Feb २०, २०१७ १३:४४ Asia/Kolkata

पर्यावरण विविधता एक ऐसा विषय है जो जेन, प्रकार और एकोसिस्टम के स्तर पर पेश किया जाता है।

अलबत्ता यह शब्द प्रकार के स्तर पर अधिक परिचित है और इसका प्रयोग अधिक होता है। पर्यावरण की विविधता वास्तव में सभी जीवित जंतुओं के जटिल नेटवर्क का नाम है जिसमें वनस्पतियां और जानवर सभी शामिल हैं। मानवीय जातियां, जानवर, वनस्पतियां, मशरूम और एक्कोशकीय जानवरी को शामिल किए हुए है जिसका परिणाम लाखों वर्ष में सामने आता है। मनुष्य भी इस नेटवर्क का अटूट अंग है और उसका जीवन भी पूरी तरह इसी पर निर्भर होता है। वास्तव में पर्यावरण विविधता, धरती के जीवन का आधार होती है और पर्यावरण विविधता के किसी भी सतह का विनाश, मानवीय जीवन और अन्य जीवित जंतुओं की संभावनाओं के विकल्प को कम कर देता है। इसी प्रकार पर्यावरण विविधता, स्थाई पर्यावरण का महत्वपूर्ण साधन समझा जाता है।

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विशेषज्ञों के अनुसार पर्यावरण विविधिता, क्षमताओं और उपयोगिता के प्रकार में वृद्धि करती हैं और पर्यावरण के अनुरूप घुलने मिलने और उसके मुक़ाबले में प्रतिरोध में वृद्धि का कारण बनती है। दूसरे शब्दों में इन समस्त जीवित जंतुओं में से हर एक में एको सिस्टम होता है चाहे वह छोटी हों या बड़ी, सबकी एक महत्वपूर्ण ज़िम्मेदारी होती है और कुल मिलाकर इन जीव जंतुओं का क्रियाकलाप, हर एकोसिस्टम की क्षमताओं में वृद्धि करता है और हर संभावित नुक़सानों और ख़तरों के मुक़ाबले में प्रतिरोध में वृद्धि करता है। इसी प्रकार होने वाले नुक़सान की भरपाई भी इसी के ज़रिए करता है। इस आधार पर पर्यावरण विविधता विशेषकर मनुष्य के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण है क्योंकि वनस्पतियों के प्रकारों में वृद्धि का अर्थ खाद्य उत्पादों में वृद्धि और मनुष्य के लिए स्वच्छ हवा है और जानवरों के प्रकारों और उनकी जातियों में वृद्धि व विविधता का अर्थ, प्रकृति के संतुलन की दिशा में पर्यावरण के स्थाई होना है।

खेद की बात यह है कि हालिया दशकों में मनुष्यों की कार्यवाहियों के कारण पर्यावरण विविधता को बहुत नुक़सान पहुंचा है। इस प्रकार से कि जीव जंतुओं के रहने का स्थान नष्ट और तबाह हो रहा है, ज़मीनों के बंटवारे हो रहे हैं, उपयोगिता में परिवर्तन हो रहा है और जीवन के महत्वपूर्ण स्रोतों से सीमा से अधिक व धड़ल्ले से प्रयोग, सीमा से अधिक बायोलाजिकल विविधता की तबाही और कमी का कारण बनते हैं। इसी प्रकार बहुत सी वनस्तपतियों और जीव जंतुओं की विलुप्तता और इसी प्रकार उनका ख़तरे का शिकार होना, इस प्रकार के दबाओं का परिणाम है जिसने विश्व के पर्यावरण के लिए एक महत्वपूर्ण चुनौती खड़ी कर दी है। इसी आधार पर पर्यावरण वेत्ताओं के अनुसार, हर घंटे में तीन प्रकार के जीव तबाह होते हैं। कुछ अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं के शोध के परिणाम भी इस वास्तविकता की पुष्टि करते हैं। उदाहरण स्वरूप प्राकृतिक रक्षा के अंतर्राष्ट्रीय संघ आईयूसीएन के शोध के अनुसार जो वर्ष 2014 में संपन्न हुआ, यह परिणाम निकाला जा सकता है कि आज की दुनिया में मनुष्य जानवरों और वनस्तपियों की विलुप्तता का मुख्य कारण बन गये हैं। अतीत की तुलना में वर्तमान समय में पर्यावरण विविधता की विलुप्ता 100 से 1000 गुना तेज़ी से आगे बढ़ रही है। इस आधार पर हाडवर्ड विश्वविद्यालय के प्रोफ़ेसर एवाई विल्सन सहित कुछ प्रोफ़ेसरों और बुद्धिजीवियों की भविष्यवाणी है कि अगले दो दशकों के दौरान इनकी विलुप्ता में तेज़ी दस हज़ार बढ़ जाएगी। वैज्ञानिकों को यह भय है कि दुनिया छठे सामूहिक विनाश की ओर बढ़ रही है।

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अमरीकी वैज्ञानिक पत्रिकाओं में कुछ समय पहले तक प्रकाशित होने वाले शोध में भी इस वास्तविता की ओर संकेत किया गया है। ब्रिटेन में प्रकृति के 20 हज़ार विशेषज्ञों द्वार तैयार किए गये इस शोध में पता चलता है कि वर्ष 1974 से 2004 तक केवल इस देश में 70 प्रकार की तितलियां, 54 प्रकार के पक्षी, 28 प्रकार की वनस्पतियां तबाह हो चुकी हैं। यही कारण है कि बुद्धिजीवियों ने वर्तमान विलुप्तता के इस चक्र का नाम इंसानों द्वारा पैदा किए गये काल का नाम दिया है और पिछले पांच सामूहिक विनाश काल के विपरीत, जिसमें डायनासोरों का सामूहिक विनाश हुआ है, वर्तमान स्थिति मानवीय गतिविधियों का परिणाम है। औद्योगिक गतिविधियों का प्रदूषण, मछलियों का शिकार, पशुपालन, और मनुष्यों की बढ़ती जनसंख्या, पर्यावरण विविधता के लिए निरंतर ख़तरे समझे जाते हैं।

बुद्धिजीवियों ने पर्यावरण विविधता के लिए दस महत्वपूर्ण सिस्टम को बयान किया है जो संकटमयी स्थिति से अधिक ख़तरनाक है। इन सिस्टम में उत्तरी ध्रुव, भूमध्य सागरीय जंगल, अफ़्रीक़ा के मरुस्थलीय व तटवर्ती क्षेत्र, मछलियों और झीलों व नदियों की संख्याएं, तटवर्ती क्षेत्रों, मरजानों और समुद्री प्लैंगटोन और अमाज़ोन के जंगल इत्यादि शामिल हैं। उदाहरण स्वरूप नदियों में खेती के दूषित पानी, जानवरों के गोबरों और धोने वाले पदार्थों के मिलन से काई पैदा होती है और काई में वृद्धि से पानी में मौजूद आक्सीजन ख़त्म हो जाता है जिससे जलचरों और पानी में पायी जाने वाली वनस्पतियों की जान को ख़तरा पैदा हो जाता है। इस प्रकार की स्थिति कारण बनी कि वर्तमान समय में महासागर के 400 से अधिक मृत क्षेत्र है जो जलचरों और आक्सीजन से ख़ाली हैं और पूरी दुनिया के तटवर्ती क्षेत्रों में पायी जाती है। यह ऐसी स्थिति में है कि 1960 के दशक में महासागर के केवल 49 क्षेत्र मृत थे।

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एक अन्य चीज़ जो समुद्री पर्यावरण विविधता को नुक़सान पहुंचाती है, विध्वंसक मछली का शिकार या सीमा से अधिक मछली का शिकार है। कनाडा के डलहस विश्वविद्यालय के प्रोफ़ेसर डाक्टर बोरिस वार्म का हालिया शोध इस बात का सूचक है कि सीमा से अधिक मछलियों का शिकार करने के कारण महासागरों के आधे से अधिक जीव जंतु समाप्त हो गये हैं। केकड़े जैसे बहुत से जीव नष्ट होने की कगार पर हैं।  हालिया कुछ दशकों के दौरान मछली पकड़ने के स्थान पर नौकाओं में तीन से पांच गुना वृद्धि हुई है और मछलियों का भंडार, इस प्रकार की सतह का संचालन नहीं कर सकती। इस आधार पर जारी की गयी रिपोर्ट के अनुसार, व्यापारिक समुद्रों में मछलियों के भंडार का लगभग 29 प्रतिशत भाग जिसकी निगरानी फ़ाओ संस्था करती है ओवर फ़िश्ड हैं या दूसरे शब्दों में सीमा से अधिक मछलियों के शिकार के कारण उनकी संख्या प्राकृतिक रूप से बहुत ही कम हो गयी है। बुद्धिजीवियों का यह मानना है कि यदि इसी स्तर पर मछलियों के शिकार का क्रम जारी रहा तो संभव है कि वर्ष 2050 में पूरी तक वैश्विक मछलियों के शिकार में कमी आ जाएगी और मनुष्य मछलियों से ख़ाली बे जान पानी पैदा करेगा।

एक अन्य विषय जो पर्यावरण की विविधता की तबाही का कारण बनता है, स्थानीय पर्यावरण में एक ग़ैर स्थानीय जीव का प्रविष्ट होना है, यह स्थानीय पर्यावरण को बुरी तरह नुक़सान पहुंचा सकता है। उदाहरण स्वरूप द्वितीय विश्व युद्ध के बाद एक प्रकार का विदेशी सांप ग्वाम द्वीप में एक सैनिक युद्धक बेड़े के माध्यम से प्रविष्ट हुआ जिसने द्वीप के बहुत से पक्षियों को मौत के घाट उतार दिया क्योंकि इस सांप का रंग पेड़ के रंग से मिलता जुलता था और यह स्थानीय द्वीप का रहने वाला नहीं था और इस द्वीप पर रहने वाले पक्षी अपनी और अपने बच्चों की रक्षा के लिए इस अपरिचित जंतु के नाते अंडे देने से बचते थे। दूसरा उदाहरण इस प्रकार की स्थिति हालिया वर्षों में कैस्पियन सागर में देखने को मिली। कटीले शरीर वाली आक्रमणकारी जेलीफ़िश एक ऐसा जीव है जो नौकाओं द्वार गंदा पानी छोड़े जाने जैसे मनुष्य की विभिन्न गतिविधियों के कारण इस क्षेत्र में आ गयी और चूंकि इसमें प्रजनन शक्ति बहुत अधिक होती है, इसीलिए उसने अपनी जाति की संख्या में बहुत अधिक वृद्धि कर ली और काला सागर, कैस्पियन सी, उत्तरी समुद्र और बालटिक समुद्र जैसे क्षेत्रों में इसने काफ़ी तबाही मचाई।

कैस्पयिन सागर में जब यह जीव प्रविष्ट हुआ तो उस समय प्लांगटोन की संख्या में 75 प्रतिशत कमी हो गयी और चूंकि प्लांगटोन का मुख्य आहार केलिका मछली और मछलियों के बच्चे हैं इसीलिए केलिका मछलियों की संख्या बहुत अधिक कम हो गयी है और लगभग विलुप्त होने की कगार पर हैं। दूसरी ओर केलिका मछलियां, इस समुद्र के बहुत से जीव जंतुओं जैसे ख़ावियार और आज़ाद मछली का मुख्य आहार है, इनकी संख्या में भी भारी कमी आई है। इस प्रकार से समुद्री आहार की चेन को भीषण ख़तरे का सामना है।

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पर्यावरण की विविधता की तबाही के बारे में अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं की ओर से दी गयी चेतावनियों के कारण विश्व के बहुत से लोगों का ध्यान इस ओर केन्द्रित हो गया है। प्रकृति की रक्षा के अंतर्राष्ट्रीय संघ आईयूसीएन ने इस संबंध में अपनी ताज़ा रिपोर्ट में घोषणा की है कि लगभग हर दस में से नौ यूरोपीय नागरिकों का यह मानना है कि पर्यावरण की विविधता की तबाही, इस महाद्वीप की मुख्य चुनौतियों और ख़तरो में से एक है और इस प्रक्रिया को रोककर खाद्य पदार्थों, ईंधन और दवाओं जैसे विभिन्न प्रकार के उत्पादों की पैदावार को सुनिश्चित किया जा सकता है जबकि 75 प्रतिशत का यह मानना है कि पर्यावरण की विविधता को यूरोप की मज़बूत अर्थव्यवस्था के लिए सुरक्षित रखा जाना चाहिए। इस शोध के परिणाम से पता चलता है कि यूरोप के लोगों का मानना है कि मनुष्यों की गतिविधियों के कारण पर्यावरण की विविधिता को नुक़सान पहुंच रहा है। वास्तव में इस सर्वेक्षण में पर्यावरण की विविधता और पर्यावरण की विविधता की तबाही के शब्द पर ध्यान दिया जाना चाहिए, 90 प्रतिशत लोगों का यह मानना है कि जलवायु प्रदूषण, मनुष्यों की अनियंत्रित गतिविधियों, सीमा से अधिक कृषि, जंगलों को काटने, सीमा से अधिक शिकार करने जैसी घटनाओं से फैलता है और इसने मनुष्य के जीवन को ख़तरे में डाल दिया है। इसी प्रकार आधे से अधिक यूरोपीय वासियों का कहना है कि यूरोपीय संघ पर्यावरण विविधता की रक्षा में अपनी भूमिका में वृद्धि करे और इस संबंध में की जाने वाली कार्यवाहियों में से एक आसपास के वातावरण को सुरक्षित रखना है।

यहां पर यह बात स्पष्ट है कि मनुष्य का जीवन और धरती पर मौजूद समस्त जीव जंतु पर्यावरण विविधता पर निर्भर है और आवश्यकता इस बात की है कि विश्व समुदाय को पर्यावरण विविधता की रक्षा के लिए कोई गंभीर उपाय सोचना चाहिए और यदि ऐसा नहीं हुआ तो धरती विलुप्तता के छठे दौर की साक्षी होगी।