दी गई है। भारत, पूरबी ऑस्ट्रेलिया, मलेशिया, इंडोनेशिया और पूरे दक्षिण पूरबी एशिया में सूखे का इस घटना से मज़बूत संबंध है। उदाहरण स्वरूप, 1982-1983 में एल नीनो की घटना के कारण उष्णकटिबंधीय वर्षाएं पूर्वी और मध्य प्रशांत महासागर का रुख़ करती हैं। इस घटना के परिणाम स्वरूप 2,000 मिली मीटर की मात्रा में भारी वर्षा होती है और दक्षिणी ईक्वाडोर एवं उत्तर पूर्वी पेरु में भयानक बाढ़ आ जाती है।

एल नीनो ऋतु की भांति है। लेकिन ऐसी ऋतु जिसका कोई समय निर्धारित नहीं है। यही कारण है कि इस घटना के घटने के समय, प्रकृति में कुछ वायुमंडलीय परिवर्तन होते हैं और इन परिवर्तनों के परिणाम स्वरूप, दक्षिण अमरीका के कुछ इलाक़ों और पेरु में ज़्यादा वर्षा होने लगती है और प्रशांत के पश्चिमी भाग में सूखा पड़ने लगता है। इसलिए एन नीनो से होने वाले नुक़सान के मद्दनेज़र, प्रशांत महासागर में जावा के इलाक़े की स्थिति पर नज़र रखकर एक महीन से एक साल तक के जलवायु परिवर्तन की घोषणा की जा सकती है।

सामान्य रूप से एल नीनो के साथ वायुमंडल में कुछ परिवर्तन होते हैं। दक्षिणी प्रवाह पूरी दुनिया में जलवायु परिवर्तन का एक मूल कारण है। 25 वर्ष पूर्व विशेषज्ञों का ध्यान इस घटना की ओर गया और इस बारे में काफ़ी शोध हुआ। इस संदर्भ में पहला क़दम एल नीनो के शुरू होने का अनुमान और मौसम की भविष्यवाणी थी। 1997-98 में एल नीनो के कारण 23 हज़ार लोगों की मौत के बाद, वैज्ञानिकों ने ज़रूरी दिशा निर्देशों के लिए पूरे प्रशांत महासागर में तैरने वाला एक नेटवर्क स्थापित किया। वायुमंडल में होने वाली गतिविधियों और महासागर में होने वाले परिवर्तनों का वैज्ञानिक शोध करके लम्बे समय के लिए मौसम की घोषणा की जा सकती है, जिससे बाढ़ और सूखे से निपटने में महत्वपूर्ण मदद मिलेगी।

मौसम के विशेषज्ञों का मानना है कि एल नीनो घटना फिर से घटने वाली है। इस भविष्यवाणी से ऐसी संभावना है कि कुछ इलाक़ों में बाढ़ आएगी, जबकि कुछ दूसरे इलाक़ों में सूखा पड़ेगा। यह प्रक्रिया दक्षिणी एवं दक्षिण उत्तरी एशिया में मौसमी हवाओं को कमज़ोर कर देती है। संभवतः दक्षिण अफ़्रीक़ा में मौसमी बारिशें समाप्त हो जायेंगी, इसी प्रकार पूर्वी और दक्षिणी अमरीका में भारी बारिशें होंगी। ऐसी परिस्थितियों में वैज्ञानिक निश्चित नहीं हैं कि जलवायु परिवर्तन के कारण एल नीनो की घटना में तीव्रता और परिणाम स्वरूप कार्बन डाइआक्साइट के स्तर में वृद्धि होती है या नहीं। यही कारण है कि एल नीनो के घटनाक्रमों के बारे में भविष्यवाणी करना कठिन हो गया है। लेकिन निःसंदेह ईश्वर द्वारा प्रदान की गई नेमतों की उपेक्षा पर्यावरण संबंधी त्रासदियों का मूल कारण है।