तकफ़ीरी आतंकवाद-56
हमने उल्लेख किया था कि तकफ़ीरी और वहाबी गुट इस्लामी शिक्षाओं के बिल्कुल विपरीत काम करते हैं और इस्लाम एवं पैग़म्बरे इस्लाम (स) ने जिन अपराधों की कड़ी निंदा की है, यह लोग वही अपराध अंजाम देते हैं, जैसे कि आतंकवादी कार्यवाहियां और लोगों के सिर क़लम करना और हाथ पैर काटना।
पैग़म्बरे इस्लाम कभी भी अपने दुश्मनों के ख़िलाफ़ आतंकवादी कार्यवाही की अनुमति नहीं देते थे। इस्लाम ने हर प्रकार की आतंकवादी कार्यवाही को वर्जित किया है। इसी प्रकार पैग़म्बरे इस्लाम (स) ने मुसलमानों को यातनाएं देने से रोका है। यहां तक कि वे पशुओं के अधिकारों के सम्मान पर भी बल देते थे।

इस्लाम ने दया और कृपा को इतना अधिक महत्व दिया है कि जानवरों के साथ व्यवहार का भी तरीक़ा बताया है और उनके अधिकारों को परिभाषित किया है। इस तरह का शांति प्रिय धर्म किस प्रकार, तकफ़ीरी आतंकवादी गुटों के अपराधों को सही ठहरा सकता है? इस्लामी शिक्षाओं और मूल्यों का आधार, मानव अधिकारों का सम्मान है। इस्लाम इसी आधार पर लोगों तक अपना संदेश पहुंचाता है।
अरब की सीमाओं से निकलकर दुनिया भर में इस्लाम के विस्तार का मूल कारण भी पैग़म्बरे इस्लाम (स) का उच्च शिष्टाचार और मानव प्रेम था। क़ुराने मजीद के सूरए अंबिया की 107वीं आयत में पैग़म्बरे इस्लाम (स) को संबोधित करते हुए ईश्वर कहता है, हमने तुम्हें संसार के लिए सिर्फ़ रहमत और परोपकार बनाकर भेजा है। रहमत का अर्थ इतना अधिक व्यापक है कि इसमें हर ज़माने और समय से संबंधित संसार के प्राणी शामिल हो जाते हैं, यहां तक कि फ़रिश्ते भी।
जब यह आयत नाज़िल हुई तो पैग़म्बरे इस्लाम ने ईश्वर का संदेश लाने वाले फ़रिश्ते जिबरईल से पूछा, क्या तुम भी इस रहमत में शामिल हो? या क्या यह परोपकार तुम तक भी पहुंचता है, जिबरईल ने जवाब दिया, हां मुझे अपने अंजाम के बारे में चिंता थी, लेकिन आपकी रहमत के कारण अब निश्चिंत हूं।
ईश्वर ने पैग़म्बरे इस्लाम को संसार के लिए रहमत बनाकर भेजा। जिस प्रकार, रहीम ईश्वर की एक विशेषता है। वह हर इंसान पर, वह मोमिन या हो या काफ़िर रहमत और कृपा करता है, पैग़म्बरे इस्लाम भी हर ज़माने के लोगों के लिए और संसार के एक एक कण के लिए कृपा का स्रोत हैं। दुनिया में अब कोई काफ़िर हो या मोमिन, इस रहमत का पात्र है। इसलिए कि इस्लाम के प्रसार में सभी के लिए मुक्ति है। अब यह बात अलग है कि किसी ने इससे लाभ उठाया और किसी ने नहीं उठाया। यह ख़ुद लोगों पर निर्भर करता है और इससे पैग़म्बरे इस्लाम की रहमत के आम होने पर कोई आंच नहीं आती।

इसकी मिसाल एक ऐसे अस्पताल की है, जिसमें दक्ष चिकित्सक हर दर्द का उपचार करते हों और उसके दरवाज़े बिना किसी भेदभाव के सबके लिए खुले हों। लेकिन यह बात अलग है कि कुछ रोगी इससे लाभ उठाएं और कुछ लाभ न उठाएं। लेकिय क्या इससे इसकी सार्वजनिक सेवाओं पर सवालिया निशान लगेगा? दूसरे शब्दों में पैग़म्बरे इस्लाम का समस्त संसार के लिए रहमत होना सिद्ध है। अब यह लोगों पर निर्भर करता है कि वह इस रहमत से कितना लाभ उठाते हैं। यही कारण है कि इस्लाम को स्वीकार करने में किसी प्रकार की कोई ज़ोर ज़बरदस्ती नहीं है।
ईश्वर ने इंसान को मुक्ति और कल्याण का रास्ता दिखा दिया है और यह एलान कर दिया है कि उसके धर्म को स्वीकार करने में कोई दबाव या ज़बरदस्ती नहीं है। क़ुरान के सूरए बक़रा की 256वीं आयत में उल्लेख है कि धर्म में कोई ज़ोर ज़बरदस्ती नहीं है। निःसंदेह सीधे रास्ते और ग़लत रास्ते के बीच स्पष्ट अंतर कर दिया गया है।
विश्व वासियों को एकेश्वरवाद के लिए आमंत्रित करने की शैली और चरमपंथियों द्वारा इस्लाम के नाम पर किए जाने वाले कृत्यों के बीच काफ़ी अंतर है और स्पष्ट विरोधाभास है। सूरए नहल की 125वीं आयत में कहा गया है कि लोगों को अच्छे तर्क और अच्छी शैली में नसीहत करके अपने ईश्वर की ओर आमंत्रित करो और उनके साथ बेहतरीन शैली में वाद विवाद करो।
तकफ़ीरी आतंकवादी गुट हत्याएं करके, सिर क़लम करके और क्रूरतम बर्बरता का प्रदर्शन करके मुस्लिमों और ग़ैर मुस्लिमों तक अपना संदेश पहुंचाते हैं। हालांकि इसी आयत के आधार पर, इस्लाम लोगों तक तर्क और सर्वश्रेष्ठ शिष्टाचार द्वारा एकेश्वरवाद का संदेश पहुंचाने की सिफ़ारिश करता है।

पैग़म्बरे इस्लाम (स) का आचरण भी इस्लाम के अनुयाईयों के लिए आदर्श है। पैग़म्बरे इस्लाम लोगों का बहुत सम्मान किया करते थे और अपने साथ होने वाले दुर्व्यवहार को अनदेखा कर दिया करते थे और दूसरों की ग़लतियों को आसानी से माफ़ कर दिया करते थे। किसी से द्वेष नहीं रखते थे और कभी बदला नहीं लेते थे। क्षमा को बदले पर वरीयता देते थे।
हज़रत अली (अ) फ़रमाते हैं, पैग़म्बरे इस्लाम सबसे अधिक दान देने वाले और सबसे सम्मानित व्यक्ति थे। क्षमा मांगने वाले को माफ़ कर दिया करते थे। कभी भी बुराई का जवाब, बुराई से नहीं देते थे, बल्कि लोगों की ग़लतियों को आसानी से माफ़ कर दिया करते थे। दूसरों के बुरे व्यवहार का बदला भलाई से देते थे। किसी की खरी खोटी बातों का न केवल उसी अंदाज़ में जवाब नहीं देते थे, बल्कि आदेश देते थे कि उसे कुछ दान दिया जाए।
ओहद युद्ध में हज़रत के आदरणीय चाचा हज़रत हमज़ा (अ) के शव के साथ जब अपमानजनक व्यवहार किया गया, तो हज़रत ने दुश्मन के शवों के साथ वैसा व्यवहार नहीं किया और मक्का को फ़तह करने के समय, जब अबू सुफ़ियान, हिंदा और क़ुरैश के नेताओं को पकड़ लिया गया तो उनसे उनके दुर्व्यवहार का बदला नहीं लिया। यहां तक कि हज़रत ने अबू क़तादा अंसारी को कि जो उन लोगों को अपशब्द कहना चाहते थे, ऐसा करने से रोकना दिया। मक्का को फ़तह करने वाले दिन हज़रत पैग़म्बरे इस्लाम ने एलान कर दिया कि आज कृपा और दया का दिन है, जाओ तुम सब आज़ाद हो। ख़ैबर युद्ध की जीत के बाद, जिन यहूदियों ने आत्मसमर्पण किया था और ज़हरीला भोजन हज़रत के लिए भेजा था, हज़रत ने उन्हें माफ़ कर दिया। यहूदी महिला जो आपको ज़हर देना चाहती थी, हज़रत ने उसे भी माफ़ कर दिया। तबूक युद्ध से वापसी के समय, कुछ मिथ्याचारियों ने पैग़म्बरे इस्लाम की जान लेने की साज़िश रची, पैग़म्बरे इस्लाम को इसकी जानकारी हो गई और उन्होंने साज़िशकर्ताओं को पहचान लिया, लेकिन पैग़म्बर ने अपने साथियों को उनका नाम नहीं बताया और उन्हें सज़ा नहीं दी।
पैग़म्बरे इस्लाम (स) लोगों के साथ बहुत दया और मेहरबानी से पेश आते थे, इसीलिए ईश्वर ने सूरए शोरा की तीसरी आयत में पैग़म्बरे इस्लाम की इस विशेषता को इस प्रकार बयान किया है, हे पैग़म्बर, ऐसा प्रतीत होता है कि लोगों के ईमान न लाने की वजह से दुख के कारण अपनी जान दे देंगे।
इमाम जाफ़र सादिक़ (अ) ने पैग़म्बरे इस्लाम के हवाले से फ़रमाया है, ईश्वर ने मुझे लोगों के साथ सदाचार का उसी तरह से आदेश दिया है, जैसे कि अनिवार्य कार्यों के अंजाम देने का। पैग़म्बरे इस्लाम ने फ़रमाया है, तीन चीज़ें अगर किसी में नहीं पाई जायेंगी तो उसके कार्य परिणामहीन रहेंगे। पापों से दूरी, सदाचार व लोगों के साथ शिष्टाचार और परिपक्वता एवं बुद्धिमानी कि जिससे अज्ञानता दूर होती है। इन विशेषताओं में से कौन सी विशेषता पैग़म्बरे इस्लाम की शिक्षाओं का पालन करने का दावा करने वाले तकफ़ीरी आतंकवादी गुटों और उनके अनुयाईयों में पाई जाती है? तकफ़ीरी केवल हत्या, यातना और हाथ पैर काटना जानते हैं।