May २८, २०१७ १२:५७ Asia/Kolkata

ऐसे समय में कि जब पूरी दुनिया का ध्यान सीरिया और इराक़ संकट की ओर था, और पूरा विश्व आतंकवादी गुट दाइश के अत्याचारों का साक्षी बना हुआ था,  सऊदी अरब ने 26 मार्च 2015 को यमन पर चढ़ाई कर दी। 

सऊदी अरब दवारा किया जाने वाला यह हमला अब भी जारी है।  इस हमले में बड़ी संख्या में निर्दोष यमनवासी मारे जा चुके हैं।

यमन, एशिया का एक देश है जो दक्षिण पश्चिमी एशिया में स्थित है।  यमन उत्तर में सऊदी अरब से, दक्षिण से बाबुल-मंदब स्ट्रेट से, पश्चिम में लाल सागर से और पूर्व में ओमान और अदन की खाड़ी से मिलता है।  यमन के दो बहुत ही महत्वपूर्ण स्ट्रैटेजिक तट हैं।  एक लाल सागर से उसका पश्चिमी तट और दूसरे अरब सागर से उसका दक्षिणी तट।  यमन में कई टापू हैं जिनमें से “सक़तरा” और “हुनैस” अधिक महत्वपूर्ण है।  यमन की जनसंख्या लगभग 23 मिलयन या दो करोड़ तीस लाख है।  इस की राजधानी का नाम सनआ है।

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सन 1990 से पहले तक यमन दो देशों के रूप में था।  यमन अरब गणराज्य और यमन लोकतांत्रिक यमन।  वास्तव में यमन उत्तरी और दक्षिणी दो भागों में बंटा हुआ था।  सन 1990 में एक समझौते के अंतर्गत उत्तरी और दक्षिणी यमन का आपस में विलय हो गया।  यमन, अरब देशों के ग़रीब देशों में से एक है।  इसकी गणना विश्व के निर्धनतम देशों में होती है।

एक निर्धन देश होन के बावजूद यमन, स्ट्रैटेजिक दृष्टि से विशेष महत्व का स्वामी है।  इस देश के मानचित्र पर एक निगाह डालने से पता चलता है कि भौगोलिक दृष्टि से यमन को अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर कितना महत्व प्राप्त है।  1990 के विलय के समझौते से पहल से यमन में क़बीलों का वर्चस्व रहा है जो अब भी बाक़ी है।  अरब देशों से पैदावार की दृष्टि से यमन में अधिक खेती-किसानी होती है।  यहां की अधिकांश भूमि उपजाऊ है।  फ़ार्स की खाड़ी के अरब देशों से इसकी जलसीमा बहुत लंबी है।

यमन के तीन ऐसे जलडमरू मध्य या स्ट्रेट हैं जहां से विश्व का दो तिहाई व्यापारिक सामान गुज़रता है।  यही कारण है कि इनको सुनहरे त्रिकोण की संज्ञा दी गई है जिनके नाम हैं, हुरमुज़, मालागा और बाबुलमंदब।  इन जलक्षेत्रों से बहुत भारी मात्रा में कच्चा तेल ट्रांज़िट होता है।  अगर इन स्ट्रेट्स को बंद कर दिया जाए तो अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार बुरी तरह से प्रभावित होगा।  यमन और सऊदी अरब के बीच 1800 किलोमीटर की संयुक्त सीमा है।  सऊदी अरब हमेशा से यमन का हड़पने के चक्कर में रहा है।

जब से यह पता चला है कि सऊदी अरब से मिलने वाली यमन की सीमा पर तेल पाया जाता है, उस समय से यमन के बारे में सऊदी अरब का व्यवहार बदल गया और रियाज़ ने विभिन्न बहानों से यमन के तेल वाले क्षेत्रों को सऊदी अरब से मिलाने के प्रयास तेज़ कर दिये।  ऐसे में इन क्षेत्रों के हाथ में आने के साथ ही स्ट्रैटेजिक दृष्टि से विशेष महत्व के स्वामी स्ट्रेट्स पर रियाज़ का नियंत्रण हो जाएगा।  सऊदी अरब का सदा से यह प्रयास रहा है कि यमन में राजनैतिक हस्तक्षेप करके या उसपर सैन्य चढ़ाई करके यमन को अपने अधिकार में कर लिया जाए।  यही कारण है कि यमन की जनता में सऊदी अरब के विरुद्ध ऐतिहासिक नफ़रत पाई जाती है।  यमन के अंसारुल्लाह आन्दोलन ने सऊदी अरब के अनेक षडयंत्रों को विफल बनाया है।

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इन्ही बातों के दृष्टिगत सऊदी अरब ने तथाकथित गठबंधन की आड़ में 26 मार्च 2015 को यमन पर चौतरफ़ा हमला कर दिया।  सऊदी अरब के तथाकथित गठबंधन को अमरीका और कुछ यूरोपीय देशों का समर्थन प्राप्त था।  यमन पर सऊदी अरब का हमला उस समय हुआ जब यमन के तत्कालीन राष्ट्रपति ने सितंबर 2014 के समझौते को मानने से इन्कार कर दिया और राष्ट्रपति भवन छोड़कर भागकर अदन चला गया।  अदन में इस भगोड़े राष्ट्रपति ने एक सरकार का गठन किया।  मंसूर हादी के इस निर्णय से यमन में अशांति उत्पन्न हो गई और लोगों ने मंसूर हादी के विरुद्ध प्रदर्शन करने आरंभ कर दिये।

न केवल सनआ में बल्कि अदन में भी मंसूर हादी के विरोध में प्रदर्शन होने लगे जहां भागकर मंसूर ने शरण ली थी।  यमन के भगोड़े राष्ट्रपति मंसूर हादी का समर्थन करते हुए सऊदी अरब, क़तर और संयुक्त अरब इमारात ने यमन की राजधानी सनआ से अपने दूतावासों को अदन स्थानांतरित कर दिया जहां पर मंसूर हादी ने नई सरकार गठित की थी।  यह देश व्यवहारिक रूप में यमन का विभाजन करना चाहते थे।  हालांकि यह देश यमन के टुकड़े करने के प्रयास में थे किंतु इस देश की जनता ने अंसारुल्लाह आन्दोलन के नेतृत्व में इस षडयंत्र को विफल बना दिया।

यमन के क्रांतिकारियों ने जब अदन पर क़ब्ज़ा कर लिया तो फिर मंसूर हादी ने भागकर सऊदी अरब में पनाह ली।  मंसूर हादी के इस काम से उसकी वास्तविकता स्पष्ट हो गई और पता चल गया कि वह किसकी कठपुतली है।  इसी संदर्भ में फ़ार्स की खाड़ी की सहकारिता परिषद ने मंसूर हादी का समर्थन करते हुए उसे वैध राष्ट्रपति माना और एक प्रस्ताव पेश किया।  इस प्रस्ताव में यमन को तथाकथित संकट से निकालने के लिए कुछ सुझाव दिये गए थे।  इसमें कहा गया था कि मंसूर हादी और सऊदी अरब के विरोधी गुटों का निशस्त्रीकरण कराया जाए और मंसूर हादी को राष्ट्रपति के रूप में वापस यमन लाया जाए।  इसी बीच अमरीका और ब्रिटेन ने फ़ार्स की खाड़ी की सहकारिता परिषद की ही भांति एक प्रस्ताव को संयुक्त राष्ट्रसंघ की सुरक्षा परिषद में पेश किया।  इसके आधार पर यमन की जनता को अपने भविष्य के निर्धारण का कोई अधिकार नहीं है।

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अंततः सऊदी अरब ने तथाकथित गठबंधन बनाकर यमन के भगोड़े राष्ट्रपति को पुनः सत्ता में पहुंचाने के बहाने 26 मार्च 2015 को यमन पर हमला कर दिया।  इस हमले का आदेश सऊदी अरब के नए बूढ़े शासक, सलमान बिन अब्दुल अज़ीज़ ने दिया।  हालांकि यह कोई नया हमला नहीं था।  इससे पहले भी सऊदी अरब कई बार यमन पर हमले कर चुका है जिनका कोई परिणाम नहीं निकला।

सऊदी अरब ने यमन पर हमला करके इस निर्धन देश की आधारभूत संरचना को पूरी तरह से नष्ट कर दिया।  यमन पर सऊदी अरब द्वारा किये गए हमलों में हज़ारों की संख्या में निर्दोष यमनवासी मारे गए और घायल हो गए।  मृतकों में महिलाओं और बच्चों की संख्या भी बहुत अधिक है।  सऊदी अरब ने यमन के न केवल आधारभूत ढांचे को नष्ट किया बल्कि वहां के आवासीय क्षेत्रों अस्पतालों, स्वास्थ्य केन्द्रों, स्कूलों, शिक्षा केन्द्रों और मस्जिदों पर भी हमले किये।  वर्तमान समय में यमन की यह स्थिति है कि वहां के लोगों के पास उपचार के लिए दवाए नहीं हैं, वहां पर महामारी फैल चुकी है, बड़ी संख्या में लोग भुखमरी का शिकार हैं और कुपोषण के कारण हज़ारों बच्चे काल के गाल में समा चुके हैं।

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विशेष बात यह है कि स्वय संयुक्त राष्ट्रसंघ ने आधिकारिक रूप में यह बात आधिकारिक रूप में स्वीकार की है कि यमन पर सऊदी अरब के हमले से यमनवासियों को बहुत नुक़सान हुआ है।  राष्ट्रसंघ का यह भी कहना है कि सऊदी अरब ने यमन पर हमला ऐसी स्थिति में किया कि जब वहां के संघर्षरत गुट, एक राजनैतिक समझौते के बिल्कुल निकट पहुंच चुके थे।