Mar ०६, २०१६ १३:५७ Asia/Kolkata

हश्र क़ुरआन का 59वां सूरा है।

हश्र क़ुरआन का 59वां सूरा है। इस सूरे में मुख्य रूप से यहूदियों के एक क़बीले ‘बनी नुज़ैर’ से मुसलमानों के सामूहिक संघर्ष के बारे में वर्णन है।

हश्र सूरे की विषय-वस्तु इस प्रकार हैं, पूरी सृष्टि की हर चीज़ का ईश्वर का गुणगान करना, मदीने के संधि का उल्लंघन करने वाले यहूदियों के साथ मुसलमानों की लड़ाई की घटना, मदीना के पाखंडियों का पाखंडियों यहूदियों के साथ सहयोग, आम मुसलमानों को नसीहतें, पवित्र क़ुरआन का आकर्षक बयान और ईश्वर के नाम।

हश्र सूरा ईश्वर के गुणगान से शुरु होता है और उसी से ख़त्म होता है।

हश्र सूरे की पहली आयत में ईश्वर कहता है, “जो चीज़ें ज़मीन और आसमानों में है सब ईश्वर का गुणगान करती हैं और वह प्रभुत्वशाली व तत्वदर्शी है।” पवित्र क़ुरआन की अनेक आयतों में ज़मीन और आसमान में मौजूद सभी चीज़ों फ़रिश्तों, इंसान, जानवर, वनस्पति और बेजान चीज़ों द्वारा ईश्वर का गुणगान करने का उल्लेख है। अनेक बुद्धिजीवियों का यह मानना है कि सृष्टि में मौजूद चीज़ों में एक प्रकार की चेतना पायी जाती है और सब ईश्वर का गुणगान करती हैं, हालांकि हमें इस बात का अहसास नहीं होता।

यहूदियों के तीन क़बीले ‘बनी नुज़ैर’, ‘बनी क़ुरैज़ा’ और ‘बनी क़ैनक़ाअ’ मदीने के आस-पास मुसलमानों के साथ रहते थे। उन्होंने पैग़म्बरे इस्लाम के साथ मुसलमानों पर अतिक्रमण न करने की संधि की थी लेकिन जब भी उन्हें मौक़ा मिलता वे इस संधि का उल्लंघन करने से नहीं चूकते थे। ओहद नामक जंग के बाद जो तीसरी हिजरी क़मरी में घटी थी, कअब बिन अशरफ़ 40 यहूदी सवारों के साथ मक्का गया और क़ुरैश क़बीले से साठगांठ की कि आपस में मिल कर पैग़म्बरे इस्लाम से लड़ें। पैग़म्बरे इस्लाम को यह ख़बर जिबरईल फ़रिश्ते ने दी जो उनके पास ईश्वरीय संदेश ‘वहय’ लाया करता था। इतिहास में है कि एक दिन पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल लाहो अलैहि व आलेही व सल्लम अपने कुछ अनुयाइयों के साथ ‘बनी नुज़ैर’ क़बीले के लोगों के पास गए। जिस वक़्त वह यहूदियों के क़िले के बाहर कअब बिन अशरफ़ से बात कर रहे थे उसी वक़्त यहूदी आपस में पैग़म्बरे इस्लाम के ख़िलाफ़ साज़िश करने लगे और एक दूसरे से कहने लगे कि एक व्यक्ति छत पर जाए और उन पर बड़ा सा पत्थर गिरा दे। एक यहूदी ऐसा करने पर तय्यार हुआ और छत पर गया। ईश्वरीय संदेश ‘वहय’ के ज़रिए पैग़म्बरे इस्लाम को तुरंत इस साज़िश का पता चल गया और वह वहां से मदीना लौट गए। इस प्रकार यहूदियों द्वारा संधि का उल्लंघन साबित होने के बाद, मुसलमानों ने इस जाति से लड़ने की तय्यारी करने लगे। जब यहूदियों को इस बात का पता चला तो उन्होंने अपने शक्तिशाली क़िलों में पनाह ले ली। पैग़म्बरे इस्लाम ने ईश्वर के आदेश पर उनकी नाकाबंदी की। यह नाकाबंदी कई दिन तक जारी रही। पैग़म्बरे इस्लाम ने रक्तपात से बचने के लिए उनसे मदीना छोड़ कर जाने के लिए कहा। वे भी तय्यार हो गए। इस प्रकार वे अपने साथ जितना धन-संपत्ति ले जा सकते थे लेकर चले गए और बाक़ी छोड़ गए। बाक़ी बचे हुयी धन संपत्ति, ज़मीन और घर मुसलमानों के हाथ लगे।

हश्र सूरे की आयत 2-5 में इस घटना का उल्लेख है। दूसरी आयत में ‘बनी नुज़ैर’ क़बीले के यहूदियों के मदीना से बाहर निकाले जाने की घटना का यूं उल्लेख है, ‘वही तो है जिसने कुफ़्फ़ारे अहले किताब (बनी नुज़ैर) को पहली बार इकट्ठा करके उनके घरों से निकाल दिया। तुमने यह सोचा भी न था कि वे निकल जाएंगे और वे लोग यह समझ रहे थे कि उनके क़िले उनको ईश्वर के प्रकोप से बचा लेंगे। लेकिन ईश्वर ऐसे रुख़ से पेश आया जिसका उन्हें गुमान भी न था। और उनके दिलों में रोब पैदा कर दिया कि वे अपने घरों को अपने हाथों और ईमान वालों के हाथों से उजाड़ने लगे। तो हे समझने वालों पाठ लो।’

इस आयत से यह समझा जा सकता है कि मदीना में ‘बनी नुज़ैर’ यहूदी इतने संपन्न थे कि उन्हें भी इस बात का विश्वास न था कि इतनी आसानी से हार जाएंगे और न ही दूसरों को। इस आयत में आगे ईश्वर कहता है,... ईश्वर ने उन्हें उस जगह से आ लिया जिसके बारे में उन्होंने सोचा भी नहीं था और उनके मन में इस तरह भय पैदा कर दिया कि वे अपने घर को अपने हाथ और मोमिनों के हाथों उजाड़ते थे।

जी हां ईश्वर ने अपने न दिखाई देने वाले लश्कर अर्थात डर के ज़रिए उन पर प्रभुत्व स्थापित किया उनसे किसी प्रकार का मुक़ाबला करने की क्षमता छीन ली। इस प्रकार डर उन पर इस तरह छा गया कि वे ख़ुद अपने दुश्मन के साथ अपने घर को उजाड़ने में मदद करने लगे। रोचक बिन्दु यह था कि मुसलमान क़िले के बाहर उसे उजाड़ रहे थे ताकि क़िले में दाख़िल हो सकें जबकि यहूदी क़िले के भीतर अपने घर को तबाह करते थे ताकि सही स्थिति में घर मुसलमानों के हाथ न लगे। इस काम के नतीजे में उनकी जड़े कमज़ोर हो गयी। इस आयत के अंत में निष्कर्ष के तौर पर ईश्वर कहता है, ‘हे समझ रखने वालों, पाठ लो।’ इसका मतलब यह है कि घटनाओं पर ध्यान दें। इस बात में शक नहीं कि इस शक्तिशाली जाति का अंजाम पाठ लेने योग्य था कि बिना हथियार उठाए उन्हें मुसलमानों के सामने झुकना पड़ा, अपने घरों को अपने हाथों से उजाड़ना पड़ा और अपनी संपत्ति को उसी स्थान पर छोड़ना पड़ा और वे अन्य क्षेत्रों में बिखर गए।

हश्र सूरे की 11 से बाद की आयतों में यहूदियों के षड्यंत्रों में पाखंडियों के रोल का उल्लेख है। उन्होंने यहूदियों को यह संदेश भिजवाया कि वे उनके साथ हैं और उनकी मदद करेंगे। क़ुरआन ने इन लोगों को झूठा कहा है क्योंकि वे जंग में भाग लेने और यहूदियों की मदद के लिए तय्यार नहीं हैं। अगर जंग के मैदान में पहुंच भी जाएं तो वहां से फ़रार करेंगे। क्योंकि पाखंडियों को ईश्वर पर आस्था नहीं है और उसकी शक्ति को नहीं पहचानते।

हश्र सूरे की आयत नंबर 14 में पाखंडियों की कुछ विशेषताओं का वर्णन है जिसमें उनके डरपोक होने का उल्लेख है। इस आयत में ईश्वर कह रहा है, “वे (मदीना के यहूदी और पाखंडी) मिल कर भी आपसे जंग न कर सकेंगे सिवाए क़िलाबंद शहरों या दीवारों की आड़ में।” ख़ुद उनके बीच मतभेद बहुत ज़्यादा हैं। वे दिखने में एकजुट लगेंगे हालांकि मन में एक दूसरे से दूर हैं। वास्तव में यह आयत इस बात का उल्लेख करती है कि बेइमान लोगों के बीच दिखने वाली एकजुटता आपको धोखा न दे क्योंकि वे मन ही मन एक दूसरे के विरोधी हैं। उनमें से हर एक भौतिक हितों के चक्कर में हैं जबकि मोमिनों के बीच एकता का आधार ईश्वरीय मूल्यों पर आस्था है।

हश्र सूरे की आयत नंबर 16 में पाखंडियों को शैतान से उपमा दी गयी है जो इंसान से वादा करता है किन्तु उसका वादा धोखे के सिवा कुछ और नहीं है। ऐसे लोग बड़ी संख्या में होते हैं जो दूसरों से वादा करते हैं लेकिन ख़तरे के वक़्त उन्हें उनके हाल पर छोड़ देते हैं।

“(पाखंडियों की मिसाल) शैतान जैसी है कि जब वह इंसान से कहता है कि काफ़िर होजा, फिर जब वह काफ़िर हो जाता है तो (शैतान) कहता है, मैं तुमसे विरक्त हूं। बेशक मैं ईश्वर से डरता हूं जो पूरी सृष्टि का पालनहार है।”

हश्र सूरे की आयत नंबर 21 में पवित्र क़ुरआन की महानता का इस प्रकार वर्णन हुआ हैं, “अगर इस क़ुरआन को किसी पहाड़ पर नाज़िल करते तो वह पहाड़ ईश्वर के डर से काप कर टुकड़े टुकड़े हो जाता और हम ये मिसाल इंसानों के लिए इसलिए बयान करते हैं कि शायद वह कुछ चिंतन मनन करें।”

सवाल यह उठता है कि यह किस तरह है कि पहाड़ अपनी इतनी मज़बूती के बावजूद क़ुरआन की महानता के सामने विनम्र है और इसके विपरीत कुछ मुसलमानों का मन पत्थर से ज़्यादा सख़्त होता है?

ईश्वर की हक़ीक़त को समझना इंसान के लिए मुमकिन नहीं है किन्तु उसके नाम से जो उसकी पवित्र हस्ती को पहचनवाते हैं, कुछ हद तक ईश्वर को पहचान सकते हैं। हश्र सूरे की आख़िर की तीन आयतों में ईश्वर की कुछ विशेषताओं व नामों का उल्लेख हैं। ये आयतें इंसान का ईश्वर की विशेषताओं के प्रकाशमय जगत की ओर मार्गदर्शन करती हैं और अगर इंसान चाहता है कि उसे ईश्वर का सामिप्त हासिल हो तो उसे इन विशेषताओं की समझ होनी चाहिए।

हश्र सूरे की आयत नंबर 22 में ईश्वर कह रहा है, “वह ऐसा पालनहार है कि उसके सिवा कोई पूज्य नहीं। हाज़िर और ग़ायब सब बातों का जानने वाला है। वह महान व स्थायी कृपा का स्वामी है।” यहां पर हर चीज़ से पहले एकेश्वरवाद के विषय का उल्लेख है ईश्वर की पहचान का मूल तत्व है। उसके बाद ईश्वर के ज्ञान का उल्लेख है। ईश्वर के निकट मौजूद और ग़ायब चीज़े एक समान हैं क्योंकि अनन्य ईश्वर हर जगह मौजूद है और हर चीज़ को वह देख रहा है। कोई भी स्थान ऐसा नहीं है जहां वह न हो। बाद की आयत में ईश्वर कह रहा है, “ऐसा पालनहार है जिसके अलावा कोई पूज्य नहीं। वह बादशाह, जो हर बुराई से पाक, अमान देने वाला, देखभाल करने वाला, हर चीज़ पर प्रभुत्व रखने वाला, अजेय, अपनी बड़ाई प्रकट करने वाला। वह पाक है उन चीज़ों से जिसे उसका शरीक ठहराते हैं।”

इस सूरे की आख़िरी आयत में ईश्वर की बाक़ी विशेषताओं का यू वर्णन किया गया है, “वह पालनहार! पैदा करने वाला, ऐसी चीज़ बनाने वाला जिसका पहले कभी अस्तित्व न था, सूरत बनाने वाला। सब अच्छे नाम उसी के हैं। जो कुछ ज़मीन और आसमानों में है सब उसका गुणगान करते हैं। वह सर्वशक्तिमान व तत्वदर्शी है।”

जी हां ईश्वर ने जिस चीज़ को पैदा किया है उसमें किसी प्रकार की कोई कमी या ज़्यादती नहीं है। उसने चीज़ों को पैदा करने के लिए कहीं से कोई नमूना नहीं हासिल किया है बल्कि वह हर चीज़ को शक्त व सूरत देने वाला है।