Feb १४, २०१७ १६:५० Asia/Kolkata

कहानी मानव अनुभव के आदान प्रदान और संस्कृतियों के स्थानांतरण में बहुत अहम योगदान देती है।

कहानी क़िस्से सीमाओं व समय को तेज़ी से तय करते हैं और राष्ट्रों व संस्कृतियों के बीच संपर्क पुल का काम करते हैं। क़िस्से कहानियों के इसी प्रभावी योगदान के कारण ही  तत्वदर्शी ईश्वर ने इंसान के मार्गदर्शन के लिए पवित्र क़ुरआन में बहुत सी कहानियों का उल्लेख किया है और बहुत सी जातियों के अंजाम को याद दिलाया है। रोचक बात यह है कि पवित्र क़ुरआन की एक भी कहानी ख़्याली नहीं है बल्कि ईश्वर की ओर से बयान की गयी सच्ची घटना पर आधारित है।

इस कार्यक्रम में इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़्मा सय्यद अली ख़ामेनई की ज़बानी हज़रत इब्राहीम और हज़रत सुलैमान जैसे दो महान पैग़म्बरों के जीवन के पाठ लेने योग्य बिन्दुओं को पेश कर रहे हैं।

हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम की ज़िन्दगी उतार चढ़ाव से भरे होने के साथ ही बहुत ही आकर्षक है। जवानी का दौर, उनका पैग़म्बर के रूप में नियुक्त होना, मूर्तियों को तोड़ना, नमरूद से निपटना, आग का बुझना, हज़रत इस्माईल की बलि से संबंधित ईश्वर के आदेश का पालन और हज़रत इस्माईल के स्थान पर भेड़ का ज़िब्ह होना और अनन्य ईश्वर के सामने हज़रत इब्राहीम की निष्ठावान उपासना, इन सब बिन्दुओं में पाठ निहित हैं। आयतुल्लाहिल उज़्मा ख़ामेनई कहते हैं, हज़रत इब्राहीम कठिन परीक्षा के बाद इमामत के दर्जे पर पहुंचे। अलबत्ता उनकी यह बात पवित्र क़ुरआन के बक़रह सूरे की आयत नंबर 124 से उद्धरित है कि जिसमें ईश्वर कह रहा है, “याद करो जब ईश्वर ने इब्राहीम का विभिन्न तरीक़ों से इम्तेहान लिया और वह उसमें अच्छी तरह कामयाब हुए तो ईश्वर ने उनसे कहा कि मैंने तुम्हें लोगों इमाम व मार्गदर्शक नियुक्त किया।”

आयतुल्लाहिल उज़्मा ख़ामेनई हज़रत इब्राहीम का परिचय कराते हुए उन्हें ऐसी हस्ती बताते हैं जिन्होंने ऐसी हालत में मूर्ति पूजने वालों व उजड लोगों को एकेश्वरवाद की ओर बुलाया कि जब उनका ईश्वर के सिवा कोई मददगार न था। उन्होंने अपनी अद्वितीय प्रचारिक शैली से लोगों को एकेश्वरवाद की ओर बुलाया। इस बारे में वरिषठ नेता कहते हैं, “हज़रत इब्राहीम एकेश्वरवाद की ओर बुलाने वाले जवान के रूप में ऐसे समाज में लोगों के मार्दर्शन के लिए मैदान में उतरे जो अनेकेश्वरवाद से दूषित था, लोग हठधर्म और अचेत थे। इब्राहीम अलैहिस्सलाम को ईश्वर की मदद से लोगों के मन व विचार को झिंझोड़ने की ज़रूरत थी ताकि उस हलचल व झिंझोड़ के ज़रिए अपनी बात को लोगों के दिल में उतार सकें। यह गंभीर हलचल इस हालत में मच सकती थी कि हज़रत इब्राहीम उन लोगों के अंधविश्वास के केन्द्र व बुतख़ाने को गिरा दें। वह बुतख़ाने पहुंचे, सारे बुतों अर्थात मूर्तियों को गिराया। सिर्फ़ एक बड़े बुत अर्थात मूर्ति को छोड़ दिया ताकि इसी बात के ज़रिए लोगों के मन को सच्चाई की ओर मोड़ें।”

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जी हां हज़रत इब्राहीम ने पूरे साहस के साथ यह क़दम उठाया। आयतुल्लाहिल उज़्मा ख़ामेनई पवित्र क़ुरआन की आयतों की ओर इशारा करते हुए कहते हैं, “जब लोगों को पता चला कि यह ईश्वर के मित्र हज़रत इब्राहीम का काम है तो उन्होंने कहा, क्या तुमने हमारे भगवानों के साथ यह काम किया?” हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम के जवाब का पवित्र क़ुरआन के अंबिया सूरे की आयत नंबर 63 में यूं उल्लेख है, “उसने कहा, बल्कि उनके बड़े ने यह काम किया है। उनसे पूछो अगर वह बोल सकें।” यहीं से हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम का अकेले वैचारिक संघर्ष एक पूरी दुनिया के मुक़ाबले में शुरु हुआ। महत्वपूर्ण बिन्दु यह है कि हज़रत इब्राहीम के मुक़ाबले में अत्याचार से भरी दुनिया थी जिसमें शक्तियां भौतिकवाद का प्रतिबिंबन थीं, धनवान का स्थान सबसे ऊपर था। बोलने वाले सत्ता के अधीन थे और वह अकेले थे। यह पाठ है।

इस तरह हज़रत इब्राहीम ने उन्हें ऐसी सच्चाई के सामने ला खड़ा किया जिसका सामना करने की उनमें रुचि नहीं थी लेकिन वे उनकी बात की सच्चाई की गवाही देने पर मजबूर हुए।

आयतुल्लाहिल उज़्मा ख़ामेनई अंबिया सूरे की आयत नंबर 63 की व्याख्या में कहते हैं, जैसे ही हज़रत इब्राहीम ने यह कहा कि बड़ी मूर्ति से पूछो, उन्हें अचानक समझ में आ गया। उन लोगों ने अपने सिर झुका कर कहा कि आप तो जानते हैं कि मूर्तियां बात नहीं करतीं। उस समय हज़रत इब्राहीम ने उन लोगों के मन में एक क्षण के लिए पैदा हुयी जागरुकता से फ़ायदा उठाते हुए कुछ बाते कहीं जो पूरी तरह सच्चाई पर आधारित थी। हज़रत इब्राहीम की इस बात का उल्लेख अंबिया सूरे की आयत नंबर 66 में यूं उल्लेख है, “ईश्वर को छोड़ ऐसी चीज़ की उपासना करते हो जो न तुम्हें न्यूनतम फ़ायदा दे सकती हैं और न ही तुम्हें किसी प्रकार का नुक़सान पहुंचा सकती हैं कि उनकी ओर से फ़ायदे पर निगाह लगाए रहो या उनकी ओर से नुक़सान से डरो।”

इस तरह हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने अचेत लोगों का ध्यान अनन्य ईश्वर की ओर मोड़ा और उनके मन को जागरुक बनाया। आयतुल्लाहिल उज़्मा ख़ामेनई का मानना है कि इस घटना में यह पाठ निहित है कि खोखली शक्तियों से नहीं डरना चाहिए। वे बल देते हैं,“जान लीजिए कि ईश्वर को न मानने वाली सभी शक्तियां ऐसी ही हैं। उनकी ज़ाहरी तौर पर नज़र आने वाली व्यापक शक्ति को नज़र में मत लाइये। उनके आधुनिक, अत्याधुनिक हथियार और पैसों को मत देखिए। जो तत्व राष्ट्रों को शक्तियों के मुक़ाबले में कमज़ोर करता है वह स्वंय राष्ट्रों में इरादे का अभाव है। अगर कोई राष्ट्र संकल्प के साथ आगे बढ़े, ईश्वर पर भरोसा रखे, उसके आदेश का पालन करे तो कोई भी शक्ति उसका बाल भी बांका नहीं कर सकती।”             

पवित्र क़ुरआन की एक और रोचक कहानी हज़रत सुलैमान की कहानी है। आयतुल्लाहिल उज़्मा ख़ामेनई, हज़रत सुलैमान की कहानी को कि जिसका एक भाग नमल नामक सूरे में आया है, बहुत ही आश्चर्यजनक बताते हुए कहते हैं, “ईश्वर ने सुलैमान को ज्ञान, शक्ति व हुकूमत दी यहां तक कि हज़रत सुलैमान ने अपने आस-पास के लोगों को संबोधित करते हुए कि जिसका उल्लेख नमल सूरे की आयत नंबर 16 में है, कहा, मुझे हर चीज़ दी गयी है। अर्थात एक बेमिसाल हुकूमत के लिए ज़रूरी सभी संभावनाएं ईश्वर ने सुलैमान को दी थीं।”

ईश्वरीय दूत सुलैमान को सभी चीज़ पर अधिकार हासिल था। इंसान और जिन्न उनके नियंत्रण में थे यहां तक कि वह पशुओं की बात भी समझते थे। आयतुल्लाहिल उज़्मा ख़ामेनई हज़रत सुलैमान की महान हस्ती के बारे में कहते हैं, “सुलैमान की पूरी कहानी शुरु से अंत तक इस बिन्दु की ओर घूमती है कि यह महाशक्तिशाली हस्ती जिसके पास न सिर्फ़ भौतिक शक्ति बल्कि आध्यात्मिक शक्ति और असधारण शक्ति की कुंजियां थीं, शक्ति के चरण पर पहुंचने के बावजूद ईश्वर के सामने नत्मस्तक थी। इस तरह कि हज़रत सुलैमान की इस विशेषता की प्रशंसा करते हुए ईश्वर सूरे साद की आयत नंबर 30 में कहता है, “कितना अच्छा बंदा? क्योंकि हमेशा ईश्वर को याद रखते थे।”

वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़्मा सय्यद अली ख़ामेनई आगे कहते हैं, “पवित्र क़ुरआन की अनेक आयतों में चाहे व नमल, सबा, साद या बक़रह सूरा हो, ईश्वर ने सुलैमान का उल्लेख किया और उन्हें अव्वाब कहा है जिसका अर्थ है ईश्वर के सामने नत्मस्तक रहने वाला बंदा। जो हर मामले को ईश्वर के हवाले करे।”  

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नमल सूरे में बहुत ही रोचक कहानी का उल्लेख है। चींटी और सुलैमान पैग़म्बर की कहानी और उनका चींटियों के साथ व्यवहार विचार योग्य बिन्दु है। वरिष्ठ नेता हज़रत सुलैमान की ज़िन्दगी के एक हिस्से की नमल सूरे की आयत के मद्देनज़र व्याख्या में कहते हैं, “ यह कहानी एक चींटी की दूसरी चींटियों से बातचीत के बारे में है जो उन्हें चेतावनी देती है।” इस बातचीत का ईश्वर ने पवित्र क़ुरआन के नमल सूरे की 18वीं आयत में यू उल्लेख किया है, “सुलैमान के सिपाही कहीं तुम्हें कुचल न दें और उन्हें एहसास भी न हो।” हज़रत सुलैमान चींटी की बात सुनते हैं। जिसका नमल सूरे की 19वीं आयत में यू उल्लेख है, “सुलैमान उसकी बात पर मुस्कुराए और कहा, ईश्वर उन नेमतों के लिए शुक्रिया जो तूने मुझे, मेरे पिता और मां को अता की, मुझे इस बात का अवसर प्रदान कर कि ऐसे सद्कर्म करूं जिससे तू प्रसन्न हो जाए और मुझे सदाचारी बंदों में शामिल कर ले।”

वरिष्ठ नेता आगे कहते हैं, चींटी कमज़ोरी, छोटेपन और निर्बलता की प्रतीक है और सुलैमान मानव शक्ति व महानता के प्रतीक हैं। वह सृष्टि की सबसे कमज़ोर रचना की व्यंगात्मक बात पर क्रोधित नहीं होते और उससे बदला लेने के बारे में नहीं सोचते। बल्कि मुस्कुराते हैं। यह बहुत ही हैरत में डालने वाली भावना है जो दर्शाती है कि ईश्वर की ओर से शक्ति पाने वाले इंसान किस तरह ईश्वर के सामने विनम्र रहते हैं, अपने आप में नहीं खो जाते, अपने पद को नहीं देखते, ईश्वर के मुक़ाबले में ख़ुद को कुछ नहीं समझते और यही विशेषता इंसान के लिए  परिपूर्णतः का आधार बनती है।