मार्गदर्शन - 26
पवित्र कुरआन ने बहुत ही सुन्दर शब्दों में पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहि व आलेहि व सल्लम की प्रशंसा की है।
पवित्र कुरआन पैग़म्बरे इस्लाम को समूचे विश्व वासियों के लिए दया मानता है। इस संबंध में पवित्र कुरआन के सूरे अंबिया की 107वीं आयत में आया है” कि हमने आपको नहीं भेजा किन्तु यह कि विश्ववासियों के लिए दया बनाकर।“
इसी आयत के आधार पर इस्लामी किताबों में पैग़म्बरे इस्लाम को दया के पैग़म्बर की उपाधि से याद किया गया है। स्वयं पैग़म्बरे इस्लाम न केवल दया और प्रेम के प्रतिमूर्ति थे बल्कि उन्होंने मुसलमानों के मध्य प्रेम और भाईचारे के रास्ते को मज़बूत किया और उनके दिलों में एक दूसरे के प्रति प्रेम और दोस्ती को जीवित कर दिया। ईरान की इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामेनेई पैग़म्बरे इस्लाम की इस सुन्दर शैली को इस प्रकार बयान करते हैं” मदीना प्रवेश के आरंभिक महीनों में पैग़म्बरे इस्लाम ने जो कार्य अंजाम दिये उनमें एक मुसलमानों को एक दूसरे का भाई बनाना था। हम जो यह कहते हैं कि हम एक दूसरे के भाई हैं तो यह इस्लाम में केवल ज़बान से कही जाने वाली बात नहीं है बल्कि वास्तव में मुसलमान एक दूसरे के भाई हैं और उन पर एक दूसरे के प्रति भाई की ज़िम्मेदारी है। जिस तरह भाइयों का एक दूसरे पर अधिकार होते हैं उसी तरह उन्हें एक दूसरे के परस्पर अधिकारों व दायित्वों का निर्वाह करना चाहिये। पैग़म्बरे इस्लाम ने इस चीज़ को व्यवहारिक बनाया।“
वरिष्ठ नेता आगे कहते हैं” उन्होंने यानी पैग़म्बरे इस्लाम ने मुसलमानों को दो- दो करके एक दूसरे का भाई बनाया और इस कार्य में उन्होंने परिवारों, मदीना के धनाढ्य व गणमान्य लोगों और कुरैश में कोई अंतर नहीं किया। श्याम वर्ण के दास को एक बड़े व्यक्ति का और आज़ाद दास को जाने- माने बनी हाशिम या कुरैश के किसी के बेटे का भाई बना दिया। बहरहाल इस भाईचारे के विभिन्न आयाम थे जिसका एक महत्वपूर्ण आयाम यही था कि मुसलमान एक दूसरे की अपेक्षा भाईचारे का आभास करें।“
जीवन के वातावरण को स्वच्छ बनाने के लिए पैग़म्बरे इस्लाम की एक शैली लोगों के मध्य सकारात्मक सोच उपन्न करनी थी। पैग़म्बरे इस्लाम ने इस संबंध में केवल सिफारिश नहीं की बल्कि व्यवहारिक रूप से उन्होंने मुसलमानों के मध्य एक दूसरे के बारे में अच्छा विचार और सकारात्मक सोच रखने का बीज बो दिया। वरिष्ठ नेता का मानना है कि अज्ञानता के काल में जब अरब एक दूसरे से बहुत अधिक दुश्मनी और कबायली व पारिवारिक भेदभाव करते थे, पैग़म्बरे इस्लाम ने प्रेम व दया से उनके दिलों को एक दूसरे से साफ करने का प्रयास किया। इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता इस संबंध में पैग़म्बरे इस्लाम के शिक्षाप्रद व सुन्दर व्यवहार का नमूना पेश करते हुए कहते हैं” कुछ मुसलमान पैग़म्बरे इस्लाम के पास आते और एक दूसरे की बुराई करते थे और एक दूसरे के बारे में बातें करते थे कभी सही तो कभी वास्तविकता के विरुद्ध बात करते थे। पैग़म्बरे इस्लाम ने लोगों से फरमाया” कोई भी मेरे साथियों व अनुयाइयों के बारे में मुझ से कुछ न कहे। हमेशा मेरे पास एक दूसरे की बुराई न करो। मैं चाहता हूं कि जब लोगों के मध्य जाऊं और अपने साथियों व अनुयाइयों के मध्य जाऊं तो मेरा मन साफ रहे और हर प्रकार के नकारात्मक विचार के बिना मुसलमानों के मध्य जाऊं।“
इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता पैग़म्बरे इस्लाम के इस महत्वपूर्ण कथन को हर काल की समस्त पीढ़ियों के लिए नैतिक और मानवीय पाठ मानते हैं। वरिष्ठ नेता इस संबंध में सिफारिश करते हैं” देखो पैग़म्बरे इस्लाम का यह व्यवहार इस चीज में कितनी सहायता करता है कि मुसलमान यह सोचें कि इस्लामी समाज में लोगों के प्रति नकारात्मक सोच के बिना और सकारात्मक विचार के साथ व्यवहार करना चाहिये। रवायत में है कि जब भ्रष्ट शासक की सरकार हो तो हर चीज़ को भ्रांति की दृष्टि से देखो परंतु जब समाज में अच्छे व भले शासक की सरकार हो तो भ्रांति व नकारात्मक विचार को छोड़ दो और एक दूसरे के बारे में सकारात्मक विचार रखो, एक दूसरे की बातों को सकारात्मक दृष्टि दे देखो और सुनो, एक दूसरे की बुराइयों को न देखो, एक दूसरे की अच्छाइयों को देखो।“
समाज में स्वच्छ वातारण, प्रेम व भाईचारा और मुसलमानों के मध्य एक दूसरे के प्रति सकारात्मक सोच उत्पन्न के लिए पैग़म्बरे इस्लाम की एक अन्य शिक्षाप्रद शैली काना- फूसी से रोकना था। इस बारे में इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता कहते हैं” मुसलमानों में यह परम्परा थी कि वे पैग़म्बरे इस्लाम के पास आते थे और उनके कान में कहते थे और कान में गुप्त बातों को कहते थे कि कुरआन की आयत उतरी और लोगों को पैग़म्बरे इस्लाम के कान में कहने से मना कर दिया क्योंकि इससे दूसरे मुसलमानों में भ्रांति उत्पन्न होती थी। हां ये बातें मुसलमानों में मिथ्याचार का कारण बनी थीं और इनसे मुसलमानों को तकलीफ होती थी। पैग़म्बरे इस्लाम के कहने और मना करने के बावजूद इस नापसंद काम को कुछ मुसलमानों ने इतना दोहराया व अंजाम दिया कि ईश्वर ने कई आयतों में मुसलमानों को कान में बात करने से मना किया क्योंकि यह लोगों के मध्य भ्रांति का कारण बन रही थी।
पैग़म्बरे इस्लाम इसी प्रकार लोगों को एक दूसरे पर आरोप लगाने से मना करते थे। पैग़म्बरे इस्लाम विशेषकर मिथ्याचारियों को इस बात की अनुमति नहीं देते थे कि वे निराधार बातों व आरोपों का सहारा लेकर समाज में भ्रांति फैलायें। ईरान की इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता पैग़म्बरे इस्लाम की इस गहरी दृष्टि को एक बहुत गूढ़ व महत्वपूर्ण नैतिक बिन्दु मानते हैं।
वरिष्ठ नेता इस बारे में पवित्र कुरआन के सूरे नूर की आयतों की ओर संकेत करते हैं। जब एक निर्दोष महिला पर अनुचित आरोप लगाया गया तो सूरे नूर की ये आयतें नाज़िल हुईं। वरिष्ठ नेता इन आयतों के दृष्टिगत कहते हैं” मिथ्याचारी और बुरा चाहने वाले समाज में जो झूठ फैलाते थे कुरआन इस सूरे में उसके बारे में बहुत संवेदनशीलता दिखाता है और निरंतर कई आयतों में बहुत कड़े स्वर में मुसलमानों को संबोधित करते हुए कहता है” जब तुमने निराधार आरोप सुना तो क्यों कहने वाले के प्रति कड़ा रुख नहीं अपनाया और क्यों इस आरोप व अफवाह का कड़ाई से खंडन नहीं किया।“
अतः इस्लाम में है कि अगर कोई किसी पर विशेष आरोप लगाये और अगर वह धर्म में अनिवार्य कार्यों को अंजाम देने वाले और हराम कार्यों से परहेज़ करने वाले चार गवाहों के माध्यम से अपने आरोप को सही सिद्ध नहीं कर पाता है तो स्वयं आरोप लगाने वाले के विरुद्ध निर्णय दिया जायेगा और उसे कोड़े लगाये जायेंगे। एसा नहीं है कि आप हवा में बात कह दें और लोगों में भ्रांति उत्पन्न और दिलों को चिंतित करें और लोगों को कष्ट पहुंचायें। वरिष्ठ नेता का मानना है कि यह महत्वपूर्ण आदेश इस्लामी इतिहास और पैग़म्बरे इस्लाम के काल की महत्वपूर्ण घटना है कि इस आदेश के माध्यम से इस्लामी समाज में लोगों के व्यक्तिगत मामलों में अफवाह फैलाने को जड़ से कमज़ोर कर दिया गया। क्योंकि वरिष्ठ नेता के शब्दों में निराधार आरोप व अफवाह लोगों में एक दूसरे के प्रति भ्रांति उत्पन्न होने और समाज के अस्वस्थ होने का कारण बनता है। वरिष्ठ नेता इस्लाम को एक व्यापक धर्म बताते हैं और वह इस्लामी समाज में भाईचारा उत्पन्न की बहस को जारी रखते हुए कहते हैं” इस आधार पर पैग़म्बरे इस्लाम का एक कार्य यह था कि समाज के वातावरण को प्रेम से ओत- प्रोत बना दें ताकि सब लोग उसमें एक दूसरे से प्रेम करें और सदभावना की नज़र से एक दूसरे को देखें। आज भी हमारा दायित्व यही है।“
समाज को नैतिक दृष्टि से स्वच्छ व स्वस्थ बनाने के लिए पैग़म्बरे इस्लाम के जीवन की एक शैली यह थी कि वह दूसरों की ग़लतियों की अनदेखी कर देते थे। जब इस्लाम का दायरा काफी फैल गया और पैग़म्बरे इस्लाम ने पवित्र नगर मक्का पर विजय कर ली तो उन्होंने मक्कावासियों को क्षमा कर दिया। वरिष्ठ नेता कहते हैं कि मक्का के लोग वही लोग थे जिन्होंने पैग़म्बरे इस्लाम को अपने नगर से निकाल दिया था और पैग़म्बरे इस्लाम ने मक्का वासियों द्वारा दिये जाने वाले कष्टों व पीड़ाओं का सहन 13 वर्षों तक किया था किन्तु पैग़म्बरे इस्लाम जैसे ही मक्के में प्रविष्ट हुए सार्वजनिक क्षमा की घोषणा की और फरमाया” तुम सब आज़ाद हो यानी मैंने तुम सबको आज़ाद और माफ कर दिया।“ पैग़म्बरे इस्लाम ने क़ुरैश को माफ कर दिया और सब खत्म हो गया। इस प्रकार द्वेष और दुश्मनी को बाकी नहीं रहने दिया।
पैग़म्बरे इस्लाम के पावन जीवन का एक सुन्दर अध्याय यह था कि लोगों में एक दूसरे के प्रति लापरवाह रहने का जो वातावरण था उसे उन्होंने प्रेम, सहयोग और भाईचारे में बदल दिया। ईरान की इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता पैग़म्बरे इस्लाम के इस तत्वदर्शी व्यवहार की ओर संकेत करते हैं और प्रेम उत्पन्न करने तथा एक दूसरे के प्रति मुसलमानों की ज़िम्मेदारी के आभास को समाज को सुरक्षित बनाने के लिए वह बहुत महत्वपूर्ण और आज मानवता की ज़रुरत मानते हैं। वरिष्ठ नेता इस बारे में कहते हैं” इस बात को इस्लाम में पसंद नहीं किया जाता है कि मुसलमान एक दूसरे से कोई मतलब न रखें और हर आदमी अपनी अलग दुनिया बना ले और उसे दूसरे मुसलमानों से कोई मतलब न रहे। मुसलमानों को चाहिये कि वे एक दूसरे से प्रेम, शुभचिंता और लेशमात्र उपेक्षा किये बिना एक दूसरे का ध्यान रखें।
सहकारिता, सहृदयता, शुभचिंता और मुसलमानों के मध्य परस्पर प्रेम पैग़म्बरे इस्लाम का एक अन्य कार्य था। महान पैग़म्बर जब होते थे और उनके बस में होता था तो वे इस्लामी समाज में इस बात की अनुमति नहीं देते थे कि किसी एक बात पर भी मुसलमानों के मध्य दुश्मनी और द्वेष रहे। पैग़म्बरे इस्लाम ने अपनी तत्वदर्शिता और धैर्य से वास्तव में एक सुन्दर, स्वच्छ और प्रेम से भरा वातावरण उत्पन्न कर दिया था।“