Feb २५, २०१७ १७:३३ Asia/Kolkata

पृथ्वी अपनी विशेष विशिष्टताओं के कारण एकमात्र ऐसा गृह है, जहां जीवन है और जैव विविधता उसके करोड़ों साल के विकास का नतीजा है।

यही कारण है कि तीसरी सहस्त्राबदी के शुरू में दुनिया भर के वैज्ञानिकों ने इस बात पर बल दिया है कि हमें हमें पृथ्वी की रक्षा करना चाहिए। वैज्ञानिकों का मानना है कि जैव विविधता ज़मीन पर जीवन की बुनियाद है। दुर्भाग्यवश अतीत में जाने या अनजाने में जैव विविधता के महत्व को अनदेखा किया गया है। हालांकि जैव विविधता का मूल विकास है। जब कोई एक प्रजाति नष्ट हो जाती है तो वास्तव में एक ऐसी चीज़ नष्ट हो जाती है, जिसका करोड़ों साल में विकास हुआ था।

पर्यावरण को उसमें मौजूद जैव विविधता द्वारा पहचाना जाता है। यह विविधता पर्यावरण को संतुलित रखने की ज़िम्मेदार होती है। जैव विविधता के नष्ट होने के कारण इकोसिस्टम या पारिस्थितिक तंत्र नष्ट हो जाता है। इसलिए उसकी सुरक्षा इंसान के मूल उद्देश्यों में से होना चाहिए। यही कारण है कि आज खेती, स्वास्थ्य, व्यापार, उद्योग और संस्कृति में जैव विविधता के महत्व पर बल दिया जाता है। उदाहरण स्वरूप, वैज्ञानिकों ने पाया है कि एकोसिस्टम में गड़बड़ से भोजन की प्राप्ति प्रभावित होती है, इसलिए कि खेती में इकोसिस्टम प्रभावित होने से उसके भयानक परिणाम सामने आते हैं।

यही कारण है कि वैज्ञानिक, इन ख़तरों से निपटने के लिए ऑरगैनिक कृषि और ऑरगैनिक खाद, फ़सल रोटेशन, पशुओं और फसलों से हासिल होने वाला खाद और बीज बोने वाली खेती न करने या उसे कम करने की सिफ़ारिश करते हैं, जिससे कृषि में जैव विविधता सुरक्षित होती है और भोजन की सुरक्षा बढ़ती है। वैज्ञानिकों का मानना है कि कृषि में जैव विविधता से खाद्य पदार्थों के उत्पादन में स्थिरता आती है। इसी प्रकार वे पोलिनेटर, मिट्टी में रहने वाले जीवों और शिकारी जीवों को फ़सलों के लिए ज़रूरी मानते हैं। विशेषज्ञों के अनुसार, कृषि के इकोसिस्टम में बेहतरी से ज़मीन की सतह और मिट्टी की गुणवत्ता बेहतर होत है और पानी का रोटेशन सही होता है, जिसके नतीजे में जलवायु बेहतर होती है। जंगली जानवरों की प्रजातियों में विविधता भी कृषि उत्पादों और अर्थव्यवस्था में सहायता का कारण बनती है।

लोगों के स्वास्थ्य में जैव विविधता की भूमिका पर बहुत से लेख और किताबें लिखी गई हैं। जड़ी बूटियों में विविधता से बहुत सी बीमारियों का उपचार संभव हो सकता है। इसी प्रकार अधिक विविधता कई अन्य चीज़ों में उपयोगी होती है। खाद्य पदार्तों में अधिक विविधता जैसे कि सब्ज़ियों और फलों से शरीर को अधिक विटामिन प्राप्त होते हैं, जिससे शरीर मज़बूत रहता है। जैव विविधता कई औद्योगिक उत्पादों में भी अहम भूमिका निभाती है, इसलिए कि उन्हें कच्चा माल प्रकृति से ही हासिल होता है। उदाहरण स्वरूप, तेल और गैस उद्योग कि जो आमदनी का एक बड़ा माध्यम माना जाता है, समुद्र में मौजूद बैक्टीरिया और प्‍लैंकटनों की हज़ारों प्रजातियों की गलन का परिणाम है।

इसलिए सूखे में हो या समुद्र में जैव विविधता के महत्व के दृष्टिगत, आज वैज्ञानिक उसे बचाने के लिए प्रयास कर रहे हैं। विश्व स्तर पर शाकाहारी भोजन को बढ़ावा देना, इकोसिस्टम की सुरक्षा का एक उपाय है, जिससे जलवायु परिवर्तन को नियंत्रित किया जा सकता है। विशेषज्ञों के अनुसार, हद से ज़्यादा मासाहारी भोजन और पशुपालन जैव विविधता के लिए ख़तरनाक है। संयुक्त राष्ट्र संघ की एक रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया है कि इंसान के हाथों वजूद में आने वाली ग्रीन हाउस गैसों का 18 प्रतिशत भाग पशु पालन से संबंधित है।

इस रिपोर्ट में अत्यधिक मासाहारी भोजन के जैव विविधता पर पड़ने वाले प्रभावों के बारे में उल्लेख किया गया है कि मवेशियों ने ख़ुश्की के जानवरों का 20 प्रतिशत और ज़मीन की सतह पर रहने वाले जानवरों के 30 प्रतिशत भाग को घेर रखा है, यह स्थान किसी समय में जंगली जानवरों का स्थल हुआ करते थे। वास्तव में पशुपालन को जैव विविधता में कमी के लिए सबसे अधिक ज़िम्मेदार माना जा सकता है। इसलिए कि वनों के विनाश, ज़मीन के बंजर होने, वायु प्रदुषण और जलवायु परिवर्तन का एक मुख्य कारण अत्यधिक मछली का शिकार, तटीय इलाक़ों में अवसादन और अप्रवासी प्रजातियों पर आसानी से प्रहार करना है। पशुपालन प्राकृतिक प्रजातियों के विनाश के लिए असली चेतावनी है।

संयुक्त राष्ट्र संघ के पर्यावरण संबंधित एक कार्यक्रम की एक अन्य समीक्षा से पता चलता है कि जानवरों का भोजन इकोसिस्टम की समस्याओं का प्रमुख कारण है। इस शोध से पचा चलता है कि पशुपालन, कृषि और भोजन इकोसिस्टम पर दबाव डालते हैं, विशेष रूप से यह जलवायु परिवर्तन, पानी के इस्तेमाल और ज़हरीली गैसों के फैलने का कारण हैं। इस कार्यक्रम के कार्यकारी प्रबंधक अख़ीम शताइनर ने भी इस विषय की पुष्टि करते हुए कहा है कि इस समिति ने समस्त अध्ययनों की समीक्षा की है और वह इस नतीजे पर पहुंची है कि वर्तमान समय में लोगों पर और ज़मीन पर दो बातों का बहुत अनुचित असर पड़ रहा है, पहला जीवाश्म ईंधन के रूप में ऊर्जा का उपभोग और दूसरे पशुपालन और कृषि, विशेष रूप से गोश्त की प्राप्ति के लिए मवेशियों का पालन।

इकोसिस्टम को पशुपालन से पहुंचने वाला नुक़सान इतना अधिक है कि राष्ट्र संघ पर्यावरण कार्यक्रम इस नतीजे पर पहुंचा है कि विश्व स्तर पर भोजन में ध्यान योग्य परिवर्तन करके इकोसिस्टम में काफ़ी हद तक सुधार किया जा सकता है। इसलिए ज़मीन पर जीवन को जिस अभूतपूर्व चुनौती का सामना है, उसे देखते हुए एक सादा क़दम उठाकर और भोजन की शैली में बदलाव लाकर जलवायु में होने वाले परिवर्तन को रोका जा सकता है।

विशेषज्ञ मास के इस्तेमाल में कमी के अलावा, इकोसिस्टम की सुरक्षा के लिए अन्य मार्ग भी सुझाते हैं। उनमें से एक प्रदूषण को कम से कम स्तर तक पहुंचाना है। पृथ्वी के गर्म होने और ज़मीन की जवलायु में परिवर्तन का स्तर इतना अधिक है कि संभव है ज़मीन पर कुछ प्रजातियों के लिए जीवन कठिन हो जाए और वे विलुप्त होने की कगार पर पहुंच जायें। इसलिए प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से ऐसी समस्त गतिविधियों को रोकना ज़रूरी है, जो पृथ्वी के तापमान में वृद्धि का कारण हैं। दूसरी स्थिति में संभव है वनस्पतियों और पानी और ज़मीन पर रहने वाले जानवरों को अधिक नुक़सान पहुंचे।

जैव विविधता को सुरक्षित रखने का एक दूसरा मार्ग, किसी भी एक शिकारी प्रजाति को इकोसिस्टम में घुसने से रोकना है। कुछ लोग यह प्रयास करते हैं कि उनका बाग़ आद्वितीय होना चाहिए। इसीलिए वह अजीबो ग़रीब विनस्पतियों और पौधों को अपने बाग़ में लगाते हैं। संभव है ऐसी अजीबो ग़रीब क़िस्में जिनमें लोगों की रूची हो, वह घातक बन जाएं और देसी प्रजातियों का विकास रोक दें। इसीलिए इकोसिस्टम की सुरक्षा से तात्पर्य स्थानीय प्रजातियों के विकास से होना चाहिए। घातक प्रजातियां केवल वनस्पतियों तक ही सीमित नहीं हैं। जानवरों की कुछ प्रजातियां भी जो इंसान द्वारा किसी विशेष इलाक़े में लाई जाती हैं, घातक हो सकती हैं और स्थानीय प्रजातियों को प्रभावित कर सकती हैं।

हालांकि जैव विविधता को सुरक्षित रखने में सबसे अधिक कारक, ज़रूरतों और उपभोग को सीमित करना है। इंसान के लालच ने अब तक प्रकित को बहुत अधिक नुक़सान पहुंचाया है। जानवरों और वनस्पतियों की कई प्रजातियां इंसान की लालसा की भेंट चढ़ चुकी हैं या उनकी संख्या घट गई है। बहुत से ऐसे उत्पाद हैं, जो वनस्पतियों और जानवरों से बनाए जाते हैं। इन उत्पादों को ख़रीदने से पहले ख़ुद से पूछना चाहिए कि क्या वास्तव में इस उत्पाद की ज़रूरत है। प्राकृतिक रूप से जब इस प्रकार के उत्पादों की मांग में कमी आएगी तो उनके उत्पादन में भी कमी होगी। परिणाम स्वरूप, जानवरों और वनस्पतियों की कई प्रजातियों को मुक्ति मिल जाएगी। अगर सब यह जान लें कि अगर एक प्रजाति विलुप्त हो गई तो वास्तव में उसे पूरी दुनिया की दौलत से भी नहीं लौटाया जा सकेगा, तो कोई भी इस तरह का क़दम नहीं उठाएगा।