Aug ३०, २०१५ १३:०८ Asia/Kolkata

पश्चिम में मनुष्य इस परिणाम पर पहुंच गया है कि बिना अध्यात्म के जीवन, मनुष्य से आनंद और स्थाई ख़ुशी छीन लेता है और इंसान को आलसी बना देता है।

पश्चिम में मनुष्य इस परिणाम पर पहुंच गया है कि बिना अध्यात्म के जीवन, मनुष्य से आनंद और स्थाई ख़ुशी छीन लेता है और इंसान को आलसी बना देता है। बढ़ते हुए अपराध, नैतिक व लैंगिक बुराइयां, पारिवारिक व्यवस्था के बिखराव, घर से फ़रार होने वाले बहुत से बच्चे, झूठी ख़ुशियां हासिल करने के लिए बच्चों को पड़ने वाली नशे की आदत, सभी वह समस्याएं हैं जिनसे पश्चिमवासी ग्रस्त हैं। यहां तक कि इन देशों के युवा और किशोर पतन की खाई में गिर चुके हैं। ऐसे समय में युवाओं को आध्यात्म विशेषकर नमाज़ की आवश्यकता का आभास होता है।

 

 

नमाज़ एक ऐसी उपासना है जो इंसान को भलाई की ओर ले जाती है और बुराईयों से रोकती है तथा उसे एकेश्वरवाद से अवगत कराती है। नमाज़ के बिना जीवन वैसा ही होता है जैसे धरती बिना सूर्य के और घर प्रकाश और जीवन की अनुकंपाओं से ख़ाली होता है। जो लोग नमाज़ पढ़ते हैं वह अमर पूंजी प्राप्त करते हैं और जो नमाज़ से निश्चेत रहते हैं वह कल्याण और मार्गदर्शन के मार्ग से दूर रहते हैं। ईश्वरीय दूतों ने इसी संपर्क और भीतरी शांति की छत्रछाया में दुनिया को एकेश्वरवाद और ईश्वर की याद की सुगंध से सुगंधित कर दिया।

 

मनोचिकित्सकों का कहना है कि बचपने और युवावस्था और व्यस्कावस्था में धार्मिक भावनाएं, ईमानी व शिष्टाचारिक रुझान में निखार आता है। मनोचिकित्सा के क्षेत्र में बहुत अधिक शोध करने वाले मोरिस दिब्स का कहना है कि युवावस्था और व्यस्कावस्था में एक प्रकार से धार्मिक चेतना उन लोगों तक में पैदा हो जाती है जो कभी भी धार्मिक मामलों में तनिक भी ध्यान नहीं देते थे। स्थिति का यह परिवर्तन, युवाओं के व्यक्तिगत जीवन का भाग है। वे कहते हैं कि लगभग 15 से 17 वर्ष के दौरान, युवा पवित्र आवाज़ से प्रभावित होते हैं, उनकी कामना यह होती है कि वह विश्व का पुनर्निमाण करें, बुराइयों को समाप्त करें और पूरी दुनिया में न्याय की स्थापना करें।

 

 

 

वैचारिक अवसाद और मानसिक तनाव उन बीमारियों में से है जिसने युवाओं को जकड़ कर रखा है। विशेषज्ञ इस प्रयास में लगे हुए हैं ताकि कोई एक मार्ग खोजें जिससे युवा पीढ़ी के वैचारिक बिखराव को कम कर सकें और उसको मानसिक शांति प्रदान कर सकें। नमाज़, ईश्वरीय अनुकंपाओं के द्वार की चाभी है और इसके बहुत अधिक अध्यात्मिक लाभ हैं। नमाज़ से लगाव का एक लाभ यह भी है कि यदि यह विदित और आंतरिक शर्तों के साथ पढ़ी जाए तो मनुष्य के दिल व मन को केन्द्रित कर लेती है और उसके भीतर को प्रकाशमान और साफ़ सुथरा कर देती है। वह नमाज़ के दौरान, मन की एकाग्रता का बारंबार अभ्यास करता है और हर बार यह प्रयास करता है कि अपने दिल व जान को ईश्वर को समर्पित कर दे। इस प्रकार से नमाज़ी युवा ऐसी शक्ति प्राप्त कर लेता है, जिसके द्वारा वह अपने मन की शक्ति को जीवन के अन्य मामलों पर भी केन्द्रित करता है।

 

तीन मुख्य तत्व, घर, स्कूल और संचार माध्यम, नमाज़ की ओर युवाओं और किशोरों के रुझहान में मुख्य भूमिका अदा करते हैं। प्रशिक्षण केवल सूचनाओं का स्थानांतरण नहीं है बल्कि व्यक्ति की आडियालोजी और उसकी शैली में परिवर्तन है और इस प्रक्रिया के लिए उचित भूमि की आवश्यकता होती है। युवाओं और किशोरों में धार्मिक भावनाओं को भरने के लिए महत्त्वपूर्ण मनोबल की आवश्यकता होती है और जो चीज़ नमाज़ के प्रचलन के लिए महत्त्वपूर्ण है वह दिल की गहराईयों से नमाज़ के अध्यात्मिक प्रभाव को स्वीकार करना है। यह बात ध्यानयोग्य है कि जिस समय धार्मिक आस्थाएं विशेषकर नमाज़, युवा के दिल में रास्ता बना लेती है उसके बाद वह आनंद का आभास करता है। ब्रिटिश मनोचिकित्सक सेर्ल बर्ट कहते हैं कि हम नमाज़ और दुआ की सहायता से उत्साह के महा भंडारों को प्राप्त कर सकते हैं जिसे हमारे लिए सामान्य स्थिति में प्राप्त करना संभव नहीं होता।

 

 

 

पैग़म्बरे इस्लाम हज़रत मुहम्मद मुस्तफ़ा सलल्लाहो अलैह व आलेही व सल्लम का एक कथन है कि जान लो कि ईश्वर के निकट सबसे प्रशंसनीय कार्य वह है जो जारी रहे यद्यपि वह काम कम ही क्यों न हो।

 

नैतिकता के महान प्रशिक्षकों का भी यही मानना है कि मूल रूप से जारी रहने वाला हर भला काम मनुष्य पर बहुत अधिक प्रभाव डालता है। नमाज़ भी ईश्वर पर निरंतर ध्यान देने का नाम है जो निश्चेतना, घमंड, आंतरिक इच्छाओं में मनुष्य के ग्रस्त होने में रुकावट पैदा करती है और नमाज़ी के दिल को अल्लाह की याद से जीवित रखती है। जब हम सही ढंग से नमाज़ पढ़ते हैं और नमाज़ से सही ढंग से जुड़ जाते हैं तो हमें उसके सार्थक प्रभाव दिखने लगते हैं।

 

पैग़म्बरे इस्लाम (स) के काल में एक युवा ग़लत रास्ते पर पड़ गया था और उसने बहुत अधिक पाप कर रखे थे किन्तु इन सबके बावजूद वह हर दिन मस्जिद जाता और सबके साथ मिलकर नमाज़ पढ़ता । एक दिन पैग़म्बरे इस्लाम के साथियों ने इस व्यक्ति के मस्जिद में आने पर आपत्ति जताई और पैग़म्बरे इस्लाम से कहा कि आप उस युवा को मस्जिद में आने से रोकें। पैग़म्बरे इस्लाम अपने साथियों की इस मांग से बहुत दुखी हुए और उन्होंने अपने साथियों से कहा कि एक दिन इस युवा की नमाज़ उसे मुक्ति दिलाएगी।

 

 

 

धार्मिक आभास एक प्रकार की भीतरी शांति और आनंद लिए हुए होता है और स्वाभावित रूप से बहुत से जवान इस प्रकार के आभास से वंचित हैं। अलबत्ता धार्मिक व अध्यात्मिक आनंद, जीवन के अन्य आनंदों से भिन्न होता है। सामान्य आनंदों में जब मनुष्य अपना लक्ष्य प्राप्त कर लेता तो एक प्रकर से उसका मन उससे उचाट हो जाता है किन्तु अध्यात्मिक आनंदों में मनुष्य को कभी भी तृप्ति का आभास नहीं होता।

 

इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनेई युवाओं पर नमाज़ के प्रभाव के बारे में कहते हैं कि नमाज़ से युवा का दिल प्रकाशमान हो जाता है, आशा पैदा करती है, आत्मा में प्रफुल्लता पैदा करती है, प्रसन्नता पैदा करती है, यह स्थितियां अधिकतर युवाओं के लिए हैं, अधिकतर जवानी के मौसम की हैं, मज़े उठा सकता है और यदि ईश्वर हमें और आपको सामर्थ्य प्रदान करे तो हम ऐसी नमाज़ पढ़ें जो ध्यान से हो, हम देखेंगे कि इंसान नमाज़ में दिल लगाते समय तृप्त नहीं होता। मनुष्य जब नमाज़ पर ध्यान देता है तो उसे ऐसा आनंद प्राप्त होता है जो उसे किसी अन्य भौतिक आनंद से प्राप्त नहीं होता, यह ध्यान देने का परिणाम है।

 

 

इस प्रकार से नमाज और दुआएं, युवा के जीवन में प्रकाशमई तारे की भांति चमकता है और उसके जीवन को परिवर्तित कर देता है। आस्ट्रेलिया के ताज़ा इस्लाम धर्म स्वीकार करने वाले जान जैक्सन का जन्म एक कैथोलिक ईसाई परिवार में हुआ था और उन्होंने कैथोलिक स्कूल में शिक्षा प्राप्त की किन्तु जीवन के ख़ालीपन के आभास ने उन्हें इस बात पर विवश कर दिया कि वह एक पूर्ण समीक्षा के बाद अपनी जीवन शैली परिवर्तित करे। परिणाम स्वरूप उन्होंने इस संबंध में शोध और अध्ययन करना आरंभ किया और इस्लाम सहित विभिन्न धर्मों का अध्ययन करना शुरु किया। उन्होंने गहन अध्ययन और शोध के बाद इस्लाम धर्म स्वीकार किया और मुसलमान हो गये। जैक्सन नमाज़ को अपने जीवन का सबसे बड़ा धार्मिक अनुभव बताते हैं और कहते हैं कि नमाज़ से मेरा परिचय, मेरे लिए सबसे बेहतरीन धार्मिक अनुभव था। मैंने नमाज़ सीखने की एक किताब ख़रीदी और मैं यह स्वीकार करता हूं कि मैं जब पहली बार नमाज़ के लिए झुका तो उसी समय से मैं सृष्टिकर्ता से अपने दिली लगाव का आभास करने लगा और मेरी आंखों से आंसू जारी हो गये। मुसलमान होने के बाद से दिन प्रतिदिन मेरे लिए नमाज़ का महत्त्व बढ़ता गया। अब मैं समझ गया हूं कि नमाज़ की परिधि में ईश्वर की व्यवस्थित उपासना, इंसान की कटिबद्धता और उसके संपर्क को मज़बूत करती है। नमाज़, ईश्वर से बातचीत का माध्यम है और मनुष्य के अस्तित्व में ईश्वर की पहचान की शक्ति पैदा करती है और उसे चौबीस घंटे ईश्वर की याद पर विवश करती है। नमाज़, सृष्टि में मनुष्य के स्थान को उसे बताती है और उसे याद दिलाती है कि वह सृष्टि की एक रचना है।