Apr २३, २०१७ १३:५१ Asia/Kolkata

इससे पहले के कार्यक्रम में तकफ़ीरी वहाबियों के बारे में कुछ सुन्नी धर्मगुरुओं के दृष्टिकोणों की चर्चा की गई।

मिस्र के अलअज़हर विश्व विद्यालय के प्रमुख शैख़ अहमद तैयब ने मुस्लिम धर्मगुरुओं की परिषद की बैठक में, दाइश के आतंकियों की हिंसक कार्यवाहियों के बारे में कहा कि इस प्रकार की हिंसा का वास्तविक इस्लाम से कोई संबंध नहीं है। उन्होंने कहा कि इस समय होने वाले अपराधों, बम धमाकों और विध्वंसक कार्यवाहियों को सिर्फ़ इस वजह से इस्लाम से संबंधित बताना कि इन्हें अंजाम देने वाले लोग अपराध के समय अल्लाहो अकबर कहते हैं, एक खुला अत्याचार और स्पष्ट भेदभाव है। उन्होंने कहा कि आतंकवाद, किसी भी इब्राहीमी धर्म की पैदावार नहीं है बल्कि यह एक मानसिक बीमारी है जो धर्म को एक मोर्चे के रूप में इस्तेमाल कर रही है।

शैख़ अहमद तैयब

 

अलअज़हर विश्व विद्यालय के वकील डॉक्टर अब्बास शूमान भी कहते हैं कि हमने अलअज़हर में अनेक बार मुसलमानों और निर्दोष लोगों के जनसंहार के दाइश के अपराधों, ईसाइयों को ज़बरदस्ती उनके घर-बार से बाहर निकालने और ईज़दी महिलाओं के उत्पीड़न की निंदा की है क्योंकि इस्लाम में धार्मिक स्वतंत्रता का वातावरण है और सभी विरोधियों को, जब तक वे हमारी आस्थाओं पर हमला न करें और हमारे विरुद्ध कोई अपराध न करें, धार्मिक स्वतंत्रता की गारंटी दी गई है, जैसा कि ईश्वर क़ुरआने मजीद में कहता हैः जो चाहे, ईमान ले आए और जो चाहे कुफ़्र अपनाए। मिस्र के वरिष्ठ मुफ़्ती शैख़ शौक़ी अल्लाम, दाइश के बारे में कहते हैं। जो कार्यवाहियां दाइश गुट इराक़ में कर रहा है वह किसी भी रूप में जेहाद नहीं है। वे इस बात की घोषणा करते हुए कि इस्लाम का संदेश पूरे संसार के लिए प्रेम व स्नेह है, कहा कि जो भी चरमपंथी विचारों पर ग़ौर करता है उसे पता चल जाता है कि चरमपंथियों की बातें और उनके द्वारा दर्शाए जाने वाले अपराधों के औचित्य इस्लामी शिक्षाओं से किसी भी तरह मेल नहीं खाते। मिस्र के वरिष्ठ मुफ़्ती का कहना था कि हमने जो समीक्षाएं की हैं उनके अनुसार दाइश ने क़ुरआने मजीद की 50 आयतों की ग़लत व्याख्या की है और उन्हें अपने हितों के लिए इस्तेमाल करने की कोशिश की है।

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मिस्र के एक मुस्लिम विद्वान और इस्लामी शोध महासभा के सदस्य मुहम्मद शह्हात जुंदी बल देकर कहते हैं कि दाइश एक आतंकी गुट है जिसने हिंसा, हत्या और जनसंहार को अपनी नीतियों में सबसे ऊपर रखा है और अपने हथियारों का रुख़ मुसलमानों की ओर कर रखा है। इस प्रकार की कार्यवाहियों पर इस्लाम ने रोक लगाई है। वे इसी प्रकार कहते हैं कि दाइश सुन्नी मुसलमानों का प्रतिनिधि नहीं है बल्कि वह अपने आपको ऐसा दर्शाने की कोशिश करता है क्योंकि सुन्नियों को किसी भी रूप में शियों से युद्ध करने का अधिकार नहीं है और यह बात दाइश को इराक़ में अशांति फैलाने का बहाना प्रदान नहीं कर सकती।

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सुन्नी मुसलमानों के बीच क़ाहेरा की केंद्रियता और अलअज़हर की साख को देखते हुए मिस्र के सुन्नी धर्मगुरुओं के विचार अत्यधिक अहम हैं। संसार के अनेक देशों के सुन्नी धर्मगुरुओं ने अलअज़हर विश्व विद्यालय में शिक्षा हासिल की है। दूसरे मुस्लिम देशों में भी सुन्नी धर्मगुरुओं ने आतंकी गुट दाइश की प्रवृत्ति और उसके तकफ़ीरी व आतंकी अपराधों के बारे में खुल कर विचार पेश किए हैं। पाकिस्तान में अलअज़हर विश्व विद्यालय की शाखा के प्रमुख शैख़ साहबज़ादा अज़ीज़ ने कहा है कि आतंकवादी गुट दाइश, मुसलमानों की हत्या, उनका ख़ून बहाने और उनकी लड़कियों व महिलाओं के बलात्कार के लिए एक ज़ायोनी षड्यंत्र है। पाकिस्तान उलमा कौन्सिल ने एक बयान जारी करके दाइश की निंदा की है और उसकी कार्यवाहियों को ग़ैर इस्लामी बताते हुए कहा कि इन कार्यवाहियों से इस्लाम की शिक्षाओं पर प्रश्न उठ रहे हैं। इस बयान में कहा गया है कि इस्लाम और मुसलामन कभी यह बात सहन नहीं कर सकते कि कोई निर्दोषों की हत्या करे और उनकी संपत्ति को लूट ले। पाकिस्तान उलमा कौन्सिल ने पूरी दुनिया के युवाओं और मुसलमानों से अपील की है कि वे ऐसे किसी भी गुट से सहयोग न करें जो हिंसा से काम लेता हो और इस्लाम की शिक्षाओं और पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम के कथनों को रौंदता हो।

भारत के एक हज़ार पचार मुस्लिम धर्मगुरुओं ने घोषणा की है कि तकफ़ीरी आतंकी गुट दाइश की कार्यवाहियों इस्लाम धर्म के सिद्धांतों व शिक्षाओं के विरुद्ध हैं। भारत के वरिष्ठ धर्मगुरुओं ने, दाइश की आलोचना में जिनके फ़त्वे पंद्रह खंडों की पुस्तक में छप चुके हैं, कहा है कि इस्लाम, हत्या, विध्वंस और पवित्र मान्यताओं के अनादर का धर्म नहीं है। भारत के इन मुस्लिम धर्मगुरुओं ने पंद्रह खंडों वाली अपनी किताब, जो इतिहास में फ़त्वों की सबसे बड़ी किताब समझी जाती है, संयुक्त राष्ट्र संघ के तत्कालीन महासचिव बान की मून सहित संसार के सभी राष्ट्राध्यक्षों को भेजी है। इन फ़त्वों पर हस्तक्षार करने वालों में दिल्ली की जामा मस्जिद के इमाम सैयद अहमद बुख़ारी, अजमेर शरीफ़ व निज़ामुद्दीन औलिया दरगाहों के वरिष्ठ संचालक, मुंबई की रज़ा एकेडमी के सदस्य, जमीआते उलमा, और उलमा कौन्सिल के सदस्य और सैकड़ों अन्य धर्मगुरू और वरिष्ठ मुस्लिम बुद्धिजीवी शामिल हैं।

सैयद अहमद बुख़ारी

 

आतंकी गुट दाइश अफ़ग़ानिस्तान में भी काफ़ी सक्रिय है और इस देश के मुस्लिम धर्मगुरुओं ने भी इस तकफ़ीरी व आतंकी गुट के अपराधों की निंदा की है। अफ़ग़ानिस्तान की उलमा कौन्सिल ने घोषणा की है कि इस्लाम की दृष्टि से दाइश के सभी कृत्य ग़लत व निंदनीय हैं और इस गुट ने संसार के समक्ष इस्लाम की हिंसक तस्वीर पेश की है। दाइश की ओर से अन्य धर्मों की औरतों के बलात्कार को सही ठहराए जाने बल्कि उसे उपासना बताए जाने के बाद अफ़ग़ानिस्तान की उलमा कौन्सिल का यह बयान सामने आया है। इस कौन्सिल के प्रवक्ता मौलवी मुहम्मद क़ासिम हलीमी ने इस बारे में कहा कि इस्लाम ने अपने अनुयाइयों को शांति, बंधुत्व और समानता का निमंत्रण दिया है और वह महिलाओं को बंदि बनाने और उनके बलात्कार की कदापि अनुमति नहीं देता। इस गुट की सभी कार्यवाहियां न केवल यह कि इस्लाम के अनुसार नहीं हैं बल्कि इस्लाम इस प्रकार के लोगों पर धिक्कार करता है। यह गुट, धर्म का प्रतिनिधि नहीं है, इस्लाम में कहां कहा गया है कि लोगों को बम से उड़ाया जाए या दो दिन के बच्चे को काट दिया जाए या महिलाओं का बलात्कार किया जाए? दाइश न केवल यह कि बलात्कार बल्कि हत्या और अनेकेश्वरवाद को भी सही समझता है। उसके सभी काम इस्लाम के विरुद्ध हैं। बड़े खेद की बात है कि कुछ लोग अब भी दाइश के आतंकियों को इस्लाम के मुजाहिद या संघर्षकर्ता समझते हैं जबकि इसके विपरीत ये लोग जो काम कर रहे हैं उससे इस्लाम बदनाम हो रहा है।

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लेबनान की अलउम्मा पार्टी के प्रमुख और वरिष्ठ सुन्नी धर्मगुरू शैख़ अब्दुन्नासिर अलजबरी दाइश के बारे में कहते हैं। दाइश जैसे इन तकफ़ीरी गुटों की कार्यवाहियां पूरी तरह से इस्लाम विरोधी हैं और लोगों का दायित्व है कि हर संभव तरीक़े से इन ख़तरनाक गुटों का मुक़ाबला करें ताकि इस्लामी समुदाय को इन गुटों के ख़तरे से मुक्ति मिल जाए। उन्होंने कहा कि दूसरों का काफ़िर ठहराना पैग़म्बरे इस्लाम के चरित्र के विपरीत है। पैग़म्बरे कहते थे कि जो भी ला इलाहा इल्लल्लाह, मुहम्मदुर्रसूलुल्लाह कह दे उसकी जान, माल और इज़्ज़त सम्मानीय है। शैख़ अब्दुन्नासिर अलजबरी कहते हैं कि अमरीका कोशिश कर रहा है कि तकफ़ीरी गुटों के माध्यम से क्षेत्र को आग में झोंक दे। आज तकफ़ीरियों के विचारों के कारण इराक़, सीरिया और लीबिया में निर्दोष लोगों का जनसंहार किया जा रहा है और बड़े शैतान अमरीका की ओर से इन तकफ़ीरी आतंकियों का समर्थन किया जा रहा है।

ट्यूनीशिया के वरिष्ठ मुफ़्ती शैख़ हमद सईद भी तकफ़ीरी आतंकी गुट दाइश के बारे में कहते हैं कि चरमपंथी गुट और तकफ़ीरी आतंकी गुट, इस्लामी जगत के लिए कैंसर से भी अधिक ख़तरनाक हैं। जो लोग उनकी मदद करते हैं वे वास्तव में फ़िलिस्तीन के विषय को भुलाने में इस्राईल की मदद करते हैं। उनका कहना है कि दाइश, इस्लामी जगत के पतन और सलीबी युद्धों या क्रूसेड्स को जारी रखने का षड्यंत्र है।

 

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