Jun ०६, २०१६ ११:१३ Asia/Kolkata

हदीद का अर्थ है लोहा और इस बारे में इस सूरे की पच्चीसवीं आयत में उल्लेख किया गया है।

हदीद का अर्थ है लोहा और इस बारे में इस सूरे की पच्चीसवीं आयत में उल्लेख किया गया है। यह पवित्र क़ुरआन का 57वां सूरा है और यह पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल लाहो अलैहि व आलेही व सल्लम के मदीना पलायन के बाद नाज़िल हुआ है। इस सूरे में 29 आयते हैं।

इस पवित्र सूरे की विषय वस्तु इस प्रकार है, ईश्वर का एक होना, उसकी विशेषता, पवित्र क़ुरआन की महानता, ईश्वर के मार्ग में दान-दक्षिणा ख़ास तौर पर ईश्वर के मार्ग में जेहाद के आधार को मज़बूत करना, प्रलय के दिन सदाचारियों व मिथ्याचारियों की हालत, पूर्व की जातियों का अंजाम, सांसारिक जीवन, स्वर्ग, न्याय की स्थापना ईश्वरीय दूतों को भेजने का उद्देश्य, लोहे के लाभ, वैराग्य जीवन व सामाजिक जीवन से दूर रहने की आलोचना।

‘हदीद’ सूरे की शुरु की आयतें ईश्वर की विशेषताओं का समूह हैं जिनसे ईश्वर के बारे में इंसान में पहचान का स्तर बढ़ता है। जैसा कि इस सूरे की पहली आयत का अर्थ है, “जो कुछ ज़मीन और आसमानों में है वह ईश्वर की तस्बीह अर्थात गुणगान कर रहे हैं। वह अजेय व तत्वदर्शी है।”

तस्बीह का अर्थ है हर प्रकार की बुराई से दूर समझना, सृष्टि की सभी रचनाएं ईश्वर का गुणगान कर रही हैं और उसकी पवित्रता की गवाही दे रही हैं।

‘हदीद’ सूरे की दूसरी आयत में ईश्वर कह रहा है, “आसमानों व ज़मीन का शासन व स्वामित्व उसके हाथ में है। वही जीवित करता है, वही मारता है। वह हर चीज़ में सक्षम है।”

ईश्वर आसमान व ज़मीन का वास्तविक स्वामी है। हर चीज़ उसके अधिकार में है और पूरे संसार पर उसका नियंत्रण है। वह अकेला है जो सृष्टि की हर चीज़ को ज़िन्दगी व मौत देने में सक्षम है।

‘हदीद’ सूरे की तीसरी आयत में ईश्वर कह रहा है, “वही पहला है। वही आख़िर है। वही ज़ाहिर है वही निहित है। वह हर चीज़ को जानता है।”

ईश्वर की हर चीज़ के आरंभ व आख़िर में होने की विशेषता उसके हमेशा से होने और हमेशा बाक़ी रहने के संबंध में बड़ी रोचक विवेचना है। वह ऐसा वजूद है जिसका कोई अंत नहीं। उसका वजूद ख़ुद से है और अन्य वजूद उस पर निर्भर हैं। उसका वजूद ही उसकी ज़ात है अलग से कोई चीज़ नहीं है कि जिसका कोई आरंभ व अंत हो। वही सृष्टि का आरंभ है। वह सृष्टि के मिटने के बाद भी बाक़ी रहेगा। उसके विदित व निहित होने का मतलब यह है कि उसका वजूद हर चीज़ पर छाया हुआ है। वह हर चीज़ से ज़्यादा स्पष्ट है क्योंकि उसका असर हर जगह है और वह हर चीज़ से ज़्यादा निहित है क्योंकि उसके अस्तित्व ज़ात की सच्चाई सबसे छिपी हुयी है।

‘हदीद’ सूरे की चौथी आयत में ईश्वर कह रहा है, “उसने ज़मीन और आसमानों को 6 दिनों में पैदा किया और फिर सृष्टि की सत्ता को अपने हाथ में लिया।” इस आयत के अगले भाग में ईश्वर के असीम ज्ञान का यूं उल्लेख है, “जो कुछ ज़मीन में दाख़िल होता है और जो कुछ उससे निकलता है, और जो कुछ आसमान से उतरता है और जो कुछ ऊपर जाता है, उसे सारी बातों का ज्ञान है।”

बारिश की बूंदों, वनस्पतियों के दानों का जो हवा यह कीड़े मकोड़ों के ज़रिए एक स्थान से दूसरे स्थान पहुंच जाते हैं और वे वनस्पतियां भी जो ज़मीन से निकलती हैं, वे सोते जो मिट्टी और चट्टानों से उबलते हैं, वे गैस जो ज़मीन से ऊपर उठती हैं, ईश्वर को सबका ज्ञान है।

इसी प्रकार जो कुछ आसमान से नाज़िल होता है, जैसे बारिश की बूंदे, सूरज की किरणें, और इसी प्रकार जो कुछ आसमान में जाती हैं जैसे लोगों की प्रार्थनाएं, बादल इत्यादि, इन सबका ज्ञान ईश्वर को है क्योंकि उसका ज्ञान असीम है।

इस आयत के और आगे के भाग में ईश्वर कह रहा है, “वह तुम्हारे साथ साथ है तुम जहां भी हो और ईश्वर जो कुछ तुम कर रहे हो सब देख रहा है।”

वह क्यों हमारे साथ न हो जबकि हम न सिर्फ़ अपने वजूद बल्कि अपने वजूद को बचाने के लिए हर क्षण उसकी कृपा पर निर्भर हैं। क्या यह संभव है कि वह हमसे बेख़बर हो।

‘हदीद’ सूरे की आयत नंबर पांच में ईश्वर कह रहा है, “आसमानों और ज़मीन पर उसी का स्वामित्व है और सारे मामले उसी की ओर लौटते हैं।”

सारे काम उसी की ओर लौटते हैं। हम उससे हैं और उसी की ओर लौटेंगे क्योंकि वही आरंभ और वहीं अंत है और पूरी सृष्टि उसी की ओर बढ़ रही है।

आयत नंबर छह में ईश्वर की दो और विशेषताओं का उल्लेख है, “वह रात को दिन में और दिन को रात में दाख़िल करता है।”

वह पूरे साल दिन और रात में बदलाव लाता है। यह बदलाव इस तरह से होता है कि एक की अवधि कम होती है और दूसरे की अवधि बढ़ती है। इसी बद्लाव के साथ साल की चार फ़सलें भी होती हैं जिनमें पूरे इंसान के लिए ईश्वर की अनुकंपाएं छिपी होती हैं।

आयत नंबर 7 में ईश्वर इंसान से चाहता है कि वह उस पर और उसके दूत पर ईमान लाएं और जो कुछ उन्हें दिया गया है उसमें से ईश्वर के मार्ग में ख़र्च करें।

ईश्वर के मार्ग में ख़र्च करने का अर्थ पैसे तक सीमित नहीं है बल्कि ज्ञान और दूसरे भौतिक व आध्यात्मिक संपत्ति भी इसमें शामिल है। इस्लाम में दान-दक्षिणा को इस्लामी जगत के बाक़ी रहने, जनता की समस्याओं के दूरे होने तथा समाज के विकास के लिए ज़रूरी बताया गया है।

‘हदीद’ सूरे की आयत नंबर 10 में ईश्वर कहता है, तुम्हें क्या हो गया है कि ईश्वर के मार्ग में दान-दक्षिणा नहीं करते जबकि आसमानों और ज़मीन का वारिस ईश्वर है।

अंततः इंसान के पास इस दुनिया में जो कुछ होता है, छोड़ कर चला जाता है। वह क्यों अवसर का इस्तेमाल करके दान-दक्षिणा नहीं करता। अलबत्ता विभिन्न हालात में दान-दक्षिणा का महत्व भी अलग अलग है। इसी आयत में ईश्वर आगे कह रहा है, “तुममें से जिन्होंने जीत से पहले दान-दक्षिणा और जेहाद किया वह दूसरों के बराबर नहीं हैं। वे दर्जे की नज़र से उन लोगों से बेहतर हैं जिन्होंने मक्का की फ़त्ह के बाद दान-दक्षिणा की।”

जिन लोगों ने कठिन व संकटमय हालात में किसी प्रकार के बलिदान से संकोच न किया उन लोगों से बेहतर हैं जिन्होंने संकटमय हालात के ख़त्म होने के बाद, इस्लाम की मदद की। हालांकि दोनों ही पक्ष ईश्वर की कृपा के पात्र हैं। जैसा कि इस आयत के आख़िर में आया है ईश्वर दोनों को भले अंजाम का वचन देता है।

‘हदीद’ सूरे की आयत नंबर 11 में ईश्वर दान-दक्षिणा के लिए यूं प्रेरित कर रहा है, “कौन है जो ईश्वर को अच्छा क़र्ज़ दे कि ईश्वर उसे उसके लिए दुगुना कर दे? और उसके लिए बहुत मूल्यवान बदला है।”

यहां पर ईश्वर को क़र्ज़ देने का अर्थ उसके मार्ग में दान-दक्षिणा करना है। अनेक आयतों में दान-दक्षिणा करने वालों को प्रलय के दिन महा-पारितोषिक की शुभसूचना देती हैं। जिस दिन ईमान वाले पुरुषों और महिलाओं के प्रकाश उनके आगे आगे दाहिनी तरफ़ से तेज़ी से बढ़ेंगे। प्रलय के दिन मुनष्य की आस्था और कर्म साक्षात रूप में मौजूद होंगे। ईश्वर पर सच्ची आस्था प्रकाश की भांति मार्गदर्शन करेगी और ईश्वर का इंकार करने वालों के साथ अंधेरा होगा। उस समय फ़रिश्ते मोमिनों को स्वर्ग के ऐसे बाग़ों की शुभसूचना देंगे कि जिनके नीचे नहरें जारी होंगी। इस बात में शक नहीं कि यह महासफलता है।

मिथ्याचारी ईश्वर का इंकार करने के कारण, अंधकार में फंसे होंगे और चिल्ला रहे होंगे। और मोमिनों से निवेदन करेंगे कि उन्हें भी अपने नूर से फ़ायदा उठाने दें। उनके जवाब में कहा जाएगा, पीछे पलटो और दुनिया से प्रकाश ढूंढो। यह प्रकाश हासिल करने की जगह नहीं है। तुम्हें उस दुनिया से जिसे छोड़ कर आए हो, ईश्वर पर आस्था और सद्कर्म के ज़रिए प्रकाश हासिल करना चाहिए था किन्तु अब देर हो चुकी है। इस बीच सदाचारियों और मिथ्याचारियों के बीच एक दीवार आ जाएगी। उस दीवार में एक दरवाज़ा होगा कि जिसके भीतर ईश्वर की कृपा होगी और बाहर ईश्वर का प्रकोप। मिथ्याचारी उनसे चिल्लाकर कहेंगे, “क्या हम तुम्हारें साथ नहीं थे? तुम्हारे साथ एक जगह पर ज़िन्दगी गुज़ारते थे। क्या हुआ जो हमसे अलग हो गए। ईश्वर की कृपा तुम्हारे चारों ओर है और हमको प्रकोप में छोड़ दिया। वे जवाब में कहेंगे, हां! हम एक साथ थे किन्तु आस्था और कर्म की नज़र से हमारे और तुम्हारे बीच बहुत अंतर था। तुम सत्य की ओर से लापरवाह थे।”

वे आगे कहेंगे, तुमने ख़ुद को धोखा दिया। निरंतर पैग़म्बरे इस्लाम की मौत और इस्लाम के ख़त्म होने की कामना करते रहे। प्रलय के दिन और पैग़म्बरे इस्लाम के निमंत्रण की सच्चाई पर शक था और सदैव इच्छाओं के चंगुल में फंसे रहे कि उसी हालत में मौत ने तुम्हें धर दबोचा। शैतान ने भी ईश्वर के संबंध में तुम्हें धोखा दिया। इन चीज़ों ने तुम्हें हमसे अलग कर दिया और तुम तबाही में जा पड़े।

‘हदीद’ सूरे की आयत नंबर 25 में ईश्वर ने अपने दूतों के भेजने का उद्देश्य यूं बयान किया है, “हमने अपने दूतों को स्पष्ट तर्क व चमत्कारों के साथ भेजा और उनके साथ आसमानी किताब तुला भेजी ताकि लोग न्याय करें और लोहा भी उतारा जिसमें बहुत ताक़त है और लोगों के लिए फ़ायदे हैं इसलिए कि ईश्वर यह देखे कि कौन बग़ेर देखे उसे और उसके दूत की मदद करता है। जान लो कि ईश्वर सर्वशक्तिमान व अजेय है।”

किताब से अर्थ वही ईश्वरीय किताब है। तुला तौलने व नापने का साधन है कि जिसके ज़रिए इंसान के कर्म को परखा जा सकता है और ईश्वरीय नियम भलाई और बुराई की कसौटी हैं।

इन महापुरुषों को भेजने का उद्देश्य न्याय की स्थापना थी। लोगों का इस तरह प्रशिक्षण हो कि वे ख़ुद आपस में न्याय से काम लें।

इसके साथ ही किसी समाज में नैतिकता व आस्था का स्तर जितना ऊंचा हो फिर भी उस समाज में ऐसे उद्दंडी लोग मिलेंगे जो न्याय की स्थापना में बांधा होंगे।

आयत के अगले भाग में लोहे के फ़ायदे और इसकी ताक़त का उल्लेख है। अगर लोहा न होता तो इंसान की ज़िन्दगी में बहुत सी कठिनाइयां होतीं। चूंकि लोहे का इंसान की ज़िन्दगी में बहुत बड़ा योगदान है इसलिए ईश्वर ने उसे बहुत बड़ी मात्रा में और आसान तरीक़े से इंसान के अधिकार में दिया है।