इस्लामी जगत - 24
हमने बताया कि फ़िलिस्तीन एक एसा विषय है जिसपर पूरे इस्लामी जगत को एकजुट किया जा सकता है।
विश्व के समस्त इस्लामी देशों की मांग है कि फ़िलिस्तीनियों को उनके अधिकार दिलवाए जाएं। इसी के साथ इस्लामी देशों के साथ इस्राईल की शत्रुता कोई ढकी छिपी बात नहीं है। इन बातों के दृष्टिगत यह कहा जा सकता है कि फ़िलिस्तीन के मुद्दे पर इस्लामी जगत में एकता स्थापित की जा सकती है। फ़िलिस्तीन का मुद्दा एसा विषय है जिसके समाधान के उद्देश्य से ही इस्लामी देशों के संगठन ओआईसी का गठन किया गया था।

सन 1967 में अरब देशों तथा इस्राईल के बीच हुए युद्ध में हार का बदला लेने के उद्देश्य से मिस्र के तत्कालीन राष्ट्रपति अनवर सादात ने 6 अक्तूबर सन 1973 को स्वेज नहर पर ज़ायोनियों के ठिकानों पर हमला कर दिया। मिस्र के हमले के तुरंत बाद सीरिया के सैनिकों ने गोलान की पहाड़ियों पर तैनात इस्राईली सैनिकों के विरुद्ध इतनी भीषण कार्यवाही कर दी कि उन्हें क्षेत्र छोड़कर भागना पड़ा। 1967 के युद्ध में इस्राईल ने सीरिया की गोलान पहाड़ियों पर क़ब्ज़ा कर लिया था। मिस्र और सीरिया के हमले के बाद अमरीका ने इस्राईल की व्यापक सहायता की जिसके कारण तीन दिनों के भीतर इस्राईल ने मिस्र व सीरिया की बढ़त को रोक दिया। इस युद्ध के पहले सप्ताह के अंत तक ज़ायोनी शासन ने जवाबी हमला किया। अमरीका की खुली सहायता के कारण 24 अक्तूबर 1973 को अरब देशों को पराजय हुई जिसके कारण अरब सैनिक पीछे हटने पर विवश हुए।
इस पराजय के बाद अनवर सादात ने मिस्र की विदेश नीति में भारी परिवर्तन करते हुए इस्राईल के साथ वार्ता का मार्ग अपनाया। 1973 के युद्ध के बाद अरब देशों ने इस्राईल के साथ संघर्ष के विचार को मन से निकाल दिया। इन देशों ने अब ज़ायोनी शासन के साथ सांठगांठ और वार्ता को वरीयता दी। इस संबन्ध में अरब देशों में मिस्र के राष्ट्रपति अनवर सादात सबसे आगे थे। यही कारण है अनवर सादात ने 1977 में ज़ायोनी शासन के तत्कालीन प्रधानमंत्री बेगिन से हाथ मिलाया।

सन 1978 में कैंप डेविड नामक स्थान पर अमरीकी राष्ट्रपति जिमी कार्टर की उपस्थिति में मिस्र के राष्ट्रपति और ज़ायोनी प्रधानमंत्री ने एक शांति समझौते पर हस्ताक्षर किये। यह समझौता कैंप डेविड के नाम से जाना जाता है। अनवर सादात एसे पहले राष्ट्राध्यक्ष थे जिन्होंने ज़ायोनी शासन के साथ समझौता करके उसे मान्यता दी। मिस्र के राष्ट्रपति और ज़ायोनी शासन के बीच होने वाले कैंप डेविड समझौते की 3 प्रमुख बातें थीं। इस समझौते के बाद मिस्र और इस्राईल ने अपने कूटनीतिक संबन्धों को सामान्य करने के उद्देश्य से अपने राजदूत नियुक्त किये।
अत्याचार ग्रस्त फ़िलिस्तीनियों की वैध मांगों और मुसलमान राष्ट्रों के हितों को अनदेखा करके किया जाने वाला यह समझौता, एक प्रकार से ज़ायोनी शासन को मान्यता देने के अर्थ में था। अमरीकी नेतृत्व में तैयार किया जाने वाला कैंप डेविड समझौता, हर हिसाब से इस्राईल के हित में था। इस अशुभ समझौते के कारण इस्लामी देशों में फूट पड़ गई जिससे इस्लामी एकता को गहरी क्षति पहुंची। इस्लामी क्रांति के संस्थापक स्वर्गीय इमाम ख़ुमैनी ने कैंप डेविड समझौते की कड़े शब्दों में निंदा की थी। 1978 में अपने संदेश में स्वर्गीय इमाम ख़ुमैनी ने कहा था कि पिछले 15 वर्षों से अधिक समय से मैं लोगों को अवैध ज़ायोनी शासन के ख़तरों से अवगत करवा रहा हूं। इस षडयंत्रकारी समझौते से इस्लामी देशों के लिए अब अधिक ख़तरा उत्पन्न हो गया है। ईरान कैंप डेविड समझौते की निंदा करता है। ईरान अपने मुसलमान भाइयों के साथ है। कैंप डेविड समझौते का विरोध करते हुए ईरान ने मिस्र से अपने कूटनैतिक संबन्ध तोड़ लिए।
कैंप डेविड समझौते का पहला दुष्परिणाम यह निकला कि अरब देशों के बीच गंभीर मतभेद पैदा हो गए। इस समझौते पर हस्ताक्षर से पहले इस्राईल के मुक़ाबले में सारे इस्लामी देश एकजुट थे। मिस्र ने जैसे ही कैंप डेविड समझौते पर हस्ताक्षर किये, अरब देश तीन भागों में बंट गए। कुछ अरब देश एसे थे जो इस समझौते के खुले विरोधी थे जिनमें इराक़, लीबिया, यमन, सीरिया, अल्जीरिया और फ़िलिस्तीनियों के संगठन शामिल है। इसके मुक़ाबले में कुछ अरब देश एसे भी थे जिन्होंने कैंप डेविड समझौते का खुलकर समर्थन किया जैसे सूडान, मोरक्को और ओमान आदि। कैंप डेविड समझौते के समर्थक और विरोधी देशों के अतिरिक्त कुछ एसे भी देश थे जिन्होंने इस बारे में तटस्थ नीति अपनाई थी जैसे सऊदी अरब, जार्डन तथा फ़ार्स की खाड़ी के देश। कैंप डेविड समझौते के विरोध में पीएलओ ने कड़ी नीति अपनाई। 19 सितंबर 1978 को पीएलओ ने बयान जारी करके अनवर सादात की कड़ी आलोचना की। फ़िलिस्तीन की राष्ट्रीय कांग्रेस ने 1 अक्तूबर 1978 के अपने बयान में इस समझौते की निंदा करते हुए घोषणा की थी कि कैंप डेविड समझौते में फ़िलिस्तीनियों के अधिकारों की पूर्ण रूप से अनदेखी की गई है।

सीरिया के तत्कालीन राष्ट्रपति हाफ़िज़ असद ने भी कैंप डेविड समझौते की निंदा की। उन्होंने दमिश्क़ में प्रतिरोध मोर्चे के होने वाले राष्ट्राध्यक्षों के सम्मेलन में कैंप डेविड समझौते को मुसलमानों, विशेषकर अरब जगत की एकता के विरुद्ध षडयंत्र बताया। लीबिया के नेता क़ज़्ज़ाफ़ी ने भी इसकी निंदा की थी। इराक़ की क्रांति परिषद ने अपने बयान में इस समझौते को षडयंत्र बताकर उसकी कड़ी निंदा की। बयान में कहा गया था कि इराक़ी राष्ट्र, फ़िलिस्तीनियों के साथ है और दुश्मन से मुक़ाबले के लिए अपने सैनिकों को मोर्चे पर भेजेने लिए तैयार है।
नवंबर 1978 में इराक़ की राजधानी बग़दाद में अरब देशों के राष्ट्राध्यक्षों की बैठक आयोजित हुई। इस बैठक में फ़ैसला किया गया कि अरब संघ के मुख्यालय को क़ाहिरा से ट्यूनीशिया स्थानांतरित किया जाए। इसके अतिरिक्त अरब संघ ने मिस्र के विरुद्ध प्रतिबंध लगाए। अरब देशों ने क़ाहेरा से संबन्ध विच्छेद करते हुए अपने दूतावास बंद कर दिये। मिस्र के साथ कैंप डेविड समझौता करके इस्राईल इस बात से निश्चिंत हो चुका था कि कम से कम एक ओर से वह पूरी तरह से सुरक्षित हो चुका है। इसके बावजूद इस अवैध शासन ने 1982 में लेबनान पर हमला कर दिया। इस हमले से इस्राईल का मुख्य लक्ष्य, लेबनान से फ़िलिस्तीनी छापामारों को निकालना और वहां पर अपनी पसंद की सरकार लाना था। जिस समय मिस्र ने इस्राईल के साथ कैंप डेविड समझौता किया था उस समय सारे इस्लामी देश, उसके विरुद्ध हो गए थे किंतु कुछ वर्षों बाद वे अपनी नीति पर अडिग नहीं रह पाए।
यह एक वास्तविकता है कि फ़िलिस्तीन का मुद्दा, सारे इस्लामी देशों के लिए केन्द्रीय मुद्दा है जिसके समाधान की ज़िम्मेदारी सब पर आती है। ज़ायोनी शासन पिछले सात दशकों से फ़िलिस्तीनियों का दमन करता आ रहा है। इसके बावजूद इस्लामी देशों में एकता पैदा नहीं हो पा रही है। एसे में विश्व क़ुद्स दिवस एक एसा अवसर है जिसके माध्यम से पूरे विश्व में फ़िलिस्तीनियों के प्रति जागरूकता पैदा की जा सकती है। हालांकि फ़िलिस्तीन के मुद्दे को लेकर इस्लामी देशों के शासकों में एकता नहीं बन पाई है किंतु इस बारे में इस्लामी राष्ट्रों में एकता पाई जाती है। फ़िलिस्तीन के बारे में इस्लामी राष्ट्रों के बीच की एकता इस्लामी देशों के शासकों को इस बात के लिए विवश करेगी कि वे फ़िलिस्तीन संकट के समाधान के लिए गंभीरता से क़दम उठाने के लिए तैयार हो जाएं या फिर अलग-थलग पड़ जाएं।