पर्यावरण के लिए अमरीकी ख़तरे।
मार्च सन 2017 के अन्तिम सप्ताह में संचार माध्यमों ने एसी ख़बर पेश की जिससे लोगों, विशेषकर पर्यावरण के समर्थकों में चिंता उत्पन्न हो गई।
ख़बर यह थी कि अमरीका के राष्ट्रपति ट्रंप ने जलवायु परिवर्तन से संघर्ष के समझौते को रद्द कर दिया है। अमरीका के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा ने सन 2015 में एक एसे आदेश पर हस्ताक्षर किये थे जिसके आधार पर स्वच्छ ऊर्जा कार्यक्रम के लागू होने की स्थिति में पत्थर के कोयले से चलने वाले बिजलीघरों द्वारा ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन सीमित हो जाएगा किंतु ट्रम्प के नए आदेश से पर्यावरण को होने वाली हानि से बचाने वाला पुराना क़ानून भंग हो जाएगा।

ट्रम्प का नया आदेश यह दर्शाता है कि उनकी कार्यसूचि में धरती के बढ़ते तापमान को नियंत्रित करने का कोई कार्यक्रम नहीं है। इस प्रकार से एसा लगता है कि पेरिस के जलवायु समझौते को अनदेखा कर दिया जाएगा। यह वह समझौता है जिसको धरती पर बढ़ते तापमान को रोकने के उद्देश्य से वर्षों के वार्तालाप के बाद तैयार करके पारित कराया गया था।
जलवायु परिवर्तन एक ऐसा विषय है जिसने पिछले कुछ दशकों से दुनिया भर के विद्धानों, राजनेताओं और बुद्धिजीवियों को अपनी ओर मोड़ रखा है। वैज्ञानिकों का कहना है कि जलवायु परिवर्तन ऐसा विषय है जिसने धरती पर रहने वाले प्राणियों के लिए नाना प्रकार की समस्याएं उत्पन्न कर दी हैं। शोध से पता चलता है कि पिछले 100 वर्षों के दौरान धरती का तापमान 0.18 से बढ़कर 0.74 सेंटीग्रेट हो चुका है। यदि यही प्रक्रिया जारी रहती है तो फिर आगामी 30 वर्षों में धरती का तापमान बढ़कर 1.1 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच सकता है। हालांकि देखने में तो यह बहुत ही मामूली सी वृद्धि नज़र आती है किंतु देखने में लगने वाली यही छोटी सी वृद्धि जलवायु को बहुत नुक़सान पहुंचा सकती है।
दूसरी ओर संयुक्त राष्ट्रसंघ ने भी चेतावनी दी है कि यदि वातावरण में होने वाले परिवर्तनों को रोकने के लिए गंभीर क़दम नहीं उठाए जाते हैं तो इस शताब्दी के अंत तक धरती का तापमान, 2.9 से बढकर 3.4 सेल्सियस हो जाएगा। इस प्रकार मानव समाज के लिए बहुत सी जटिल समस्याएं उत्पन्न होंगी जिनसे मानव जीवन के लिए गंभीर चुनौतियां सामने आएंगी।

बढ़ते हुए जलवायु परिवर्तनों का एक दुष्परिणाम, ग्लैशियर या हिमनदों का तेज़ी से पिघलना है। हिमनदों को प्राकृतिक थर्मामीटर की संज्ञा दी गई है। जैसे-जैसे धरती पर तापमान में वृद्धि होती है, उसी अनुपात में यह हिमनद पिघलने लगते हैं और जैसे-जैसे ढंड बढ़ती है इनका पिघलना कम होने लगता है। जिस समय ग्लैशियर या हिमनद पिघलते हैं तो महासागरों के पानी में भी वृद्धि होने लगती है। एक शोध रिपोर्ट में कहा गया है कि सन 1870 से अबतक विश्व के जलस्तर में 20 सेंटीमीटर से अधिक की वृद्धि हुई है। जानकारों का कहना है कि विश्व में जलस्तर में वृद्धि की प्रक्रिया आगे भी जारी रहेगी। इससे इस बात की संभावना पाई जाती है कि बहुत से वे तटीय क्षेत्र आज जहां पर लोग बसे हुए हैं उनमें आधे से अधिक जलस्तर के बढ़ने से जलमग्न हो जाएंगे। इस प्रकार से बहुत बड़ी संख्या में क्षेत्र और लोग डूब जाएंगे।
जलवायु परिवर्तन के दुष्परिणाम केवल प्रकृति तक सीमित नहीं हैं बल्कि धरती पर रहने वाली मानवजाति भी इन दुष्परिणामों से सुरक्षित नहीं रहेगी। जलवायु परिवर्तन से होने वाले ख़तरों में सूखा, जल संकट, खेती की भूमि में ह्रास, पैदावार में कमी और पशु-पक्षियों की भारी संख्या में मौतें आदि। इस आधार पर कहा जा सकता है कि बहुत से देशों में खाध संकट उत्प्न होगा और कहीं-कहीं पर भुखमरी और सूखे की समस्या सिर उठाएगी। धरती के बढ़ते तापमान से तरह-तरह की बीमारियां अस्तित्व में आएंगी जिससे मौसम में ख़राबियां पैदा होंगी।
आई पीसीसी की रिपोर्ट में कहा गया है कि किये गए शोधों से पता चलता है कि ग्रीन हाउस गैसों और कार्बनडाई आक्साइड के उत्सर्जन में जीवाश्म ईंधन की महत्वपूर्ण भूमिका है। सर्वेक्षणों से पता चलता है कि पत्थर के कोयले, तेल और गैस के प्रयोग से लगभग 40 अरब टन कार्बनडाई आक्साइड वातावरण में पहुंचता है। नार्वे के एक जानेमाने वैज्ञानिक गोल्डन पीटर्स ने बताया है कि बड़े खेद की बात है कि संसार में ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन बहुत तेज़ी से बढ़ रहा है। उन्होंने बताया कि हर क्षण लगभग 2.9 मिलयन कार्बन डाईआक्साइ वातावरण में प्रविष्ट होती है। ज्ञात रहे कि IPCC अर्थात Intergovernmental Panel on Climate Change संयुक्त राष्ट्र संघ का एक आधिकारिक पैनल है जो जलवायु में बदलाव और ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन पर गहरी नज़र रखता है।

निश्चित रूप में जलवायु परिवर्तन कोई ऐसा विषय नहीं है जिसे बड़ी सरलता से अनदेखा नहीं किया जा सके। विशेषज्ञों का कहना है कि ग्रीन गैसों के उत्सर्जन की जारी प्रक्रिया अगर इसी रूप में चलती रही तो सन 2080 तक वनस्पतियों की आधी से अधिक जातियां और इसी प्रकार जानवरों की एक तिहाई जातियां धरती से हमेशा के लिए ख़त्म हो जाएंगी। जानकारों के अनुसार यह एक एसी वास्तविकता है कि उत्सर्जन न रोकने की स्थिति में मानव जाति को उसका सामना करना पड़ सकता है।
इसी प्रकार की समस्याओं को देखते हुए नवंबर सन 2015 को फ़्रांस की राजधानी पेरिस में जलवायु परिवर्तन के बारे में अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलन हुआ था। इस बैठक में 11 दिनों के निरंतर विचार-विमर्श के बाद विश्व के देश, जलवायु परिवर्तन का मुक़ाबला करने के लिए तैयार हुए। जलवायु परिवर्तन से संबन्धित इस अन्तर्राष्ट्रीय सेमीनार में यह तय पाया था कि सन 2050 तक धरती के तापमान में बढ़ती वृद्धि को दो डिग्री से कम रखा जाए।
अमरीकी सरकार भी उन देशों में से एक है जिन्होंने धरती के बढ़ते तापमान को कम करने के समझौते पर हस्ताक्षर किये हैं। यही कारण है कि उसने स्वच्छ ऊर्जा कार्यक्रम पेश किया। स्वच्छ ऊर्जा कार्यक्रम पेश करने के साथ ही संयुक्त राज्य अमरीका के उदयोग के लिए अब यह ज़रूरी हो गया कि वह सन 2030 तक ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन को कम करने का पूरा प्रयास करें। अमरीकी पूर्व सरकार के इस कार्यक्रम के अनुसार तय यह हुआ था कि वे सारे बिजलीघर जो पत्थर के कोयले से चल रहे हैं उनको बंद कर दिया जाएगा और इस प्रकार के नए बिजलीघरों के निर्माण को रोक दिया जाए लेकिन 28 मार्च को अमरीका के वर्तमान राष्ट्रपति ट्रम्प के नए आदेशानुसार इस प्रकार की रुकावटें अब व्यवहारिक रूप में समाप्त हो जाएंगी। इस प्रकार से अमरीका बड़ी ही सरलता से पेरिस समझौते की अनदेखी कर सकता है।

अमरीकी राष्ट्रपति ट्रम्प ने अमरीका के पर्यावरण केन्द्र में अपने नए आदेश में ऐसी स्थिति में हस्ताक्षर किये कि इस समय अमरीका, चीन के बाद ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन करने वाला सबसे बड़ा देश है। अमरीका अकेले ही विश्व में 17 प्रतिशत ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन करता है।

पर्यावरण के समर्थकों ने चेतावनी दी है कि पर्यावरण के बारे में अमरीका की नई नीति, न केवल अमरीका बल्कि पूरी दुनिया के लिए दुष्परिणाम सामने लाएगी। इस बारे में विश्व के कई नेताओं और अधिकारियों ने अमरीका की नीतियों की निंदा की है। हालैण्ड के नोबेल पुरुस्कार विजेता पाल क्रोत्ज़ ने जलवायु परिवर्तन के बारे में ट्रम्प के आदेश पर अपनी प्रतिक्रिया में कहा है कि विश्व के बहुत से लोगों का मानना है कि यह नया आदेश, विश्वंसकारी सिद्ध हेगा। जलवायु परिवर्तन के क्षेत्र में अबतक जो कुछ प्राप्त किया गया है वह सब हमारे हाथों से निकल जाएगा। उन्होंने कहा कि मैं यह नहीं मानता कि विश्व के वैज्ञा,निक ट्रम्प के इस आदेश को स्वीकार कर लेंगे।