Apr १२, २०१७ १३:०४ Asia/Kolkata

आधी से अधिक शताब्दी में अरबों और अतिग्रहणकारी जायोनी शासन के मध्य विभिन्न युद्ध हुए हैं।

हर बार इन युद्धों में अनगिनत लोगों के भेंट चढ़ने वालों के अतिरिक्त क्षेत्र के पर्यावरण को भी बहुत अधिक नुकसान पहुंचा है। ज़ायोनी शासन ने वर्ष 2006 में दक्षिणी लेबनान पर व्यापक हमला किया था। उस हमले के परिणाम में पर्यावरण को जो नुकसान पहुंचा था उसे एक नमूने के रूप में देखा जा सकता है। जायोनी शासन ने वर्ष 2006 में लेबनान के इस्लामी प्रतिरोध आंदोलन हिज़्बुल्लाह पर जो युद्ध थोपा था उसमें लगभग 1500 लोग मारे गये थे जिनमें अधिकांश आम नागरिक थे। इस भुझ में 15 हज़ार से अधिक मकानों को क्षति पहुंची थी परंतु यह त्रासदी यहीं पर समाप्त नहीं हुई क्योंकि यह युद्ध लेबनान के पर्यावरण और सांस्कृतिक धरोहरों के लिए भी नरक साबित हुआ।

बैरूत के दक्षिण में 20 किलोमीटर की दूरी पर एक बिजलीघर पर ज़ायोनी शासन के हवाई हमले में भूमध्य सागर के पूर्वी भाग में तेल का सबसे बड़ा रिसाव हुआ था इस प्रकार से कि लगभग 15 हज़ार टन अर्थात 40 लाख गैलेन से अधिक कच्चा तेल समुद्र में बह गया और वह लेबनान और सीरिया के समुद्री तट पर फैल गया। इस तेल का महत्वपूर्ण भाग 75 किलोमीटर तक लेबनान के समुद्री तट और सीरिया तथा तुर्की के समुद्री तटों के कुछ भागों तक फैल गया और बाक़ी समुद्र की तह में बैठ गया। इसी प्रकार जायोनी शासन के इस हमले के परिणाम में इस बिजलीघर में 25 हज़ार टन तेल जल गया। यह जला तेल आसमान में विषैला बादल बनने और दूषित वर्षा होने का कारण बना। इसी प्रकार जायोनी शासन ने बैरूत के अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर जो बमबारी की थी उसके परिणाम में 40 हज़ार टन वाइट पेट्रोल में आग लग गई। दूसरी ओर तेल शोधक कारखानों, पेट्रोल पम्पों और प्लास्टिक की वस्तुओं का निर्माण करने वाले कारखानों से विषैले पदार्थों के निकलने से भी लेबनान के पर्यावरण को बहुत क्षति पहुंची है।

ज़ायोनी शासन के इस पाश्विक हमले के परिणाम में विश्व की सबसे प्राचीन मानव जीवन स्थली अर्थात प्राचीन फोनीशिया बंदरगाह भी हज़ारों टन कच्चा तेल फैल जाने से दूषित हो गयी जबकि इस बंदरगाह को रोम साम्राज्य के हमले में और सलीबी और दूसरे युद्धों में कोई क्षति नहीं पहुंची थी परंतु जायोनी शासन के पाश्विक हमले में उसे गम्भीर क्षति पहुंची। इसी प्रकार लेबनान की हज़ारों वर्ष पुरानी सांस्कृतिक धरोहरों पर भी जायोनी शासन ने भीषण बमबारी की। जायोनियों ने अपने हवाई हमलों से लेबनान के प्राचीन शहर ताएर, फोनीशियों और रोमियों से संबंधित खंडर, लेबनान के प्रसिद्ध व प्राचीन सरो के जंगल, संरक्षित क्षेत्र अश्शौफ और बालबक्क नगर को लक्ष्य बनाया। ज्ञात रहे कि विश्व का सबसे ऊंचा स्तंभ लेबनान के बालबक्क नगर में है।

अलबत्ता ज़ायोनियों के अपराध न तो इसी युद्ध तक सीमित थे और न हैं। जायोनी शासन ने विभिन्न कालों में फिलिस्तीन के ग़ज़्जा पट्टी क्षेत्र पर हमला किया। इन युद्धों के कारण गज़्ज़ा पट्टी के 15 लाख लोगों को विभिन्न प्रकार की समस्याओं के अतिरिक्त क्षेत्र के पर्यावरण को भी अनगिनत खतरों का सामना है। जायोनी शासन ने वर्ष 2008 में गज्जा पट्टी पर जो 22 दिवसीय युद्ध आरंभ किया था और उसमें उसने जो अपराध किये थे उनके दुष्परिणामों को इस प्रकार के अपराधों के नमूने के रूप में देखा जा सकता है।

ज़ायोनी शासन ने स्वीकार किया है कि इस युद्ध में उसने सफेद फास्फोरस और हल्के यूरेनियमयुक्त हथियारों का प्रयोग किया है। इन हथियारों से लोगों और क्षेत्र के पर्यावरण को बहुत नुकसान पहुंचा है। फास्फोरस के गोले जब जमीन पर लगते हैं तो वे सौ छोटे व सूक्ष्म गोलों में परिवर्तित हो जाते हैं और 45 मीटर तक के क्षेत्र में जो चीज़ें होती हैं उन्हें जला देते हैं और पूरे क्षेत्र को दूषित करते हैं। फास्फोरस के जलने से जो गैस निकलती है वह हवा को भी दूषित करती है और विशेषकर बच्चों और बड़ी उम्र के लोगों के सांस लेने और नर्वस सिस्टम को प्रभावित करती है। गज्जा पट्टी के 22 दिवसीय युद्ध में फास्फोरस के गोले नदियों तक में चले गये और वहां पर उन्होंने मछलियों को भी दूषित कर दिया जो क्षेत्र के लोगों का भोजन हैं।

संयुक्त राष्ट्रसंघ के पर्यावरण कार्यक्रम के निदेशक एचिम स्टेनर Echiem stainer ने इस युद्ध से पर्यावरण को होने वाली क्षति के संदर्भ में घोषणा की है कि परिवेष्टन और बड़े पैमाने पर किये जाने वाले हमले से गज्ज़ा पट्टी के पर्यावरण को गम्भीर क्षति पहुंची है।

उस समय गज्जा पट्टी के पर्यावरण को जो क्षति पहुंची उसके तीन मुख्य कारण थे। पहला कारण यह था कि जायोनियों द्वारा गज्जा पट्टी का परिवेष्टन और समस्त रास्तों के बंद होने के कारण क्षेत्र के लोगों ने ईंधन के लिए प्रयोग होने वाले तेल के स्थान पर इस कार्य के लिए खाने वाले तेलों का प्रयोग किया।

दूसरा कारण गंदे पानी को नदियों में बहा देना जो भूमिगत पानी और भूमध्यसागर के दूषित होने का कारण बना और इस चीज़ ने ज़िम्मेदारों और गज्जा पट्टी के लोगों के स्वास्थ्य के सामने बड़ी चुनौती खड़ी कर दी और अंततः सड़कों पर कूड़ा जमा हो गया जो क्षेत्र के पर्यावरण के दूषित होने का कारण बना।

दूसरी ओर इस क्षेत्र में बहुत अधिक सैनिक अड्डों का बन जाना क्षेत्र की हरियाली में ध्यान योग्य कमी का कारण बना है।

विशेषज्ञों के अनुसार जायोनी शासन की परमाणु गतिविधियां भी अन्य कारण हैं जिससे क्षेत्र के पर्यावरण को गम्भीर क्षति पहुंच रही है। उदाहरण स्वरूप जायोनी शासन के डिमोना परमाणु संयंत्र के हानिकारक और नकारात्मक प्रभावों से पर्यावरण और फिलिस्तीनियों को पहुंचने वाली क्षति के प्रति चिंता वर्षों से ऐसा विषय रही है जिस पर बहुत से विशेषज्ञों, पर्यावरण और मानवाधिकार संगठनों ने ध्यान दिया है। यूरेनियम विकिरण और परमाणु कचरे का दफ्न होना वह खतरा है जिसका इस परमाणु संयंत्र के निकट रहने वालों को सामना है। जार्डन का एक वैज्ञानिक सुफयानुत्तल उन लोगों में से है जिन्होंने अवैध अधिकृत दक्षिणी फिलिस्तीन में स्थित जायोनी शासन के डिमोना परमाणु संयंत्र से पर्यावरण को पहुंचने वाली क्षति के बारे में चेतावनी दी है। सुफयानुत्तल कहता है “जायोनी शासन  ने भूमध्य सागर में परमाणु कचरा खाली करके जिससे लेबनान, सीरिया और फिलिस्तीन जुड़े हुए हैं, अंतरराष्ट्रीय कानूनों का उल्लंघन किया है।

यद्यपि कहा यह जाता है कि डिमोना परमाणु संयंत्र को बिजली पैदा करने के लिए बनाया गया है परंतु उसका मूल कार्य परमाणु हथियारों के लिए प्लूटोनियम पैदा करने हेतु यूरेनियम का संवर्द्धन है। कई दशकों से इस बिजलीघर के रियेक्टर काम कर रहे हैं और अब तक वे सैकडों किलो संवर्द्धित यूरेनियम को परमाणु हथियारों के लिए आवश्यक प्लूटोनियम में बदल चुके हैं। इस बिजलीघर की उपयोगिता से हटकर, इसमें जो उपकरण काम कर रहे हैं वे पुराने हो चुके हैं जिसके दृष्टिगत बहुत अधिक चिंता उत्पन्न हो गयी है। अब तक जायोनी शासन के डिमोना परमाणु संयंत्र से विकिरण के कारण दसियों व्यक्ति कैंसर से ग्रस्त हो चुके हैं। कई साल पहले जायोनी समाचार पत्र हारेत्ज़ HAARETZ ने एक खबर में डिमोना परमाणु संयंत्र में काम करने वाले 44 कर्मचारियों और उनके परिजनों की शिकायतों की ओर संकेत किया और लिखा कि इन लोगों को अपने कार्य स्थल में परमाणु विकिरण का सामना है जिसके कारण वे कैंसर से ग्रस्त हो गये। इन व्यक्तियों के वकीलों ने भी कहा कि सुरक्षा के आवश्यक उपकरणों का न होना इस त्रासदी का कारण बना। जायोनी शासन के वैज्ञानिकों का मानना है कि इस संयंत्र का निर्माण 20वीं शताब्दी के 6ठें दशक में हुआ था और उसके निर्माण के पुराना होने के कारण वह अपने आस- पास के क्षेत्रों के लोगों के लिए खतरा बन गया है। एक फिलिस्तीनी भौतिकशास्त्री महमूद साअदा ने डिमोना परमाणु संयंत्र के बारे में शोध किया है। वह अपने शोध में इस परिणाम पर पहुंचे हैं कि फिलिस्तीन की भूमि सीधे रूप से डिमोना परमाणु संयंत्र के विकिरण से प्रभावित है और इसी परमाणु विकिरण के कारण कैंसर सहित विभिन्न प्रकार की बीमारियों में वृद्धि हो गयी है।“

अलखलील नगर के गांवों की महिलाओं में बांझपन की रिपोर्टें प्राप्त हुई हैं। इसी प्रकार की रिपोर्टें वहां के पुरुषों के बारे में भी हैं। एक फिलिस्तीनी अधिकारी ने भी घोषणा की है कि जायोनी अधिकारियों ने 80 टन परमाणु कचरा नाबलस नगर से 300 मीटर की दूरी पर दफ्न किया है और वे अधिक बचे हुए परमाणु कचरे को गज्जा पट्टी, नाबलस और अलखलील जैसे नगरों के आस- पास दफ्न करने के प्रयास में हैं। इस कार्य का परिणाम क्षेत्र के लोगों और पर्यावरण के लिए विनाशकारी है और परमाणु विकिरण के कारण वह भूमिगत जल के दूषित होने का कारण बनेगा।“

जायोनी शासन के अपराध यहीं  खत्म नहीं होते बल्कि जायोनियों की कार्यवाहियां इस सीमा तक शत्रुतापूर्ण हैं कि वे युद्धों और फिलिस्तीन पर बमबारी में हल्के यूरेनियमयुक्त हथियारों का भी प्रयोग करते हैं। इंसानों के स्वास्थ्य और पर्यावरण पर इन हथियारों के बहुत विनाशकारी प्रभाव षड़ते हैं और खेद की बात यह है कि अंतरराष्ट्रीय संगठन सदैव इन कार्यवाहियों की अनदेखी कर देते हैं। अंतरराष्ट्रीय संगठनों और मानवाधिकार की रक्षा का दम भरने वाले देशों का इस संबंध में व्यवहार निर्दोष लोगों के अधिकारों और पर्यावरण की रक्षा में स्पष्ट विरोधाभास का सूचक है।