May ०९, २०१७ १३:५८ Asia/Kolkata

हमने उन महत्वपूर्ण कारकों के बारे में चर्चा की थी जिनसे पर्यावरण को नुकसान पहुंच रहा है।

जनसंख्या में वृद्धि, निर्धनता, विभिन्न प्रकार के कूड़ा करकट और पर्यावरण त्रासदियां वे कारक हैं जिनकी हमने इस संबंध में समीक्षा की परंतु खेद के साथ कहना चाहिये कि हालिया दो शताब्दियों में पर्यावरण को क्षति पहुंचाने में जो बहुत बड़ा कारण रही है वह इंसान की अज्ञानता है।

जिस दिन हज़रत आदम अलैहिस्सलाम ज़मीन पर उतरे उसी दिन महान व सर्वसमर्थ ईश्वर ने ज़मीन को अमानत के रूप में इंसान को प्रदान कर दिया ताकि वह उसकी नेअमतों से लाभ उठाये और महान ईश्वर का आभार व्यक्त करे परंतु खेद के साथ कहना पड़ता है कि इंसान ने न तो ज़मीन का महत्व समझा और न ही पर्यावरण का। जिस तरह से उसे इस नेअमत का शुक्र अदा करना चाहिये था नहीं किया। महान ईश्वर ने अपनी असीम कृपा से इंसान को ज़मीन पर अपना प्रतिनिधि बनाया परंतु इंसान इतना अहंकारी हो गया कि वह दूसरे प्राणियों को नुकसान पहुंचाने का दुस्साहस कर बैठा। शेर, चीते और पक्षी आदि चिड़ियाघरों के पिंजड़ों में केवल इसलिए बंद होते हैं कि इंसान उन्हें निकट से देखकर आनंदित हो और यह सब उस महान ईश्वर के समक्ष इंसान के अहंकार का उदाहरण है जिसने समस्त चीजों को इंसान के अधिकार में दे दिया है। अलबत्ता महान ईश्वर ने इंसान को अच्छे व्यवहार और न्याय का भी आदेश दिया है। आज इंसान समस्त चीजों को अपने लिए चाहता है जिस पक्षी को महान ईश्वर ने स्वतंत्रता प्रदान की है और वह आज़ादी का प्रतीक है परंतु इंसान की अज्ञानता के कारण वह पिजड़े में होता है। इसी तरह जिस वृक्ष को बड़ा होकर फल देना चाहिये ईंधन व कोयला बनाने के लिए इंसान उसे टुकड़े-2 कर देता है। आज इंसान अपने मनोरंजन और लाभ के लिए जंगलों को काट व नष्ट कर रहा है जब जंगल ज़मीन की सांस और उसके फेफड़े हैं। इंसान अपनी अज्ञानता के कारण यहां तक आगे बढ़ गया है कि वह इस बात को भूल बैठा है कि उसे ज़मीन और पर्यावरण का अमानदार होना चाहिये और उसे चाहिये कि वह इस सुन्दर ज़मीन, अद्वितीय पर्यावरण, सुन्दर झरनों और स्वच्छ व निर्मल हवा को भावी पीढ़ियों के हवाले करे।

यद्यपि ज़मीन पर लगभग चार अरब वर्ष पहले जीवन आरंभ हुआ परंतु लगभग दो सौ साल पहले यानी जब से पत्थर के कोयले और तेल की खोज हुई इंसान ने पूरी दुनिया पर अपना आधिपत्य जमा लिया परंतु थोड़े से समय में ही इंसान बिना किसी प्रकार के कार्यक्रम, सोच -विचार और अंतराल के बिना विश्व स्तर पर परिवर्तन उत्पन्न करने का कारण बन गया। पूरे इतिहास में इंसान ने जो प्रकृति पर वर्चस्व जमाया उसके बहुत ही खतरनाक प्रभाव पर्यावरण पर पड़े हैं।