May ०७, २०१७ १५:४८ Asia/Kolkata

हमने इस्लाम द्वारा किसी निर्दोष व्यक्ति की हत्या को वर्जित क़रार दिए जाने का उल्लेख किया था।

सूरए मायदा की 32वीं आयत में उल्लेख है, जो कोई भी किसी इंसान को क़िसास अर्थात बदले की कार्यवाही या धरती पर उपद्रव मचाने के बिना क़त्ल कर दे, तो मानो उसने समस्त इंसानों का क़ल्त कर दिया, और जो कोई किसी इंसान को मौत के मुंह से बचा ले तो मानो उसने समस्त इंसानों को जीवन प्रदान किया है।

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क़ुरान स्पष्ट रूप से उल्लेख कर रहा है कि किसी भी निर्दोष इंसान की हत्या महापाप है। इस आधार पर तकफ़ीरी आतंकवादी निर्दोष लोगों की हत्याएं करके ऐसा पाप कर रहे हैं, जिसे माफ़ नहीं किया जा सकता। इस्लामी शिक्षाओं के विरुद्ध तकफ़ीरी गुट का दूसरा घिनौना कृत्य आतंकवादी कार्यवाहियां हैं। तकफ़ीरी अपने लक्ष्यों को साधने के लिए इस्लाम के नाम पर आतंकवादी कार्यवाहियां अंजाम देते हैं। तकफ़ीरी आतंकवादी आत्मघाती हमले करके और अंधाधुंध फ़ायरिंग करके विश्व के सामने इस्लाम और मुसलमानों का कठोर रूप पेश करते हैं। पश्चिम में मीडिया और इस्लाम विरोधी सरकारें, तकफ़ीरी गुटों की आतंकवादी कार्यवाहियों को इस्लाम से जोड़कर इस शांति प्रिय धर्म के ख़िलाफ़ ख़ूब दुष्प्रचार करते हैं। हालांकि तकफ़ीरियों की इन कार्यवाहियों का इस्लाम से कोई लेना देना नहीं है, बल्कि क़ुरान और पैग़म्बरे इस्लाम (स) ने इसे महापाप क़रार दिया है।

हदीसों में उल्लेख है कि अबू सबाह कनानी शिया मुसलमानों के इमाम जाफ़र सादिक़ (अ) के हवाले से कहते हैं, मेरा एक पड़ोसी है, जो हज़रत अली (अ) को अपशब्द कहता है, अगर आज्ञा हो तो मैं छुपकर उसकी हत्या कर दूं। इमाम जाफ़र सादिक़ (अ) ने फ़रमाया, हे अबू सबाह यह आतंकवादी कृत्य है, जिससे पैग़म्बरे इस्लाम (स) ने मना किया है।

एक अन्य घटना से भी इस्लाम द्वारा आतंकवादी कार्यवाही से रोका जाना स्पष्ट हो जाता है। जमल यद्ध में हज़रत अली (अ) की दुश्मन सेना का एक कमांडर ज़ुबैर बिन अवाम, जब लड़ाई चरम पर पहुंची तो मैदान छोड़कर भाग खड़ा हुआ। एक सैनिक ने उसका पीछ किया और रास्ते में छुपकर उसकी हत्या कर दी। हज़रत अली (अ) को जब इसकी सूचना मिली तो वे बहुत दुखी हुए और फ़रमाया, उसका हत्यारा नरक में जाएगा, इसलिए कि उसने ऐसा कृत्य किया है, जिसे पैग़म्बरे इस्लाम ने वर्जित बताया है।

पैग़म्बरे इस्लाम ने किसी भी निर्दोष की जान लेने या किसी की धोखे से हत्या करने को वर्जित बताया है। यहां तक कि पैग़म्बरे इस्लाम (स) ने अपने दुश्मनों की भी इस प्रकार हत्या नहीं की और दूसरों को भी इसकी इजाज़त नहीं दी। इस प्रकार, धोखा देकर लोगों की हत्या करना महा पाप है। जो कोई गलियों और सड़कों पर धोखे से लोगों की हत्या करता है और कार बमों के धमाके करता है या सार्वजनिक स्थानों, मस्जिदों और अन्य धार्मिक स्थलों में आत्मघाती हमले करके लोगों की जान लेता है, वह आतंकवादी है और आतंकवादी कार्यवाहियां अंजाम देता है। इस्लाम इन कृत्यों की कड़ी निंदा करता है। जो कोई भी ऐसे कृत्य करता है इस्लाम उसे हत्यारा और राष्ट्र के ख़िलाफ़ युद्ध छेड़ने वाला अपराधी बताता है।

ईश्वरीय दूतों और इस्लाम की विशिष्ट हस्तियों ने बहुत ही अत्याचारी और भ्रष्ट लोगों की छिपकर हत्या से रोका है, हालांकि उनकी हत्या वैध भी हो। यहां यह सवाल करना चाहिए कि क्या ऐसा धर्म सड़कों पर, मस्जिदों में और गली कूचों में बच्चों, महिलाओं और निर्दोष लोगों की हत्या की अनुमति देगा? जब ऐसे व्यक्ति की हत्या छिपकर या धोखे से जायज़ नहीं है, जिसे मौत की सज़ा हुई है, तो किसी ऐसे इंसान की धोखे से हत्या कैसे जायज़ हो सकती है, जिसकी जान महत्वपूर्ण है और उसका सम्मान है। क़ुराने मजीद के मुताबिक़, ऐसे व्यक्ति की हत्या मानो समस्त इंसानों की हत्या है, जो महा पाप है।

इस्लाम में हर प्रकार का आतंकवाद हराम और अपराध है। इसलिए हथियारों और हिंसा के बल पर आतंकवाद फैलाने वाले तकफ़ीरी आतंकवादियों को शहरों में आज़ादी के साथ घूमने फिरने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए। वास्तव में ऐसे लोगों को किसी भी प्रकार की सुरक्षा भी नहीं दी जानी चाहिए। इसलिए कि आतंकवादियों को संरक्षण देने का मतलब है, आम लोगों की सुरक्षा को ख़तरे में डालना। इसी वजह से क़ुरान ने आतंकवादियों से सख़्ती से निपटने का आदेश दिया है।

तकफ़ीरी आतंकवादियों का एक दूसरा घिनौना कृत्य, अपने विरोधियों को यातनाएं देना और उनका सिर और हाथ पैर काट देना है। इस्लाम ने इस अपराध का कड़ा विरोध किया है। इस्लामी सिद्धांतों के मुताबिक़, किसी को भी इस बात की अनुमति नहीं है कि वह किसी व्यक्ति को यातनाएं दे। ईश्वर ने क़ुरान में इस कृत्य की कड़ी निंदा की है और ऐसा करने से मना किया है और यातना देने वालों पर लानत की है। क़ुरान में एक स्थान पर कहा गया है कि जो लोग मोमिन पुरुषों और महिलाओं को यातनाएं देते हैं और अपने कृत्यों के लिए क्षमा भी नहीं मांगते, ऐसे लोगों के लिए नरक की भड़कती हुई आग का प्रकोप है।

इसी प्रकार, एक अन्य स्थान पर उल्लेख है कि जो लोग ईमान लाने वाले पुरुषों और महिलाओं को ऐसे कार्यों के लिए यातनाएं देते हैं, जो उन्होंने नहीं किए हैं, निश्चित रूप से उन्होंने अपनी गर्दन पर बड़ा पाप ले लिया है। जो लोग तकफ़ीरी आतंकवादियों के हमलों का निशाना बने हैं, उन्होंने कोई ऐसा काम नहीं किया था कि उसके लिए उन्हें इतनी यातनाएं दी जाएं। पवित्र क़ुरान अपने विशेष अंदाज़ में ऐसे लोगों की कड़ी निंदा कर रहा है, जो ईमान लाने वाली महिलाओं और पुरुषों को यातना देते हैं।

इस संदर्भ में पैग़म्बरे इस्लाम (स) फ़रमाते हैं, जो लोग दुनिया में दूसरों को यातनाएं देते हैं, ईश्वर प्रलय के दिन उन पर प्रकोप करेगा। इमाम जाफ़र सादिक़ (अ) फ़रमाते हैं, ईश्वर के निकट सबसे बड़ा व्रिदोही वह व्यक्ति है जो ऐसे व्यक्ति की हत्या का इरादा करे जो हत्यारा नहीं है और ऐसे व्यक्ति के साथ मारपीट करे, जिसने किसी को नहीं मारा है। इमाम जाफ़र सादिक़ (अ) एक अन्य स्थान पर फ़रमाते हैं, अगर कोई किसी को कोड़ा मारेगा तो ईश्वर उसे आग का कोड़ा मारेगा।

तकफ़ीरी आतंकवादी गुटों का एक अन्य अपराध, लोगों के सिर, हाथ, पैर, और कान काटना है। इस्लाम ने इस अपराध की भी कड़ी निंदा की है। पैग़म्बरे इस्लाम (स) फ़रमाते हैं, लोगों के हाथ पैर काटने से बचो, यद्यपि काटने वाला कुत्ता ही क्यों न हो। जब पैग़म्बरे इस्लाम युद्ध के लिए मुस्लिम सैनिकों को भेजते थे, उनका ध्यान कुछ बारीक बिंदुओं की ओर खींचते थे, ताकि वे अतार्किक और अमानवीय कृत्यों से बचे रहें, उदाहरण स्वरूप वे फ़रमाते थे, हे लोगों काफ़िरों को मारने के बाद उनके हाथ पैर मत काटो। बच्चों, महिलाओं, बूढ़ों और उनके धर्मगुरुओं की हत्या मत करो, उनके पेड़ों को मत काटो और अगर तुममें से कोई किसी अनेकेश्वरवादी को शरण दे तो उसके शरण का सम्मान करो और उसे शरण दो, ताकि अनेकेश्वरवादी ईश्वर का कलाम अर्थात क़ुरान सुन सके। हे मुसलमानो, किसी भी स्थिति में बाग़ों में आग मत लगाओ, किसी को पानी में मत डुबोओ, फलदार पेड़ों को जड़ से मत उखाड़ो, उनके खेतों और और फ़सलों को आग मत लगाओ और ज़रूरत के अलावा हलाल जानवरों की हत्या मत करो और उन्हें नष्ट मत करो।

पैग़म्बरे इस्लाम (स) की इन सिफ़ारिशों और तकफ़ीरी गुटों के कृत्यों के बीच तुलना करनी चाहिए। यहां उल्लेखनीय है कि मुस्लिम विद्वानों ने हाथ पैर काटने को हराम क़रार दिया है, अब वह युद्ध में हो या युद्ध में नहीं हो, जीवन में हो या मौत के बाद।                                

 

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