तकफ़ीरी आतंकवाद-57
इससे पहले वाले कार्यक्रम में हमने इस बारे में चर्चा की कि इस्लाम में हिंसा का कोई स्थान नहीं है।
आतंकवादी गुट दाइश इस्लाम के नाम पर जो कुछ कर रहा है उसका इस्लाम से कोई संबंध नहीं है। इस्लाम और उसकी जीवनदायक शिक्षाओं की ओर लोगों को आमंत्रित करने का पैग़म्बरे इस्लाम और पवित्र कुरआन की शिक्षाओं का आधार कृपा, दया और स्नेह है परंतु आतंकवादियों और तकफीरियों का व्यवहार पवित्र कुरआन की शिक्षाओं और पैग़म्बरे इस्लाम के सदाचरण से पूर्णतः भिन्न है। तकफीरी गुट की सोच, उसकी भासा और व्यवहार केवल हिंसा और अपराध है। वे अपनी ग़लत सोच के आधार पर हर उस बात को स्वीकार नहीं करते हैं जो उनकी विचारधारा के अनुरुप न हो। ऐसी सोचकों ने हर संभव मार्ग से समाप्त करने की चेष्टा में रहते हैं। तकफीरी आतंकवादी गुट लोगों की हत्याएं करने और उनका माल लूटने के अलावा अनेकेश्वरवाद से मुकाबला करने के बहाने इराक़ और सीरिया में दर्शनीय स्थलों, मस्जिदों और इतिहासिक धरोहरों को ध्वस्त कर रहे हैं। विदित में यह विध्वंसकारी कार्य अनेकेश्वरवाद को समाप्त कर देने के बहाने हो रहा है परंतु इस्लामी देशों की सांस्कृतिक धरोहरों को भी नष्ट किया जा रहा है। जैसाकि इराक और सीरिया में आतंकवादी गुट दाइश द्वारा की जाने वाली विध्वंसक कार्यवाहियों के बाद बहुत से अद्वितीय और एतिहासिक धरोहरों की तस्करी पश्चिमी देशों द्वारा कर ली गयी और अब यह मूल्यवान सांस्कृतिक व एतिहासिक धरोहरों इन देशों के संग्रहालयों की शोभा बनी हुई हैं। यह कार्य इस बात का सूचक है कि यह आतंकवादी गुट कुछ धार्मिक नारों की आड़ में स्वयं को छिपा कर कुछ वर्चस्ववादी लक्ष्यों को प्राप्त करने की चेष्टा में हैं। अलबत्ता तकफीरी गुटों ने जो इतिहासिक और धार्मिक इमारतों को ध्वस्त किया है उसका दायरा बहुत विस्तृत है। सांस्कृतिक पहचान, पहचान का एक महत्वपूर्ण आयाम है जो एक आम दृष्टि में एक धर्म के समस्त मानने वालों को इतिहास और पहचान में एक दूसरे से जोड़ देते हैं। आतंकवादी तकफीरी गुटों ने आस्था और सुरक्षा की दृष्टि से इस्लामी जगत के समक्ष बहुत सी चुनौतियां खड़ी कर दी है। साथ ही इस गुट के क्रियाकलाप इस्लामी संस्कृतिक से भी विरोधाभास रखते हैं।

एतिहासिक और धार्मिक स्थल समस्त मुसलमानों के मध्य संबंध स्थापित करने में बहुत प्रभाव रखते हैं और इतिहासिक संबंध में वे एक दूसरे को जोड़ते हैं। इस्लामी इमारतें इस्लामी सभ्यता की एक प्रतीक हैं जबकि तकफीरी गुट इन इमारतों को अनेकेश्वरवाद का प्रतीक मानते और उन्हें ध्वस्त करते हैं। इराक, सीरिया, टयूनीशिया और लीबिया में सबसे अधिक विश्वंसक कार्यवाहियां हुई हैं और आतंकवादी तकफीरी गुटों ने इन देशों में कम से कम 150 दर्शनीय स्थलों को ध्वस्त किया था उन्हें नुकसान पहुंचाया है। जिन स्थानों को तकफीरी गुटों ने नुकसान पहुंचाया है उनमें मस्जिदें, कब्रिस्तान, इस्लाम के उदय काल की कुछ हस्तियों की कब्रों की खुदाई और कुछ इमाम ज़ादों एवं इस्लाम की महान धार्मिक हस्तियों की कब्रों की खुदाई शामिल है। सीरिया, ट्यूनीशिया और लीबिया में जनविद्रोह आरंभ होने और टयूनीशिया और लीबिया में तानाशाही सरकारों का अंत हो जाने के बाद दर्शनीय स्थलों का विध्वंस आरंभ हुआ परंतु इराक में दर्शनीय व इतिहासिक स्थलों का विध्वंस वर्ष 2004 में अमेरिका द्वारा इराक की बासी शासन व्यवस्था गिराये जाने के एक वर्ष बाद आरंभ हुआ।
आतंकवादी गुट दाइश द्वारा इराक के उत्तरी क्षेत्रों पर वर्ष 2014 में कब्ज़ा करने के बाद दोबारा बहुत से इस्लामी धरोहरों और दर्शनीय स्थलों का विध्वंस किया गया। आतंकवादी गुट दाइश ने धार्मिक व दर्शनीय स्थलों को ध्वस्त करने के लिए एक दल का गठन किया। 300 लोग इस दल के सदस्य थे और इराक के नैनवां प्रांत के केन्द्र मोसिल नगर पर क़ब्ज़ा करने के बाद भारी उपकरणों से इराक और सीरिया के धार्मिक और सांस्कृतिक स्थलों को ध्वस्त करना आरंभ कर दिया। इन गुटों ने हज़रत यूनुस, जरजीस और शीश जैसे पैग़म्बरों के मज़ारों को ध्वस्त कर दिया। हज़रत यूनुस की पावन समाधि बगदाद के 375 किलोमीटर उत्तर में स्थित है। उस पर बनी इमारत के निर्माण का संबंध 138 हिजरी कमरी है। आतंकवादी गुट दाइश ने सीरिया के प्रसिद्ध उपासना स्थल बल को ध्वस्त करने के लिए 30 टन विस्फोटक पदार्थों का प्रयोग किया और इस गुट ने इसे भारी क्षति पहुंचाई। सीरिया के पालमीरा नगर का सबसे बड़ा उपासना स्थल 2000 वर्ष पुराना है। यूनेस्को ने विश्व की सांस्कृतिक धरोहर के रूप में उसे पंजीकृत किया है। इसी प्रकार आतंकवादी गुट दाइश ने इंटरनेट पर जो वीडियो प्रकाशित की थी उसके अनुसार उसने इराक के मूसिल नगर पर हमला करके इस नगर की एतिहासिक और सांस्कृतिक धरोहरों को भी तबाह कर दिया।

आतंकवादी गुट दाइश के तत्वों ने इसी प्रकार इतिहासिक नगर निमरुद के प्राचीन धरोहरों को भी बुलडोज़रों और विस्फोटक पदार्थों से तबाह कर दिया। उल्लेखनीय है कि निमरुद शहर को आशूरी सभ्यता के नगीने के रूप में देखा जाता है। सांस्कृतिक धरोहरों और धार्मिक स्थलों का ध्वस्त किया जाना केवल एतिहासिक इमारतों का ध्वस्त किया जाना ही नहीं है बल्कि यह मुसलमानों की संस्कृति और इतिहास के ध्वस्त किया जाना है।
तकफीरी आतंकवादी गुटों का यह कार्य वही कार्य है जिसे पश्चिम में इस्लाम के दुश्मन चाहते हैं। एक प्रभावी चीज़ एतिहासिक इमारतें व स्थल हैं जो संस्कृति की मज़बूती और उसे एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक स्थानांतरित करने का कारण बनते हैं। ये इतिहासिक इमारतें और स्थल हैं जो सांस्कृतिक पहचान लिए हुए हैं। चूंकि संस्कृति को किसी समय और स्थान में सीमित नहीं किया जा सकता इसलिए उसमें विभिन्न राष्ट्रों और संस्कृतियों के समा जाने की गुंजाइश होती हैं और इमारते और एतिहासिक स्थल संस्कृतियों की पहचान की मज़बूती में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इसके अतिरिक्त ये स्थल महत्वपूर्ण एतिहासिक घटनाओं की याद दिलाते हैं और हर व्यक्ति उनमें उपस्थित होकर स्वयं को उस समय के अतीत में देखता है और स्वयं का संबंध एक प्राचीन व मजबूत संस्कृति से समझता है। जिस संस्कृति में वह इस समय स्वयं को देखता है और जिन स्थानों व घटनाओं को देखता है वही आज उसकी धार्मिक पहचान बनाती हैं। सांस्कृतिक व धार्मिक इमारतों और स्थलों में समस्त मुसलमान स्वयं को समान देखते व समझते हैं और उनमें अपनेपन का आभास करते हैं। विशेषकर ये स्थान कभी महान व आदर्श हस्तियों की याद दिलाते हैं जैसे पैग़म्बरे इस्लाम, उनके पवित्र परिजन और उनसे साथियों के जो मानवता का दिशा निर्देशन विशुद्ध धार्मिक संस्कृति की ओर करते हैं। इस संबंध में सऊदी अरब में मौजूद पवित्र स्थलों और हज के मौसम में मुसलमानों के असामान्य जमावड़े की ओर संकेत किया जा सकता है। ईश्वरीय वहि अर्थात ईश्वरीय संदेश की पवित्र भूमि मक्का में उपस्थिति और वहां पर विभिन्न धार्मिक स्थलों व चिन्हों का देखना हाजी के लिए इस्लामी सभ्यता की जड़ों से अवगत होने की भूमिका बनता है और वह अपनी सभ्यता के अस्तित्व में आने की जड़ों और इस्लामी सभ्यता की स्पष्ट विशेषताओं से परिचित हो सकता है। इसी तरह वह सभ्यता का निर्माण करने वाली हस्तियों से अधिक अवगत हो सकता है और सभ्यताओं के मध्य अपनी सभ्यता के स्थान को अधिक सूक्ष्म रूप से जान सकता है।

धार्मिक समारोहों का आयोजन इस बात का सूचक होता है कि धार्मिक सभ्यता के अस्तित्व में आने में उनकी प्रभावी भूमिका होती है। जैसाकि शिया मुसलमानों के चौथे मार्गदर्शक इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम अपने एक साथी शिब्ली से फरमाते हैं” जब तुमने मकामे इब्राहीम के पीछे परिक्रमा की दो रकअत पढ़ने का इरादा किया तो क्या तुमने यह नियत की थी कि इब्राहीम की तरह नमाज़ पढ़ाओगे?
कहा जा सकता है कि इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम शिब्ली का मार्गदर्शन एकेश्वरवाद की ओर कर रहे थे। मकामे इब्राहीम और हज़रत इब्राहीम द्वारा नहारित मूल्यों को याद करके अतीत में हज करने वाले की पावन शैली को समझा जा सकता है और इस माध्यम से सभ्यता की पहचान और उसे मजबूत करने में इंसान सहायता करता है। आतंकवादी गुट दाइश इस्लाम की एतिहासिक इमारतों को ध्वस्त करके एक प्रकार से इस्लामी सभ्यता से युद्ध कर रहा है।

दाइश इस प्रकार की कार्यवाही करके मुसलमान पीढ़ियों के मध्य एतिहासिक संबंध को खत्म कर रहा है। यह वह चीज़ है जो समस्त मुसलमानों के मध्य समान है। पवित्र कुरआन में भी सभ्यता को मजबूत करने में इमारतों व स्थलों का प्रयोग किया गया है। इस संबंध में काबा और मकामे इस्माईल को स्पष्ट नमूने के रूप में देखा जा सकता है। आतंकवादी गुट दाइश पवित्र स्थलों व इमारतों को ध्वस्त करता है जबकि वह पवित्र कुरआन के पालन का दावा करता है। रोचक बात यह है कि पवित्र स्थलों को सबसे अधिक सऊदी अरब में ध्वस्त किया गया है। तकफीरी वहाबी गुटों ने पिछले 100 वर्षों के दौरान अनेकेश्वरवाद से मुकाबले के नाम पर बहुत सी धार्मिक इमारतों और एतिहासिक स्थलों को ध्वस्त कर दिया। इनमें सबसे मुख्य पवित्र नगर मदीना में स्थित बक़ी कब्रिस्तान की धार्मिक इमारतें हैं। बकी वह कब्रिस्तान है जहां पर पैग़म्बरे इस्लाम के बेटों, पौत्रों, निकट संबंधियों और उनके साथियों की पावन समाधियां हैं।